Thursday, 6 March 2025

 

छह मार्च को “गेब्रियल गार्सिया मार्ख़ेज” का जन्मदिन है। इस नोबेल प्राइज विजेता लेखक को मैंने पहली बार कॉलेज के दिनों में जाना। हुआ यूँ कि कॉलेज की मेरी प्रिय दोस्त और इनका जन्मदिन एक ही तारीख़ को पड़ता है। और मेरी प्रिय दोस्त इस बात को बड़ा इठला कर उन दिनों सबको बताती। उन दिनों आधे दोस्तों को तो उसी ने बताया होगा इस स्पैनिश लेखक के बारे में। वैसे कमाल की बात यह रही कि उसने फ़्रेंच भाषा में डिप्लोमा किया था पर जाने कहाँ से उसे उस वक़्त स्पैनिश मार्खेस के बारे में मालूम था। 


मैं तो बिहार के सिवान ज़िले एक ब्लॉक बसंतपुर से गई थी, पुणे पढ़ने। मैंने तो सिर्फ़ प्रेमचंद, रेणु, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम आदि की कुछ किताबें या कहानियाँ पढ़ रखी थी। हाँ, अंग्रेज़ी में भी कुछ कहानियाँ सिर्फ़, “रस्कीन बॉण्ड” की पढ़ रखी थी। पर उपन्यास तब कोई नहीं पढ़ी थी। ऐसे में मार्ख़ेस को पढ़ते हुए मैं बहुत चकित होती कि दुनिया में कोई ऐसा भी देश है भारत के अलावा जहाँ भूत-प्रेत में विश्वास है। 

ख़ैर धीरज की कमी और पात्रों के नाम ने तब किताब पूरी नहीं होने दी और किताब दोस्त को वापस कर दी गई। 

अमेरिका आने के बाद जब लाइब्रेरी में कुछ दिनों काम किया तब इस किताब की देख कर फिर से पढ़ने की इक्षा जागृत हुई। किताब घर ले आयी पर इस बार भी इतनी बोझिल -पेचीदा और पात्रों के नाम की मिलावट ने इसे पूरा ना होने दिया और किताब लौटना का दिन आ गया।

एक दिन प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी गई तो वहाँ इस किताब पर कोई चर्चा होने वाली थी, ऐसा बैनर लगा था नोटिस बोर्ड पर। फिर एक बार इस किताब का भूत चढ़ा मुझ पर। इस बार मैंने सोचा की किताब खरीद ही ली जाए और आराम-आराम से पढ़ी जाए बिना लौटने की तारीख़ को ध्यान में रखते हुए। 

किताब मैंने पहली बार “थ्रेफ्ट बुकस” से ली। यानि सेकेंड हैंड किताबों की ऑनलाइन दुकान। इस स्टोर के बारे में लाइब्रेरी में काम करने वाली एक लड़की से ही मालूम हुआ। अच्छी बात यह हुई कि जहाँ किताब स्टोर या अमेजन पर $ 15-25 के बीच मिल रही थी, थ्रेफ्ट बुक्स से $4.99 में मिल गई। थ्रेफ्ट बुक्स ने सबसे पुरानी एडिशन मुझे भेजा था। किताब से अजीब सी ख़ुशबू आ रही थी, पन्ने भी ज़र्द पीले। कवर का कोना मानों सात समुंदर लांघ आया हो… मुझे ऐसा लग रहा था कि जादू की दुनिया की यह किताब, सच में सौ साल पुरानी तो नहीं… रिश्तों की उलझ से यह क़रीब तार-तार सी ही दिख रही थी। मन उचट रहा था इसे देख कर ही। 

कई बार होता है ना, कुछ चीजें बहुत इम्तेहान लेती हैं। उसी इम्तेहान और शुरुआती कुछ ऊह-पोह के बाद किताब पटरी पर आ गई और फिर 383 पन्नों की एक जादुई किताब पूरी हुई।

वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलिट्यूड” नामक यह किताब आपकी धर्य की परीक्षा लेती है। पर एक बार आप पास हुए तो इसके जादू से बंध जाते हैं।