Wednesday, 13 May 2015

aprajita & nikunj ka pyara rishta !!!!

ब्लॉग लिखने का ये फायदा है कि ,आप किसी भी विषय पर अपनी राय बेहिचक दे सकते है या यू कहे बकवास कर सकते है।वैसे भी मैं कोई बांगलादेश में तो हूँ नही ,न ही इतनी मशहूर की कोई जान से मार दे।इसलिए जब जो मन किया लिख दिया।हाँ इस ब्लॉग के बाद निकुंज और अपराजिता मेरे साथ क्या करेंगे मालूम नही :)
तो पहले इनका रिश्ता बता दूँ ,ताकि आपलोगो को ग़लतफ़हमी न हो।निकुंज की दो प्यारी बेटियाँ है।एक का नाम नव्या और दूसरी का शनाया।शनाया की नानी के पति की बेटी नव्या की माँ है।तो निकुंज से उनका रिलेशन क्या हुआ ?इस ब्लॉग को पढ़ने वाले कुछ लोग जो इन दोनों को जानते है ,मुझपे हँस रहे होंगे।कुछ जो नही जानते वो अनुमान लगा रहे होंगे।और अंत में कुछ लोग बोल रहे होंगे खूद को तेज समझती है ,हमने क्या इंजीनिरिंग कर रखी है :)तो चलो न जानने वालो को मैं ही बता दूँ अपराजिता और निकुंज पति -पत्नी हैं।वैसे इस सवाल का मैथ से कोई लेना देना नही।ये लॉजिकल सवाल था।अच्छा हुआ मैंने जल्दी ही रिश्ते को उजागर किया वरना लोग क्या-क्या अनुमान लगा रहे होते:)
अब आते है मद्दे पे मेरा इनसे क्या रिलेशन है ?अरे डरिये मत इस बार साफ -साफ बताउंगी। अपराजिता मेरे पति की कॉलेज फ्रेंड है। तो उस नाते निकुंज भी मेरे पति का दोस्त और मै भी इनदोनो की दोस्त।हमारी मुलाकात शतेश यानि मेरे पति (दोस्तों मुझे पति लिखना नही पसंद ,पतिदेव तो और भी नही,स्वामी बाप रे ,जीवनसाथी ठीक -ठाक है ,सोचिये अगर मैं ये लिखूँ शतेश मेरे ये जी है हा- हा- हा, पापी पति कैसा रहेगा ?,खैर आपकी सहूलियत के लिए पति ही काफी है ) के एक और दोस्त जो शतेश के क्लासमेट भी रह चुके है ,मिस्टर वर्मा के यहां हुई।हमलोग तभी -तभी न्यू जर्सी मूव हुए थे टेक्सास से। मेरा कुछ खास मन नही था जाने का। कारण एक तो हमलोग उसी दिन फिलिडेल्फिया गए थे ,कुछ काम से तो थोड़ा थकान ऊपर गन्दी ठंड। खैर शतेश को तो अपने दोस्तों से मिलना था ,तो वो एक्ससाइटेड थे।शतेश ने कहा चलो चलते है तुम वही आराम कर लेना हॉटेल में अकेली क्या करोगी ? हमलोग जब वहां पहुंचे शतेश के एक और करीबी दोस्त मिस्टर पाण्डेय भी वहां थे।ये लोग मिल कर अपने पुराने दिन याद करने लगे।अपराजिता और मिसेस वर्मा किचेन में कुछ पका रही थी।दोनों से मेरी हाय -हेलो हुई।उसके बाद मैंने सोफे पे अपना आसन जमा लिया।जब खाना आया तो मै दंग रह गई। इतना स्वादिस्ट ओ माय गॉड।मिसेस वर्मा ने बताया की वो लोग बहुत कुछ बनाते रहते है। मेरी तो हवा निकल गई।आते वक़्त मुझे यही टेंशन था कि ,अगर इनलोगो को घर बुलाऊंगी तो क्या पकाऊँगी ? धीरे -धीरे हमारी दोस्ती और बढ़ गई। एक और शतेश के दोस्त मिल गए वो भी वर्मा ही हैं।फिर मिलना- जुलना ,पार्टी ,क्रिकेट मैच एक साथ देखना ,लॉट्स ऑफ़ फन।इन सब मुलाकातों के बहुत प्यारी -प्यारी यादें हैं।लेकिन अभी बात अपराजिता & निकुंज की। इन दोनों को देख कर किसकी उपमा दूँ ? राम -सीता ,अरे नही राम ने भी सीता को छोड़ दिया था।लक्ष्मी -विष्णु ,वो भी नही।क्योकि हर वक़्त लक्ष्मी विष्णु का पैर ही दबाती रहती हैं :) राधा -कृष्णा अरे ये तो कहि से भी नही।इसके लिए निकुंज से पूछना होगा।छोडो यारो भगवान से भी क्या उपमा देना।बॉलीवुड में चलते है।लैला -मजनू ,सोनी -महिवाल नाह। शाहरुख काजोल अरे नही काजोल -अजय देवगन फिर भी ठीक है।क्यों न इनको बस अपराजिता &निकुंज ही रहने दे।इनदोनो को देख कर लगता है कि ,क्या कभी ये एक -दूसरे से लड़ते भी होंगे ? हर चीज़ परफेक्ट।ऐसा लगता है शादी में जो कुंडली मिलते है उनमे इनके 36 के 36 गुण मिले होंगे। वैसे हमारी भी 28 मिली थी ,पर लगता है वो उल्टा वाला गुण मिल गया होगा :) मैं अपनी सोच के हिसाब से अपराजिता &निकुंज की बात -चीत कैसी होती होगी लिख रही हूँ।साथ ही अपनी और शतेश की भी बात-चीत जहां जरुरत होगी ।
अपराजिता :- निकुंज आज क्या करना है कहीं बाहर चले ?
निकुंज :-कहाँ चलना है मै रेडी हूँ।
अपराजिता :-शॉपिंग चले ?
निकुंज :-ठीक है चलते है। तुम शनाया को तैयार करो नव्या को मैं  हेल्प करता हूँ रेडी होने में।
तपस्या :-शतेश शॉपिंग चले ?
शतेश :-कुछ जरुरी लेना है क्या ?मेरा ऑफिस का काम है थोड़ा।
तपस्या :-तो क्या मैं बेकार की शॉपिंग करती हूँ ?
शतेश :-तुम चल ही लो वरना बेकार में झगड़ा होगा।
निकुंज :-अपराजिता तुम आराम से शॉपिंग करो,मेरी हेल्प लगे तो बताना।
अपराजिता :-ओके डिअर।
शतेश :-तपस्या तुम शॉपिंग करो मेरे दोस्त का कॉल आया है ,या मुझे कॉफी पीनी है सिर दुःख रहा है।
तपस्या :-तुम जाओ भाई नही तो आराम से कुछ लेने भी नही दोगे। तपस्या सोचती है की वो कोन सा दोस्त है जो हमेशा शॉपिंग के टाइम ही कॉल करता है ?या बेचारा वो भी किसी मॉल में शतेश के कॉल का वेट करता है अपनी बीबी से बचने के लिए  :) कहीं रोहित तो नही?
अपराजिता :-2 /3 घंटे बाद होगया शॉपिंग निकुंज चले।
निकुंज :-कुछ और लेना हो तो देख लो।
अपराजिता :-नही चलो अभी शाम भी हो गई है ,मेरा चिकेन खाने का मन है।
नकुंज :-अरे वह तुमने तो मेरे मन की बात कह दी।चलो -चलो।
दोनों इतने अच्छे से रहते है कि कहि कोई कमी ही नही दिखती। एक दिन लोगो की तारीफ से परेशान अपराजिता निकुंज को कहती है।यार निकुंज हमलोग को भी कभी -कभी लड़ना भी चाहिए। क्या तुम्हे मेरी कोई बात बुरी नही लगती ?निकुंज उल्टा ही पूछ बैठता है, तुम बताओ तुम्हे मेरी कोन सी बात नही पसंद?दोनों बस एक दूसरे को देखते है क्या बोले ?
कुछ दिनों बाद सारे दोस्त एक साथ फिर मेरे यहां मिलते है ।अपराजिता सोचती है कि ,आज तो निकुंज से लड़ूंगी की ,सबको लगे की हमलोग भी लड़ते है।वो बोलती है निकुंज  मै तुम्हारी अच्छाइयों से थक गई हूँ।निकुंज बोलते है कहो क्या बुरा करू ?हमारा साथ सात जन्म का है, जो कहोगी कर दूंगा।अपराजिता तुरंत ही कहती है, ये हमारा सातवां जन्म ही है ,कुछ तो लाइफ में एडवेंचर हो। निकुंज ने प्यार से कहा ये शादी के 9 साल एडवेंचर से काम थे क्या ? अपराजिता अपनी हसी रोक नही पाती है। प्यार से निकुंज को गले लगा के कहती है, सच में तुम तो झगडे के मूड में आ रहे हो।सारी जनता परेशान कि ये हो क्या रहा है ,ये कौन सा झगड़ा हो रहा है?तपस्या और गुंजन(मेरी दोस्त ) एक दूसरे को देखते है कि, क्या  प्यार बाटते वक़्त भगवान ने सारा प्यार इन्ही को या बॉलीवुड को दे दिया ?हमें खाली कटोरा पकड़ा दिया :)
सुचना :-सॉरी निकुंज और अपराजिता कुछ बुरा लगा हो तो। लेकिन एक बात 100 फीसदी सच है, आप दोनों सच में आदर्श कपल हो। मेरी तरफ से शादी की ढेर सारी बधाइयाँ। आपलोग कभी न झगडे हमेशा प्यार से रहे :)

Monday, 4 May 2015

KHATTI-MITHI: chulbul ,madan sir or khajur ki chhadi !!!!

KHATTI-MITHI: chulbul ,madan sir or khajur ki chhadi !!!!: कहानी आगे बढ़ती है ,चुलबुल और मदन सर के ट्यूशन से। जैसे आपने पढ़ा पिछली कहानी में पढ़ा कि ,चुलबुल का आज का दिन ही ख़राब था। एक तो स्कूल न जाने ...

chulbul ,madan sir or khajur ki chhadi !!!!

कहानी आगे बढ़ती है ,चुलबुल और मदन सर के ट्यूशन से। जैसे आपने पढ़ा पिछली कहानी में पढ़ा कि ,चुलबुल का आज का दिन ही ख़राब था। एक तो स्कूल न जाने का बहाना पकड़ा गया ,दूसरी माँ की पिटाई और तीसरी मदन सर का पढ़ाने आना आज शाम से।स्कूल से घर आते वक़्त वो लवली को बता रहा था कि ,कैसे पोद्दार  ऑन्टी से बदला लेगा। मसलन उनके सब्जी या फूलो को तोड़ डालेगा या उनकी बेटियो से लड़ाई करेगा।चुलबुल जिस कॉलोनी में  रहता था ,वो गवर्मेन्ट कॉलोनी थी। हर घर के पास थोड़ी खाली जमीन थी ,जहां हर घर वाले कुछ सब्जिया या फूल लगाये हुए थे। पोद्दार ऑन्टी की तीन बेटियां और एक बेटा है। उनकी दो बेटियां पूनम और प्रीती चुलबुल की बाद में क्लासमेट बानी।खैर चुलबुल रास्ते भर प्लान बनाते हुए घर पहुँचा।माँ ने मुन्नी दीदी को कहा कि ,लवली ,चुलबुल को खाना देदे। और ये भी कहा की खा कर कॉलोनी से बहार खेलने न जाये ,क्योंकि मदन सर आने वाले है 5 बजे से।चुलबुल खाते हुए लवली को कहता है ,ये मदनवा को भी 5 बजे का ही टाइम मिला।मेरा क्रिकेट खेलने का टाइम होता है ये। लवली हँसते हुए बोली रुको मदन सर को बताउंगी कि तुम उन्हें मदनवा बोल रहे थे।चुलबुल लवली को मरता नही था ,बस धमकाता था।शायद ये उसका प्यार था ,या माँ से पिटाई का डर।वो लवली को बोला रुको माँ को बताता हूँ ,तुम रात को पढ़ते वक़्त नंदन (बच्चो की स्टोरी बुक)
या कॉमिक्स पढ़ती हो।अब चुलबुल की हँसने की बारी थी। लवली बोली ठीक है, मैं मदन सर को नही बताउंगी तुम माँ को मत बताना।बचपन में इसे कहते थे ,एक हाथ लो ,दूसरे हाथ दो :) ,मतलब तुम मेरी गलती छुपाओ माँ से मै तुम्हारी छुपाऊँगा।सच में मदन सर ने बहुत गलत टाइम लिया था, पढ़ाने के लिए।उनका घर भी दूर था ,तो उन्होंने माँ को कहा स्कूल के एक घंटे बाद ही वो पढ़ाने आजायेंगे।उनका घर से वापस पढ़ाने आना मुश्किल है। माँ को क्या था बस बच्चे पढ़े।खेलना तो होता रहेगा। माँ ने हाँ कर दी थी।चुलबुल कभी माँ को कोसे कभी सर को।चुलबुल की मौसी (माँ की बहन ) बसंतपुर में ही रहती थी। मौसा जी बसंतपुर के पास ही बैंक में मैनेजर थे।मौसी को भी दो बच्चे थे उस वक़्त। बिट्टू और शिल्पी।तो रोज शाम में चुलबुल की माँ अपनी बहन से मिलने जाती थी। शायद ही किसी शाम को ना गई हो ,जब उनकी या लवली- चुलबुल की तबियत ख़राब हो।रोज की तरह आज भी वो अपनी बहन से मिलने चली गई। जाते हुए चुलबुल- लवली को मदन सर से पढ़ने के लिए बोल कर गई।माँ के जाने के बाद चुलबुल सोचने लगा क्या किया जाये की मदन सर से न पढ़ना पड़े। इसी बीच में 5 बज गए और मदन सर साईकल से आते हुए दिखे। उनको देखते ही चुलबुल ने भागना शुरू कर दिया।सर भी कम नही थे। उन्होंने लवली को किताब निकाल के पढ़ने को कहा और खुद चुलबुल के पीछे चले गए। आगे -आगे चुलबुल दौड़ रहा है ,पीछे मदन सर साईकिल से। कब तक बेचारा चुलबुल  दौड़ता आख़िरकार सर ने उसे पकड़ लिया। उसको साईकिल पे बिठा कर घर लए। फिर शुरू हुई चुलबुल की पूजा। मदन सर ने चुलबुल से 50 बार उठक -बैठक कराइ।उठक -बैठक उनका प्रिये टॉर्चर था।फिर भी उनका जी नही भरा  ,शायद साईकिल से चुलबुल को पीछा करना उन्हें अच्छा नही लगा था। उनके पास खजूर की छड़ी होती थी ,खजूर की छड़ी बहुत पतली और लचीली होती है। उससे मारने से चोट बहुत ज्यादा लगती है।मदन सर ने छड़ी से चुलबुल की पिटाई शुरू कर दी। उसकी पिटाई देख चुलबुल के साथ लवली भी रोने लगी। इसी चक्कर में लवली को भी सर का प्रसाद मिल गया कि ,वो क्यों रो रही है। खैर जब सर का मन भर गया तो कल से टाइम पर पढ़ने बैठने की चेतावनी दे कर सर चले गए। जाते -जाते लवली ,चुलबुल को बोल कर गए कि ,माँ को इस बारे में ना बताये वो दोनों। दोनों ने डर के मारे माँ को कुछ नही बताया।जब रात हुई तो चुलबुल सो नही पा रहा था। उसका पैर और पीठ बहुत दुःख रहा था। कहते है न कोई भी दर्द रात को ज्यादा महसूस होता है :), आधी रात हुई और चुलबुल रोने लगा, तब माँ को लगा कुछ गड़बड़ है।माँ उसको छू कर देखने लगी। जब पीठ छुआ तो वो चिल्ला पड़ा। माँ ने जब कपडे हटाये तो छड़ी की निशान पड़े हुए थे।माँ ने लवली से पूछा। लवली ने डरते हुए सब बता दिया माँ को,और माँ को कहा सर से ना बताये। माँ बहुत गुस्से में थी। उन्होंने चुलबुल की चोट पे  मलहम लगाई और गुस्से में कहा कल ही इस मास्टर की छूटी करती हूँ। राक्षस की तरह मारा है मेरे बच्चे को। नही पढ़वाना इससे। माँ की बात सुनके लवली को बहुत खुशी हुई की कल से सर की छूटी। वो चुलबुल को भी ये बताना चाह रही थी ,पर दर्द में परेशान चुलबुल ना माँ की बात सुन पा रहा था न लवली की।