कहानी आगे बढ़ती है ,चुलबुल और मदन सर के ट्यूशन से। जैसे आपने पढ़ा पिछली कहानी में पढ़ा कि ,चुलबुल का आज का दिन ही ख़राब था। एक तो स्कूल न जाने का बहाना पकड़ा गया ,दूसरी माँ की पिटाई और तीसरी मदन सर का पढ़ाने आना आज शाम से।स्कूल से घर आते वक़्त वो लवली को बता रहा था कि ,कैसे पोद्दार ऑन्टी से बदला लेगा। मसलन उनके सब्जी या फूलो को तोड़ डालेगा या उनकी बेटियो से लड़ाई करेगा।चुलबुल जिस कॉलोनी में रहता था ,वो गवर्मेन्ट कॉलोनी थी। हर घर के पास थोड़ी खाली जमीन थी ,जहां हर घर वाले कुछ सब्जिया या फूल लगाये हुए थे। पोद्दार ऑन्टी की तीन बेटियां और एक बेटा है। उनकी दो बेटियां पूनम और प्रीती चुलबुल की बाद में क्लासमेट बानी।खैर चुलबुल रास्ते भर प्लान बनाते हुए घर पहुँचा।माँ ने मुन्नी दीदी को कहा कि ,लवली ,चुलबुल को खाना देदे। और ये भी कहा की खा कर कॉलोनी से बहार खेलने न जाये ,क्योंकि मदन सर आने वाले है 5 बजे से।चुलबुल खाते हुए लवली को कहता है ,ये मदनवा को भी 5 बजे का ही टाइम मिला।मेरा क्रिकेट खेलने का टाइम होता है ये। लवली हँसते हुए बोली रुको मदन सर को बताउंगी कि तुम उन्हें मदनवा बोल रहे थे।चुलबुल लवली को मरता नही था ,बस धमकाता था।शायद ये उसका प्यार था ,या माँ से पिटाई का डर।वो लवली को बोला रुको माँ को बताता हूँ ,तुम रात को पढ़ते वक़्त नंदन (बच्चो की स्टोरी बुक)
या कॉमिक्स पढ़ती हो।अब चुलबुल की हँसने की बारी थी। लवली बोली ठीक है, मैं मदन सर को नही बताउंगी तुम माँ को मत बताना।बचपन में इसे कहते थे ,एक हाथ लो ,दूसरे हाथ दो :) ,मतलब तुम मेरी गलती छुपाओ माँ से मै तुम्हारी छुपाऊँगा।सच में मदन सर ने बहुत गलत टाइम लिया था, पढ़ाने के लिए।उनका घर भी दूर था ,तो उन्होंने माँ को कहा स्कूल के एक घंटे बाद ही वो पढ़ाने आजायेंगे।उनका घर से वापस पढ़ाने आना मुश्किल है। माँ को क्या था बस बच्चे पढ़े।खेलना तो होता रहेगा। माँ ने हाँ कर दी थी।चुलबुल कभी माँ को कोसे कभी सर को।चुलबुल की मौसी (माँ की बहन ) बसंतपुर में ही रहती थी। मौसा जी बसंतपुर के पास ही बैंक में मैनेजर थे।मौसी को भी दो बच्चे थे उस वक़्त। बिट्टू और शिल्पी।तो रोज शाम में चुलबुल की माँ अपनी बहन से मिलने जाती थी। शायद ही किसी शाम को ना गई हो ,जब उनकी या लवली- चुलबुल की तबियत ख़राब हो।रोज की तरह आज भी वो अपनी बहन से मिलने चली गई। जाते हुए चुलबुल- लवली को मदन सर से पढ़ने के लिए बोल कर गई।माँ के जाने के बाद चुलबुल सोचने लगा क्या किया जाये की मदन सर से न पढ़ना पड़े। इसी बीच में 5 बज गए और मदन सर साईकल से आते हुए दिखे। उनको देखते ही चुलबुल ने भागना शुरू कर दिया।सर भी कम नही थे। उन्होंने लवली को किताब निकाल के पढ़ने को कहा और खुद चुलबुल के पीछे चले गए। आगे -आगे चुलबुल दौड़ रहा है ,पीछे मदन सर साईकिल से। कब तक बेचारा चुलबुल दौड़ता आख़िरकार सर ने उसे पकड़ लिया। उसको साईकिल पे बिठा कर घर लए। फिर शुरू हुई चुलबुल की पूजा। मदन सर ने चुलबुल से 50 बार उठक -बैठक कराइ।उठक -बैठक उनका प्रिये टॉर्चर था।फिर भी उनका जी नही भरा ,शायद साईकिल से चुलबुल को पीछा करना उन्हें अच्छा नही लगा था। उनके पास खजूर की छड़ी होती थी ,खजूर की छड़ी बहुत पतली और लचीली होती है। उससे मारने से चोट बहुत ज्यादा लगती है।मदन सर ने छड़ी से चुलबुल की पिटाई शुरू कर दी। उसकी पिटाई देख चुलबुल के साथ लवली भी रोने लगी। इसी चक्कर में लवली को भी सर का प्रसाद मिल गया कि ,वो क्यों रो रही है। खैर जब सर का मन भर गया तो कल से टाइम पर पढ़ने बैठने की चेतावनी दे कर सर चले गए। जाते -जाते लवली ,चुलबुल को बोल कर गए कि ,माँ को इस बारे में ना बताये वो दोनों। दोनों ने डर के मारे माँ को कुछ नही बताया।जब रात हुई तो चुलबुल सो नही पा रहा था। उसका पैर और पीठ बहुत दुःख रहा था। कहते है न कोई भी दर्द रात को ज्यादा महसूस होता है :), आधी रात हुई और चुलबुल रोने लगा, तब माँ को लगा कुछ गड़बड़ है।माँ उसको छू कर देखने लगी। जब पीठ छुआ तो वो चिल्ला पड़ा। माँ ने जब कपडे हटाये तो छड़ी की निशान पड़े हुए थे।माँ ने लवली से पूछा। लवली ने डरते हुए सब बता दिया माँ को,और माँ को कहा सर से ना बताये। माँ बहुत गुस्से में थी। उन्होंने चुलबुल की चोट पे मलहम लगाई और गुस्से में कहा कल ही इस मास्टर की छूटी करती हूँ। राक्षस की तरह मारा है मेरे बच्चे को। नही पढ़वाना इससे। माँ की बात सुनके लवली को बहुत खुशी हुई की कल से सर की छूटी। वो चुलबुल को भी ये बताना चाह रही थी ,पर दर्द में परेशान चुलबुल ना माँ की बात सुन पा रहा था न लवली की।
या कॉमिक्स पढ़ती हो।अब चुलबुल की हँसने की बारी थी। लवली बोली ठीक है, मैं मदन सर को नही बताउंगी तुम माँ को मत बताना।बचपन में इसे कहते थे ,एक हाथ लो ,दूसरे हाथ दो :) ,मतलब तुम मेरी गलती छुपाओ माँ से मै तुम्हारी छुपाऊँगा।सच में मदन सर ने बहुत गलत टाइम लिया था, पढ़ाने के लिए।उनका घर भी दूर था ,तो उन्होंने माँ को कहा स्कूल के एक घंटे बाद ही वो पढ़ाने आजायेंगे।उनका घर से वापस पढ़ाने आना मुश्किल है। माँ को क्या था बस बच्चे पढ़े।खेलना तो होता रहेगा। माँ ने हाँ कर दी थी।चुलबुल कभी माँ को कोसे कभी सर को।चुलबुल की मौसी (माँ की बहन ) बसंतपुर में ही रहती थी। मौसा जी बसंतपुर के पास ही बैंक में मैनेजर थे।मौसी को भी दो बच्चे थे उस वक़्त। बिट्टू और शिल्पी।तो रोज शाम में चुलबुल की माँ अपनी बहन से मिलने जाती थी। शायद ही किसी शाम को ना गई हो ,जब उनकी या लवली- चुलबुल की तबियत ख़राब हो।रोज की तरह आज भी वो अपनी बहन से मिलने चली गई। जाते हुए चुलबुल- लवली को मदन सर से पढ़ने के लिए बोल कर गई।माँ के जाने के बाद चुलबुल सोचने लगा क्या किया जाये की मदन सर से न पढ़ना पड़े। इसी बीच में 5 बज गए और मदन सर साईकल से आते हुए दिखे। उनको देखते ही चुलबुल ने भागना शुरू कर दिया।सर भी कम नही थे। उन्होंने लवली को किताब निकाल के पढ़ने को कहा और खुद चुलबुल के पीछे चले गए। आगे -आगे चुलबुल दौड़ रहा है ,पीछे मदन सर साईकिल से। कब तक बेचारा चुलबुल दौड़ता आख़िरकार सर ने उसे पकड़ लिया। उसको साईकिल पे बिठा कर घर लए। फिर शुरू हुई चुलबुल की पूजा। मदन सर ने चुलबुल से 50 बार उठक -बैठक कराइ।उठक -बैठक उनका प्रिये टॉर्चर था।फिर भी उनका जी नही भरा ,शायद साईकिल से चुलबुल को पीछा करना उन्हें अच्छा नही लगा था। उनके पास खजूर की छड़ी होती थी ,खजूर की छड़ी बहुत पतली और लचीली होती है। उससे मारने से चोट बहुत ज्यादा लगती है।मदन सर ने छड़ी से चुलबुल की पिटाई शुरू कर दी। उसकी पिटाई देख चुलबुल के साथ लवली भी रोने लगी। इसी चक्कर में लवली को भी सर का प्रसाद मिल गया कि ,वो क्यों रो रही है। खैर जब सर का मन भर गया तो कल से टाइम पर पढ़ने बैठने की चेतावनी दे कर सर चले गए। जाते -जाते लवली ,चुलबुल को बोल कर गए कि ,माँ को इस बारे में ना बताये वो दोनों। दोनों ने डर के मारे माँ को कुछ नही बताया।जब रात हुई तो चुलबुल सो नही पा रहा था। उसका पैर और पीठ बहुत दुःख रहा था। कहते है न कोई भी दर्द रात को ज्यादा महसूस होता है :), आधी रात हुई और चुलबुल रोने लगा, तब माँ को लगा कुछ गड़बड़ है।माँ उसको छू कर देखने लगी। जब पीठ छुआ तो वो चिल्ला पड़ा। माँ ने जब कपडे हटाये तो छड़ी की निशान पड़े हुए थे।माँ ने लवली से पूछा। लवली ने डरते हुए सब बता दिया माँ को,और माँ को कहा सर से ना बताये। माँ बहुत गुस्से में थी। उन्होंने चुलबुल की चोट पे मलहम लगाई और गुस्से में कहा कल ही इस मास्टर की छूटी करती हूँ। राक्षस की तरह मारा है मेरे बच्चे को। नही पढ़वाना इससे। माँ की बात सुनके लवली को बहुत खुशी हुई की कल से सर की छूटी। वो चुलबुल को भी ये बताना चाह रही थी ,पर दर्द में परेशान चुलबुल ना माँ की बात सुन पा रहा था न लवली की।
No comments:
Post a Comment