हम चीज़े भूल रहे है या जमाने के साथ कदम मिलाने के दौड़ में शामिल है ? कुछ समझ नही आता, हर दिन एक नई खबर हमें कुछ नया बताती है।वही दूसरे दिन ही उसे भूलने का इंतजाम भी तैयार होता है।शायद यही प्रकृति का नियम है ,"बदलाव और निरंतरता" मसलन कुछ रोज पहले जयललिता जी की मृत्यु का समाचार सुनकर मीडिया और फेसबुकिया दोस्तों ने इनके बारे में ज्ञान की वर्षा कर दी।इनकी वजह से "भीम राव अम्बेडकर जी" की पुण्यतिथी भी प्रभावित रही।दो दिन में जयललिता जी कि यादे धूमिल हो गई।65 लोग जो उनके शोक में मरे उनका फोरेंसिक जाँच होना चाहिए।इतनी प्रैक्टिकल दुनियां में कैसे किसी के लिए मर सकता है कोई ? बात पैसे के लिए लाइन में खड़े मौत की हो तो समझ में भी आये।खैर कल मुझे मालूम हुआ फेसबुक के जरिये ही "अनुपम मिश्रा जी" नही रहे।कुछ सुना था कुछ पढ़ा था इनके बारे में ,पर बहुत- बहुत धन्यवाद फेसबुकिया दोस्तों का ,जिन्होंने और ज्ञान में वृद्धि की।दिल्ली में रह कर भी कई लोगो से मिल नही पाई।कई बार ये सोच के मन दुखी हो जाता है।दुःख में भाई से कभी-कभी पूछती भी हूँ - देख ना भाई ,काहे ना मिलनी सन? कमाए खाये में रह गायनी खाली।मेरा भाई कहता है -छोड़ ना बहिन ,कई बार कुछ लोगो से ना मिलना ही अच्छा होता है।मिलने के बाद आपकी सोच के अनुकूल उनकी छवि ना होने पर बहुत दुःख होता है।वैसे मुझे लगता है ऐसा अमूमन कम ही होता है /होगा।भाई मुझे दिलासा देने के लिए कह देता होगा।भाई जानता है मेरा मन बहुत चंचल है।ईस वजह से बहुत जल्दी ही मै खुशी और दुःख के भाव से घिर जाती हूँ।मन मेरा कभी इस डाल तो कभी उस डाल।इसी डाल -पात के खेल में जाने ये सोच कहाँ से आई की -लोकप्रिय होने के लिए मृत्यु भी अहम भूमिका निभाती है।सोच कर मै दुखी हो गई थी।तभी ईस मृत्यु और पैसे के खेल या यूँ कहे बाजार में एक नन्हा जीवन कदम रखता है "तैमूर" ।वो भी लोकप्रिय हो जाता है।मुझे खुशी हुई कि कम से कम एक जीवन का बोलबाला चल पड़ा।अचानक लोग सब भूल गए।बंगाल में मौत घटना हो या फिर पैसे की मारामारी ,टेस्ट मैच की जीत हो या करुण नायर का तिहरा शतक।सच में तैमूर आप शासक हो एक -दो दिन के ही सही।,तैमूर आपका इस डाल -डाल पात -पात वाले खूबसूरत दुनियां में स्वागत है।कोई फर्क नही पड़ता आपका नाम तैमूर हो या सिकंदर ,राम हो या अर्जुन,नरेन्द्र हो या अरविन्द।सबको जीत की ईक्षा थी/है ,चाहे जैसे मिले।फिर ये भी तो है अगर नाम ही सब कुछ होता तो ,आज मै कही तपस्या कर रही होती या कोई साध्वी होती।आपके लोकप्रिय होने के लिए आपके माँ -बाप का नाम ही काफी है।बाद बाकी आपके इस नाम की वजह से ही, कुछ देर के लिए ही सही लोगो ने पुराने मसले पीछे छोड़ दिए है।कल के बाद लोग आपके नाम को छोड़ किसी और डाल पर होंगे।सोचिये एक नन्ही सी जान के आ जाने से अनुपम मिश्रा से लेकर नरेन्द्र मोदी जी तक चैन की साँस ले रहे होंगे।सारी राम -रहीम कथा का सार ये है कि ,हम जितना भी भूले ,भाग ले ,आधुनिक हो जाए ,पैसे के लिए रोये सब मोह माया है बंधू। जीवन और मृत्यु ही एक सत्य है।
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