Tuesday, 13 October 2015

बस बदली थी ,तस्वीरें !!!

सभी दोस्तों शुभचिंतको को मेरा नमस्कार ,प्रणाम एवम प्यार। सबसे पहले आप सभी को नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएँ। माता दुर्गा से प्रार्थना है ,कि विश्व में हर जगह भाईचारा और शांति बनी रहे।हर किसी को भोजन ,स्वाथ्य और शिक्षा मिले।ओह !मैं तो भूल गई भाईचारे के लिए तो मुझे " माँ दुर्गा " की जगह " गाय माता " से प्रार्थना करनी होगी।गाय माता सच में आप ही हमारी माँ हो ,तभी तो हमारा जानवर जाग रहा है।खैर चलिए ,इसपर फिर कभी।एक विराम के बाद फिर से लिखाई शुरू करती हूँ।मुझे इस बात की ख़ुशी है की, मेरे " पचासवें ब्लॉग " की लिखाई ,मेरे भारत यात्रा की स्मृति है।कहाँ से शुरू करू ,क्या -क्या बताऊँ ? बहुत सारी बातें है।तो चलिए पहले ये बताती हूँ, मेरी यात्रा कैसी रही ? मेरी भारत यात्रा किसी रोलरकोस्टर जैसी रही।कभी खुशी तो कभी डर तो कभी मज़ा।वीजा  स्टाम्पिंग से लेकर ,भाई के दोस्तों से मिलना ,शॉपिंग ,भागमभाग ,गर्मी ,एडवेंचर , महँगाई ,राजनीती ,डर , डेंगू ,लोगो के सवाल ,दर्शन और आने का दुःख सबका समावेश रहा।एक बार फिर मुझे ये लिखते हुए बहुत संतोष हो रहा है ,कि मैं भारत की रहने वाली हूँ।भारत वो देश है जिसमे आप कम समय में भी  जीवन के सारे रंग देख सकते है।आह वो दिल्ली का एयरपोर्ट।बाहर निकलते ही पे -पो ,लोगो का हो हल्ला।मुझे यकीन  ही नही हो रहा था कि ,सच में मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर हूँ।इसका कारण बार -बार हमारी यात्रा का टल जाना था।फ्लाइट से बाहर आने तक ना जाने मेरे दिल -दिमाग ने मेरी कितनी सारी पुरानी यादें ताज़ा कर दी।ये भी तय कर दिया था , क्या -क्या करना है ? कहाँ जाना है ? किनसे मिलना है।ऐसा लग रहा था ,इन दो सालो की भरपाई इन इक्कीस दिनों में करनी है। फ्लाइट के लैंड होते ही ,मेरे दिल की धड़कने क्यों बढ़ गई थी मालूम नही ? मैंने शतेश से पूछा आप इतने आराम से क्यों है ? आपको कुछ नही हो रहा ? मेरी खुशी देख शतेश हँसे जा रहे थे।बोले इतने दिनों बाद आई हो ,इसलिए ऐसा लग रहा है।बाद में आदत सी हो जाएगी।सामान लेना और इमिग्रेशन से बाहर आने के बाद मैं अपनी कमजोर आँखों से  भीड़ में अपने भाई (चुलबुल )को ढूंढने लगी।शतेश से पूछती हूँ आपको मेरा भाई कही दिख रहा है ? शतेश बोले हाँ वो रहा सामने। तुमने लेंस क्यों नही लगाई :) यूनाइटेड इंडिया की फ्लाइट रात 9 :30 पर पहुंची थी।उस पर एयरपोर्ट के बाहर रिसीव करने वाले लोगो की लाइन।आँखों में अपने से मिलने की तड़प और उन्ही आँखों का जुल्म एक साथ दिखा मुझे उस वक़्त।भाई ने मुझे इधर -उधर देखता देख ,हाथ हिलाया।भगवान उसको देख कर पता नही मुझे क्या हुआ ? सारा सामान छोड़ -छाड़ कर दौड़कर भागी उसकी तरफ।दोनों एक दूसरे के गले लग जोर -जोर से रोने लगे।हम दोनों को आस -पास के लोगो की कोई खबर ना थी।बस था तो बीते सालों से आँखों में छिपे हमारे आँसू।जो बहे जा रहे थे।पीछे से सारा -सामान शतेश जैसे- तैसे लेके पहुँचे।पास आकर बोले अरे दोनों चुप हो जाओ सब लोग देख रहे है।पर हमें कहाँ किसी की परवाह थी।शतेश के भाई  भी आये थे।मेरे पर्स को मुझे देते हुए बोले भाभी मैं भी आया हूँ।चलिए महराज घर चल के आराम से आपलोग रोईयेगा।मैं थोड़ा झेप गई।उनसे भी हाल -चाल पूछा।शतेश मेरे भाई से कहते है ,मैं भी दो साल बाद आया हूँ यार, मुझेसे भी मिल लो।अब झेंपने की बारी मेरे भाई की थी ;) शतेश के भाई ने कैब बुक किया था।कैब वाला एयरपोर्ट पर ही कही और हमारा इंतज़ार कर रहा था।उसको कॉल करके डायरेक्शन देने और सही जगह बुलाने में 20 /25  मिनट लग गए।जबकि वो हमसे ज्यादा दूर नही था।शतेश के भाई कैब वाले  से खीजते हुए कहते है ,अरे यार कब से तुम्हे रास्ता बता रहा था।पहली बार आये हो क्या ? वो कहता है हाँ।मैं 3 -4 रोज पहले ही राजस्थान से दिल्ली आया हूँ।मुझे दिल्ली का पूरा रास्ता मालूम हो गया है।पर एयरपोर्ट पहली बार आया हूँ :) शतेश और उनके भाई कैब में सामान रख ही रहे थे ,कि दो लोग मिल कर हमारा सामान रखने लगे।मुझे लगा कैब वाले का दोस्त या वर्कर होगा,मदद कर रहा है।तभी देखा शतेश उनको पैसे दे रहे थे।मैंने गाड़ी में बैठते ही पूछा आपने उनको पैसे क्यों दिए ? मेरा भाई बोला ये उनका काम है ,बिना पूछे सामान गाड़ी में रख देना ,और पैसे मांगना।ऐसे ही उनका जीवन चलता है। मैंने कहा अगर नही दिया तो ? तो कुछ नही थोड़ा बहस होगा और क्या ?खैर हमलोग बाते करते ,पी -पा ,धूल ,उमस ,ट्रैफिक का मजा लेते हुए जा रहे थे।बातों में शतेश बोले ,तुम्हे एयरपोर्ट पर भागते और रोते देख पीछे से लोग कह रहे थे ,होता है होता है ,लोग इमोशनल हो जाते है।शतेश हँसते हुए कहते है ,मैं क्या कहता उनलोगो को कि ,जिसकी आप बात कर रहे है ,वो मेरी ही पत्नी है।हमलोग हँस पड़े।ट्रैफिक में फँसे हमारी नज़र बस और ऑटो पर गई।लगभग हर बस और ऑटो पर अरविन्द केजरीवाल का पोस्टर देख ,शतेश ने मेरे भाई से सवाल -जवाब शुरू कर दिए।मैं इनसबसे ऊपर खिड़की से बाहर देखती जा रही थी।रास्ते में वसंतकुंज के पास एक हॉटेल दिखा जहाँ मैं और भाई एक सगाई में गए थे।भाई के साथ उसकी यादें ताजा करती हुई खुश हो रही थी।भाई पूछता है ,कैसा लग रहा इतने दिनों बाद भारत आके।खुश होकर मैं कहती हूँ ,बहुत अच्छा।पहली नज़र में तो कुछ नही बदला था।वही सड़के ,वही भीड़ ,वही ट्रैफिक जाम ,वही बिजली के तार झुके हुए,वही मेरा भाई।बस बदली थी " तस्वीरें " शीला दीक्षित की जगह केजरीवाल , मनमोहन सिंह की जगह नरेंद्र मोदी और नटखट चुलबुल की जगह दाढ़ी वाला चुलबुल।

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