Monday, 22 October 2018

माता का न्याय !

नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। और इसी के साथ माता रानी के आगमन का उत्साह मन को उल्लास से भर रहा है। ऐसे में कलकत्ता का दुर्गा पूजा और हाल में वहाँ घटी एक वीभत्स घटना से मुझे दो क़िस्से याद आ रहें हैं। दोनों ही क़िस्से लगभग एक समान है बस देश काल अलग रहा है। 

एक तो ग्रीक कथा है और दूसरी अपने भारत के पश्चिमी चंपारण की कहानी है। पश्चिमी चंपारण, बिहार का एक ज़िला है। 
ग्रीक कथा कुछ इस प्रकार है, 
मेड्युसा नाम की एक लड़की थी। वह बहुत रूपवान हुआ करती थी।वह ग्रीक देवी, “एथेना” के मंदिर में पुजारन थी और वहीं रहती थी।मंदिर में आने वाले कई लोग तो उसे ही देखने आते थें। उसकी सुंदरता का बखान करते ना थकते। उसके बालों को वे एथेना देवी के बालों से भी सुंदर कहते। मेडूसा के रूप की ख्याति पोसाइडन तक भी पहुंची। जो की इस कथा के अनुसार एथेना देवी का प्रेमी और समुद्र का देवता था। उसने जब मेड्युसा को देखा तो उसपर मोहित हो उठा। मेड्युसा की पोसाइडन में कोई रूचि नहीं थी। वह कुंवारी ही रहकर एथेना के मंदिर की पुजारन बनी रहना चाहती थी। एक दिन पोसाइडन शाम को मौका पा मेड्युसा की तरफ़ बढ़ा। ऐसे में बचने के लिए मेड्युसा मंदिर में भागी। उसने मदद के लिए एथेना देवी से गुहार लगाई। लेकिन देवी एथेना ने उसकी कोई मदद नही की। बलात्कार के बाद जब पोसाइडन जा चुका था तो देवी एथेना वहां आई। मंदिर में दुष्कर्म की सजा के रूप में वे बिना जाने मेड्युसा को ही शाप दे डाली की आजीवन वह अकेली रहेगी। उसके जिस सुंदर बालों पर लोग रीझते हैं वह भी साँप बन जायेंगे। 
पर जैसे ही देवी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने उसे यह वरदान दिया कि जो भी उसकी आँखों में ग़लत दृष्टि से देखेगा वह पत्थर का हो जायेगा। 

अब बात करती हूँ, पश्चिमी चंपारण के क़िस्से की, 
इस ज़िले के सहोदरा नामक स्थान पर एक ग़रीब लड़की रहती थी। वह बहुत ही सुंदर थी। गाँव में उसकी सुंदरता के क़िस्से कहे जाते। एक दिन वह बकरी चराने निकली तो गाँव की सीमा के पार कुछ लड़के उसे घेर लिए। उसने उनसे काफ़ी विनती की लेकिन वे मानने को तैयार ना थे। ऐसे में लड़की, माँ दुर्गा से प्रार्थना करने लगी कि हे माँ! मेरी रक्षा करें। माँ दुर्गा ने उसकी रक्षा स्वरुप उसे उसी क्षण पत्थर का बना दिया। और उसे पूजित होने का वरदान दिया। तब से आज तक उस लड़की की पूजा माता सहोदरा के रूप में होती हैं। इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहाँ पुजारन भी महिलाएँ ही होती हैं। यानि यहाँ की एक ख़ास समुदाय, “थारु” की ही महिलाएँ ही पुजारिन चुनी जाती हैं।

दोंनो ही क़िस्सों को याद कर सोचती हूँ कि देवी ने पीड़िता को ही सजा दी… क्या देवी माँ उस समय महिषासुर जैसा न्याय नहीं कर सकतीं थीं ? कई सवालों के जबाब सुलझे-अनसुलझे यूँ ही भटकते रहते हैं। फिर भी अगर आप बिहार जाए, चंपारण जाने का मौक़ा मिले तो सहोदरा माई के दर्शन को ज़रूर जाएँ। 


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