Friday, 31 October 2025

दवा !

 मध्यप्रदेश और राजस्थान से हृदय विदारक खबर पढ़ने को मिली। कुछ बच्चें कफ़ सीरिप की वजह से इस दुनिया से चले गए। भारत में चिकित्सा और दवाइयां सस्ती हैं पर उनमें लापरवाही बहुत है। मेरा अनुभव अपने बच्चों को लेकर एक दो बार ठीक नहीं रहा है।अमेरिका से भारत यात्रा के दौरान अमूमन बच्चों को फ़ूड पॉज़िनिंग हो जाती है। ऐसे में उल्टी के साथ पेट भी ख़राब हो जाता है। डॉक्टर को दिखाओ तो पाँच-सात दवाइयां लिख देंगे। अब बच्चों की और हालत ख़राब। दवा की गर्मी, ज़्यादा उल्टी आदि की समस्या। भारत में मैंने पाया है जो डॉक्टर जितनी दवा लिखेगा उतना अच्छा। गाँवों में तो पाया है बिना सुई लगाए या पानी चढ़ाए इलाज ही पूरा नहीं होता । हालांकि लोग अब जागरूक हो रहे हैं। यह अब यह कम हो रहा है। 

अमेरिका में दवा और डॉक्टर के साथ बड़ी सख्ती है। यही वजह है की एक डॉक्टर अगर दूसरे मर्ज का इलाज भी जानता है तो आपको बताएगा नहीं। कहेगा उससे रिलेटेड डॉक्टर के पास जाओ। कई बार यह परेशान करने वाला होता है। फिर खास कर बच्चों के मामले में यहाँ कोई डॉक्टर किसी तरह का रिश्क नहीं लेता। 

अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग की एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के मुताबिक़ ज़्यादातर मामलों में जुकाम का बच्चों पर गंभीर असर नहीं होता। ऐसे में पहली बार में डॉक्टर, पानी, वॉर्म लिक्विड, वॉर्म वाटर बाथ, और रेस्ट रहने की सलाह भर देते हैं। कई मामलों में बच्चे ख़ुद ठीक हो जाते हैं। और कई बार ओवर द काउंटर मामूली डोज की दवा रिमेंड करते हैं। 

वहीं अगर बच्चे का जुकाम-खाँसी एक सप्ताह से ज़्यादा है और वह सुस्त हो रहा है तो, सेलाइन नोज़ ड्रॉप या स्प्रे नाक की सलाह देते हैं। इसके साथ कूल मिस्ट ह्यूमिडीफाइर की सलाह दी जाती है। वहीं अगर बच्चा एक साल से कम उम्र है और जुकाम-खांसी से परेशान है तब बल्ब सिरींज का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। 

वहीं चार साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कफ सीरिप रिकमेंड नहीं है। ओवर द काउंटर हनी-जिंजर/ लेमन आदि सीरिप नेचुरल/हर्बल मिलता है। उसे लेकर आप दे सकतें हैं। 

कुल मिला कर यहाँ बेहद बेसिक और कम डोज़ की दवा ही आप ख़ुद से ख़रीद सकतें हैं। बाक़ी के लिए आपको डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन की ज़रूरत होगी। और ध्यान रहे वह महंगी होगी। इसलिए यहाँ डॉक्टर भी प्रारंभिक लक्षण में आराम, लिक्विड डाइट आदि की सलाह देते हैं। दवा का नंबर बाद में आता है। 

Thursday, 16 October 2025

हेमिंग्वे का बिल्लियों वाला घर!

 हेमिंग्वे के जन्मस्थान इलिनॉय जब जाना हुआ तब मालूम  हुआ की   उनका एक घर फ्लोरिडा में भी है जहाँ उन्होंने कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। तब बहुत अफ़सोस हुआ की ओह! फ़्लोरिडा जा कर भी वहाँ तक नहीं पहुचीं। यहाँ तक पहुँचने में क़रीब पाँच साल बीत गए…  सबसे शुरुआती बार, साल 2014 मैं इनके इस घर के दूसरे मोड़ से गुज़र चुकी थी पर तब मालूम नहीं था की कोई हेमिंग्वे यहाँ रहते थें। जब तक इन्हें पढ़ा फ़्लोरिडा दूर थी।

हेमिंग्वे जब फ्लोरिडा आए तो रहने के लिए उन्होंने की वेस्ट को चुना। समंदर से थोड़ी दूर, लम्बें पेड़ों और खूब सारी बिल्लियों से घिरा यह घर बहुत सुंदर है। तीन तरफ़ से बड़े शीशे की बनी खिड़कियों के बीच इनका बाथरूम मुझे बहुत पसंद आया। मानों गुनगुने बाथटब में लेटे, आसमान को निहारते कितने किस्से बुने जा रहे होंगे। 

हालाँकि मुझे इस घर में एक चीज खटकी, यहाँ संगीत का कोई स्थान ना। वहीं जन्मस्थान पर सुंदर सा एक पियानों रखा था। शायद समय के साथ रुचि बदल गई हो। वैसे, यहाँ सिनेमा की खूब बातें थीं। कई वाल पर हीरो-हीरोइन के साथ इनकी तस्वीरें फ्रेम थीं। 

इनके इस घर में लिखने के लिए एक अगल से दूसरा कॉटेज भी है। जहाँ सिर्फ़ लिखने के कुछ सामान और एक टेबल चेयर था। 

घर के आलवा आस-पास ठीक-ठाक जगह है तो अब इसमें एक बुक स्टोर खुल गया है। एक जगह को सजा कर प्राइवेट इवेंट के नाम कर दिया गया है। यहाँ कहीं भी शादी करने का खूब चलन है। साथ ही बिल्लियों की एक छोटी सी सिमेट्री भी जिसपर से गुजरने के बाद मुझे आख़िरी पत्थर पर गुदा,” कैट सिमेट्री” दिखा। अफ़सोस के साथ मैंने दिवंगत बिल्लियों की आत्मा से माफ़ी माँगी। 

हेमिंग्वे अब रहे नहीं। लोग आते हैं उन्हें यहाँ ढूँढने… हर तरह के लोग। 

चलते-चलते यह बता दूँ की अब यह घर एक म्यूजियम है। टिकट का दाम 19 डॉलर है। साथ ही यह स्ट्रॉलर या व्हीलचेयर फ्रेंडली नहीं हैं। हाँ, अगर बिल्लियों से एलर्जी है तो बिल्कुल मत जाए। 

Thursday, 2 October 2025

पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे। यह ख़बर पढ़ते ही सबसे पहले एक सोहर ध्यान में आई, “सखी सब गावेली सोहर, रतिया मनोहर” यह सोहर गीत अपने गर्भावस्था के दिनों में मैं खूब सुना करती थी। मन थोड़ा उदास हुआ की इनसे मिलने की आस थी वह भी अब टूट गई। इन दिनों बुद्ध को पढ़ रही हूँ पर जीवन-मरण के खेल से मुक्त हो पाऊँ अभी वैसी अवस्था तक नहीं पहुची। 

बीते दिनों ही बेटे का जन्मदिन बिता और इनका गाया सोहर फिर से सुना। तब कहाँ मालूम था की ये अस्पताल के बिस्तर पर लेटे, दिगम्बर को याद कर रहे होंगें। श्याद मन ही मन गुनगुना रहे होंगे, “खेले मसान में होरी दिगंबर, खेले मसान में होरी” 

मैं इनके गायन को याद करती हूँ तो कोयल की एक कूक कान से गुजरती है, “कोयल तोरी बोलिया” गाते हुए वे कितना समझाते हैं कि कोयल की मीठी आवाज से भी प्रेमी जाग सकता है। कई बार गीतों के बीच मुझे उनका यह समझना अखरता था। सोचती थी की बिना लय तोड़े ये गाते क्यो नहीं ? आकांक्षा लगातार सुनने की होती। फिर बाद में लगा यह भी ठीक है। सार्वजनिक स्थल पर गायन हो रहा है। हर तरह के श्रोता मौज़ूद हैं। और फिर जिस तरह से संगीत की दुनिया बदल रही है, संगीत का ककहरा तो नई पीढ़ी को समझ में आनी चाहिए तभी तो वे रूचि ले पायेंगे। वे संगीत के एक पूर्वज की तरह लोकगीतों की धरोहर को आने वाली पीढ़ी को सौपना चाहते थें। 

आपकी गाई गंगा स्तुति के माँ गंगा से प्रार्थना है की आपकी आत्मा को शांति दें,


जय जय भगीरथ-नंदिनी, मुनि-चय चकोर-चन्दिनी,

नर-नाग-बिबुध-वंदिनी, जय जह्नुबालिका।

जय जय भगीरथ-नंदिनी...




आई वह गायन करते हुए श्रोताओं से संवाद बहुत करते थे। ख़ास कर उस दौर में जब संगीत की समझ फ़िल्मी संगीत की ओर जा रही थी, यह संवाद आवश्यक था कि जो गाया जा रहा है, उसका अर्थ क्या है। वह खुद ही व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि एक गायक पाँच मिनट तक सिर्फ़ पंचम और निषाद लगाते रहे पनि, प नि, प नि.... इतने में श्रोता एक गिलास पानी लेकर आ गए कि लगता है पंडित जी को पानी चाहिए। इसलिए पहले यह समझाना जरूरी है कि प और नि है क्या। वह चैती गाने से पहले बताते कि चैती कब गाया जाता है, अक्सर 'हो रामा' जैसी टेक क्यों लगती है, होरी का चलन क्या है, बल्कि कुछ सुनकारों को परेशानी भी होती कि पंडित जी गाते कम हैं, बोलते अधिक हैं। लेकिन यह संवाद कितना आवश्यक है, यह पंडित रविशंकर या वर्तमान समय में शुजात ख़ान जैसों से भी समझा जा सकता है। यह मान कर चलना होगा कि सामने बैठे लोगों को कुछ समझ नहीं है, उन्हें थोड़ा-बहुत बताना होगा कि क्या गाया-बजाया जा रहा है। अगली बार जब वह सुनने आएँगे, ।