Friday 22 September 2017

ब्रह्मचारिणी माता का तप रूप !!!

दुर्गा पूजा का दूसरा दिन ।
यहाँ पर जीसस के देख रेख में सब सामान्य है ।पर भोले बाबा की नगरी में ,इन पावन दिनो में भी माँ के रूपों का हनन हो रहा है ।ऐसे में या तो भोलेनाथ समाधि में लीन है ,या उन्हें लगता है कि देवी ख़ुद समर्थ हैं ।ये पापी राक्षस कब समझेंगे की ,चाहे युग कोई भी क्यों ना हो ।नारी का अपमान विनाश का कारक होता है ।
आज "माँ ब्रह्मचारिणी "रूप में हैं तो क्या हुआ ? कभी तो काली रूप धरेंगी ।तब तुम अपना नाश देखना अधर्मियों ।
माँ के शांत स्वरूप को उनकी कमज़ोरी समझ रहें हैं ये लिजलीजे कीड़े ।
जब यहीं कोमल शरीर हज़ारों -हज़ार साल तप करके ।कभी फल -फूल तो कभी निर्जला व्रत करके ।अपने संयम और प्रेम से भोले अगड़भंगी को वश में कर सकती हैं ।फिर तुम जैसे गंजेडी -लफ़ंगो की क्या औक़ात ।
माँ आपके ब्रह्मचर्य को दुनिया अबला समझ रही है ।मुझे आपके महाकाली रूप का इंतज़ार है ।या तो आप सर्वनाश करें या फिर इस नफ़रत और घृणा से भरे समाज में प्रेम का संगीत घोलें ।

सबकी मनोकामना पूरी करने वाली माँ मेरी भी विनती सुन ले ।आपने माता सीता की प्रार्थना स्वीकार कर ,उन्हें राम को वर स्वरूप दिया ।पर मुझे किसी राम की इक्षा नही ।
मुझे तो बस इस दुनियाँ में अपने तरीक़े से स्वतंत्र जीने का वरदान दो ।अपने तरीक़े से राम या रावण चुनने की आज़ादी दो ।मुझे कोई डर -भय ना हो अपने इस नारी स्वरूप को लेकर ।
हे माँ ! मेरी  इस प्रार्थना को स्वीकार करो ।
https://youtu.be/LVIL0qPdo0U


Thursday 21 September 2017

शैलपुत्री ,गिरिराज नंदनी !!!

दुर्गा पूजा शुरू हो चुकी हैऔर  मुझे बसंतपुर की याद आ रही है। कभी वहाँ के पंडाल की तो ,कभी दिन -रात बजने वाले भोंपू की।दिन -रात बजने वाले भक्ति गीतों से मानो भक्तिमय माहौल हो जाता ।उस वक़्त गीत भी अपने पारम्परिक मैया के गीत या पचरा बजते ।आज की तरह नही धिंचिक टाइप ।आवाज़ भी इतनी की जिससे किसी को परेशानी ना हो ।सच में बसंतपुर में हमेशा बसंत ही रहता ।कॉलोनी में बैठे -बैठे आते -जाते लोगों की झुण्ड को देखना। सुबह उठ कर फूलों की रखवाली करना।रोज हनुमान चालीसा पढ़ना।दस दिन स्कूल की छुट्टी और हमारी मौज ।एक ही दिन सारा होमवर्क करके आठ दिन खेलते रहते ।कितना उत्साह रहता नवमी का ।

यहाँ तो सब दिन एक ही जैसे ।त्योहार भी शांति से आकर चले जाते हैं ।मंदिर में सुविधानुसार शनिवार या रविवार को फ़ंक्शन होता है ।सज धज कर जनता वही इकट्ठा हो त्योहार मना लेती है ।बाक़ी अपने -अपने घरों में सब पूजा -पाठ कर ही लेते हैं ।यू ट्यूब से मैया के गीत सुनकर ख़ुश हो लेते है ।

आज दुर्गा पूजा का पहला दिन यानी "शैलपुत्री माता " का दिन है ।माँ के नव रूप में प्रथम ।शैलपुत्री नाम माँ का पर्वतराज हिमायल के पुत्री होने के कारण पड़ा ।माँ के इस रूप को पार्वती या हेमवती भी कहते हैं ।
कहा जाता है कि ,पार्वती जी सती का ही दूसरा रूप हैं ।
सती जब अपने पिता के अपमान से क्रोधित होकर आत्मदाह कर लेती हैं ।तो उनका अगला जन्म पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के यहाँ होता है ।
शैलपुत्री को प्राकृति भी माना जाता है ।पर्वत ,वायु ,वन ,भूमि सबका मिश्रित रूप ।
माता दुर्गा के इस रूप को कोटि -कोटि प्रणाम ।
साथ ही गिरिराज नंदनी की वंदना करते हुए अश्विनी भिंडे जी को सुने ।
https://youtu.be/3dQBbgns


Friday 15 September 2017

जितिया व्रत और कथा !!!

तीज पर मैंने कई पोस्ट पढ़े कि,क्यों पुरुषों के लिए व्रत रखें? पर जितिया के लिए हर जगह सन्नटा था। संतान मोह होता ही कुछ ऐसा है। इसमें कुछ सही गलत नही लगता। बस हमारे बच्चें स्वस्थ रहें, ख़ुश रहें यही हर पल कामना होती है। हालाँकि ये व्रत भी पुत्र के लिए ही किया जाता है। पर कुछ माएँ अपवाद भी तो होती हैं। जैसे की मेरी माँ।
तो चलिए कहानी के शौक़ीन लोगों को व्रत कथा भी सुनाई जाए।
व्रत :-जितिया।
मनोकामना :- वंश वृद्धि ,संतान दीर्घायु हो।
पूजन :-शिव -पार्वती, गणेश के साथ जितबानन गोसाई की पूजा।
विधि:- निर्जला उपवास। नदी के तट पर कथा सुनना। पार्वती माँ की शृंगार सामग्री के साथ गणेश जी के लिए कुछ खिलौने, प्रसाद, दान -दक्षिणा और अगले दिन पारन।

कथा :- जितिया कथा में तीन कहानियाँ सुनाई जाती है। जब छोटी थी तो माँ के साथ नदी किनारे जाती। कहानियों से शुरू से ही लगाव की वजह से औरतों के बीच बैठ कर मैं भी कथा सुनती। एक साथ तीन -तीन कथा पंडित जी सुनाते। अगर कोई महिला बीच में बात करने लगती तो मोटकू पंडित जी ग़ुस्सा हो जाते। कथा छोड़ कहते “कथा सुने आएल बानी लोग की पंचायत करे ?” बतिया ली लोग हम जा तानी।
कुछ औरतें पंडित जी के प्रकोप से डर कर चुप हो जाती तो कुछ पंडित जी को छेड़ने लगती। हमारे यहाँ पंडित जी से मज़ाक़ या शादी-ब्याह में उनके नाम से गाली गाना कोई नई बात नही।
इधर मैं तबतक अपने दोस्तों के साथ नदी किनारे खेल कर आ जाती। कारण पंडित जी तो अभी प्रवचन लम्बा चलेगा।

वैसे जितिया के बारे में ये प्रचलित है कि, जिसको पुत्र होगा वही करेगा। मेरी माँ कथा के बाद पहले मेरा ही नाम लेती फिर भाई का। कई औरतें माँ को टोक भी देती “येजी पहले बेटा के नाम ली।”
"माँ मुस्कुरा कर कहती -मेरे लिए पहले लव्ली फिर चुलबुल।"

ख़ैर मेरी राम कहानी से आगे जितिया की कथा तक पहुँचते हैं ।
पहली कथा :-एक बार एक जंगल में चील और सियारीन घूम रहे थे, तभी उन्होंने कुछ महिलाओं को नदी के किनारे इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा और कथा सुनी। चील ने इस व्रत को ध्यानपूर्वक देखा और श्रद्धा पूर्वक व्रत का पालन किया। वही सियारीन का ध्यान बहुत कम था। उसने व्रत तो किया पर रात को भूख लगने के कारण, माँस खा लिया। व्रत के पुण्य से चील की संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुँची। वहीं सियारीन की सभी संताने एक एक कर मृत्यु को प्राप्त हो गाई।

दूसरी कथा :-महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु से अश्व्थामा बहुत क्रोध में था। बदले की भावना से उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला।लेकिन वे सभी द्रोपदी की पाँच संताने थी।उसके इस अपराध के कारण अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया।उसकी दिव्य मणि छीन ली।जिससे क्रोधित हो अश्व्थामा ने उत्तरा (अर्जुन की दूसरी पत्नी )की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया।
ब्रहमास्त्र को निष्फल करना असंभव था। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर, उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया। गर्भ में ही मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम “जीवित्पुत्रिका" पड़ा बाद में यहीं “राजा परीक्षित” हुए। तब ही से इस व्रत को किया जाने लगा।

तीसरी कथा :-गन्धर्वों के राजकुमार का नाम जीयूतवाहन था। वे बड़े उदार और परोपकारी थे। जीयूतवाहन  के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राजसिंहासन पर बैठाया। पर इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था। वे राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए। वहीं पर उनका मलयवती नाम की राजकन्या से विवाह हो गया।
एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीयूतवाहन काफी आगे चले गए तो वहाँ उन्होंने एक वृद्धा को विलाप करते देखा। पूछने पर वृद्धा ने बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूँ। मुझे एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के सामने नागों ने उन्हें प्रतिदिन खाने हेतु एक नाग देने की प्रतिज्ञा की है। आज मेरे पुत्र की बलि का दिन है।

जीमूतवाहन ने वृद्धा से कहा, डरो मत माते। मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको लाल कपड़े में ढाँक कर शिला पर लेट जाऊँगा। नियत समय पर गरुड़ आए और वे लाल कपड़े में ढाँके जीमूतवाहन को पंजे में दबोच उड़ चले। मृत्यु को पास देख कर भी गरुड़ का शिकार शांत चीत रहा तो गरुड़जी बड़े आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने जीयूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीयूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया। गरुड़जी उनकी बहादुरी और बलिदान से बहुत प्रभावित हुए। प्रसन्न होकर गरुड़जी ने उनको जीवनदान  दिया ।साथ हीं नागों की बलि न लेने का भी वरदान दे दिया ।इस प्रकार जीयूतवाहन के साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई ।तभी से पुत्र की सुरक्षा हेतु जीयूतवाहन की पूजा की जाने लगी ।
तो अंत में बोलें :-ये अरियार ।
ता का बरियार ।
जाके कहिएय राजा रामचन्द्र जी से की -सत्यार्थ के माई जितिया कईले बाड़ीन ।
इम्पोर्टेंट :- इस व्रत कथा में भी बहुत डराया गया है की,खाने -पीने से संतान पर कष्ट आ सकतें हैं।मैंने पहली बार ये व्रत किया ।संतान मोह में या पहली बार की उमंग वश निर्जला व्रत तो कर लिया पर अगले दिन पारन के बाद बीमार पड़ गई ।माँ और एक दोस्त ने बताया ये व्रत लगता है ।मतलब इसके बाद थोड़ा बीमार पड़ सकतें है ।ख़ैर इसका नुक़सान तो मेरे सत्यार्थ को हुआ ।बीमार मैं हुई बेचारा कल पूरे दिन सिर्फ़ दूध पर ही रहा ।मैं कुछ बना ही नही पाई ।शतेश शाम को आकर उसके लिए खिचड़ी बनाए ।।शतेश ने व्रत के दिन छुट्टी ले रखी थी ,इसलिए अगले दिन पारन का खाना बना कर ऑफ़िस चले गए ।
निष्कर्ष :- अगले साल से मैं भगवान का नाम लेकर पानी पी लिया करूँगी तीज व्रत की तरह ।अगर माँ ही बीमार रही तो संतान कहाँ से स्वस्थ होगा ।

Thursday 7 September 2017

वर्जिनिया बीच पर शिव पार्वती के साथ गणेश !!!

शिव ,पार्वती से कहते हैं :-पार्वती सुनो ना शीत ऋतु के आगमन से पहले फिर से किसी समुन्द्र तट चलते है।
पार्वती :- शिव जी ,आप खाली समुन्द्र तट करते रहते है। ग्रीष्म ऋतु क्या आई ,आप चार धाम की तरह समुन्द्र के चक्कर लगवाने लगे।आस -पास के तो सारे समुन्द्र नाप लिए ।अब क्या बचा है प्रिय ?
शिव :-मेरी अर्धनारेश्वरी ! इस बार तुम्हे मैं "कुमारी समुन्द्र तट "ले चलूँगा। साथ ही शेनंदोह वन और नीली पहाड़ की चोटी भी दिखाऊंगा।
पार्वती :-मैं कुछ समझी नहीं शिव।
शिव :-प्रिय ! ये जो मानव जाति वर्जिनिया बीच कहते हैं ना। इसका असल नाम हमने कुमारी समुन्द्र तट रखा था।
बटवारे के बाद ये जीजस के अधिकार क्षेत्र में आ गया। जीजस को "वर्जिन" शब्द से प्रेम ,तो विर्जिन नाम रख दिया।  कुछ वर्षों बाद ,पाटलिपुत्र से युवाओं की टोली यहाँ मजदूरी करने आई। उन्हें हर शब्द के बाद -आ ,वा ,या लगाने की आदत। ऐसे में वे आदत अनुसार -इसको वर्जिन -या या कहने लगे। अब मजदुर आदमी तो जनता है। जनता सबकी माई -बाप। तो तब से ये "कुमारी तट से वर्जिनिया "कहा जाने लगा।

पार्वती :-अच्छा तो ये शेनंदोह और नीली पहाड़ की चोटी  का भी कुछ किस्सा है क्या महादेव।
शिव :- हाँ पार्वती। ये जो "शेनंदोह वन "है ना ,ये मेरे और नन्दी का ही अपभ्रंश नाम है। शिव -नन्दी। ये सब जीजस की चाल है। देखो मक्कार ने ,मेरा आशियाना नीली पहाड़ की चोटी का भी नाम बदल कर "ब्लू रिज माउंटेन "कर दिया। तुम तो जानती ही हो पार्वती नीला रंग मुझे कितना पसंद है। खैर जाने दो। मैं भोले नाथ हूँ ।माइंड नहीं करता इनसब बातों का। हमदोनो को प्राकृति से प्रेम है ,तो चलो प्राकृति की ओर।

उड़न खटोले पर सवार शिव -पार्वती नन्हें गणेश के साथ निकल पड़े कुमारी तट ।मनोरम यात्रा का सुख बढ़ाने के लिए शिव ने शारदा जी को याद किया।
शारदा जी शुरू हो गई -शिव से गौरी ना बियाहब हम जहरवा खइबे ना।
शिव जी मंद -मंद मुस्कुराते हुए बोले :-तपस्या ओह मेरा मतलब पार्वती ,मुझे आपने ब्याह के दिन याद आ रहें है।
पार्वती -मुझे भी शिव जी । शारदा जी ने तो मेरे पीहर की याद दिला दी भोलेनाथ ।

इसी सब के बीच उड़न खटोला कुमारी बीच पर उतरा। सामने देखा तो एक राक्षस की मूर्ति।
पार्वती शिव से कहती :-शिव राक्षस। शिव हँसते हुए बोले -मेरी भोली पारो ,ये समुन्द्र देव की मूर्ति है। इनको मैंने जलजीवों की रक्षा हेतु लगा रखा है। चलो देख लो नजदीक से ।
फिर वहाँ से शिव -पार्वती गणेश के साथ समुन्द्र तट पहुँचते हैं।
लोगो की दयनीय स्थिति से पार्वती व्याकुल हो जातीं है। शिव से कहती हैं -बेचारे लोग कैसे बस तन ढँके हुए ।,बेघर से बालू पर मछली से पटपटा रहें हैं। सूर्य की किरणों से उनके शरीर लाल हुए पड़े है  ।
शिव पार्वती को समझाते है :-देखो तो पगली ,ये लोग ऐसे जीवन से कितने खुश हैं। बालू में लोट कर उन्हें आनंद आ रहा है। प्रेमी युगल पानी से खेल रहें हैं। एक दूसरे की चित्र उतार रहें है। तुम नाहक ही परेशान हो रही हो। आओ गणेश के साथ तुम्हारी भी एक चित्र बना लूँ।
चित्र बनाने के बाद शिव ने कहा -अच्छा सुनो पारो ,जहाँ रात्रि विश्राम के लिए रुकेंगे। वहीं "श्वेत -काले "लोगों के बीच युद्ध हुआ था। वैसे डरने की कोई बात नहीं हैं।मैंने  नारद गूगल से सब पता कर लिया है ।
शाम हो गई है ।गणेश रोने लगें ।शिव पार्वती से कहते हैं -गणेश के दुग्ध पान के बाद ,हमलोग भी भोजन का प्रबंध करते हैं ।सोच रहा हूँ बुद्ध को मानने वाले लोगों के यहां ही भोजन किया जाय ।क्या कहती हो पार्वती ?
पार्वती :-ठीक है शिव ।थाई लोगों को हमारे आने की सुचना दे दी जाय ।
वर्जिनिया बीच पर शिव पार्वती