Friday 11 September 2015

एक छोटा विराम !!!

दोस्तों कभी -कभी थोड़ा विराम भी जरुरी होता है। हमेशा चलते रहने से आपके अंदर वेग तो बना रहता है ,पर 
एक थकान और बोझिलपन महसूस होने लगता है।कभी -कभी प्रकृति द्वारा बनाया विराम अद्भुद अनुभूति देता है।लेकिन इस बार के विराम की वजह मेरा भारत जाना है।मन में बहुत से सपने है,तो किसी एक कोने में उनके टूटने का डर।कही इन दो सालो में कुछ बदला तो नही होगा ? ये जानते हुए भी कि ,परिवर्तन संसार का नियम है ,हम आसानी से बदलाव सहन  नही कर पाते।घर जाने का उमंग।अपनों से मिलने की लालसा एक नई ऊर्जा भर रही है।ऐसा नही है कि ,मैं यहां दुखी हूँ ,या ये देश मुझे पसंद नही। पर बात वही है ,घर सिर्फ एक होता है ,बाकी के सब डेरा।लड़कियों की तो और विकट समस्या है।ना चाहते हुए भी उनके दो घर बना दिए जाते है। एक मायका तो दूसरा ससुराल।डेरा चाहे जितना बदले अच्छे दोस्त और अच्छा जीवन साथी वैसे ही होते है ,जैसे ससुराल।वो हर कोशिश करते है ,आपको अपनाने की और आप भी उनमे रम जाते है। मेरे सारे दोस्त जिनको मेरे ब्लॉग का इंतज़ार होता है।उनसे कुछ दिनों के लिए माफ़ी माँगती हूँ।इंडिया से आने के बाद बदले मोदी के बदले भारत की तस्वीर लिखूंगी।तबतक के लिए एक प्यारी सी कविता "दीपांकर गिरी" द्वारा लिखी हुई।
हवा के सहारे टंगे हुए है हम । 
ना हमसे कोई मुहब्बत  करता है ,ना नफरत 
ना कोई हमें खरीदता है ,ना हम किसी के हाथ बिकते है। 
हम चाहते है ,सब हमारे साथ हो ,हम चाहते है, कुछ लोग हमारे साथ ना हो 
क्योकि लड़ने के लिए कोई तो चाहिय। इसलिए उनकी तरफ भी कुछ लोग चाहते है। 
वे हमें जानते है अच्छी तरह से। 
हम ना क्रांति करते है ,ना शांति से बैठते है। 
हमें हर वक़्त किसी का फ़ोन आता है 
जबकि हम किसी और की आवाज़ सुनने को बेताब है। 
कभी हम अँधेरे से भागते है ,कभी रौशनी से ,
कभी आमवस्या की तरफ चल पड़ते है ,तो कभी चाँदनी की तरफ भागते है। 
हम चाय भी पीते है ,हम शराब भी पीते है ,
हम ना सोते है ,ना जागते है ,ना रोते है ,ना हँसते है। 
हम कभी शहर में जंगल चाहते है ,तो कभी जंगल में शहर बसाना 
हम ना नियम का पालन करते है ,ना नियम तोड़ते है। 
हम ना पढ़ते है ,ना किताबों से दूर रहते है 
हमें अखबारों के पन्ने अच्छे नही लगते ,इसलिए अखबारों को हम नही पसंद। 
जब हम सूरज बन जाते है ,वो हमसे डरते है 
जब हम चाँद बन जाते है ,वो हमें डराते है। 
वो हमारी बढ़ी दाढ़ी में तिनका ढूंढ़ते है 
हम उनके चिकने गालो पर पेड़ उगाना चाहते है। 
वे चाहते है वे हमारे छत के नीचे आ जाये 
पर कैसे ?
"हम तो खुद ही हवा में टंगे है 
जहाँ ना छत है ना नींव"  !!

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