Friday 18 March 2016

मोरे कान्हा जो आये पलट के ,अबकी होली मै खेलूँगी डट के !!!

प्रिय दोस्तों ,
आप सबको होली की रँगीन बधाइयाँ।आपका जीवन रंगो से भरा रहे।
विषय :-बुरा ना मानो होली है !
दोस्तों ,
आप सबके सामने मै एक बात कुबूल कर रही हूँ ,कि मै आलसी हूँ।पर इस बार मेरे ब्लॉग की देरी की वजह मेरा आलस नही।मेरा नया ठिकाना है।मै और शतेश न्यू जर्सी से डलास मूव हुए है।इनसब के बीच थोड़ी भागमभाग हो गई।मन भी थोड़ा उदास था।नए जगह की ख़ुशी कही ना कही पुराने जगह का मोह भी साथ ले आई।शतेश के दोस्तों के साथ कब ये समय निकल गया, मालूम ही नही चला।सोचती हूँ ,पहले मायका छूटा ,फिर ससुराल।इसबार तो स्नेह से बने घर और रिश्ते भी छूट रहे थे।मै वैसे ही इंडिया से आने के बाद उदास थी।डलास आना मेरी उदासी दुगना कर गई।न्यू जर्सी में मैंने बहुत खूबसूरत पल गुजारे।खूबसूरत रिश्ते मिले ,अच्छे दोस्त मिले ,प्यारे बच्चो की बुआ बनी।ऐसा लगता था ,जैसे घर से दूर ही नही थी।सबसे ज्यादा मुझे प्रवीण भईया ,विवेक भईया और मेरे आरव की याद आयेगी।आने के बाद जिस दिन प्रवीण भईया से बात हुई ,मै खूब रोई।शतेश बोले भेज दूँ प्रवीण भाई के पास तुम्हे ?पर क्या है ना सारा प्यार एक तरफ पति का प्यार एक तरफ।बुरा ना  मानो होली है :) प्रवीण भईया और विवेक भईया की नोक -झोक।आरव का मुझसे लिपटना ,पस्या आँटी कहना ,मेरे साथ खेलना सब बहुत याद आयेगा।भाई माहौल अभी इमोशनल हो रहा है।थोड़ा ख़ुशी के रँग भरते है।मेरे आने के एक दिन पहले मै शतेश के दोस्त अवधेश के यहां रुकी थी।ये वही "वर्मा जी" है ,जिनके यहाँ मेरी मुलाकात शतेश के सारे दोस्तों से हुई।नीचे के फ्लैट में बिहार की ही मेरी दोस्त प्रियंका रहती है।मैंने सोचा जाने से पहले उससे भी मिल लिया जाय।बाहर थोड़ी धूप थी ,तो हमदोनों धुप खाते हुए बातें करने लगे।बातो के बीच समय का पता ही नही चला।समय का पता तब लगा ,जब उसका बच्चा आ के बोलता है ,ममा भूख लगी है। मुझसे बात करने के चक्कर में उसने खाना ही नही बनाया था।बोली बेटा रुक जा खिचड़ी पका देती हूँ :) इसी बीच उसके पतिदेव भी जॉगिंग करके वापस आगये थे।वो उसके बगल से गुजरे और उसे खबर भी ना लगी।मुझसे करीब आधे घंटे बाद बोलती है ,कितना जॉगिंग कर रहे है ,आज मेरे पतिदेव।मैंने बोला  बहन वो आ चुके है।हमदोनों की हँसी निकल पड़ी।मैंने उससे बिदा लिया।वापस रूम में आ कर "वैली ऑफ़ सैंटस "(कश्मीरी मूवी) उसके दिए हुए रसगुल्लों को खाते हुए देखने लगी।इतने दिनों इधर -उधर रही।आपलोगो के मैसेज मिले।कुछ पूछते की खट्टी -मिट्ठी क्यों सुना पड़ा है ?कई लोग मझे सलाह भी देते है कि, अबकी बार इस टॉपिक पे लिखना।कुछ को मेरी यात्रा के रंग देखने है ,तो कुछ को होली के रंग चाहिए।किसी को बिहारी लोगो की शादी के बारे में जानना है।भाई मेरे शादी तो शादी होती है।कैसे भी करवा लो।नाच -गाना ,खाना -पीना के साथ दो जाननेवाले या फिर दो अनजान लोगो को एक साथ बाँध दो।उसके बाद में उनका तो बजना चालू रहेगा :P  बस रस्में थोड़ी अलग होती है।यार मैंने शादी की रश्मो के बारे में लिखा है।गलती से उन दो लोगो के बीच माने दूल्हा -दुल्हन की रश्म मत समझ लीजियेगा।ये तो अलग -अलग केस में वैरी करता है कि, दोनों कैसे बजते है :P शादी और यात्रा की कहनी बाद में लिखूंगी।वैसे मेरे एक दोस्त ने मुझे "साइलेंट प्यार " के बारे में  भी लिखने को कहा।ये भी एक दिलचस्प टॉपिक है।जल्द ही इसपर लिखूंगी।बहुत अच्छा लगता है जब लोग सलाह देते है।पर अभी मौका भी है दस्तूर भी तो ,माफ़ी चाहूँगी।होली का त्यौहार है तो, होली पे ही लिखती हूँ।मुझे बहुत पसंद है होली।भाई से दिल्ली में लड़ -लड़ के रंग खेलती थी।मौसम भी कुछ अलग ही होता है ,इस वक़्त।कही पतझड़ तो कही आम के पेड़ पर मोजर लगे पड़े।कभी गर्मी तो कभी गुलाबी ठंढक।ऐसे में रँग खेलने के बाद उसे छुड़ाने का मजा ही कुछ और है।रँग से भीगे ,काँपते हुए हाथो से चेहरे को मले जा रहे है।साथ में कुछ गालियाँ भी कि ,किस कमीने ने हरा रँग या पेंट लगा दिया।घर पर तो होली का जोश एक दो सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाता।आज की तरह ,हर्बल होली या फैशनेबल होली भी नही होती थी।ऐसा भी नही कि बिल्कुल सफ़ेद अच्छे कपडे में होली खेलना है।होली के टाइम तो सफ़ेद कपड़ो को छुपा दिया जाता था ,की गंदे ना हो।माँ की सख्त हिदायत होती पुराने कपडे पहन लो,तेल मल लो।कपडे ख़राब भी हुए तो कोई बात नही।बिहार की होली मतलब गोबर,पानी ,कीचड़ ,धूल और इनके बीच रँग।साथ में लोगो के ऊपर भाँग और दारू का नशा।करीब 10 साल से बिहार की होली नही देखी।हर साल होली पर मन बेचैन होता है कि ,काश घर पर होती।इस मौसम में मन ऐसे ही बेचैन रहता है।पता नही क्यों ? शायद इसलिए भी बिहार में कहते है ,"का भाई फगुनहट लागल बा का हो" :) सुबह रँगो से भींगना तो शाम को अबीर से नहाना साथ में पुआ (बिहारी स्पेशल ) की बात ही कुछ और है।मैंने कभी जोगीरा नही सुना ,पर भाई के आँखों से देखा है ,कि कैसे होता है जोगीरा।प्रायः गाँव में जोगीरा,होरी ,चैता गया जाता था होला में।अभी भी कही -कही होता है।कुछ लोग ग्रुप बनाकर ढोलक -झाल लिए एक सुर में " खेले मसान में होरी दिगम्बर हो या जोगीरा सारा -रा -रा "मस्त होकर गाते है।पर अब होली के जोगीरा की जगह डीजे वाले बाबू ने ले ली है।वैसे एक बात का रहस्य आज भी मुझे समझ नही आया ,भौजी के साथ होली खेलने का क्या कनेक्शन है ?:) माने ऐसे ही पूछे है ,बुरा ना मनो होली है।वैसे तो होली पर एक से बढ़कर एक गाने,ठुमरी बने है।पर सच मानो तो होली पर मुझे "लम्हे" मूवी का एक गीत बड़ा सटीक लगता है।"मुझे छेड़ो ना नन्द के लाला कि, मै हूँ बृजबाला नहीं मैं राधा तेरी"।हा -हा -हा उ का है कि ,होली में सब खुद को कृष्ण और सामने वाली को राधा समझ बैठते है :) खैर ये उनका दोष नही होली के रँगो का है।एक और बात है ,काहे हर गाने में बलम ही पिचकारी मारते है ? रँग बरसता है ,तो केवल चुनरवाली ही भींगती है ? प्रेमिका को बहुत तंग करने वाले गीत बने है ,होली को लेकर।पर रुक तो जाइये हुज़ूर कुछ गाने है,जो प्रेमिका को भी समझते है :) जइसे "अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मोरा घूँघट ,पलट के दूँगी आज तुम्हे गाली रे ,मोहे समझो ना तुम भोली -भाली रे "सुन लीजियेगा।सच में इस गाने की नायिका को देख आप सच में हिम्मत हार जायेंगे :)
आपलोगो को रँग नही पाने का मलाल तो है ,पर शब्दों से रँगने की एक छोटी सी कोशिश की है।साथ ही मेरे  प्रिय गानों की लिस्ट में से एक गाना होली की शुभकामनाओं के साथ।
आपकी तपस्या !
  

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