कल अमृता प्रीतम की किताब, नागमणी पढ़ कर पूरी की। कहानी पढ़ कर देर तक सोचती रही और आँख लग गई। सपने में मैंने एक कहानी बुनी। कहानी में अलका और कुमार ही थे पर इस बार अलका ने खुद को कुमार से बदल लिया था। कहानी अब कुमार की नज़र से नही अलका की नज़र से देखी जा रही थी….
कहानी,
वह छत से भागता हुआ नीचे कमरे में आया। उसे देख कर अलका का जी भर आया पर अपने मन के भेद पर पर्दा रख कर उसने पूछा, “ वह आ गई ?”
“हाँ, आ गई है।” देखो ना वह बेचारी दिवाली पर कितना तैयार हो कर आई है मुझसे मिलने और एक मैं हूँ।
क्यों क्या हुआ, कुर्ता -पजामा तो पहने ही हो अब और कितना तैयार होना बाक़ी रह गया है, अलका ने उसकी तरफ़ देख कर पूछा।
उसने कुछ कहा नही, बस वापस जाने की बेचैनी में सीढ़ियों की तरफ़ देखा। अलका उसकी बेचैनी महसूस कर बोली, “तुम जाओ। वह तुम्हारा इंतज़ार कर रही होगी।” माँ-बाबू जी जगे हो तो मैं भी आती हूँ उनका आशीर्वाद लेने और हाँ, उससे भी मिल लूँगी। आख़िर उससे अब तुम्हारी साथ है।
मेरा साथ… माँ -बाबू जी सो चुके है। मैं अब चलता हूँ। आया था आपके पास कुछ दिए और मिठाई लेने। मैं लेना भूल गया था। अब वह आई है तो …
अच्छा, लेते जाओ। सुनो तुमने फुलझड़ी ली है या नही ?
नही, कहाँ ली। वह अचानक ही आ गई। मुझे बुरा लग रहा है उसके लिए।
कोई बात नही मैं बहुत सारा ले आई हूँ। ये लो कहते हुए अलका ने दिए- मिठाई के साथ कुछ फुलझड़ियाँ उसके हाथ में थमा दी। उसने वापस जाने को पहली सीढ़ी पर पैर रखा ही था कि तभी घर में शोर हुआ। दोनो भागते हुए शोर की दिशा में पहुँचे तो मालूम हुआ, कहीं से एक कोयल घर में घुस आई थी और उसने जाने रसोई से ऐसा क्या खा लिया कि उसकी आवाज़ चली गई। फ़र्श पर वह बेसुध पड़ी थी। कोयल को देख अलका उदास हो गई, उसकी आँखें भर आई। घर का नौकर उस कोयल को पानी पिला रहा था। अलका काठ सी बनी दरवाज़े के सहारे उस कोयल को निहार रही थी। उसे लगा अब यह कोयल नही बचेगी… बेचैन होकर उसने कुमार की तरफ़ देखा। हाँ, “कुमार” ही तो उसका नाम है जो अलका के साथ खड़ा था। अलका ने देखा वह कोयल को बस देख रहा है पर उसे वापस जाने की बेचैनी है। अलका अपने आँखों का आँसू छिपाते हुए उसे कहती है, “तुम जाओ”
इतने में एक लड़की कुमार के कपड़ों में लिपटी रसोई तक आती है और कहती है, “ शोर सुनकर मैं नीचे चली आई”
अलका की नज़र उस पर पड़ती है और पड़ती है कुमार की नीली क़मीज़ पर। वह अचरज से कुमार की तरफ़ देखती पर कुमार की मुस्कुराती निगाहें उस लड़की पर टिकी है। अलका का दिल जोर से धड़काता है मानो यह उसकी एक आख़िरी धड़कन हो… इसके बाद शायद दूसरी धड़कन उठ ना पाए। क्षण में एक ऐसी उदासी उसके मन पर पसर गई जिसकी उसने कल्पना तक ना की थी। मिनट की देर से, धीमी-धीमी आती अपने धड़कनों को महसूस कर वह बेसुध कोयल की तरफ देखती। नौकर अब भी कोयल को पानी पिलाने की कोशिश कर रहा है। अलका पीछे मुड़ कर देखती है और कुमार से कहती है , “ तुमलोग जाओ”
कुमार को जैसे इसका ही इंतज़ार था। उसने उस लड़की का हाथ पकड़ा और सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। इधर कोयल के शरीर में हलचल हुई। उसने धीरे से कूऊउऽऽ किया और उड़ चली।