Thursday 7 September 2017

वर्जिनिया बीच पर शिव पार्वती के साथ गणेश !!!

शिव ,पार्वती से कहते हैं :-पार्वती सुनो ना शीत ऋतु के आगमन से पहले फिर से किसी समुन्द्र तट चलते है।
पार्वती :- शिव जी ,आप खाली समुन्द्र तट करते रहते है। ग्रीष्म ऋतु क्या आई ,आप चार धाम की तरह समुन्द्र के चक्कर लगवाने लगे।आस -पास के तो सारे समुन्द्र नाप लिए ।अब क्या बचा है प्रिय ?
शिव :-मेरी अर्धनारेश्वरी ! इस बार तुम्हे मैं "कुमारी समुन्द्र तट "ले चलूँगा। साथ ही शेनंदोह वन और नीली पहाड़ की चोटी भी दिखाऊंगा।
पार्वती :-मैं कुछ समझी नहीं शिव।
शिव :-प्रिय ! ये जो मानव जाति वर्जिनिया बीच कहते हैं ना। इसका असल नाम हमने कुमारी समुन्द्र तट रखा था।
बटवारे के बाद ये जीजस के अधिकार क्षेत्र में आ गया। जीजस को "वर्जिन" शब्द से प्रेम ,तो विर्जिन नाम रख दिया।  कुछ वर्षों बाद ,पाटलिपुत्र से युवाओं की टोली यहाँ मजदूरी करने आई। उन्हें हर शब्द के बाद -आ ,वा ,या लगाने की आदत। ऐसे में वे आदत अनुसार -इसको वर्जिन -या या कहने लगे। अब मजदुर आदमी तो जनता है। जनता सबकी माई -बाप। तो तब से ये "कुमारी तट से वर्जिनिया "कहा जाने लगा।

पार्वती :-अच्छा तो ये शेनंदोह और नीली पहाड़ की चोटी  का भी कुछ किस्सा है क्या महादेव।
शिव :- हाँ पार्वती। ये जो "शेनंदोह वन "है ना ,ये मेरे और नन्दी का ही अपभ्रंश नाम है। शिव -नन्दी। ये सब जीजस की चाल है। देखो मक्कार ने ,मेरा आशियाना नीली पहाड़ की चोटी का भी नाम बदल कर "ब्लू रिज माउंटेन "कर दिया। तुम तो जानती ही हो पार्वती नीला रंग मुझे कितना पसंद है। खैर जाने दो। मैं भोले नाथ हूँ ।माइंड नहीं करता इनसब बातों का। हमदोनो को प्राकृति से प्रेम है ,तो चलो प्राकृति की ओर।

उड़न खटोले पर सवार शिव -पार्वती नन्हें गणेश के साथ निकल पड़े कुमारी तट ।मनोरम यात्रा का सुख बढ़ाने के लिए शिव ने शारदा जी को याद किया।
शारदा जी शुरू हो गई -शिव से गौरी ना बियाहब हम जहरवा खइबे ना।
शिव जी मंद -मंद मुस्कुराते हुए बोले :-तपस्या ओह मेरा मतलब पार्वती ,मुझे आपने ब्याह के दिन याद आ रहें है।
पार्वती -मुझे भी शिव जी । शारदा जी ने तो मेरे पीहर की याद दिला दी भोलेनाथ ।

इसी सब के बीच उड़न खटोला कुमारी बीच पर उतरा। सामने देखा तो एक राक्षस की मूर्ति।
पार्वती शिव से कहती :-शिव राक्षस। शिव हँसते हुए बोले -मेरी भोली पारो ,ये समुन्द्र देव की मूर्ति है। इनको मैंने जलजीवों की रक्षा हेतु लगा रखा है। चलो देख लो नजदीक से ।
फिर वहाँ से शिव -पार्वती गणेश के साथ समुन्द्र तट पहुँचते हैं।
लोगो की दयनीय स्थिति से पार्वती व्याकुल हो जातीं है। शिव से कहती हैं -बेचारे लोग कैसे बस तन ढँके हुए ।,बेघर से बालू पर मछली से पटपटा रहें हैं। सूर्य की किरणों से उनके शरीर लाल हुए पड़े है  ।
शिव पार्वती को समझाते है :-देखो तो पगली ,ये लोग ऐसे जीवन से कितने खुश हैं। बालू में लोट कर उन्हें आनंद आ रहा है। प्रेमी युगल पानी से खेल रहें हैं। एक दूसरे की चित्र उतार रहें है। तुम नाहक ही परेशान हो रही हो। आओ गणेश के साथ तुम्हारी भी एक चित्र बना लूँ।
चित्र बनाने के बाद शिव ने कहा -अच्छा सुनो पारो ,जहाँ रात्रि विश्राम के लिए रुकेंगे। वहीं "श्वेत -काले "लोगों के बीच युद्ध हुआ था। वैसे डरने की कोई बात नहीं हैं।मैंने  नारद गूगल से सब पता कर लिया है ।
शाम हो गई है ।गणेश रोने लगें ।शिव पार्वती से कहते हैं -गणेश के दुग्ध पान के बाद ,हमलोग भी भोजन का प्रबंध करते हैं ।सोच रहा हूँ बुद्ध को मानने वाले लोगों के यहां ही भोजन किया जाय ।क्या कहती हो पार्वती ?
पार्वती :-ठीक है शिव ।थाई लोगों को हमारे आने की सुचना दे दी जाय ।
वर्जिनिया बीच पर शिव पार्वती

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