Tuesday, 29 November 2016

कुछ महिलाये अमेरिका से क्यूबा की ओर देखती हुई !!!

ख्याल ,आह इनका क्या करे कोई ? मुझे भी कुछ दिनों से कुछ ऊटपटाँग ख्याल आ रहे है।जैसे मुझे लगता है भारत की नवजवान पीढ़ी के सिर पर दो ही देश का नशा है।एक तो पाकिस्तान दूसरा अमेरिका।दोनों ही सूरतो में मुझे यही लगा ,ताकत चाहे किसी के पास हो ,सही  हो या गलत लोग उसकी पूजा करते है,या उससे नफरत।अब देखिये ना ,फ़िदेल कास्त्रो (क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति )की मौत पर विश्व भर से शोक सन्देश भेजे गए।साथ ही ये भी बताया जा रहा था -अमेरिका का विरोध करने वाला तानाशाह।मुझे इनके बारे में ज्यादा मालूम नही था।गूगल किया तो कुछ अच्छी तो कुछ बुरी बाते इनकी सामने आई।ज्यादा जानकारी ना होने की वजह से बस यही कह सकती हूँ ,मैंने तो बस "चे ग्वेरा"के द्वारा क्यूबा को जाना।उनकी "मोटर साइकिल डायरीज़" देखी थी,और उनसे प्रभावित हुई।खैर मुझे वैसे भी फ़िदेल से ज्यादा "चे ग्वेरा "ने प्रभावित किया है।इनके बारे में लिखने का मेरा मेन उद्देश्य -"महात्मा ज्योतिराव फुले "जी है।आज के ही दिन ,28 नवम्बर 1890 को इनकी मृत्यु हुई थी।फेसबुक पर भारतीय यूथ ने फ़िदेल के मृत्यु का शोक खूब धूम -धाम से मनाया पर ,भारत के इस समाज सुधारक के लिए किसी ने एक लाइन तक नही लिखी।बात वही घर की मुर्गी दाल बराबर ,या फिर फ़िदेल साहब ताज़ा- ताज़ा मृत्यु को प्राप्त हुए है,और फुले जी को मरे हुए सालों हो गए।या फिर हो सकता है मेरी तरह के लोग जो  "फ़िदेल" की जगह "चे ग्वेरा" को ज्यादा जानते है।वैसे ही लोग "फुले" से ज्यादा "भीमराव अम्बेडकर"को जानते हो।जो भी हो "महात्मा फुले" ने जो "स्त्री कल्याण" और "निचले तबके" के लिए काम किया उसको कैसे भुला जा सकता है? ज्योतिराव फुले पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला।इनके लिए शिक्षा सबके लिए अनिवार्य थी।चाहे वो छोटी जाती के लोग हो या फिर महिलाये।सन 1848 में इन्होंने महिलाओ के लिए जब स्कूल खोला था ,तब महिलाओ की शिक्षा को अनिवार्य नही माना जाता था।अपनी पत्नी "सावित्री बाई"को भी इन्होंने साक्षर बनाया।दोनों मिलकर समाज कल्याण के कार्य में जुट गए।ऊँचे तबके के लोगो और पारिवारिक दबाब के बीच इन्होंने निचले तबके की महिलाओ और गरीबो की मदद की।छुआ-छूत दूर करने,विधवाओं के कल्याण ,किसानों के लिए "एग्रीकल्चर एक्ट"पास करवाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।इनके इन महत्वपूर्ण कार्यो की वजह से इन्हें "महात्मा" की उपाधी दी गई।डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर इन्हें अपना गुरु मानते रहे।इतना कुछ योगदान के बावजूद भारतीय फेसबुकिया यूथ के पास इनके लिए समय नही।या फिर भारतीय समाज में महिलायें और किसान हमेशा से हाशिये का विषय रहे है ?काश फुले साहब अमेरिका के विरोध में लगे रहते तो आज उनका भी बड़ा नाम होता।क्यूबा का फ़िदेल जी ने जो भी कल्याण किया उससे ज्यादा वो अमेरिका के विरोधी बनकर फेमस हुए।"हाय रे अमेरिका " फुले साहब शन्ति से भारत सुधार के दिशा में काम करते रहे ,पर विरोद्ध जो नही किया।क्या करे अमेरिका इतनी दूर जो था।कम से कम पाकिस्तान बन गया होता तो कुछ सोचते शायद।खैर ज्योतिराव फुले और फ़िदेल कास्त्रो आप दोनों को मेरी श्रद्धांजली।की-बोर्ड को विश्राम देते हुए कुछ महिलाये अमेरिका से क्यूबा की ओर देखती हुई।      

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