Thursday, 27 February 2025

पातालेश्वर शिव मंदिर

जंगली महाराज रोड यानी “जे एम रोड” पुणे के व्यस्तम इलाके में से एक है। लोगों की चहल-पहल से सजी यह सड़क नाम है, रंग-बिरंगे दुकानों का, स्वादिष्ट भोजनों का, बालगंधर्व रंगमंदिर का, संभाजी पार्क का और जंगली महाराज मंदिर का। 

इन सब से इतर यह नाम है, “पातालेश्वर मंदिर” का। कमाल की जगह है यह। एक बार को यक़ीन नहीं होता कि शहर के व्यस्ततम इलाक़े के बीच इतना सुकून भरा है।  

महादेव का यह मंदिर इस भीड़भाड़ वाले इलाक़े में होते हुए भी सुकून से भरा है। बरगद के पेड़ों की आड़ में, ज़मीन के गर्भ में बैठा यह अद्भुत मंदिर है। जंगली महाराज मंदिर से ठीक सटे पीछे की तरफ स्थित यह मंदिर एक बार को लगता ही नहीं की जे एम रोड़ में है। इतनी शांति, इतना सुकून की मन बस आने को ही ना करे। 

यह मंदिर ज़मीन के नीचे है शायद इसलिए इसे पातालेश्वर मंदिर कहा गया।

16 स्तंभों पर खड़ा यह मंडप सिर्फ़ एक पत्थर को काट कर बना, अनोखे शिल्प का उदाहरण देता है। कहते हैं कि इसका निर्माण पांडवों ने किया है। मगर इतिहासकारों का मत है कि 8वीं शताब्दी के आसपास इसे राष्ट्रकूट वंश के राजाओं ने बनवाया है। 
आर्केओलॉजी के विशेषग्यों के अनुसार यह  मंदिर क़रीब 400 साल से भी ज़्यादा पुरानी है और सन् 1977 में यह खुदाई के दौरान मिली।

इस मंदिर के पुजारी के अनुसार इसे, “पशुपथ संप्रदाय” के लोगों ने बनाया है। क्योंकि गुफाओं में शिवालय बनाने की शुरुआत इसी संप्रदाय ने शुरू की थी। उन्होंने यह भी बताया कि इसकी संरचना अजंता- एलोरा- एलिफेंटा की गुफाओं से मिलती-जुलती है।

इतनी जानकारी पा कर मन शांत नहीं होता। थोड़ा और पढ़ने पर, ढूँढने पर मालूम होता है कि पांडव तो हिमालय के गाँवों तक छाए हुए हैं। सोचती हूँ, कहाँ कुरुक्षेत्र, कहाँ काम्यकवन, कहाँ महाराष्ट कहाँ हिमालय… यही होता है जब आदमी ना घर का ना घाट का। 
वैसे भी उन्हें वनवास में जीना था और करने को था क्या ? घूमते रहे, रुकते रहे, छिपते रहे, मंदिर बनाते रहें और राजस्थान से महाराष्ट्र पहुँच गए। महाराष्ट्र में उनकी बनायी कई मंदिरें हैं। 

पतालेश्वर मंदिर में एक संग्रहालय भी है। इसे गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान भी मिला है। ऐसा पुजारी ने ही बताया था। हम कुछ देरी से पहुँचे थें। तब तक संग्रहालय बंद हो गया था। और अफ़सोस के साथ, हम इसका मुख्य आकर्षण वह चावल नहीं देख पाए जिस पर लगभग 5000 अक्षर अंकित हैं। 

इस मंदिर के पुजारी मिलनसार और समझदार है। समय लगभग हो जाने पर भी किसी को भगाते नहीं आराम से बाहर जाने को कहते हैं। 
मंदिर सुबह 8.00 बजे से शाम 5.30 बजे तक खुला रहता है। आम मंदिरों की तुलना में यहाँ भीड़ बहुत कम देखने को मिली। इसका कारण बहुत कम लोगों का इसे जानना भी हो सकता है। मैं ख़ुद सालों पुणे रह कर भी इसे कहाँ जान पायी थी ?  वह तो माँ और उसके भोलेनाथ…  

भारत यात्रा के दौरान मैं “त्र्यंबकेश्वर और घुश्मेश्वर/ घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग” के दर्शन को भी गई। लेकिन जो सुकून यहाँ मिला वह इनसब में नहीं पाया। 



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