Wednesday, 27 May 2020

उसकी(हर) ख़ामोशी !!!

“द पास्ट इज़ जस्ट अ स्टोरी वी टेल अवरसेल्फ़स”
कहानी उसकी(हर) खामोशी की...

एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है ;
ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है
तुम्हारा इंतज़ार है, तुम पुकार लो …

धुन में डूबे दो प्रेमी युगल अपने काल और दुनिया से परे, किसी प्रेम लोक में डूबे हैं। कहते हैं एक दूसरे से, “अतीत सिर्फ एक कहानी है जो हम दुहराते हैं।”

थीयडॉर समन्था से कहता है, “मैंने किसी को ऐसे प्यार नही किया जैसे तुम्हें किया है।”
इधर अरुण राधा से कहता है, “तुम कहो और मैं ना मानूँ।”

उसकी खामोशी के साथ अब विदा की घड़ी आ गई है। नायिकाएँ जानती हैं कि अब उनके बस में कुछ नही सिवाए बर्बाद होने के। वे विदा माँगती है, पर दोनों नायक विरह की पीड़ा मात्र की कल्पना से तड़प उठते हैं। दोनो प्रेम से भरे हुए कभी आग्रह करते हैं तो कभी अधिकार जताते हैं ;

अरुण राधा से कहता है, “ मुझे छोड़कर मत जाना राधा।”
वहीं थियोड़ोर समन्था से बेचैन होकर पूछता है, “तुम क्यों जा रही हो समन्था ? नही तुम ऐसा नही कर सकती। हमलोग प्यार में हैं, तुम स्वार्थी क्यों बन रही हो?”

एक म्यूजिकल खामोशी पसर जाती है। आमने सामने सिर्फ़ दो ध्वनियाँ टकरा रहीं हैं।
एक अरुण की जो कहता हैं, “ राधा मुझसे प्रेम की ऐक्टिंग कर रही थी ये मैं मान नही सकता।”
और दूसरी समन्था की जो कहती है, “थीयडॉर,  मैं तुम्हारी हूँ भी और नही भी…”

बहुत कम ऐसा होता है कि कुछ फ़िल्में आपके ज़हन में एक अलग हीं मुक़ाम पा जाती हैं। ऐसा हीं कुछ “खामोशी” और “हर” के साथ है। यह पेचीदा सी कहानी जो मैंने ऊपर लिखी है वो दरअसल इन्हीं दो फ़िल्मों की कहानी है,ठीक वैसे हीं जैसे प्रेम सुलझा कहाँ होता…

अगर आपने दोनों फ़िल्मों को देखा होगा तो शायद आपको भी इसमें कई समानता दिखेंगी। हालाँकि दोनों के परिवेस और काल में अंतर है। एक सफ़ेद और काली दुनिया में प्रेम को रच रही है तो दूसरी चमक-धमक से भरी।

जहाँ खामोशी की राधा अपने गहरे कम संवाद से आपके मन पर गहरा छाप छोड़ती है, वहीं हर की समन्था अपने आवाज़ के जादू से आपको बांध लेती है।

एक तरफ़ राधा जो मानवीय प्रेम के ज़रिए मानसिक रोगियों को ठीक करने का ज़िम्मा लेती है। वहीं दूसरी तरफ़ समन्था एक ऑपरेटिंग सिस्टम है जो अपने शब्दों के ज़रिए लोगों के दिल में प्यार भर रही हैं। समन्था अपनी जानकारी से लोगों का जीवन सज़ा रही है और वहीं राधा अपने सेवा-भाव से मनोरोगियों का इलाज कर रही है।
संयोग देखिए बरस बीत गए पर दोनों ही काल में मनुष्य के मानसिक इलाज का ज़िम्मा प्रेम-पूर्ण स्त्री को हीं दिया गया है।

अंतत: दोनों ही नायिकाओं की दुनिया मानवों के विकास के साथ ध्वस्त हो जाती है। एक इंसान के प्रेम में पागल हो जाती है और दूसरी इंसान के नए पागलपन से अंत गति पा जाती है।

समन्था थीयडॉर के पूछने पर कहती है, “यह बता पाना मुश्किल है मेरे लिए की कहाँ जा रही हूँ पर कभी तुम वहाँ तक पहुँच जाओ थीयडॉर, तो मुझे ढूँढ लेना।”

वहीं पागलखाने के अंदर जाती राधा को देख कर अरुण कहता है ,” राधा मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”

फिर एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है;

आई ऐम लायिंग ऑन द मून
माई डियर, आइ विल बी देयर सून
इट्स अ क्वाइयट एंड स्टेरी प्लेस
टाइमस वी आर स्वॉलोड उप
इन स्पेस वी आर हियर अ मिलियन माइल्ज़ अवे…

Friday, 1 May 2020

तुम्हारी याद आई और कॉल कर बैठी। ये भी ध्यान नही रहा की अभी सो रही होगी। कैसी हो तपस्या ?
और मैं यह  मैसेज देख कर उछल पड़ी। बिना ठीक हूँ जबाब दिए पुछा , “तू ज़िंदा है और साथ हीं खिलखिलाहट भेजी।”
जबाब,” दो बच्चों की माँ, नौकरी, घर की चाकरी क्या ही ज़िन्दा होगी...  ऊपर से कभी ये तो कभी वो हा-हा-हा…”

मैंने कहा ,” छोड़ रोना ये बता याद कैसी आई मेरी ?” 
जबाब,” तेरे पैर देख लिए ना हा-हा-हा... तुझे याद है तेरा चप्पलों से प्रेम और उनकी तस्वीरें निकालना।”

हाँ याद है :)
जबाब, “ मैंने तेरी दो तस्वीर माँगी थी ना वैसे हीं जूतों के लिए। वहीं आज दिख गई।”

हा-हा-हा तू सच में पागल है। इतने साल से रखा है उसे। 
जबाब,” हाँ ना, सोचा ब्रह्माण के पैर हैं पूजती रहूँ :P उसपर से तेरे पैर से जलन तो आज तक है। देख अभी भी धुआँ हो रहा होगा।

दोनो तरफ़ से हँसी के फ़वारे हा-हा-हा…

सखी आगे कहती है , “आज जब फोन की मेमोरी भर गई तो सफ़ाई के दौरान ये मिली। अच्छा ये बता,  अब भी तू चप्पलें उतनी ही ख़रीदती है ? उनकी फ़ोटो निकालती है ?” 

जबाब, “ना रे अब ये कमबख़्त टूटते ही कहाँ है। तेरी पसंद वाली पीली जूती आज तक चमक रही है। हाँ ये हैं कि,  दुकान पर अगर जाती हूँ तो एक फेरा इस सेक्शन में ज़रूर लगाती हूँ हा-हा-हा…

कब सुधरेगी तपस… इशु कैसा है? शतेश कैसे हैं ? और बता…
बातें अथाह… क़रीब एक-डेढ़ घंटे की सारी भावनायें लिखना मुश्किल है, पर कहानी का सार ये की,” कभी मुझे चप्पलों के प्रति बड़ा आकर्षण था।” आज भी है पर थोड़ा कम हुआ है। कारण यहाँ चप्पलें टूटती हीं नही जल्दी और इन्हें रखने की जगह में अब तीन लोगों के पाव है। 

ख़ैर होता ऐसा की साथ की, साथ की लड़कियाँ जहाँ पर्स या कान की बाली या लिस्टिक ख़रीदने में व्यस्त होती और मैं कहानी की किताबों और चप्पलों की दुकान पर होती। हाँ चप्पलों की ख़रीदारी में तब एक और दोस्त साथ होती। पर उसे ब्रांडेड ही अधिकतर लेने होते। 
मेरे पैसे कभी इतने पैसे नही होते की हर सेंडिल ब्राण्डेड हो या हर किताब ओरिजनल। 

पुणे रहती थी तो “एफ सी रोड” और दिल्ली आने के बाद “सरोजनी नगर” ज़्यादा जाने लगी। कभी-कभी साकेत भी जाती, पर वो सिर्फ़ किताबों के लिए। साकेत में किताबें सेल में मिलती। डेढ़ सौ में दो किताब या कई बार 100 रुपए में दो किताब। 

मुझे कभी ब्राण्डेड चीज़ों से कोई ख़ास लगाव नही रहा। बजट में मिली तो लिया नही तो बस आराम, रंग और डिज़ाइन पसंद हो बिना ब्रांड की भी चीज़ें ले लिया। 

मेरा भाई तो कई बार मज़ाक़ भी उड़ाता कि, 200 रुपए की चप्पल के लिए 150 रुपया ऑटो का दे देती है। और मैं कहती कि , “बोका ये  भी तो देखो की डेढ़ सौ या दो सौ की दो-चार सुंदर -सुंदर सैंडल लाती हूँ।”  

इसके साथ ही कई बार सरोजनी में किताब बेचते एक अंकल मिल जाते। तो कई बार नक़ली किताबें भी ले आती। 
मुझे याद है की एक बार मेरे पास आने के पैसे हो छोड़ कर सिर्फ़ सत्तर-पचहत्तर रुपए बचे थे। अंकल के पास मुझे “वाइट टाइगर” किताब दिख गई। दाम पूछने पर मालूम हुआ 150 रुपए। 
मैंने कहा ठीक बताए अंकल कितने में देंगे ? मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था 150 की चीज़ को 70 में देने को कहना। उसपर से विद्या माता, ज़्यादा मोल भाव ठीक नही लगता। 

उन्होंने ने कहा चलो 100 रुपए दो और ले जाओ। मैं बिना कुछ बोले वहाँ से जाने लगी तो उन्होंने ने आवाज़ देकर पुकारा, “ कितना में लोगी ? पहले भी किताब ले गई हो मुझसे इसलिए ख़ाली हाथ लौटाना ठीक नही लग रहा।”
मैंने झेंपते हुए कहा,” मेरे पास 70 रुपए है।”

किताब मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा ,” यह लो।” 
यह वाक़या सरोजनी की मेरी सबसे प्यारी याद बन गई। 

हम्म, तो चलिए वापस चप्पलों की तरफ़ लौटते हैं। इधर तो मैंने उनकी तस्वीरें निकालनी बंद कर दी, पर यादों के लैपटॉप से कुछ तस्वीरें मिली है उन्हें शेयर कर रही हूँ। 

हाँ एक बात और उन दिनों मैं सैंडिल की तस्वीर के साथ ख़ूब प्रयोग करती थी। कभी उनपर गाने चिपकाती तो कभी ताला :) 
कभी उन्हें स्विमिंग पूल के किनारे ले जाती तो कभी चेरीब्लोसम के फूल या फ़ॉलकलर के पत्तों के साथ बिठाती। कई तस्वीरें गुम हो गई। जो जमा पूँजी मिली वो ये रही।