“द पास्ट इज़ जस्ट अ स्टोरी वी टेल अवरसेल्फ़स”
कहानी उसकी(हर) खामोशी की...
एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है ;
ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है
तुम्हारा इंतज़ार है, तुम पुकार लो …
धुन में डूबे दो प्रेमी युगल अपने काल और दुनिया से परे, किसी प्रेम लोक में डूबे हैं। कहते हैं एक दूसरे से, “अतीत सिर्फ एक कहानी है जो हम दुहराते हैं।”
थीयडॉर समन्था से कहता है, “मैंने किसी को ऐसे प्यार नही किया जैसे तुम्हें किया है।”
इधर अरुण राधा से कहता है, “तुम कहो और मैं ना मानूँ।”
उसकी खामोशी के साथ अब विदा की घड़ी आ गई है। नायिकाएँ जानती हैं कि अब उनके बस में कुछ नही सिवाए बर्बाद होने के। वे विदा माँगती है, पर दोनों नायक विरह की पीड़ा मात्र की कल्पना से तड़प उठते हैं। दोनो प्रेम से भरे हुए कभी आग्रह करते हैं तो कभी अधिकार जताते हैं ;
अरुण राधा से कहता है, “ मुझे छोड़कर मत जाना राधा।”
वहीं थियोड़ोर समन्था से बेचैन होकर पूछता है, “तुम क्यों जा रही हो समन्था ? नही तुम ऐसा नही कर सकती। हमलोग प्यार में हैं, तुम स्वार्थी क्यों बन रही हो?”
एक म्यूजिकल खामोशी पसर जाती है। आमने सामने सिर्फ़ दो ध्वनियाँ टकरा रहीं हैं।
एक अरुण की जो कहता हैं, “ राधा मुझसे प्रेम की ऐक्टिंग कर रही थी ये मैं मान नही सकता।”
और दूसरी समन्था की जो कहती है, “थीयडॉर, मैं तुम्हारी हूँ भी और नही भी…”
बहुत कम ऐसा होता है कि कुछ फ़िल्में आपके ज़हन में एक अलग हीं मुक़ाम पा जाती हैं। ऐसा हीं कुछ “खामोशी” और “हर” के साथ है। यह पेचीदा सी कहानी जो मैंने ऊपर लिखी है वो दरअसल इन्हीं दो फ़िल्मों की कहानी है,ठीक वैसे हीं जैसे प्रेम सुलझा कहाँ होता…
अगर आपने दोनों फ़िल्मों को देखा होगा तो शायद आपको भी इसमें कई समानता दिखेंगी। हालाँकि दोनों के परिवेस और काल में अंतर है। एक सफ़ेद और काली दुनिया में प्रेम को रच रही है तो दूसरी चमक-धमक से भरी।
जहाँ खामोशी की राधा अपने गहरे कम संवाद से आपके मन पर गहरा छाप छोड़ती है, वहीं हर की समन्था अपने आवाज़ के जादू से आपको बांध लेती है।
एक तरफ़ राधा जो मानवीय प्रेम के ज़रिए मानसिक रोगियों को ठीक करने का ज़िम्मा लेती है। वहीं दूसरी तरफ़ समन्था एक ऑपरेटिंग सिस्टम है जो अपने शब्दों के ज़रिए लोगों के दिल में प्यार भर रही हैं। समन्था अपनी जानकारी से लोगों का जीवन सज़ा रही है और वहीं राधा अपने सेवा-भाव से मनोरोगियों का इलाज कर रही है।
संयोग देखिए बरस बीत गए पर दोनों ही काल में मनुष्य के मानसिक इलाज का ज़िम्मा प्रेम-पूर्ण स्त्री को हीं दिया गया है।
अंतत: दोनों ही नायिकाओं की दुनिया मानवों के विकास के साथ ध्वस्त हो जाती है। एक इंसान के प्रेम में पागल हो जाती है और दूसरी इंसान के नए पागलपन से अंत गति पा जाती है।
समन्था थीयडॉर के पूछने पर कहती है, “यह बता पाना मुश्किल है मेरे लिए की कहाँ जा रही हूँ पर कभी तुम वहाँ तक पहुँच जाओ थीयडॉर, तो मुझे ढूँढ लेना।”
वहीं पागलखाने के अंदर जाती राधा को देख कर अरुण कहता है ,” राधा मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”
फिर एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है;
आई ऐम लायिंग ऑन द मून
माई डियर, आइ विल बी देयर सून
इट्स अ क्वाइयट एंड स्टेरी प्लेस
टाइमस वी आर स्वॉलोड उप
इन स्पेस वी आर हियर अ मिलियन माइल्ज़ अवे…
कहानी उसकी(हर) खामोशी की...
एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है ;
ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है
तुम्हारा इंतज़ार है, तुम पुकार लो …
धुन में डूबे दो प्रेमी युगल अपने काल और दुनिया से परे, किसी प्रेम लोक में डूबे हैं। कहते हैं एक दूसरे से, “अतीत सिर्फ एक कहानी है जो हम दुहराते हैं।”
थीयडॉर समन्था से कहता है, “मैंने किसी को ऐसे प्यार नही किया जैसे तुम्हें किया है।”
इधर अरुण राधा से कहता है, “तुम कहो और मैं ना मानूँ।”
उसकी खामोशी के साथ अब विदा की घड़ी आ गई है। नायिकाएँ जानती हैं कि अब उनके बस में कुछ नही सिवाए बर्बाद होने के। वे विदा माँगती है, पर दोनों नायक विरह की पीड़ा मात्र की कल्पना से तड़प उठते हैं। दोनो प्रेम से भरे हुए कभी आग्रह करते हैं तो कभी अधिकार जताते हैं ;
अरुण राधा से कहता है, “ मुझे छोड़कर मत जाना राधा।”
वहीं थियोड़ोर समन्था से बेचैन होकर पूछता है, “तुम क्यों जा रही हो समन्था ? नही तुम ऐसा नही कर सकती। हमलोग प्यार में हैं, तुम स्वार्थी क्यों बन रही हो?”
एक म्यूजिकल खामोशी पसर जाती है। आमने सामने सिर्फ़ दो ध्वनियाँ टकरा रहीं हैं।
एक अरुण की जो कहता हैं, “ राधा मुझसे प्रेम की ऐक्टिंग कर रही थी ये मैं मान नही सकता।”
और दूसरी समन्था की जो कहती है, “थीयडॉर, मैं तुम्हारी हूँ भी और नही भी…”
बहुत कम ऐसा होता है कि कुछ फ़िल्में आपके ज़हन में एक अलग हीं मुक़ाम पा जाती हैं। ऐसा हीं कुछ “खामोशी” और “हर” के साथ है। यह पेचीदा सी कहानी जो मैंने ऊपर लिखी है वो दरअसल इन्हीं दो फ़िल्मों की कहानी है,ठीक वैसे हीं जैसे प्रेम सुलझा कहाँ होता…
अगर आपने दोनों फ़िल्मों को देखा होगा तो शायद आपको भी इसमें कई समानता दिखेंगी। हालाँकि दोनों के परिवेस और काल में अंतर है। एक सफ़ेद और काली दुनिया में प्रेम को रच रही है तो दूसरी चमक-धमक से भरी।
जहाँ खामोशी की राधा अपने गहरे कम संवाद से आपके मन पर गहरा छाप छोड़ती है, वहीं हर की समन्था अपने आवाज़ के जादू से आपको बांध लेती है।
एक तरफ़ राधा जो मानवीय प्रेम के ज़रिए मानसिक रोगियों को ठीक करने का ज़िम्मा लेती है। वहीं दूसरी तरफ़ समन्था एक ऑपरेटिंग सिस्टम है जो अपने शब्दों के ज़रिए लोगों के दिल में प्यार भर रही हैं। समन्था अपनी जानकारी से लोगों का जीवन सज़ा रही है और वहीं राधा अपने सेवा-भाव से मनोरोगियों का इलाज कर रही है।
संयोग देखिए बरस बीत गए पर दोनों ही काल में मनुष्य के मानसिक इलाज का ज़िम्मा प्रेम-पूर्ण स्त्री को हीं दिया गया है।
अंतत: दोनों ही नायिकाओं की दुनिया मानवों के विकास के साथ ध्वस्त हो जाती है। एक इंसान के प्रेम में पागल हो जाती है और दूसरी इंसान के नए पागलपन से अंत गति पा जाती है।
समन्था थीयडॉर के पूछने पर कहती है, “यह बता पाना मुश्किल है मेरे लिए की कहाँ जा रही हूँ पर कभी तुम वहाँ तक पहुँच जाओ थीयडॉर, तो मुझे ढूँढ लेना।”
वहीं पागलखाने के अंदर जाती राधा को देख कर अरुण कहता है ,” राधा मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”
फिर एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है;
आई ऐम लायिंग ऑन द मून
माई डियर, आइ विल बी देयर सून
इट्स अ क्वाइयट एंड स्टेरी प्लेस
टाइमस वी आर स्वॉलोड उप
इन स्पेस वी आर हियर अ मिलियन माइल्ज़ अवे…