Tuesday 1 September 2015

भारतीय समाज और लड़कियो का कुँवारापन !!!!

मियाँ -बीबी के जोक्स तो आपने बहुत सुने होंगे।किसी की खुशहाल दांपत्य भी देखा होगा।एक आध उथल -पुथल वाली वैवाहिक जिंदगी में भी ताका -झाँकी की होगी।पर क्या कभी किसी ऐसी लड़की को देखा है।जिसकी शादी ना हो रही हो।कुँवारापन एक श्राप बन गया हो।समझा है कभी ,सुन्दर ना होने पर बार - बार वर पक्ष से तिरस्कार ,गरीब होने पर दहेज़ का बोझ ,पढ़ी -लिखी हो तो उम्र का ताना ,पिता ना हो तो कौन कराये ब्याह की चिंता ,ब्याह तय हो तो अच्छे वर की अकांक्षा में मरती हुई लड़की की पीड़ा।पता नही मैं आज क्या लिख रही हूँ।पर मन व्याकुल है ,तो पन्ने रंग रही हूँ।मेरी ही कुछ जानेवाले जिनकी अब तक शादी नही हुई।उनसे बात करके लगता है ,मैंने शादी करके गोल्ड मेडल जीत लिया हो।या कोई बहुत बड़ा सम्मान पा लिया हो।पढ़ी -लिखी,अच्छी नौकरी पेशा एक लड़की।साधारण होने की वजह से कई बार रिजेक्ट हुई।मुझसे बात करते हुए रो पड़ती है।मैं उसे समझाने की कोशिश करती हूँ।पर खुद अंदर से रो रही हूँ सोच कर।क्या ये वही कॉलेज की टॉपर है ? जो एक ब्याह ना होने से अधीर है।एक लड़की जो कॉलेज टाइम में बहुत ही सुन्दर।उसके पीछे लड़को की कतार हुआ करती थी।आज उसके लिए लड़के नही मिल रहे।कारण उम्र और मोटापा।एक लड़की के माँ -बाप को गूँगा बनना पड़ा ,सिर्फ इसलिए की बेटी सुन्दर नही।वर पक्ष की आकांक्षा को पूरा करता उसका पिता यही सोचता होगा।चलो बेटी का ब्याह तो हुआ।एक लड़की सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर लेती है ,की उसकी शादी नही हो रही थी।पिता नही रहे।भाइयों को अपनी बीबी -बच्चो से फुर्सत नही।पड़ोसियों और रिश्तेदारो ने बाहर निकलना मुशिकल कर रखा था।तो दूसरी लड़की को अपने दोस्त से माफ़ी माँगना पड़ता है ,कि वो उसके लिए मेट्रिमोनियल से लड़का न ढूंढे।उसके भाई और पिता नाराज होते है।घरवालो के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचता है।कहते है हम मर गए है क्या ?जो तुम्हारी दोस्त शादी करवायेंगी।तो कही ऐसी लड़की जो अपने परिवार वालो की चमक -धमक वाला ,उच्चे हैसियत के लड़के की उम्मीद में साल दर साल गिन रही है।ये जितने भी उदाहरण मैंने लिखे ये सब कहानी नही सचाई है।कारण जो भी हो ब्याह का।लेकिन अगर लड़की की शादी नही होता ,तो गुनहगार लड़की ही है।क्या जरुरत थी उसे पैदा होने की ?हुई भी तो सुन्दर ,अमीर घर में क्यों नही जन्मी ? जन्मी भी तो पढाई के साथ ही ब्याह क्यों नही किया ? समय से ब्याह नही किया तो ,किसी अधेड़ या तलाकशुदा से शादी करने में हिचक क्यों रही है ? माँ बाप पर बोझ तो है ही।गाँव ,मुहल्ला रिश्तेदार तक खोट निकालने  में नही चूकते।हाँ ये जरूर भूल जाते है ,की उनकी अपनी बेटी भी है।बेचारी लड़की 30 की दहलीज़ पर खड़ी।जब भी किसी दोस्त की शादी की खबर सुनती है ,उसका मन टीस से भर जाता है।दोस्तों की शादी में नाचते -गाते देख।कोई न कोई पूछ बैठता है , तू कब शादी करेगी ? बस एक दर्द के साथ झेप के कहती ,जब होनी होगी हो जायेगी।पहले जैसे अब किसी की किसी से रिस्तेदारी नही रही।जो लोग दूसरे की बेटी के लिए वर ढूंढते रहे या बताते रहे।पिता जब लड़का ढूंढ के थक जाता है।तो माँ पूछती है ,अगर कोई लड़का पसंद है तो बता दे।या फिर इससे अच्छा तो ये खुद ही लड़का पसंद कर लेती।इतनी परेशानी तो नही होती।माता जी जब आपकी बेटी के पीछे लड़को की कतार थी।उस वक़्त तो आपने इज़्ज़त का हवाला दे बेटी को रोक लिया।आज जब उन लड़को की शादी हो गई ,तो आप बेटी के आशिक ढूंढ रही है।अब इस उम्र में ना तो आपकी बेटी किसी को लुभायेंगी न कोई नौजवान उसपे फ़िदा होगा।मार्केट में नौजवान के लॉट की भी तो लड़कियाँ आ गई है।बस अब आप अपनी बेटी को कोसते रहिये। 30 साल की हो गई ब्याह नही हो रहा।छोटे शहरो की तो और भी बुरी स्तिथि है।लड़कियाँ पढाई के बाद घर में कैद हो जाती है।दिन भर टेलीविज़न पर फिल्मे या सास -बहू सीरियल देखती।सुन्दर ,पढ़े लिखे जीवन साथी की कल्पना में खोई हुई।ऐसा नही है की लड़को को कुंवारेपन की पीड़ा नही होती होगी।पर मुझे लगता है उनका दुख कुछ कम होगा।उनके पास उम्र की कोई तय सीमा नही।सुंदरता का कोई पैमाना नही।दहेज़ की कोई चिंता नही।उनके मनोरंजन के भी ढ़ेरो साधन है।उनकी शारीरिक जरूरते भी पूरी हो सकती है।कही भी रात गुजार कर आ सकते है।कोई नही पूछता।पर लड़की का क्या ?जरा सोचिये क्या उसकी शारीरिक जरुरत नही? क्या वो बेशर्म है जब शादी की बात करती है ?क्या उसका मन नही करता किसी से प्यार करने को।वो क्या करे जब उसका शरीर उसकी बेबसी ना समझ पाये ? वो क्या करे जब उसकी शादी ना हो रही हो ? वो क्या जबाब दे समाज के तानो का ?वो कब तक अपने कुँवारेपन के बोझ के नीचे मरती रहे।या यूँ कहे मर क्यों ना जाये।इस नए युग में भी शादी और शारीरिक जरुरतो के मापदंड पर झूलती लड़की को श्रद्धांजली।

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