Tuesday, 20 December 2016

KHATTI-MITHI: मन का डाल -डाल होना !!!!

KHATTI-MITHI: मन का डाल -डाल होना !!!!: हम चीज़े भूल रहे है या जमाने के साथ कदम मिलाने के दौड़ में शामिल है ? कुछ समझ नही आता, हर दिन एक नई खबर हमें कुछ नया बताती है।वही दूसरे दिन ह...

मन का डाल -डाल होना !!!!

हम चीज़े भूल रहे है या जमाने के साथ कदम मिलाने के दौड़ में शामिल है ? कुछ समझ नही आता, हर दिन एक नई खबर हमें कुछ नया बताती है।वही दूसरे दिन ही उसे भूलने का इंतजाम भी तैयार होता है।शायद यही प्रकृति का नियम है ,"बदलाव और निरंतरता" मसलन  कुछ रोज पहले जयललिता जी की मृत्यु का समाचार सुनकर मीडिया और फेसबुकिया दोस्तों ने इनके बारे में ज्ञान की वर्षा कर दी।इनकी वजह से "भीम राव अम्बेडकर जी" की पुण्यतिथी भी प्रभावित रही।दो दिन में जयललिता जी कि यादे धूमिल हो गई।65 लोग जो उनके शोक में मरे उनका फोरेंसिक जाँच होना चाहिए।इतनी प्रैक्टिकल दुनियां में कैसे किसी के लिए मर सकता है कोई ? बात पैसे के लिए लाइन में खड़े मौत की हो तो समझ में भी आये।खैर कल मुझे मालूम हुआ फेसबुक के जरिये ही "अनुपम मिश्रा जी" नही रहे।कुछ सुना था कुछ पढ़ा था इनके बारे में ,पर बहुत- बहुत धन्यवाद फेसबुकिया दोस्तों का ,जिन्होंने और ज्ञान में वृद्धि की।दिल्ली में रह कर भी कई लोगो से मिल नही पाई।कई बार ये सोच के मन दुखी हो जाता है।दुःख में भाई से कभी-कभी पूछती भी हूँ  - देख ना भाई  ,काहे ना मिलनी सन? कमाए खाये में रह गायनी खाली।मेरा भाई कहता है -छोड़ ना बहिन ,कई बार कुछ लोगो से ना मिलना ही अच्छा होता है।मिलने के बाद आपकी सोच के अनुकूल उनकी छवि ना होने पर बहुत दुःख होता है।वैसे मुझे लगता है ऐसा अमूमन कम ही होता है /होगा।भाई मुझे दिलासा देने के लिए कह देता होगा।भाई जानता है मेरा मन बहुत चंचल है।ईस वजह से बहुत जल्दी ही मै खुशी और दुःख के भाव से घिर जाती हूँ।मन मेरा कभी इस डाल तो कभी उस डाल।इसी डाल -पात के खेल में जाने ये सोच कहाँ से आई की -लोकप्रिय होने के लिए मृत्यु भी अहम भूमिका निभाती है।सोच कर मै दुखी हो गई थी।तभी ईस मृत्यु और पैसे के खेल या यूँ कहे बाजार में एक नन्हा जीवन कदम रखता है "तैमूर" ।वो भी लोकप्रिय हो जाता है।मुझे खुशी हुई कि कम से कम एक जीवन का बोलबाला चल पड़ा।अचानक लोग सब भूल गए।बंगाल में मौत  घटना हो या फिर पैसे की मारामारी ,टेस्ट मैच की जीत हो या करुण नायर का तिहरा शतक।सच में तैमूर आप शासक हो एक -दो दिन के ही सही।,तैमूर आपका इस डाल -डाल पात -पात वाले खूबसूरत दुनियां में स्वागत है।कोई फर्क नही पड़ता आपका नाम तैमूर हो या सिकंदर ,राम हो या अर्जुन,नरेन्द्र हो या अरविन्द।सबको जीत की ईक्षा थी/है  ,चाहे जैसे मिले।फिर ये भी तो है अगर नाम ही सब कुछ होता तो ,आज मै कही तपस्या कर रही होती या कोई साध्वी होती।आपके  लोकप्रिय होने के लिए आपके माँ -बाप का नाम ही काफी है।बाद बाकी आपके इस नाम की वजह से ही, कुछ देर के लिए ही सही लोगो ने पुराने मसले पीछे छोड़ दिए है।कल के बाद लोग आपके नाम को छोड़ किसी और डाल पर होंगे।सोचिये एक नन्ही सी जान के आ जाने से अनुपम मिश्रा से लेकर नरेन्द्र मोदी जी तक चैन की साँस ले रहे होंगे।सारी राम -रहीम कथा का सार ये है कि ,हम जितना भी भूले ,भाग ले ,आधुनिक हो जाए ,पैसे के लिए रोये सब मोह माया है बंधू। जीवन और मृत्यु ही एक सत्य है।

Thursday, 15 December 2016

KHATTI-MITHI: गुलमोहर ,अमलतास और क्रिसमस ट्री !!!!

KHATTI-MITHI: गुलमोहर ,अमलतास और क्रिसमस ट्री !!!!: क्रिसमस ट्री की चमक -धमक देख के कुछ ऐसे पेड़ याद आ रहे है ,जो बिना किसी सजावट के "स्वर्ग के फूल" की उपाधि पा चुका है।वैसे तो क्रि...

गुलमोहर ,अमलतास और क्रिसमस ट्री !!!!

क्रिसमस ट्री की चमक -धमक देख के कुछ ऐसे पेड़ याद आ रहे है ,जो बिना किसी सजावट के "स्वर्ग के फूल" की उपाधि पा चुका है।वैसे तो क्रिसमस ट्री को भी "स्वर्ग के वृक्ष" की उपाधि मिली हुई है पर , मेरे "गुलमोहर " की बात ही कुछ और है।आह !वो लाल ,नारँगी ,हल्के पीले फूल।मानो गरमी के दिनों में सूरज मेरे गुलमोहर पर ही उगता हो।पेड़ की ऊचाई की वजह से इन फूलो को ना तोड़ने का मलाल तो रहता पर उसकी कमी इनकी पत्तियाँ पूरा कर देती।कॉलोनी के सारे बच्चे उचक -उचक के फूल तोड़ने की कोशिस करते।जो नीचे खिले फूल होते वो तो टूट जाते ,नही तो पत्तियाँ हाथ में आती।हमलोग उन पत्तियों को तोड़ कर बारिश -बारिश खेलते।कहने का मतलब जब आप गुलमोहर की पत्तियों को अलग -अलग करते है तो ,वे छोटे -छोटे बुँदे की तरह अलग होती है।फिर हमलोग उन्हें जेब में या फ्रॉक में इकट्ठा कर एक दूसरे के ऊपर फेकते और कहते भागो -भागो बारिश हो रही है।आह !कभी वो हल्की हरे रँग की बारिश तो कभी गाढ़े काई रँग की।बारिश ऐसी की सिर्फ मन भींगता और ना पीटने का डर होता।एक और खासियत गुलमोहर की ,मालूम नही इन पेड़ो पर क्यों मधुमक्खी के छत्ते हमेशा ही लगे रहते।शायद ये इन चटक फूलो का कमाल हो कि मधुमक्खियाँ भी इनसे खींची चली आती हो।कॉलोनी में हमेशा मधु इक्ट्ठा करने वाले घूमते रहते।कभी -कभी तो शहद की चोरी भी हो जाती।जब नही होती तो कॉलोनी में सब के यहाँ शहद बाटाँ जाता।
एक ऐसे ही दूसरा पेड़ था ,"अमलतास"का।आह! उसके सुन्दर पीले फूल ,मानो कोई झालर लटका हो पेड़ से।ठीक वैसे ही जैसे हम क्रिसमस ट्री के ऊपर झाड़- फेनूस लगाते है।इसके लंबे डंडीनुमा फल होते है।जिसको हम बच्चे तलवार के रूप में इस्तेमाल करते।इनके फूलो को कान में फसा कर कुंडल बनाते।हमारे लिए इनके फूल और फल ही क्रिसमस गिफ्ट होते।वैसे तो प्रकृति द्वारा बनी हर चीज़ अनमोल है पर ,वो क्या है ना बचपन से जुड़ी यादे ज्यादा अनमोल होती है ,इसलिए भाववश कही न कही तुलना की भावना आ ही जाती है।यहाँ के बच्चों के लिए तो नुकीली पतियों वाला क्रिसमस ट्री ही प्रिय होगा।उसपे लटके हुए नकली चाँद और सितारे ही उनके लिए सुंदरता का पैमाना होंगे।मेरी एक जर्मन दोस्त ने बताया था कि ,क्रिसमस ट्री जीवन की निरंतरता की प्रतिक है।इससे बुरी आत्माये दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
तो कह सकते है हमारी तुलसी मईया जैसी।बस आकार में अंतर।उफ्फ ! पागल लड़की हर बात में तुलना करना जरुरी है क्या ?अरे नही भाई हम तो बस बताए रहे थे।क्या करे मनुष्य का स्वाभाव ही कुछ ऐसे होता है कि ,उसे अपनी चीज़े ही ज्यादा अच्छी लगती है।पर अब तो कॉलनी में ना तो अमलतास दिखा ना ही गुलमोहर की लाइन से पेड़।एक -आध गुलमोहर के पेड़ आधा सूखे हालात में थे ,जो कभी भी अपना दम तोड़ सकते है।क्या वो सब भी खत्म हो जायेंगे।बस उनकी जगह रह जायेंगे उनकी यादे।खैर आप सभी को क्रिसमस की गुलमोहर भरी शुभकामनाये।अमलतास की फूलो और फलो जैसी खुशियाँ,ऊपहार हमेशा आपके जीवन में बनी रहे।