ख्याल ,आह इनका क्या करे कोई ? मुझे भी कुछ दिनों से कुछ ऊटपटाँग ख्याल आ रहे है।जैसे मुझे लगता है भारत की नवजवान पीढ़ी के सिर पर दो ही देश का नशा है।एक तो पाकिस्तान दूसरा अमेरिका।दोनों ही सूरतो में मुझे यही लगा ,ताकत चाहे किसी के पास हो ,सही हो या गलत लोग उसकी पूजा करते है,या उससे नफरत।अब देखिये ना ,फ़िदेल कास्त्रो (क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति )की मौत पर विश्व भर से शोक सन्देश भेजे गए।साथ ही ये भी बताया जा रहा था -अमेरिका का विरोध करने वाला तानाशाह।मुझे इनके बारे में ज्यादा मालूम नही था।गूगल किया तो कुछ अच्छी तो कुछ बुरी बाते इनकी सामने आई।ज्यादा जानकारी ना होने की वजह से बस यही कह सकती हूँ ,मैंने तो बस "चे ग्वेरा"के द्वारा क्यूबा को जाना।उनकी "मोटर साइकिल डायरीज़" देखी थी,और उनसे प्रभावित हुई।खैर मुझे वैसे भी फ़िदेल से ज्यादा "चे ग्वेरा "ने प्रभावित किया है।इनके बारे में लिखने का मेरा मेन उद्देश्य -"महात्मा ज्योतिराव फुले "जी है।आज के ही दिन ,28 नवम्बर 1890 को इनकी मृत्यु हुई थी।फेसबुक पर भारतीय यूथ ने फ़िदेल के मृत्यु का शोक खूब धूम -धाम से मनाया पर ,भारत के इस समाज सुधारक के लिए किसी ने एक लाइन तक नही लिखी।बात वही घर की मुर्गी दाल बराबर ,या फिर फ़िदेल साहब ताज़ा- ताज़ा मृत्यु को प्राप्त हुए है,और फुले जी को मरे हुए सालों हो गए।या फिर हो सकता है मेरी तरह के लोग जो "फ़िदेल" की जगह "चे ग्वेरा" को ज्यादा जानते है।वैसे ही लोग "फुले" से ज्यादा "भीमराव अम्बेडकर"को जानते हो।जो भी हो "महात्मा फुले" ने जो "स्त्री कल्याण" और "निचले तबके" के लिए काम किया उसको कैसे भुला जा सकता है? ज्योतिराव फुले पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला।इनके लिए शिक्षा सबके लिए अनिवार्य थी।चाहे वो छोटी जाती के लोग हो या फिर महिलाये।सन 1848 में इन्होंने महिलाओ के लिए जब स्कूल खोला था ,तब महिलाओ की शिक्षा को अनिवार्य नही माना जाता था।अपनी पत्नी "सावित्री बाई"को भी इन्होंने साक्षर बनाया।दोनों मिलकर समाज कल्याण के कार्य में जुट गए।ऊँचे तबके के लोगो और पारिवारिक दबाब के बीच इन्होंने निचले तबके की महिलाओ और गरीबो की मदद की।छुआ-छूत दूर करने,विधवाओं के कल्याण ,किसानों के लिए "एग्रीकल्चर एक्ट"पास करवाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।इनके इन महत्वपूर्ण कार्यो की वजह से इन्हें "महात्मा" की उपाधी दी गई।डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर इन्हें अपना गुरु मानते रहे।इतना कुछ योगदान के बावजूद भारतीय फेसबुकिया यूथ के पास इनके लिए समय नही।या फिर भारतीय समाज में महिलायें और किसान हमेशा से हाशिये का विषय रहे है ?काश फुले साहब अमेरिका के विरोध में लगे रहते तो आज उनका भी बड़ा नाम होता।क्यूबा का फ़िदेल जी ने जो भी कल्याण किया उससे ज्यादा वो अमेरिका के विरोधी बनकर फेमस हुए।"हाय रे अमेरिका " फुले साहब शन्ति से भारत सुधार के दिशा में काम करते रहे ,पर विरोद्ध जो नही किया।क्या करे अमेरिका इतनी दूर जो था।कम से कम पाकिस्तान बन गया होता तो कुछ सोचते शायद।खैर ज्योतिराव फुले और फ़िदेल कास्त्रो आप दोनों को मेरी श्रद्धांजली।की-बोर्ड को विश्राम देते हुए कुछ महिलाये अमेरिका से क्यूबा की ओर देखती हुई।
Tuesday 29 November 2016
Monday 21 November 2016
KHATTI-MITHI: दुबिधा !!!
KHATTI-MITHI: दुबिधा !!!: दोपहर के समय ऐसे ही फेसबुक चेक कर रही थी ,तभी देखा "हिमांशु जी" ने एक भोजपुरी फिल्म को लाइक किया था।कुछ करने को था नही ,नींद भी आ...
दुबिधा !!!
दोपहर के समय ऐसे ही फेसबुक चेक कर रही थी ,तभी देखा "हिमांशु जी" ने एक भोजपुरी फिल्म को लाइक किया था।कुछ करने को था नही ,नींद भी आ रही थी, पर पता नही कैसे ऊंगलिया मूवी के लिंक तक गई और फिल्म चल पड़ी।सोचा जब चल ही गई है तो थोड़ा देखती हूँ ,अच्छा नही लगा तो सो जाऊँगी।अमूमन आजकल की भोजपुरी फिल्मे ऐसी ही होती है कि,नींद आ जाये।फिल्म का नाम "नया पता" फिल्म में थोड़ी देर के बाद ही जब "याद पिया की आये" गाना बजता है ,मैं उठ के बैठ जाती हूँ।नींद आँखों से गायब।मै सोच में पड़ गई ,भोजपुरी फिल्म और क्लासिकल सॉन्ग व्हाट अ सरप्राइज।अब तो पूरी मूवी देखनी पड़ेगी।सच मानिये इस मूवी का एक बेस्ट पार्ट इसका संगीत भी है।चाहे कबीर जी की "माया महा ठगनी "हो या भिखारी ठाकुर जी की "रे सजनी रे सजनी " आह !सच में अद्भुत।यूँ तो फिल्म बिहार की सबसे प्रमुख समस्या "पलायन " पर आधारित है ,पर मुझे इसमें कई और समस्याओं का ताना -बाना दिखा।मसलन कैसे कोई परदेसी बन जाता है ,गाँव लौटने के बाद भी परदेसी ही रहता है ,गाँव में कुछ अच्छा करने का लोग कुछ और ही मतलब निकालने लगते है और सबसे बड़ी बात आज भी शिक्षा का स्तर बिहार में एक "खिचड़ी "से ज्यादा कुछ नही।सँयोग देखिये आज ही हमलोग का ग्रीनकार्ड अप्लाई हुआ और आज ही फिल्म देख कर गाँव वापस जाने की ईक्षा प्रबल हो गई।पता नही ये सिलसिला कब तक चलता रहेगा ? फिल्म देखा गाँव जाना है ,सारदा सिन्हा जी के छठ के गीतों को सुनकर गाँव जाना है, किसी का शादी -ब्याह है गाँव जाना है ,पर हाय रे गाँव तुमने कही का नही छोड़ा।ना तो अपने पास बुलाने की ईतनी हिम्मत देते हो कि ,सब छोड़ के आ जाए ना ही हमारे ख्यालों से जाते हो जो हम चैन से रह सके।वैसे क्या रखा है तुम्हारे पास ? ना तो अब पुराने संगी -साथी रहे ना नाते -रिस्तेदार।ना ही वो हरियाली ना ही रोजगार।महँगाई के साथ हमारी जरूरते भी तो बढ़ी है ,पर तुम हो कि वही अटके पड़े हो।परदेसी ना बने तो क्या करे ? अच्छी शिक्षा ,अच्छी नौकरी और अच्छे जीवन की तलाश में हम इस शहर से उस शहर भटक रहे है।कोई पूछे तो अपना पता बिहार बताते है ,पर जब वही बिहार आते है तो, सब पूछते है वापस कब जाना है ? कितने दिनों के लिए आई हो ? ऐसा मालूम होता है मेरा असली पता कभी ,पटना , कभी दिल्ली या कभी अमेरिका हो जाता है।शादी के बाद तो और दुर्गति है।ना घर के ना घाट के वाली हालत।मायके वाले ये कहते है कि ससुराल ही तुम्हारा घर है ,ससुराल वापस आओ तो ये पूछा जाता है -घरे से कब आयलु ह? खैर हद तो तब होती है जब मेरा संबोधन अमेरिका वाली पतोह कह कर होता है।मेरी सासु माँ को मालूम है ,ये शब्द मुझे बिल्कुल नही पसंद इसलिए जैसे कोई कहता है-इहे हई अमेरिका वाली तो वो तुरंत कहती है -इहे हई हमार तपस्या।कई बार ऐसा लगता है छोड़ो माया- मोह इंडिया वापस चलते है ,फिर दिल को झूठी तसल्ली देते है -वहाँ जाके भी तो दिल्ली ,पुणे या बैंगलोर रहो तो बात वही हुई यहाँ रहो या वहाँ।ऐसा लगता है धीरे -धीरे सुबिधाओं के गुलाम बनते जा रहे है।हाँ हमारा दुःख दिहाड़ी मजदुर से थोड़ा कम है।पर है तो हम भी "मजदुर"।हमारे दुःख की आँच थोड़ा कम होती है- हम ऐसी की हवा खाते है ,पति -पत्नी साथ रहते है ,घूमना -फिरना ,दोस्त -पार्टी सब चलते रहता है।साथ ही अब तो वीडियो कॉल जब से होने लगा है ,घरवालों को हम और हमें वो थोड़ा कम याद आते है।हम भी अपने स्थाई पता की तलाश में भटक रहे है।जहाँ ना गाँव की याद हो ना शहर का शोर।जाने कहाँ मिलेगी ? जाने कहाँ होगा मेरा पता ?
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