8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।लगभग हर किसी ने कुछ ना कुछ लिखा या शेयर किया।मैंने सोचा लोगो को एक दिन तो महिला का बखान कर लेने दे।मै कल ही कुछ लिखूँगी।कल के बाद तो कोई न्यूज़ या होली का त्योहार मार्किट में आ ही जायेगा।वैसे 8 मार्च को एक और घटना घटी।वो था "श्रीमती श्यामा चौबे" एवम "स्वर्गीय ब्रजेश कुमार चौबे " जी को पुत्री रत्न की प्राप्ति।अर्थात मेरा जन्म हुआ।ये एक मात्र संयोग ही है कि ,मेरा जन्म 8 मार्च को हुआ।वैसे मेरा जन्म अगर अगस्त 6 को (हिरोशिमा पर बम गिरा ) या फिर दिसम्बर 6 (बाबरी कांड ) को होता। या फिर हिंदी कैलेंडर के हिसाब से नागपंचमी या रावण वध के दिन होता ,तो भी मेरी पहचान एक महिला के ही रूप में ही होती। 8 मार्च का मेरे महिला होने या ससक्त होने से कोई सम्बन्ध नही है।हाँ मेरी माँ का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ था।पर वो बिना 8 मार्च का महत्त्व समझे ही ससक्त थी ,और आज भी है।उसे कहाँ मालुम होगा कि मेरी बेटी का जन्म , महिला दिवस के दिन हुआ है।वो भी अंतरराष्ट्रीय।बिना कुछ जाने ही "श्यामा" एक बेटी के जन्म पर खुशी से पागल हुए जा रही थी।कुछ लोगो का कहना था ,14 साल के इंतज़ार के बाद भी भगवान बेटी देलन।बेटी के जनम पर मिठाई और डॉक्टर को साडी क्यो देना? पर श्यामा और ब्रजेश के लिए ना कोई बेटी का इंतज़ार था ना बेटे का।उन्हें बस एक बच्चा चाहिए था।जो मेरे रूप में उन्हें मिला।तो उन्होंने दिल खोल के खर्च किया।जिनको जो कहना था कहते रहे।इतने बरसो की तपस्या का फल मै थी।तो नाम ही "तपस्या " रख दिया। कुछ लोगो ने कहा अजीब नाम है।पर मेरे पिता के मृत्यु के बाद मेरी माँ ने मेरा नाम नही बदला।दादा जी "कांग्रेस पार्टी" के भक्त थे ,तो उन्होंने "प्रियंका" नाम दे दिया।जब तक जीवित रहे वो और दादी प्रियंका ही कहते रहे।वही मौसी ने "लवली" नाम रख दिया।जो ज्यादा प्रचलित हुआ।माने की पुकार का नाम (निकनेम ). जन्म से थोड़ा आगे आती हूँ।जब मै बड़ी हो रही थी ,तबतक मुझे महिला ससक्तिकरण का "म " भी नही मालूम था।मुझे मालूम ही नही था की ,महिला को भी मजबूत बनाया जा सकता है।हँसी आ रही है महिला ससक्तिकरण के विचार से।महिला को मजबूत बनाओ।उनके पैरो पर खड़ा करो।उनको उड़ने दो।अत्याचार ना सहने दो।भाई और बहनो ,सखा और सखियों ,चाचा और चाचीयो महिला कोई दिवार नही जो ,अम्बुजा सीमेंट से मजबूत बनायेंगे।हर इंसान यहाँ तक जानवर भी अपने ही पैरो पर खड़ा होता है।कभी देखा है किसी महिला को ,सिर उसका और धड़ किसी और का ? मै मॉर्डन आर्ट की बात नही कर रही।कभी कोई इंसान उड़ता है क्या ? जो महिलाये उड़े ?रही बात अत्याचार की तो ,तुम करो नही हम सहेंगे नही।आपलोगो को नही लगता "अंतरास्ट्रीय इंसान दिवस" मनाना चाहिए।जिसको जरुरत हो वही ससक्त बने।चाहे वो महिला हो ,पुरुष हो ,बुज़ुर्ग हो ,बच्चे हो।किसी को कमजोर जता के ससक्त कभी नही बना सकते।मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता था।जिन्होंने बेटे की चाह में 9 बेटियाँ पैदा कर दी।यहाँ अंकल को ही ससक्त होना चाहिए था।पर क्या करे वंश कैसे बढ़ेगा ?हाँ उन्होंने ने अपनी बच्चियों को मारा नही।पर उन्हें बेटी का होना जताते रहे।क्या सिर्फ वंश की लालच में या बुढ़ापे की लाठी के रूप में आपको बेटा चाहिए ?तो माफ़ कीजिए इस युग में आप बिलकुल गलत है।श्रवण कुमार सिर्फ एक ही थे।उनकी तुलना करके बेटे का भी बोझ मत बढाइये।वैसे भी बागवान फिल्म ने आपलोगो को बहुत कुछ सीखा दिया है।रही वंश की बात तो क्या आपको आपके दादा के दादा का नाम मालूम है ? फिर किस वंश का लालच।इसका एक ही उपाय है।अपना नाम "चन्द्रगुप्त" रख ले।बच्चो फिर उनके बच्चो का नाम चन्द्रगुप्त 1 से लेकर जहाँ तक चले चलाइये।बात नारी ससक्तिकरण की है तो ,एक बहुत ही दिलचस्प वाक्या शेयर कर रही हूँ -2010 की बात है।मै और मेरी दोस्त सबनम ऑफिस से घर आ रहे थे।शाम को 7: 30 बज रहे होंगे।बस स्टॉप से हमें ऑटो लेना होता था ,मेहरौली जाने के लिए।हमलोग ऑटो का इंतज़ार कर रहे थे।कुछ दूर पर एक आदमी एक औरत को मारे जा रहा था।मैंने सबनम को बोला चल देखते है ,हुआ क्या है ?औरत चिल्ला रही है।सब देखते हुए भी गुजर रहे है।सबनम बोली रहने दे ना ,घर चलते है ? वैसे ही ट्रैफिक की वजह से लेट हो गए है ,अबु (सबनम के पापा ) गुस्सा हो जायेंगे।मैंने कहा तुझे चलना है तो चल नही तो मैं जा रही हूँ।वो वही खड़ी रही।मै उस आदमी और औरत के पास गई।मैंने पूछा क्यों मार रहे हो इसे ? वो बोला तुम्हे इससे मतलब ? और एक लात उस औरत को मारी।मैंने देखा वो औरत प्रेगनेंट थी।बार -बार मार खा कर नीचे बैठ गई थी।उससे उठा नही जा रहा था।मुझे बहुत गुस्सा आया।मैंने उस आदमी को बोला मारना बंद करो।उसने कहा तू क्या इसकी बहन लगती है ?क्या कर लेगी ? औरत रोये जा रही थी।मैंने बोला रुको नही तो पुलिस को फोन कर दूँगी।आपको मालूम है उस आदमी का क्या जवाब था ? बोला देख लो मेरा मोबाइल ,मेरी बीबी है।उस औरत की फोटो दिखाने लगा।बोला मै जो चाहू करू इसके साथ।तुम्हे क्या ? थोड़ी देर तक मेरा बहस सुन कर , सबनम मुझे समझाने आई बोली छोड़ ना चलते है।मैंने कहा अब तो मै पुलिस को कॉल करुँगी।इतना सुनते ही सबनम बोली यार मै जाती हूँ।तुझे जो करना है कर ,अबु मुझे मार डालेंगे।वो चली गई। मैंने 100 नंबर डायल किया।मेरी खुशकिस्मती संयोग से फोन नही लगा।मुझे समझ नही आया क्या करु ? मेरा चचेरा भाई दिल्ली एयरफोर्स में पोस्टेड था।मैंने उसे कॉल लगाया।उसका कॉल बिजी था।मैंने बिजी नंबर पर झूठमुठ ही बोलना शुरू किया।हैलो पुलिस स्टेशन यहाँ साकेत बस स्टॉप के पास एक आदमी एक औरत को मार रहा है ,जल्दी पहुँचे।आदमी ने पुलिस के कॉल को सच समझा।मुझे इस बार आप कहते हुए बोला।आप क्या जानती हो क्यों मार रहा हूँ इसे ? बस में एक लड़के को देखे जा रही थी ,तो मार नही खायेगी ? इतना कह कर आदमी जमीन पर पडी पत्नी को छोड आगे जाने लगा।मै हैरान कि अब क्या करू ?पुलिस तो आनी नही थी।तबतक मेरे भाई और चचरे भाई के कॉल पर कॉल और मै कॉल कट कर रही थी।औरत हिम्मत करके उठी बोली -जाने दो दीदी पुलिस का चक्कर मत करो।मेरा मर्द छोड़ देगा तो मै क्या करुँगी ? मुझे ये डर कि कही ये साथ चलने को ना कह दे।पर वो खुद लड़खड़ाते हुए अपने पति के पीछे जाने लगी।मेरी साँस में साँस आई।मैंने ऑटो लिया कि फिर से चचरे भाई का कॉल आ गया।पूछा फ़ोन क्यों किया था ,और कट क्यों कर रही थी ? मैंने उसे सारी कहानी बताई।उसने मुझे डाँटा,फिर समझया।मेरे भाई को भी कॉल कर दिया।भाई भी गुस्सा हो गया। उसने मुझे समझया कि तुम कुछ गलत नही किया पर लोग पागल होते है।तुम वहाँ अकेली हो अभी।मै भी घर आया हूँ।कुछ हो गया तो।अगले दिन मुझे उस रास्ते से ऑफिस ना जाने की सलाह दी गई।पर मै तो मै हूँ।शाम को फिर भाई का फोन आया कि मै ठीक से घर तो पहुँच गई ? आज तो वो आदमी नही मिल था ? तो कहानी का सार ये कि, यहाँ पर मुझे या फिर उस मार खाती महिला या फिर सबनम को खुद समझना होगा ,कि हमे क्या करना चाहिए।ना की किसी की मदद करके मेरे जैसा डर जाना की ,पुलिस ना आई तो ,या फिर किसी सुन्दर इंसान को देखने की वजह से पिटना या फिर अबु के डर से भाग जाना।हमें किसी चीज़ से आजादी या कोई विशेष अधिकार मत दो।हमें आपने सोच को जीने दो।हम खुद ससक्त हो जायेंगे।अगर ससक्तिकरण का दूसरा संदर्भ महिला के जॉब या शारीरिक दुर्बलता से है ,तो माफ़ कीजियेगा मैंने कई ऐसी महिलाओ को देखा है ,जो सिर्फ शादी या परिवार के लिए जॉब कर रही है।जबकि उनकी रूचि कही और है।वही कमजोर काया हमारी सृस्टी का देन है।हमे प्रकृति बदलने का शौख नही।बस भर पेट खाना दे दिया करे।बहुत हुआ अब ज्ञान बाकी तो जो है सो है ही।जाते -जाते मेरे जन्मदिन के कुछ गिफ्ट की तस्वीर।काहे की अंत भला तो सब भला।धन्यवाद चुलबुल ,शतेश ,रोहिलखण्ड ग्रुप और सभी शुभचिंतकको का।@धन्यवाद माँ तुमने कभी मुझे सक्त बनाने की कोशिस नही की।मेरी सोच को रोका नही और एक दुस्ट भाई दोस्त के रुप मे दिया।
No comments:
Post a Comment