Wednesday 11 October 2017

कब्रिस्तान !!!

वीकेंड हमारा घूमने के नाम फिक्स होता है। कही ना कही जरूर ही जाते है ,जबतक कोई मौषम की गड़बड़ी ना हो या अपनी तबियत की गड़बड़ी ना हो। इसी तरह दुर्गा पूजा वाले वीकेंड को, हमने ब्रज टेम्पल जाने का प्लान किया। सच बताऊँ तो मुझे अमेरिका का कंट्री साइड यानि छोटे -छोटे गाँव जवार के रास्ते और गाँव  ही ज्यादा पसंद आते है। हो सकता हो छोटे जगह से आने का असर हो। खैर मंदिर जाने का रास्ता बहुत ही सुन्दर है। उसकी तस्वीरों के साथ फिर कभी मिलूंगी। आज कब्रिस्तान की बात करनी है।
हुआ यूँ ,रास्ते में मुझे एक कब्रिस्तान दिखा। सुन्दर -सुन्दर फूल लगे थे उसमे। सड़क से बिल्कूल सटे। चलती गाडी से ही एक दो फोटो लेकर ,मैं कुछ सोचने लगी। सोच रही थी कि ,यहाँ अबतक की अंतिम यात्रा नही देखी। कैसी होती होगी ?क्या -क्या होता होगा ? फिल्मों में तो कई बार देखा है ,पर कभी किसी क्रिस्चन के फ्यूनरल को सच में नहीं देखा। 
हाँ एक बार डेज़ी से बातचीत में मालूम हुआ था कि ,ईसाई लोग दफ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन लोग अब खर्च और जगह की कमी को ध्यान में रखते हुए दाहसंस्कार भी कराने लगे हैं। पर जो रूढ़िवादी ईसाई हैं वो आज भी दफनाना ही पसंद करते है। 
विषय से ना भटकते हुए तपस्या कब्रिस्तान देखने और सोचने पर आओ। हाँ फिर बहुत कुछ सोच रही थी जो बाद में बताऊँगी। अभी हुआ यूँ कि ,खूबसूरत वन वे रोड से निकल कर हमलोग हाईवे पर आ गए। स्पीड लिमिट 50 की थी ,पर गाड़ियाँ रेंग रही थी। ऐसा भी नहीं था कि ,ट्रैफिक हो या कोई एक्सीडेंट दिख रहा हो जीपीस में। वही दूसरे लेन में कोई गाडी ही नहीं जा रही थी। मैं और शतेश हँस रहे थे कि हुआ क्या है ? लोग इतनी कम स्पीड में क्यों जा रहें ? दूसरी लेन में कोई जा क्यों नहीं रहा ? शतेश बोले ऐसे रेंगने से अच्छा दूसरी लेन में चल लेते है। फिर पता नहीं मुझे क्या सुझा मैंने कहा रहने दो। लोग इतने बेवकूफ तो नहीं  शायद आगे रोड बंद हो। काफी जगह रोड का काम भी चल रहा था। खैर हमलोग भी उसी लेन में रेंगते रहे। कुछ 20 मिनट आगे जाने के बाद एक मोड़ था ,जहाँ एक आदमी काले कोट में एक तख्ती लिए खड़ा था -फ्यूनरल ट्रैफिक। भगवान् कसम मैं थोड़ी शॉक्ड रह गई। ये क्या अभी यही सोच रही थी कि ,किसी की अंतिम यात्रा नहीं देखी यहाँ और ये देखो।
जो दूसरा लेन ख़ाली था ,उसपर आगे लाइन से गाड़ियाँ जा रही थीं। सबके ऊपर एक छोटा सा झंडा लगा था ,जिसपर फ्यूनरल लिखा था। मैं और शतेश उन गाड़ियों को देख बात करने लगे कि ,कितना शांत और सम्मान के साथ अंतिम यात्रा चली जा रही है। हमारी लेन की गाड़ियाँ मोड़ के  बाद तेज हो चुकीं थी। फिर कुछ 25 /30 गाड़ियों के बाद हमें एक बड़ी सी गाडी में कॉफिन (शव का बॉक्स ) धुँधला सा दिखा। उसके आगे कुछ गाड़ियाँ बेहद धीरे चल रहीं थी। मैंने शव को प्रणाम किया ,मुक्ति की प्रार्थना की और फिर सोच में डूब गई। शतेश भी चुप थे। शायद वो भी कुछ सोच रहे हों। 
*अब जो कुल मिला कर मेरी सोच थी वो ये रही -मुझे डेज़ी की बातें याद आ रही थी कि -कैसे क्या होता है ।यहाँ अंतिम यात्रा के लिए ज़्यादातर लोग पहले ही अपने लिए किसी फ्यूनरल होम से बात करके प्लॉट बुक कर लेते हैं ।अपनी अंतिम इक्षा की गति अपने घरवालों या किसी पेज पर लिख कर रखे रहते है कि ,उन्हें जलना है या दफनाना ।जो ऐसा नहीं कर पातें उनके परिवारजन या मित्र अपने हिसाब से जो ठीक लगे कर देतें हैं ।यहाँ कब्रिस्तान भी दो होतें हैं -एक ग्रेवयार्ड (जो चर्च के अधीन होता है या चर्च का हिस्सा होता है )दूसरा समेटरिज (ये प्राइवेट प्रॉपर्टी होती है )
ग्रेवयार्ड के भरने के बाद समेटरीज बनाई गई ।डेज़ी के अनुसार यहां भी प्रार्थना उसके बाद भोज होता है ।सब दो या तीन दिन में निपट जाता है ।ये परिवार और मरने वाले की ईक्षा के अनुसार होता है ।
पता नहीं आज मैं ये सब क्यों आपसब तक पहुंचा रही हूँ ।बस मुझे लगा जैसे मेरी जानने की ईक्षा थी शायद औरों को भी हो ।
नोट :- लोग यहां कब्रिस्तान भी घूमने जाते हैं ।कई फेमस कब्रिस्तान ने जाने की फी भी लगती है ,गाइड भी होते हैं ।अभी हैलोवीन आने वाला है तो यहाँ कुछ प्रोग्राम भी होते हैं । मेरा भी बड़ा मन था ,लूसियाना का सेंट लुइस सिमेट्री और विर्जिना का अर्लिंग्टन नेशनल सिमेट्री (सिविल वॉर के सैनिकों के साथ जॉन एफ कैन्डी का भी शव दफन है )देखे का ।गई दोनों जगह पर लूसियाना में उस दिन बारिश हो गई ।वर्जिनिया वाले का टिकट एक आदमी 49 डॉलर। मतलब दोनों का लगभग 100 डॉलर। शतेश मेरा मज़ाक उड़ाते हुए बोले की -श्मशान देखने में समय और इतने पैसा तपस्या ही बर्बाद करने का सोच सकती है। मैंने भी जोक को सीरियसली लिया और जाने से मना कर दिया। खैर अब नहीं देखा तो नहीं देखा। देखिये गूगल से ली हुई तस्वीर। 
पहली लुसियाना की :- जहाँ कब्र मिट्टी के ऊपर घर जैसे बने है।दूसरी सिविल वॉर के सैनिकों की।
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