दोस्तों हमारी यात्रा आगे बढ़ती है।दिल्ली आये हुए हमलोग को चार दिन हो गए थे।मेरा तीज का व्रत था।तीज बिहारी बहनो का करवा चौथ होता है।फर्क इतना है ,कि हमलोग छन्नी के सहारे चाँद में अपने पति देव को नही ढूँढ़ते ,और ना ही शाम को पकवान खाते है।हमलोग को मालूम होता है कि ,चाहे कितना भी छन्नी से छान कर देखो पति तो बदलने वाला नही।तो क्यों पकवान खाए और क्यों किसी ग्रह -गोचर से पति की तुलना करे ? हमलोग बस सचाई को अपना कर चौबीस घंटे कुछ खाते पीते नही।पति के उम्र का तो पता नही पर हमें डिहाइड्रेशन जरूर हो जाता है।हाँ फिल्मे देख कर मेरी कुछ बिहारी दोस्त अब करवाचौथ करने लगी है।पर बहनो फिल्मो में तो शाहरुख़ ,सलमान होते है।वैसे भी फिल्मो जैसा प्यार तो मिल नही रहा तो फिल्मो की नक़ल से व्रत क्यों ?अगर पति देव भी साथ में व्रत करते तो कुछ बात होती।खैर जैसे -तैसे गर्मी में मरमरा कर मैंने तीज का व्रत किया।पारन मतलब व्रत तोड़ने के दिन हमलोग की ट्रेन थी।छूटी कम थी और घर जाने की जल्दी।इसलिए मेरे पापी पति की कृपा ,जो सुबह 9 :30 की डिबुरूगढ़ राजधानी की टिकेट ली थी।पारन करना था और शतेश के भाई की काम वाली बाई 7 बजे तक आई नही।मैं और मेरा भाई सब्जी काटने में लग गए।तभी बाई भी आ गई।जैसे तैसे उसने सब्जी रोटी बनाई।8 बजे तक हमलोग को निकलना था।ठीक से पारन भी नही हो पाया।अब आप ही बताइये जिस पति के लिए व्रत रखा उसने ही मेरी बैंड बजा दी।तो कैसे पति देव लिखू ? पापी पति माफ़ी माँग रहे थे ,पर उससे पेट थोड़े भरता है।टिफिन में पैक किया हुआ खाना खिला रहे थे।पर जो कैब बुक हुई थी ,उसका ड्राईवर मना करने लगा ,कि गाड़ी गन्दी हो जाएगी।वैसे ड्राईवर छपरा (बिहार ) का ही था।उसने अपनी बकवास चालू की।एक पूछो तो दस जवाब।उसकी लिखने बैठी तो पूरा ब्लॉग कम पडेगा।फेकू एक नंबर का।आराम से अपने चार मडर के तो कभी गाँव के ,तो कभी दिल्ली के किस्से सुनता जा रहा था।मेरे भाई को गुस्सा आया ,बोला आप बोलिए कम गाड़ी थोड़ा तेज चलाइये वरना हमलोग की ट्रेन छूट जाएगी।वो भी अपनी अजीब से स्टाइल में बोला तेज चलाऊँगा तो कही और पहुँच जायेंगे।शतेश बोले जाने दो उज्जवल चुप हो जाओ।हमलोग के चुप होने पर वो गाड़ी और धीरे चलाने लगा।शायद वो दुखी होगा कि ,कैसे सवारी है जो चुप चाप जा रहे है।सारी गाड़ियां हमलोग को छोड कर आगे जा रही थी।शतेश के भाई ने ड्राईवर को ताना मारा ,आरे ड्राईवर साहब मोटर साइकिल भी आपसे तेज निकल रही है।हमलोग हँसने लगे।उसके स्वाभिमान पर बात आ गई और उसने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ाई।भगवान की दया से हमलोग ठीक -ठाक स्टेशन पहुंचे।जब शतेश ड्राईवर को पैसे देने लगे।उसने फिर से राम कहानी शुरू की।किसी भी ड्राईवर को हड़बड़ाई नही ,वो तो मैं था जो सही सलामत पहुँच गए।हमलोग को देरी हो रही थी।पर उसकी बुजुर्गियत का ध्यान रखते हुए हाँ हाँ कहते हुए पीछा छुड़ा कर हमलोग प्लेटफार्म तक पहुँचे।ट्रेन सामने खड़ी थी।फटाफट सामान चढ़ाया गया।शतेश के भाई को विदा कह हमलोग की बिहार के लिए यात्रा शुरू हुई।हमारी बोगी में जोरहाट जिले(असम )के केंद्रीय विद्लाय के बच्चे भरे पड़े थे।वेलोग दिल्ली में खेल प्रतियोगिता के लिए आये थे।इतना शोर मचा रखा था ,कि शतेश और मेरे भाई को हल्ला कम करने को बोलना पड़ा।एक तो ड्राईवर ने दिमाग का तेल किया था ,उसपे बच्चे।पर बच्चे तो बच्चे ही होते है।मैंने दोनों को बोला जाने दो ना कितने खुश है सब।मैंने बच्चो से बात -चीत शुरू की।शतेश नास्ता करके सोने चले गए।जब भी बच्चे थोड़ा शोर करते ,मैं बोलती अंकल जाग जाएँगे।सब फिर धीरे -धीरे बात करने लगते।अपने स्कूल और प्रतियोगिता की बात करते ,फिर हल्ला शुरू करते।तो उन्ही में से कोई बोलता अबे धीरे बोल अंकल जाग जायेगा।मुझे उनकी हिंदी पर हँसी आती।बच्चो ने हुमलोगो को अपने मेडल दिखाए।अपने स्कूल की काफी बाते की।स्वागत कुमार और अभिनव राज से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई।फिर क्या था ,मेरे भाई और शतेश की भी बच्चो से दोस्ती हो गई।वे और भी घुलमिल गए।हमारे ही कम्पार्टमेंट में और भी बच्चे आ गए।उनके स्कूल की बहुत सी बाते फिर कभी।उन बच्चो को अमेरिका के बारे में इतना कुछ मालूम कि मैं अचम्भे में थी।मालूम हुआ सब डिस्कवरी और गूगल का कमाल था।कुछ तो खाने के ऐसे व्यंजन का नाम बता रहे थे ,जो मुझे भी नही मालूम था।मैंने बच्चो को चॉकलेट दिए।कुछ और मांग रहे थे ,तो कुछ शरमा रहे थे।सबके साथ फोटो ली।वो भी बहुत खुश थे।कुछ ने नंबर दिया तो किसी ने फेसबुक पर ऐड किया।हुमलोगो को रात 1 :30 मिनट पर छपरा उतरना था। मेरे भाई ने कुछ बच्चो को बोल रखा था ,रात को जगा दे।उन्हें तो जीतने की खुशी में नींद ही नही आ रही थी।रात को एक लड़के ने भाई को जगाया।हमलोग जब जगे तो एक आध को छोड़ सब बच्चे सो रहे थे।उन्हें अलविदा भी नही कह पाई।उनका साथ हमारी यात्रा को और भी सुखद बना गया।उनकी ट्रॉफी के साथ एक तस्वीर।
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