यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है ।
हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफ़ा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है
गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है
गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।
"पाश " की लिखी ये कविता आज के समय में कितनी सच्ची लगती है ना।चारो तरफ हो -हंगामा है ,सुरक्षा को लेकर।चाहे भारत हो या अमेरिका हर जगह एक ही शोर ,पर हमें खतरा किससे है ?अपने से या अपनों से ? खुद से या खुद के डर से ? भारत -पाक -अमेरिका -चीन सुन -सुन कर दिमाग में केमिकल लोच होने लगा है।समझ नही आता किसे मारे के,कहाँ मरे कहाँ माफ़ करे ?खैर पाश ! चाहे आपकी कविता ,"अब विदा लेता हूँ "हो या "मैंने एक कविता लिखनी चाही "हो या फिर "*सबसे खतरनाक होता है सपनो का मर जाना" ,सबने मुझे सोचने पर ,रोने पर विवश किया। अवतार सिंह संधू यानि हमारे पाश का जन्म पंजाब के जालंधर में 9 सितम्बर 1950 को हुआ था। आपके नाम का "संधू" हटा कर अगर "साधु"कर दिया जाय तो ,इसमें कोई आश्चर्य नही होगा।साधु कहने से मेरा मतलब किसी धर्म से नही इसकी प्रकृति से है।जैसे एक साधु हर बंधन से मुक्त होता है ,आपके विचार भी वैसे ही भय मुक्त ,बंधन मुक्त है।पाश की नक्सलवादी राजनीती से सहानुभूति थी।इन्होंने पंजाबी में कविताये लिखी ,कुछ पत्रिका का संपादन भी किया।कुछ पंजाबी में लिखी होने से पढ़ नही पाई ,पर इनकी कविताये जब भी पढ़ो प्रभावित करती है।39 साल की उम्र में ही आपकी हत्या कर दी गई।हत्या मनुष्य की होती है पाश , विचारो की नही।जीवन के बारे में लिखी आपकी इस कविता के साथ विदा लेती हूँ।
कि बिना जमीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है ।
हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफ़ा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है
गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है
गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।
"पाश " की लिखी ये कविता आज के समय में कितनी सच्ची लगती है ना।चारो तरफ हो -हंगामा है ,सुरक्षा को लेकर।चाहे भारत हो या अमेरिका हर जगह एक ही शोर ,पर हमें खतरा किससे है ?अपने से या अपनों से ? खुद से या खुद के डर से ? भारत -पाक -अमेरिका -चीन सुन -सुन कर दिमाग में केमिकल लोच होने लगा है।समझ नही आता किसे मारे के,कहाँ मरे कहाँ माफ़ करे ?खैर पाश ! चाहे आपकी कविता ,"अब विदा लेता हूँ "हो या "मैंने एक कविता लिखनी चाही "हो या फिर "*सबसे खतरनाक होता है सपनो का मर जाना" ,सबने मुझे सोचने पर ,रोने पर विवश किया। अवतार सिंह संधू यानि हमारे पाश का जन्म पंजाब के जालंधर में 9 सितम्बर 1950 को हुआ था। आपके नाम का "संधू" हटा कर अगर "साधु"कर दिया जाय तो ,इसमें कोई आश्चर्य नही होगा।साधु कहने से मेरा मतलब किसी धर्म से नही इसकी प्रकृति से है।जैसे एक साधु हर बंधन से मुक्त होता है ,आपके विचार भी वैसे ही भय मुक्त ,बंधन मुक्त है।पाश की नक्सलवादी राजनीती से सहानुभूति थी।इन्होंने पंजाबी में कविताये लिखी ,कुछ पत्रिका का संपादन भी किया।कुछ पंजाबी में लिखी होने से पढ़ नही पाई ,पर इनकी कविताये जब भी पढ़ो प्रभावित करती है।39 साल की उम्र में ही आपकी हत्या कर दी गई।हत्या मनुष्य की होती है पाश , विचारो की नही।जीवन के बारे में लिखी आपकी इस कविता के साथ विदा लेती हूँ।