Tuesday 23 October 2018

मक्किनक आईलैंड !!!

अमेरिका जैसे विकसित देश मे एक ऐसी भी जगह है जहाँ सब कुछ होने के बावजूद कोई मोटर गाड़ी नही चलती ।आज भी यहाँ घोड़े गाड़ी ,हाथ गाड़ी और साईकिल हीं चलती है ।
क्या कहा आपने ,सड़क ही नही होगी तो कैसे चलेगी गाड़ी ?
जी नही ऐसा बिल्कुल नही है ।अमेरिका की लगभग हर एक गली -कुचें सड़कों से पटी पड़ी है ।यहीं तो वजह है कि यहाँ धुल -मिट्टी नही दिखतीं और मेरा सत्यार्थ इन पर गिर -गिर कर नए -नए घाव लेता रहता है ।

इस जगह पर तो बक़ायदा हाईवे भी है ।हाईवे का नाम एम-185 है ।
जगह इतनी साफ़ और सुंदर कि यहाँ की कुल आबादी से ज़्यादा पर्यटक यहाँ आते है ।
इस ख़ूबसूरत जगह का नाम है -मक्किनक आइलैंड ।मिसिगन राज्य का एक हिस्सा जो लेक हूरोंन का हिस्सा है ।मिसिगन तो आपने आप मे हीं प्राकृतिक ख़ूबसूरती से भरा हुआ है ।यहाँ के लेक मानो समुद्र हो ।पानी इतना साफ़ कि कई ख़ूबसूरत समुन्दर इसके आगे पानी भरे।

ऐसे ही राज्य के मक्किनक आईलैंड तक जाने के लिए आपको फेरी की मदद लेनी होती है ।मैकनउ सिटी से आपको फेरी लेनी होगी जो कि  लगभग 20-25 मिनट मे इस आईलैंड पर उतार देते है ।जैसा कि मैंने पहले बताया यहाँ कोई पेट्रोल /डिजल वाली गाड़ी नही चलती तो आप यहाँ पैदल ,साईकिल (रेंट करके ) घोड़ा गाड़ी से घुम सकतें हैं ।पुरा आईलैंड हीं 8 माईल मे फैला है तो आसानी से एक दिन मे घुम सकतें है ।घुमने की भी कुछ ही जगहें है ।बाक़ी आप किसी भी कोने मे रुक कर घंटो बिता सकतें हैं ।इसे निहार सकतें है ।

अच्छा तो अब बता देती हुँ कि यहाँ गाड़ियाँ क्यों नही चलती ? प्रदूषण और लोगों के स्वस्थ को देखते हुए यहाँ 1890 से हीं गाड़ियाँ बैन हैं ।
हमने भी यहाँ उतर कर साईकिल रेंट किया ।अभी आधे से भी कम सफ़र तय किया था कि बारिश शुरू हो गई ।मैंने शतेश को कहा चलते रहते है इतनी मे ज़्यादा नही भीगेंगे और ऐसे ख़ूबसूरत जगह पर बारिश मे साईकिल चलाने का मज़ा अलग ।शायद बारिश ने मेरी बात सुन ली और दिल पर ले लिया ।बोला अब तो तुम्हें भीगो के ही रहूँगा ।थोड़ी देर में वो मूसलाधार बारिश की हमलोग साईकिल छोड़ ,सत्यार्थ को ले एक पेड़ की तरफ़ भागे ।अब पेड़ से ये बारिश अड़े?
सामने एक घर मे पार्टी चल रही थी ।उसका पैटियो बाहर ख़ाली था ।हम सोच रहे थे कि जाए या नही तभी दो लड़के लगभग अपनी साईकिल फेंकते हुए उधर भागे ।हम भी उनके पीछे पेटियों के अंदर दाख़िल हो गए ।किसी ने कुछ नही कहा ।करण उधर वो एकलौता घर था कोई और कहाँ रुकता ?

यहाँ देखने को अर्क रौक ,फ़ोर्ट मकनिक ,देविल किचेंन ,मकनिक ब्रिज और ख़ूबसूरत घरों के साथ लेक का किनारा है ।
अच्छा यहाँ आने से पहले एक दिन हमने मकनिक सिटी मे बिताया ।यहाँ होटेल के मामले मे हमने आज तक के सफ़र मे सबसे बड़ा धोखा खाया था ।वाटरपार्क वाला होटेल बूक किया था और वाटर पार्क ही बंद था ।कूछ काम चल रहा था ।साथ ही होटेल के कई हिस्से मे काम चलने की वजह से एकदम कोने का रूम दे दिया था ।इसकी कहनी कभी और पर ये शहर भी प्यारा लगा मुझे ।यहाँ रात को हमलोग तारें देखने गए थे ।एक पल को हमें हीं तारें दिख गए पर मज़ा आया ।यहाँ का एक दुकान बड़ा मज़ेदार लगा ।
साथ ही अगर आप यहाँ या मक्किनक आईलैंड आए तो यहाँ के हौट फ़ज खाना ना भुले ।


Monday 22 October 2018

माता का न्याय !

नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। और इसी के साथ माता रानी के आगमन का उत्साह मन को उल्लास से भर रहा है। ऐसे में कलकत्ता का दुर्गा पूजा और हाल में वहाँ घटी एक वीभत्स घटना से मुझे दो क़िस्से याद आ रहें हैं। दोनों ही क़िस्से लगभग एक समान है बस देश काल अलग रहा है। 

एक तो ग्रीक कथा है और दूसरी अपने भारत के पश्चिमी चंपारण की कहानी है। पश्चिमी चंपारण, बिहार का एक ज़िला है। 
ग्रीक कथा कुछ इस प्रकार है, 
मेड्युसा नाम की एक लड़की थी। वह बहुत रूपवान हुआ करती थी।वह ग्रीक देवी, “एथेना” के मंदिर में पुजारन थी और वहीं रहती थी।मंदिर में आने वाले कई लोग तो उसे ही देखने आते थें। उसकी सुंदरता का बखान करते ना थकते। उसके बालों को वे एथेना देवी के बालों से भी सुंदर कहते। मेडूसा के रूप की ख्याति पोसाइडन तक भी पहुंची। जो की इस कथा के अनुसार एथेना देवी का प्रेमी और समुद्र का देवता था। उसने जब मेड्युसा को देखा तो उसपर मोहित हो उठा। मेड्युसा की पोसाइडन में कोई रूचि नहीं थी। वह कुंवारी ही रहकर एथेना के मंदिर की पुजारन बनी रहना चाहती थी। एक दिन पोसाइडन शाम को मौका पा मेड्युसा की तरफ़ बढ़ा। ऐसे में बचने के लिए मेड्युसा मंदिर में भागी। उसने मदद के लिए एथेना देवी से गुहार लगाई। लेकिन देवी एथेना ने उसकी कोई मदद नही की। बलात्कार के बाद जब पोसाइडन जा चुका था तो देवी एथेना वहां आई। मंदिर में दुष्कर्म की सजा के रूप में वे बिना जाने मेड्युसा को ही शाप दे डाली की आजीवन वह अकेली रहेगी। उसके जिस सुंदर बालों पर लोग रीझते हैं वह भी साँप बन जायेंगे। 
पर जैसे ही देवी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने उसे यह वरदान दिया कि जो भी उसकी आँखों में ग़लत दृष्टि से देखेगा वह पत्थर का हो जायेगा। 

अब बात करती हूँ, पश्चिमी चंपारण के क़िस्से की, 
इस ज़िले के सहोदरा नामक स्थान पर एक ग़रीब लड़की रहती थी। वह बहुत ही सुंदर थी। गाँव में उसकी सुंदरता के क़िस्से कहे जाते। एक दिन वह बकरी चराने निकली तो गाँव की सीमा के पार कुछ लड़के उसे घेर लिए। उसने उनसे काफ़ी विनती की लेकिन वे मानने को तैयार ना थे। ऐसे में लड़की, माँ दुर्गा से प्रार्थना करने लगी कि हे माँ! मेरी रक्षा करें। माँ दुर्गा ने उसकी रक्षा स्वरुप उसे उसी क्षण पत्थर का बना दिया। और उसे पूजित होने का वरदान दिया। तब से आज तक उस लड़की की पूजा माता सहोदरा के रूप में होती हैं। इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहाँ पुजारन भी महिलाएँ ही होती हैं। यानि यहाँ की एक ख़ास समुदाय, “थारु” की ही महिलाएँ ही पुजारिन चुनी जाती हैं।

दोंनो ही क़िस्सों को याद कर सोचती हूँ कि देवी ने पीड़िता को ही सजा दी… क्या देवी माँ उस समय महिषासुर जैसा न्याय नहीं कर सकतीं थीं ? कई सवालों के जबाब सुलझे-अनसुलझे यूँ ही भटकते रहते हैं। फिर भी अगर आप बिहार जाए, चंपारण जाने का मौक़ा मिले तो सहोदरा माई के दर्शन को ज़रूर जाएँ।