“बिली एलिश” एक अट्ठारह साल की लड़की हरे रंगो में रंगी ग्रेमी अवॉर्ड लिए कहती है, -मैं इस अवॉर्ड के लिए अभी योग्य नही....
सबसे कम उम्र में ग्रेमी अवॉर्ड पाने वाली लड़की देखने में आपको अतरंगी लगे पर वो क्या करे जब वो है हीं ऐसी। वो क्या करे जब महामारी की तरह महानगर से नगर को घेरता तनाव, डिप्रेसन उससे भी प्यार कर बैठता है ? वो क्या करे की उसे ख़ुश होना नही आता ?
अपनी फुसफुसाहट में ख़ुद को दोहरती अपने अकेले साथी, अपने भाई के साथ, संगीत की दुनिया में खो जाती है पर उसे कहाँ मालूम यहाँ भी ख़ुशियाँ सिर्फ़ तरंगो तक ही है। शब्द तो उसने ख़ुद बिखेरें है...... दर्द भरे... उदासी भरे.....
पहली बार बिली तुम्हें वुडब्रिज मॉल में सुना था। सुन कर अपने देश की “जसलीन” याद आ गई। मैंने इनसे कहा कि कैसे बच्चों सी फुसफुसाहट गूँज रही है ना पर मुझे तो अच्छी लग रही है..... अपना फोन देना जल्दी सर्च करूँ इसे .
इनका फोन लेकर मैं सर्च करने लगी तुम्हारे बारे में, फिर लगा की कैसे इतनी कम उम्र में कोई इतना दुखी उदास हो सकता है ?
एक हम थे कि अट्ठाईस में भी अट्ठारह जैसे.....
ख़ैर तुम्हें जिस गाने के लिए ग्रेमी मिला मुझे वो कुछ खास पसंद नही, अल्बता तुम्हारा गया “माई स्ट्रेंज अडिक्शन” और “लव्ली” ख़ूब पसंद है।
लव्ली जब सुना तो उसका वीडीयो ज़्यादा इंटरेस्टिंग लगा। उससे कई क़िस्से बुने लिखने को पर अधूरे रह गए वो उधरते स्वेटर से ......
पर जब कल तुम्हें अवॉर्ड मिला तो बीते पलो को याद करने लगी। कुछ अपनी पसंद के तुम्हारे गाने सुने। लव्ली सोंग की कुछ लाइन फिर से सुनी और आँखों से आँसू बहने लगे ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे ग्लास के घर से बाहर पानी रिस रहा था......और देखो ना यहाँ कल बारिश भी हो रही थी हल्की सफ़ेद बर्फ़ो वाली....
ये कुछ ऐसे बोल थे तुम्हारे जो मेरे “हेलो तपस्या मैं ठीक हूँ” से शुरू यहाँ तक पहुँचने के मेरे दर्द को बायाँ कर गए थे....
“क्या पूरी तरह अकेले रहना ख़ूबसूरत नही ?
दिल शीशे का बना है और मेरा दिमाग़ पत्थर का
मुझे इतने टुकड़े में तोड़ो की मेरी चमड़ी और हड्डियाँ अलग -अलग हो जाए
हेलो ! स्वागत है मेरे घर में.....”
सबसे कम उम्र में ग्रेमी अवॉर्ड पाने वाली लड़की देखने में आपको अतरंगी लगे पर वो क्या करे जब वो है हीं ऐसी। वो क्या करे जब महामारी की तरह महानगर से नगर को घेरता तनाव, डिप्रेसन उससे भी प्यार कर बैठता है ? वो क्या करे की उसे ख़ुश होना नही आता ?
अपनी फुसफुसाहट में ख़ुद को दोहरती अपने अकेले साथी, अपने भाई के साथ, संगीत की दुनिया में खो जाती है पर उसे कहाँ मालूम यहाँ भी ख़ुशियाँ सिर्फ़ तरंगो तक ही है। शब्द तो उसने ख़ुद बिखेरें है...... दर्द भरे... उदासी भरे.....
पहली बार बिली तुम्हें वुडब्रिज मॉल में सुना था। सुन कर अपने देश की “जसलीन” याद आ गई। मैंने इनसे कहा कि कैसे बच्चों सी फुसफुसाहट गूँज रही है ना पर मुझे तो अच्छी लग रही है..... अपना फोन देना जल्दी सर्च करूँ इसे .
इनका फोन लेकर मैं सर्च करने लगी तुम्हारे बारे में, फिर लगा की कैसे इतनी कम उम्र में कोई इतना दुखी उदास हो सकता है ?
एक हम थे कि अट्ठाईस में भी अट्ठारह जैसे.....
ख़ैर तुम्हें जिस गाने के लिए ग्रेमी मिला मुझे वो कुछ खास पसंद नही, अल्बता तुम्हारा गया “माई स्ट्रेंज अडिक्शन” और “लव्ली” ख़ूब पसंद है।
लव्ली जब सुना तो उसका वीडीयो ज़्यादा इंटरेस्टिंग लगा। उससे कई क़िस्से बुने लिखने को पर अधूरे रह गए वो उधरते स्वेटर से ......
पर जब कल तुम्हें अवॉर्ड मिला तो बीते पलो को याद करने लगी। कुछ अपनी पसंद के तुम्हारे गाने सुने। लव्ली सोंग की कुछ लाइन फिर से सुनी और आँखों से आँसू बहने लगे ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे ग्लास के घर से बाहर पानी रिस रहा था......और देखो ना यहाँ कल बारिश भी हो रही थी हल्की सफ़ेद बर्फ़ो वाली....
ये कुछ ऐसे बोल थे तुम्हारे जो मेरे “हेलो तपस्या मैं ठीक हूँ” से शुरू यहाँ तक पहुँचने के मेरे दर्द को बायाँ कर गए थे....
“क्या पूरी तरह अकेले रहना ख़ूबसूरत नही ?
दिल शीशे का बना है और मेरा दिमाग़ पत्थर का
मुझे इतने टुकड़े में तोड़ो की मेरी चमड़ी और हड्डियाँ अलग -अलग हो जाए
हेलो ! स्वागत है मेरे घर में.....”