Wednesday 17 August 2016

KHATTI-MITHI: लवली -चुलबुल स्पेशल !!!!

KHATTI-MITHI: लवली -चुलबुल स्पेशल !!!!: भाई जब आपसे छोटा हो ,तो उससे बड़ी खुशी कोई और हो ही नही सकती।वही भाई जब आपसे छोटा हो ,और लंबाई में बड़ा तो मन दू कैसा तो हो जाता है।उसपे जले ...

लवली -चुलबुल स्पेशल !!!!

भाई जब आपसे छोटा हो ,तो उससे बड़ी खुशी कोई और हो ही नही सकती।वही भाई जब आपसे छोटा हो ,और लंबाई में बड़ा तो मन दू कैसा तो हो जाता है।उसपे जले पर नमक तब गिरता है ,जब कोई पड़ोसी, सगे -संबंधी या आपके दोस्त ये बोल दे कि, अरे चुलबुल (मेरा भाई ) तो लवली से भी सुन्दर और गोरा है।साला ये गोरा रंग कब तक हमारे समाज में घुसा रहेगा समझ नही आता।ज़ज्बातो का जुल्म तब और बढ़ जाता है ,जब आपसे छोटा भाई आपसे ज्यादा ज्ञानी हो जाये।कभी बात -चीत के दौरान कुछ ऐसे टॉपिक आ गये जिसके बारे में आप नही जानते और आपका छुटकू भाई आपको उसको बारे में बताये।फिर आग तो तब लगती है, जब वो आपसे कहता हो -रहने दो बहिन तुम नही समझोगी।भगवान कसम बॉडी में इतने सारे केमिकल रिएक्शन एक साथ शुरू हो जाते है कि, पूछो मत।बताओ हमसे बाद में पैदा हुआ और हमें ही ज्ञान दे रहा है।हम ना होते तो अटके रहते भगवान के पास अबतक।पर ये बात उन्हें समझाए कौन ? खैर ज्ञान कही से भी मिले ले लेना चाहिए।भाई है उसे भी माफ़ करते रहना चाहिए।वैसे छोटे भाई होने के कई फायदे भी है।जीतना चाहो काम करवा लो ,रौब दिखा लो ,मार -पीट लो बेचारे सब सहन करते है।साथ में बिना वजह आपकी गलती की सजा भी वही भुगतते है।मौका राखी का है ,और ईसपर मुझे अपने बचपन की एक बहुत ही मज़ेदार घटना याद आ रही है।हुआ यूँ था ,उन दिनों टीवी पर रामायण -महाभारत का बोल -बाला था।एक या दो रात पहले रामायण में भरत का राम से मिलन वाला एपिसोड दिखाया गया।जिसमे राम के बनवास के वक़्त भरत राम से मिलने जाते है।राम से वापस अयोध्या चलने को कहते है ,पर राम पिता की आज्ञा मान नही जाने का निर्णय लेते है।राम के ना आने पर भरत दुखी हो , राम का खड़ाऊ (लकड़ी का चप्पल ) ले कर वापस अयोध्या चले आते है।गौर करने की बात है कि, भरत खड़ाऊ अपने सिर पर रख के लाते है।बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ- राम भक्त ले चला रे राम की निशानी एपिसोड खत्म हो जाता है।जो लोग रामायण देखने हमारे घर आये थे ,रो- गा के चले गए।हमलोग भी सो गए।अगले दिन मोर्निग स्कूल की वजह से हमलोग घर जल्दी आ गये।गर्मियों के दिन थे।स्कूल मोर्निग में होते थे।पुरे दिन हमलोगो की मौज होती थी।माँ भी ऑफिस में होती।हम दोनों भाई -बहन खूब उधम मचाते।आज की दोपहर को हमलोग सोच रहे थे कि ,आज क्या किया जाए ? भाई को आडिया आया कि रामायण में जो एपीसोड देखा था ,वही किया जाए।मैंने कहा चलो ठीक है ,पर राम मै बनूँगी।भाई बोला ऐसा क्यों ? मैंने कहा क्योकि मै बड़ी हूँ तुमसे और राम भरत से बड़े थे।मेरे ईस तर्क से भाई भरत बनने को तैयार हो गया।मैंने भाई को बोला पर हमारे पास खड़ाऊ तो है ही नही।भाई बोला कोई बात नही ,मै तुम्हारे चप्पल को ही खड़ाऊ बना लूँगा।मै राम के रोल में आराम से कुर्सी पर बैठ गई।भाई भरत की एक्टिंग करने लगा।अब संयोग देखिये ,जब भाई को पीटना होता था ,बेचारा कैसे भी पीट ही जाता था।भाई भरत के ऐक्टिंग में डूबे ,मेरे चप्पल को सिर पर रख के गोल -गोल घूम रहे थे।मतलब जाने की ऐक्टिंग कर रहे थे।तभी माता जी का आगमन हो गया।माँ ने मुझे तो कुर्सी पर बैठे देखा ,पर बेचारा भाई फँस गया।फिर क्या था ,माँ ने बेचारे को बाली की तरह धोया।माँ उसे डांट रही थी कि,चप्पल क्या सिर पर रखने की चीज़ है, और वो बेचारा रोता हुआ बोला माँ वो तो दीदी कि ,फिर एक थप्पड़।दीदी क्या ? देखो तो वो कैसे अच्छे बच्चे की तरह कुर्सी पर बैठी है और तुम।उसके बाद फिर कभी भाई ने रामायण का कोई ऐपिसोड नही खेला।आह ! वो भी क्या दिन थे।सच में चुलबुल तुम ना होते तो मेरी जिंदगी बेरंग होती।कितने सुख -दुख हमने साथ में जीए है।एक -दूसरे के साथ कैसे वक़्त निकल जाता मालूम ही नही चलता।मेरी वजह से कई बार तुम परेशानी में पड़े पर मानना पड़ेगा तुम्हारी हिम्मत को :) मेरे भाई ,दोस्त ,कुक ,डॉक्टर सब तुम्ही थे और भी हो।आज भी जब खिचड़ी पकाती हूँ या जब बीमार पड़ती हूँ ,तुम बहुत याद आते हो।वैसे तो भगवान सब बहनों को प्यार करने वाला भाई देता है ,पर उसकी मुझपे थोड़ी कृपा ज्यादा है।मै भगवान से हमेशा यही प्रार्थना करती हूँ कि ,अगर वो किसी लवली के जीवन में पिता का सुख नही दे सकता तो उसे एक चुलबुल जैसा भाई जरूर दे।एक पिता ,भाई की जगह कभी नही ले सकता ,पर तुमने एक भाई के साथ पिता का भी हर रोल बहुत अच्छे ढँग से निभाया है ,और मजेदार बात ये रही की ईस रोल के लिए तुम्हे माँ से मार भी नही पड़ी है :)
*इस बार भी राखी पर तुम्हारे साथ नही हूँ ,पर ये जान लो जहाँ तुम वहाँ मैं।चुलबुल के बिना लवली पूरी हो ही नही सकती।क्या कहूँ अब ,बस समझ लो -मैं यहाँ तू वहाँ जिंदगी है कहाँ ? अच्छा तुम्हे याद है ,जब मै पुणे में थी और मेरी राखी तुम्हे दो दिन बाद मिली थी।तुम दो दिन बाद राखी बांध कर घूम रहे थे। जब लोगो ने पूछा, तब तुमने कहा था -मेरी दीदी की राखी आज आई है।मेरे लिए तो आज ही रक्षा बंधन है।हमेशा इसी बात पर कायम रहना।जब भी मिलेंगे तभी हमारी राखी होगी।मै तुम्हे आज के दिन राखी बांध पाऊँ या नही पर मेरा आशीर्वाद, प्यार साथ में तकरार हमेशा हमेशा मेरे सोनू ,कोयले कमीने के साथ रहेगा।चल यही बात पर तोर गीत
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ना ये चाँद होगा ना तारे रहेंगे ,मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे
बिछड़ कर चले जाये तुमसे कही ,तो ये ना समझना मुहब्बत नही
जहां भी रहें हम तुम्हारे रहेंगे
ना ये चाँद होगा ना तारे रहेंगे मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे।  

Wednesday 10 August 2016

KHATTI-MITHI: प्रेम से तपस्या तक !!!

KHATTI-MITHI: प्रेम से तपस्या तक !!!: स्टेज पर एक दिव्य ज्योति चमक रही है।एक तरफ एक एक बरगद के पेड़ के नीचे एक तपस्वी बैठा है।दूसरी तरफ उसके सामने एक कन्या खड़ी है।उस कन्या का नाम...

प्रेम से तपस्या तक !!!

स्टेज पर एक दिव्य ज्योति चमक रही है।एक तरफ एक एक बरगद के पेड़ के नीचे एक तपस्वी बैठा है।दूसरी तरफ उसके सामने एक कन्या खड़ी है।उस कन्या का नाम ज्योति है।ज्योति के ठीक पीछे एक पुरुष खड़ा है। जिसका नाम प्रकाश है।प्रकाश ,ज्योति का पति है।वही तपस्वी आज एक जोगी है पर ,कभी उसका नाम तेज हुआ करता था।अब नाटक कुछ यूँ आगे चलता है। 
ज्योति :- अरे तेज तुम ? मैं ज्योति,पहचान मुझे ?
तपस्वी :- ज्योति तुम।तुम इतने सालों बाद ? 
ज्योति :- मुझे तो लगा तुम मुझे पहचान ही नही पाओगे।मैंने तुम्हारे बारे में सालो पहले सुना था कि , तुम संन्यासी हो गए।मुझे तो यकीन ही नही हुआ।कई तरह के लोग कई तरह की बाते बताते ,तुम्हारे संन्यास को लेकर।कई तरह के सवाल है ,मेरे मन में।आज मिले हो तुम।अब तुम ही बता दो सचाई क्या थी ?
तपस्वी :-सब कुछ अचानक तो नही हुआ ज्योति।मेरे मन में आध्यात्म के बीज तो पहले से ही थे।बस उसको जाग्रित होने में वक़्त लग गया।हर चीज़ का एक निश्चित समय होता है।आध्यत्म से जुड़ने का सबसे बड़ा कारण मेरा एक बार मृत्यु से बच जाना भी है।बाद में चीज़े खुद बखुद होती चली गई।तुम्हे याद है -एक समय था जब मै तुम्हारे प्रेम में था।मुझे हर जगह- हर वक़्त तुम्ही दिखाई देती थी।
ज्योति :- हाँ तेज मुझे याद है ,पर उस वक़्त मै तुम्हारे प्रेम को समझ नही पाई थी।मेरे भी अपने कई कारण थे। 
तपस्वी :- ज्योति तुमने बिल्कुल सही निर्णय लिया था।वो समय ही ऐसा था।किसी को दोष नही दे सकते।वैसे तुम्हे मालूम है ,मैंने तुम्हारे लिए ऊपहार भी लिए थे।कविताये भी लिखी थी ,पर कभी ऊन चीज़ो को दे नही पाया तुम्हे।तुम मेरे प्रेम आग्रह से रुठ कर ,मुझसे सदा के लिए दूर हो गई। 
ज्योति :- हाँ मुझे याद है।मुझे याद है कि ,तुमने माफी भी माँगी थी।पर मेरा कठोर हृदय कहो या लोक -लाज का भय जो मैं तुम्हे बिना बताये दूर चली गई। 
तपस्वी :- उसके कुछ सालो बाद मै एक धर्मिक सम्मलेन में गया।वहाँ मुझे आत्मिक सुख मिला।तब मैंने सोचा जीवन के कुछ साल आध्यत्म को भी दे कर देखता हूँ।अच्छा नही लगा तो वापस मुड़ जाऊँगा।पर सच मानो ये मेरा निर्णय जीवन का सबसे सुखद निर्णय रहा।मै पूरी तरह से संतुस्ट हूँ।मुझे किसी बात का अफसोस नही। 
ज्योति :- तुम्हे मालूम है तेज -मै कई बार ऐसा सोचती थी कि कही ,तुम्हारे जोगी बनने के पीछे  कारणों में मै एक तो ना थी।फिर मै आत्मग्लानि से भर जाती।कई बार प्रकाश से भी मैंने ईस बारे में चर्चा की है।प्रकाश मजाक में कहते ज्योति से ही तो तेज निकलता है।फिर देखते कि मैं उदास हो गई ,तो कहते -ऐसा बिल्कुल ना सोचो।संन्यास के पीछे कई कारण हो सकते है। 
तपस्वी :-ये बहुत अच्छा है।पति -पत्नी में पारदर्शिता हो तो जीवन सुखी रहता है।एक बात और जीवन में आध्याम हो तो मन शांत रहता है।तुम भी ज्योति कभी समय मिले तो थोड़ी साधना किया करो।लाभ ही होगा। 
ज्योति :-हँसते हुए -मै अपने जीवन में सुखी हूँ तेज।मुझे और ज्यादा की कामना नही।आज यूँ ही गुजरते हुए यहाँ से तुम दिख गए।मै कितनी खुश हूँ तुमसे मिल कर बता नही सकती। 
 तपस्वी :- मैंने तुम्हे एक बार ढूँढने की कोशिश की थी।तुम मुझे मिली भी थी।देखा तो तुम अपने पति के साथ दूर कही जा रही थी। 
ज्योति :- ओह! ,तो अरे पागल मुझे आवाज क्यों नही दी ? माफ़ करना मै क्या तुमसे ईस तरह बात कर सकती हूँ ?
तपस्वी :- तुम जैसे चाहो बात कर सकती हो।मैंने देखा कि तुम बहुत दूर थी।वहाँ तक मेरी आवाज नही जाती।इसलिए मै वापस आ गया। 
ज्योति :- हम्म ! मेरे पास तो तुम्हारी खबर जानने का कोई साधन ही ना था ,फिर मेरी अपनी गृहस्ती भी है।
तपस्वी :- मेरा ठिकाना तो पिछले 14 सालो से बदला ही नही। 
ज्योति :-(ये सुनते ही ,रोते हुए )-आह ! तेज, मैंने कभी ये जानने की कोशिश ही नही की।छोड़ो तुम खुश हो आपने जीवन में ,मुझे संतोष हो गया। 
तपस्वी :- चलो तुम्हारा मन हल्का तो हो गया।हाँ सुनो एक बात और हमारे कुछ नियम है ,जिसके तहत हमलोग किसी महिला या कन्या से ज्यादा बात नही कर सकते ,मिल -जुल नही सकते।इसलिए मै अब चलता हूँ।
भगवान् का आशिर्वाद बना रहे तुम पर। 
स्टेज से तपस्वी जाने लगता है ,तभी प्रकाश ,ज्योति को कहता है -
ज्योति ये तुम्हारा सच्चा प्रेमी था।आह ! तुम्हे नही लगा कही ना कही तुम तेज के अन्तर्मन में थी।तभी तो वो तुम्हे ढूँढ़ रहा था।पिछले कई सालो से उसने अपना ठिकाना भी नही बदला।जो भी हो शायद उसकी नियति यही थी।वो आध्यत्म में खुश है ,और मै तुम्हारे साथ।शायद मेरा प्रेम उसके तुलना में कई गुना ज्यादा है ,इसलिए आज तुम मेरे साथ हो।
ज्योति :- हाँ सही कह रहे हो प्रकाश।पर तुमने कुछ नए प्रश्न तो जरूर डाल दिए मेरे मन में पर मै अब इन प्रश्नों के पीछे नही भागने वाली।मुझे बस इस बात की ख़ुशी है कि ,तेज अपने अपनाये मार्ग पर खुश है।मै तुम्हारे साथ सम्पूर्ण हूँ।
प्रकाश और ज्योति, तेज जिधर गया उस दिशा में देखते है।स्टेज पर रौशनी फैल जाती है।सामने दर्शको की ताली की गड़गड़ाहट गूँज रही है।