Friday 26 January 2024

राम !

“राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रेऽऽऽ … आहा, राम निरंजन…”

अमीन चाचा झूम-झूम कर गा रहे थे। आस-पास खड़े लोग उनका मज़ाक़ उड़ाते हुए कह रहे थे-“ ई अमीन साहेब नू, कहीं आपन नाच-गान शुरू कर देनी।”

हमारी कोलोनी रंग-बिरंगी थी। तरह-तरह के फूल-फलों, जीव-जंतु, जात-कुजात, हिंदू-मुस्लमान, सुंदर-कुरूप, बाल-गोपाल सब से लदी-फदी। सब एक साथ रहते, एक दूसरे से खूब हँसी-मज़ाक़ करते। 

अमीन चाचा, जाति से अहीर होने के बावजूद जनेव पहनते, खूब पूजा-पाठ करते, धार्मिक किताबें पढ़ते। खाने से पहले भगवान को भोग लगाते। एक भी एकादशी या कोई व्रत-उपवास नहीं छोड़ते। कई बार लोग मज़ाक़ में कह भी देते- “बे महाराज, रऊरा त बाभन होखे के चाहीं।” 

अमीन चाचा, क़िस्सों की खान और मैं उनकी चेली। जब वे इस भजन को गा कर झूम रहे थे, हम कुछ बच्चें भी अपना खेल छोड़ इस नाटक का हिस्सा हो लिए। नाटक ख़त्म हुआ तो मैंने इसका अर्थ पूछा।  हँसते हुए वे बोले- “ जाओ-जाओ खेलों अभी प्रियंका, रात को आराम से इसका अर्थ बताऊँगा।”

हर रात खाने के बाद अमीन चाचा, 100 कदम चलते और हम बच्चों को भी चलने को कहते। इसी बीच क़िस्से-कहानी, गीत-भजन कुछ पढ़ाई की बातें चलती रहती। 

अब जिस बात पर भीड़ लगी थी और उन्होंने झूमते हुए यह भजन गया वह क़िस्सा यूँ रहा, 

हमारी कोलनी के एक घर की सीढ़ी टूट गई। सीढ़ी क्या, घर में घुसने को तीन-चार पैयदान। उनमें से दूसरे नंबर वाली सीढ़ी से सीमेंट की एक परत निकल गई। ईटा साफ़ दिखाई देने लगा और उसपे गुदा राम तो और साफ़। परिवार वालों की मुश्किल कि राम के नाम पर पैर धर के उतरे कैसे ? हालाँकि ये तीन-चार पैयदान ना भी होते तो भी घर में घुसा जा सकता था। शायद शो ले लिए बना हुआ था। 

अब सरकारी मकान का मरम्मत अपने पैसा से कौन करवाये ? साल में फ़ंड आएगा तब बन ही जाएगा। तबतक एक सीढ़ी फान कर परिवार वाले उतरने लगे। बच्चों का तो खेल बन गया था। 

ऐसे में एक दिन उस परिवार की मालकीन का पैर इस कूद-फान के फेर में मुचक गया।

कुछ लोगों ने कहा- “अरे महाराज,  तबतक ईंटे को मिट्टी से लीप दीजिए।” कुछ ने कहा- “यह ईंटा उखड़वा डिज़ाइये और सब बराबर कर दीजिए।” कुछ ने कहा- “भगवान के नाम पर पैर रख के उतरते थे, ऐसा तो होना हो था।” मेरी माँ ने कहा- “कोई बात, भगवान कहाँ नहीं, फिर कितना ईंटा निकलवाइयेगा ? यह सब वहम है, विश्वास रखिए।”  किसी ने कहा- “अब तक तो पैर रख कर उतर ही रहे थे, भगवान सब माफ़ कर देते हैं। ज़्यादा सोचिए मत।”

 यही सब हो-हल्ला को सुनकर अमीन चाचा अपने रौ में बह निकले। एक क़िस्सा सबको सुनाया और कबीर का यह भजन झूम-झूम कर गाने लगे थे। 

उनका क़िस्सा यह था- नहर के नापी-जोखी में उसके किनारे की कच्ची सड़क की नापी कर रहे थे। नहर के किनारे नेटूआ सब झोपड़ी बना लिया था। ईंटाकरण पर ही बकरी-बासन सब होता था उनका। एक औरत उसी सड़क पर गोबर के उपले पाथ रही थी। अमीन साहब ने देखा तो हँसते हुए कहा- “का हो, गणेश जी के माथे गोबर पाथ देलू …” उस ईंटाकरण वाली सड़क के ईट पर गणेश गुदा था। उस भोली महिला ने कहा-“ का करीं साहेब, इहे भगवान के मर्जी त हमार का दोष ?”

ख़ैर, रात को टहलते हुए उन्होंने भजन का अर्थ बताया- “प्रियंका, कबीर साहब कहते हैं- “ यह समस्त संसार माया का ही पसारा है। माया रहित राम सारे जगत से परे, भिन्न है।” राम के नाम पर लात रखने से पाप लग जायेगा बताओ ? और राम को उखाड़ फेकने पर या उसपर सीमेंट पोतने पर पाप नहीं लगेगा ? बच्चा, राम कहाँ नहीं ? सब मन का माया है… माया!” 

बीते दिनों मैंने इतना राम का नाम सुना जितना कभी नहीं सुना होगा। मुझे अमीन चाचा याद आये, याद आए कुमार गंधर्व, कबीर, कौशल्या के राम, माणिक वर्मा और शर्मा बंधु के गाए भजन। 

अब देखिये ना,  कहाँ मैं आपसे अपने जीवन का एक क़िस्सा शेयर कर रही थी और इसी भजन की अगली लाइन ध्यान में आती, 

“ अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन घोकतकत हि ग्यान रे!” 

अर्थात्मा- “माया ही विद्या, पाठ और पुराण है।  यह व्यर्थ का वाचिक ज्ञान भी माया ही है।” 

और इसी माया और व्यर्थ का वाचिक ज्ञान के मोह में फँसी तपस्या एक दिन एक आइलैंड पर पहुँच जाती है। जहाँ उसे किसी देवी-देवता की उम्मीद ना थी। वहाँ उसे राम-सीता की मूर्ति दिखती है। यह अचरज से भरा था। 

नोट- मैक्निक आइलैंड अमेरिका के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक है। एक ऐसी जगह जहाँ पेट्रोल-गैस से चलने वाला कोई वाहन नहीं।कोई भी दूरी आपको, पैदल, साइकिल या घोड़े गाड़ी से तय करनी होगी। इस आइलैंड और इस राम की मूर्ति के मिलने का क़िस्सा पहले भी लिख चूँकि हूँ। आज याद करती हूँ तो सब माया ही लगता है। 

हाँ, राम के जो भजन मुझे पसंद हैं, उनका लिंक कमेंट बॉक्स में है। मन करे तो सुने।