Tuesday, 27 October 2015

खुद को ढूँढना बुरी बात नही !!!!

दोस्तों पिछले यात्रा के किस्से में मैंने आपलोग को अपने भाई के( मार्क्सवादी) दोस्तों से मिलवाया।अब महंगाई और अपने रास्ते ढूढंते दो और लोगो से मिलने की बारी है।तो यात्रा शुरू होती है।रात को शतेश के भाई के रूम पर पहुँच कर हमने खाना खाया।थोड़ी बात -चीत के बाद सोने की तैयारी शुरू हुई।मेरा भाई और शतेश के भाई तो बेड पे पहुँचते ही सो गए।बस हमदोनो ही रतजगा करते रहे।कारण पता नही , जेटलैग था ,गर्मी थी ,नई जगह थी या घर पहुँचने की ख़ुशी थी।रात भर हमदोनो छत पर घूमते ,बैठते ,बतियाते रह गए।सुबह होने का इंतज़ार था।सोच रहे थे कब शतेश के भाई या मेरा भाई जगे ? पिछले दो सालो में तो हमदोनो की बाते ही ख़त्म होगी थी।बस वही घिसी -पीटी बाते रीपीट हो रही थी।वो तो अच्छा था ,फ़ोन बंद था ,वरना मैं इस कोने तो शतेश दूसरे कोने।बेडा गरक हो इस टेक्नोलॉजी का और स्मार्ट फ़ोन का।सबका भला किया हो।पर पति -पत्नी को भाई बहन बना दिया है :)गर्ल फ्रेंड और बॉयफ्रेंड की दौड़ से जो आगे निकल आये है ,उन युवा के लिए तो बस टाइम काटने का साधन हो गया है, टेक्नोलॉजी और फ़ोन।प्रेम भरे मैसेज तो अब आते नही।पति और पत्नी बन जाने के बाद तो टेलीफोनिक रोमांस फुर्र हो जाता है।बस फ़ोन से ही रोमांस होता रहता है।फेसबुक ,ट्वीटर ,वॉटसअप और एक ही न्यूज़ को दस भिन्न -भिन्न चैनेल पे पढ़ते रहे।भिन्न चैनेल पे न्यूज़ पढ़ने का फायदा तो तब हो ,जब न्यूज़ ही बदल जाया करे।मसलन "पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोदी जी" हो जाए और "भारत के नवाज शरीफ़ जी " :)ओबामा जी बिहार के मुख्यमंत्री बन जाए।फिर मजा आता अरे वाह टेक्नोलॉजी तो कमाल की है।खैर सुबह के 6 बजे तक ना मेरा भाई जगा ना शतेश का।फिर हमने सोचा चलो चाय ही बनाते है।रसोई में गई तो दूध नही था।शतेश को 100 रूपये देते हुए बोली ,दूध ,ब्रेड और बिस्कुट लेते आइये।शतेश बाबू मॉर्निंग वॉक का बखान करते हुए दूध लेने चले गए।थोड़ी देर में मुँह लटकाये आये।आते ही बोले आरे यार हद हो गई महँगाई की।100 रूपये में सिर्फ एक लीटर दूध और एक पैकेट ब्रेड मिला।दूकानदार से बोला बाकी के पैसे तो बोला ,भाई साहब हो गया पूरा हिसाब।मैं उनके चेहरे और महँगाई का गान सुनकर हँसे जा रही थी।कारण अब तक जो इंसान रात भर मुझे इंडिया के बारे में गुणगान कर रहा था।वही अभी इसकी बुराई कर रहा था।पासपोर्ट लेने के बाद हमलोग शॉपिंग करने गए।वहां भी वही हाल।साड़ी -कपड़ो के दाम हमारी सोच से आगे जा चुके थे।महँगाई का आलम ये दिखा की ,एक डोसा 120 रूपये का ,बनाना शेक 80 रूपये का और तो और पानी भी 30 रूपये का।ये सब देख के हमदोनो थोड़े परेशान थे।सोचने लगे दो साल में इतनी महँगाई।कैसे जी रहे है कम कमाने वाले या मजदुर लोग ?अमेरीका में  तो दो सालो में ना दूध का दाम बढ़ा ना पानी का।खाने -पीने के चीज़ो के दाम वही है ,जो दो साल पहले था।शायद यही था शाइनिंग इंडिया।पर एक ख़ुशी भी हुई ,अब लोग कमाने के साथ खर्च भी कर रहे है।एक समय वो था ,जब एक पीढ़ी ने सिर्फ कमाने और बचाने में सारी जिंदगी गुजार दी।शॉपिंग के बीच हमलोग मेरे भाई के दोस्त गर्वित और ईशान से मिले।एक तो गर्मी दूसरी भूख लगी थी।हमलोग ने सोचा खाते हुए बात -चीत होगी तो ठीक रहेगा।हमलोग पिण्ड बलूची पहुंचे।खाना आर्डर किया और बाते शुरू।गर्वित आई आई टी छोड़ चार्टड अकाउंटेंट का कोर्स कर रहा है।ईशान फुटबॉल कोच है।शतेश थोड़े गर्वित की बातो से सहमत नही थे।उन्हें लग रहा था ,इतना होनहार लड़का अपने भविष्य को लेकर ऐसा बेफिक्र क्यों है ? क्यों आई आई टी छोड़ी क्यों चार्टेड अकाउंटेंट बन रहा है ? पर मुझे ख़ुशी थी कि ,कम से कम वो अपने जीवन से सीख रहा है।खुद को ढूंढ़ रहा है।समाज से डर नही रहा।ना की मेरी तरह पैसे और समाज के लिए बैंक में नौकरी की।अपनी ख़ुशी के लिए पार्ट टाइम शनिवार और रविवार को एनजीओ में काम किया।अपनी ख़ुशी को पार्ट टाइम बना देना कौन सा तोप का काम है ? मुझे मालूम था ,समाज सेवा ,किताबे पढ़ना या लिखना ही मेरी ख़ुशी है।फिर भी इधर -उधर भटकती रही।कारण साफ़ था समाज का डर ,या खुद का मैरेज प्रोफाइल बनाना।जॉब कर रही है लड़की ,अच्छा लड़का मिल जायेगा।बात तो थोड़ी सही है।पर कुछ लोग शतेश की तरह भी होते है।जिन्होंने मेरी बैंकिंग प्रोफाइल की वजह से नही,मेरे एनजीओ के काम और मेरी सोच की वजह से शादी की।तो डरिये नही कुछ अलग करना चाहते है, तो जरूर कीजिए।खुद को ढूँढना बुरी बात नही है।मुझे बहुत अच्छा लगा गर्वित और ईशान से मिल कर।शायद इसलिए भी कि ,उनमे कहीं ना कही मेरा अतीत दिखा था।उन दोनों से विदा लेने का समय था।गर्वित ने मुझे बहुमूल्य गिफ्ट दिया।वो था "अ पोर्ट्रेट ऑफ़ द आर्टिस्ट एज अ यंग मैन "जेम्स जॉयस द्वारा लिखी किताब।धन्यवाद गर्वित।

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