सितम्बर का महीना था। यहाँ कुछ भारतीयों द्वारा हिंदी दिवस ‘ईगल क्रिक पार्क’ में मनाया जा रहा था। यह एक नेशनल पार्क है और मेरे घर से क़रीब 30-35 मिनट की दूरी पर है। हमलोग वहाँ जाने का प्लान किए थे कि इसी बीच एक दोस्त के घर जाना पड़ा गणपति विसर्जन के लिए। गणपति विसर्जन के बाद घड़ी देखा तो ढाई बज गए थे। प्रोग्राम के लिए तो अब देर हो चुकी थी फिर भी हम निकल पड़े पार्क की तरफ़। सोचा क्या मालूम प्रोग्राम थोड़ा खिच गया हो तो और ना भी हुआ तो पार्क घुम कर चले आयेंगे। यहाँ जाने पर मोबाइल जी पी एस ने काम करना बंद कर दिया और इस तरह हमारे 20-25 मिनट तो तय जगह ढूँढने में ही लग गए। ऐसे में हिंदी दिवस समारोह समाप्त हो चुका था। थोड़ा ओह-आह भर कर हमलोग पार्क में घूमना शुरू किए।
घूमते हुए हमलोग एक नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ सफ़ेद और लाल कपड़ों में सजी दो महिलाएँ, अपने बच्चों के साथ फ़ोटो ले रही थीं। उनके बच्चे भी उनकी तरह के ही पोशाक पहने थे। मुझे सामने से जाते देख, उनमें से एक आवऽऽऽ… के साथ कब बच्चे का जन्म होगा पूछ बैठी। मैंने उसे ऑक्टोबर बताया और साथ ही उससे कहा कि वह बहुत सुंदर दिख रही है। हाँ, यह भी कहा कि तुम्हारी बेटी तो और प्यारी लग रही है। अब कौन सी औरत अपनी सुंदरता की तारीफ़ सुन कर ना खुश होती। उसने बताना शुरू किया कि आज उनका त्योहार है। त्योहार का नाम “मेस्केल” है।
यह एक एथीयोपियन त्योहार है। इस त्योहार की ख़ास बात यह कि यह कुछ अपने यहाँ के होलिका दहन जैसा है। चौराहे पर लकड़ी इकट्ठा की जाती है। रात को उसने आग लगाई जाती है और अगली सुबह लोग उसकी राख से माथे पर क्रॉस का चिन्ह बनाते है। इस त्योहार को मनाने के पीछे उनकी रानी हेलना का निर्देश था बरसों पहले कि ऐसे आग लगाओ और धुआँ या आग जिस दिशा की तरफ़ जाती दिखे उसी तरफ़ क्राइस्ट का क्रॉस मिलेगा।
एक और रोचक बात मालूम हुई उनसे मिलकर कि सितंबर में ही उनका न्यू ईयर होता है और क्रिस्मस वे लोग 25 दिसम्बर को ना मना कर 7 जनवरी को मानते है। ऐसा होने के पीछे उनका कॉप्टिक कैलेंडर ज़िम्मेदार है जो उन्हें बाक़ी दुनिया से 7 साल पीछे रखता है।
कितना रोचक है ना कि आज जब बाक़ी दुनिया 2021 में जी रही है, इथोपियन देश के लोग अब भी 2014 में है। और तो और यहाँ 12 नही 13 महीना का एक साल होता है। वह अलग बात है की तेरहवें महीने में 5-6दिन ही होते है।
चलते-चलते मैंने उनमें से एक महिला की बेटी के साथ तस्वीर लेने की बात पूछी। वह छोटी लड़की मुझे काफ़ी देर से देख रही थी और नज़र मिलने पर शर्मीली मुस्कान अपने होंठों पर फेर लेती। मुझे वह बहुत-बहुत- बहुत प्यारी लगी। मैंने तस्वीर लेने से पहले उसका नाम पूछा कि इसी बीच उसकी माँ उसकी चोटी खोल, उसका बाल सँवारने लगी। मेरा मन किया की कहूँ, रहने दो ऐसी ही, अच्छी लग रही है पर शायद उसकी माँ को बेटी खुले बालों में ज़्यादा अच्छी लगती हो। ख़ैर उसने अपना नाम धीरे से इसी बीच बताया , “ कियारी” मैंने मन में बुदबुदाया फूलों की क्यारी…
पी एस- कियारी यानि की, गीत, मधुर, शुद्ध।
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