Wednesday 10 August 2016

प्रेम से तपस्या तक !!!

स्टेज पर एक दिव्य ज्योति चमक रही है।एक तरफ एक एक बरगद के पेड़ के नीचे एक तपस्वी बैठा है।दूसरी तरफ उसके सामने एक कन्या खड़ी है।उस कन्या का नाम ज्योति है।ज्योति के ठीक पीछे एक पुरुष खड़ा है। जिसका नाम प्रकाश है।प्रकाश ,ज्योति का पति है।वही तपस्वी आज एक जोगी है पर ,कभी उसका नाम तेज हुआ करता था।अब नाटक कुछ यूँ आगे चलता है। 
ज्योति :- अरे तेज तुम ? मैं ज्योति,पहचान मुझे ?
तपस्वी :- ज्योति तुम।तुम इतने सालों बाद ? 
ज्योति :- मुझे तो लगा तुम मुझे पहचान ही नही पाओगे।मैंने तुम्हारे बारे में सालो पहले सुना था कि , तुम संन्यासी हो गए।मुझे तो यकीन ही नही हुआ।कई तरह के लोग कई तरह की बाते बताते ,तुम्हारे संन्यास को लेकर।कई तरह के सवाल है ,मेरे मन में।आज मिले हो तुम।अब तुम ही बता दो सचाई क्या थी ?
तपस्वी :-सब कुछ अचानक तो नही हुआ ज्योति।मेरे मन में आध्यात्म के बीज तो पहले से ही थे।बस उसको जाग्रित होने में वक़्त लग गया।हर चीज़ का एक निश्चित समय होता है।आध्यत्म से जुड़ने का सबसे बड़ा कारण मेरा एक बार मृत्यु से बच जाना भी है।बाद में चीज़े खुद बखुद होती चली गई।तुम्हे याद है -एक समय था जब मै तुम्हारे प्रेम में था।मुझे हर जगह- हर वक़्त तुम्ही दिखाई देती थी।
ज्योति :- हाँ तेज मुझे याद है ,पर उस वक़्त मै तुम्हारे प्रेम को समझ नही पाई थी।मेरे भी अपने कई कारण थे। 
तपस्वी :- ज्योति तुमने बिल्कुल सही निर्णय लिया था।वो समय ही ऐसा था।किसी को दोष नही दे सकते।वैसे तुम्हे मालूम है ,मैंने तुम्हारे लिए ऊपहार भी लिए थे।कविताये भी लिखी थी ,पर कभी ऊन चीज़ो को दे नही पाया तुम्हे।तुम मेरे प्रेम आग्रह से रुठ कर ,मुझसे सदा के लिए दूर हो गई। 
ज्योति :- हाँ मुझे याद है।मुझे याद है कि ,तुमने माफी भी माँगी थी।पर मेरा कठोर हृदय कहो या लोक -लाज का भय जो मैं तुम्हे बिना बताये दूर चली गई। 
तपस्वी :- उसके कुछ सालो बाद मै एक धर्मिक सम्मलेन में गया।वहाँ मुझे आत्मिक सुख मिला।तब मैंने सोचा जीवन के कुछ साल आध्यत्म को भी दे कर देखता हूँ।अच्छा नही लगा तो वापस मुड़ जाऊँगा।पर सच मानो ये मेरा निर्णय जीवन का सबसे सुखद निर्णय रहा।मै पूरी तरह से संतुस्ट हूँ।मुझे किसी बात का अफसोस नही। 
ज्योति :- तुम्हे मालूम है तेज -मै कई बार ऐसा सोचती थी कि कही ,तुम्हारे जोगी बनने के पीछे  कारणों में मै एक तो ना थी।फिर मै आत्मग्लानि से भर जाती।कई बार प्रकाश से भी मैंने ईस बारे में चर्चा की है।प्रकाश मजाक में कहते ज्योति से ही तो तेज निकलता है।फिर देखते कि मैं उदास हो गई ,तो कहते -ऐसा बिल्कुल ना सोचो।संन्यास के पीछे कई कारण हो सकते है। 
तपस्वी :-ये बहुत अच्छा है।पति -पत्नी में पारदर्शिता हो तो जीवन सुखी रहता है।एक बात और जीवन में आध्याम हो तो मन शांत रहता है।तुम भी ज्योति कभी समय मिले तो थोड़ी साधना किया करो।लाभ ही होगा। 
ज्योति :-हँसते हुए -मै अपने जीवन में सुखी हूँ तेज।मुझे और ज्यादा की कामना नही।आज यूँ ही गुजरते हुए यहाँ से तुम दिख गए।मै कितनी खुश हूँ तुमसे मिल कर बता नही सकती। 
 तपस्वी :- मैंने तुम्हे एक बार ढूँढने की कोशिश की थी।तुम मुझे मिली भी थी।देखा तो तुम अपने पति के साथ दूर कही जा रही थी। 
ज्योति :- ओह! ,तो अरे पागल मुझे आवाज क्यों नही दी ? माफ़ करना मै क्या तुमसे ईस तरह बात कर सकती हूँ ?
तपस्वी :- तुम जैसे चाहो बात कर सकती हो।मैंने देखा कि तुम बहुत दूर थी।वहाँ तक मेरी आवाज नही जाती।इसलिए मै वापस आ गया। 
ज्योति :- हम्म ! मेरे पास तो तुम्हारी खबर जानने का कोई साधन ही ना था ,फिर मेरी अपनी गृहस्ती भी है।
तपस्वी :- मेरा ठिकाना तो पिछले 14 सालो से बदला ही नही। 
ज्योति :-(ये सुनते ही ,रोते हुए )-आह ! तेज, मैंने कभी ये जानने की कोशिश ही नही की।छोड़ो तुम खुश हो आपने जीवन में ,मुझे संतोष हो गया। 
तपस्वी :- चलो तुम्हारा मन हल्का तो हो गया।हाँ सुनो एक बात और हमारे कुछ नियम है ,जिसके तहत हमलोग किसी महिला या कन्या से ज्यादा बात नही कर सकते ,मिल -जुल नही सकते।इसलिए मै अब चलता हूँ।
भगवान् का आशिर्वाद बना रहे तुम पर। 
स्टेज से तपस्वी जाने लगता है ,तभी प्रकाश ,ज्योति को कहता है -
ज्योति ये तुम्हारा सच्चा प्रेमी था।आह ! तुम्हे नही लगा कही ना कही तुम तेज के अन्तर्मन में थी।तभी तो वो तुम्हे ढूँढ़ रहा था।पिछले कई सालो से उसने अपना ठिकाना भी नही बदला।जो भी हो शायद उसकी नियति यही थी।वो आध्यत्म में खुश है ,और मै तुम्हारे साथ।शायद मेरा प्रेम उसके तुलना में कई गुना ज्यादा है ,इसलिए आज तुम मेरे साथ हो।
ज्योति :- हाँ सही कह रहे हो प्रकाश।पर तुमने कुछ नए प्रश्न तो जरूर डाल दिए मेरे मन में पर मै अब इन प्रश्नों के पीछे नही भागने वाली।मुझे बस इस बात की ख़ुशी है कि ,तेज अपने अपनाये मार्ग पर खुश है।मै तुम्हारे साथ सम्पूर्ण हूँ।
प्रकाश और ज्योति, तेज जिधर गया उस दिशा में देखते है।स्टेज पर रौशनी फैल जाती है।सामने दर्शको की ताली की गड़गड़ाहट गूँज रही है।


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