Thursday 21 September 2017

शैलपुत्री ,गिरिराज नंदनी !!!

दुर्गा पूजा शुरू हो चुकी हैऔर  मुझे बसंतपुर की याद आ रही है। कभी वहाँ के पंडाल की तो ,कभी दिन -रात बजने वाले भोंपू की।दिन -रात बजने वाले भक्ति गीतों से मानो भक्तिमय माहौल हो जाता ।उस वक़्त गीत भी अपने पारम्परिक मैया के गीत या पचरा बजते ।आज की तरह नही धिंचिक टाइप ।आवाज़ भी इतनी की जिससे किसी को परेशानी ना हो ।सच में बसंतपुर में हमेशा बसंत ही रहता ।कॉलोनी में बैठे -बैठे आते -जाते लोगों की झुण्ड को देखना। सुबह उठ कर फूलों की रखवाली करना।रोज हनुमान चालीसा पढ़ना।दस दिन स्कूल की छुट्टी और हमारी मौज ।एक ही दिन सारा होमवर्क करके आठ दिन खेलते रहते ।कितना उत्साह रहता नवमी का ।

यहाँ तो सब दिन एक ही जैसे ।त्योहार भी शांति से आकर चले जाते हैं ।मंदिर में सुविधानुसार शनिवार या रविवार को फ़ंक्शन होता है ।सज धज कर जनता वही इकट्ठा हो त्योहार मना लेती है ।बाक़ी अपने -अपने घरों में सब पूजा -पाठ कर ही लेते हैं ।यू ट्यूब से मैया के गीत सुनकर ख़ुश हो लेते है ।

आज दुर्गा पूजा का पहला दिन यानी "शैलपुत्री माता " का दिन है ।माँ के नव रूप में प्रथम ।शैलपुत्री नाम माँ का पर्वतराज हिमायल के पुत्री होने के कारण पड़ा ।माँ के इस रूप को पार्वती या हेमवती भी कहते हैं ।
कहा जाता है कि ,पार्वती जी सती का ही दूसरा रूप हैं ।
सती जब अपने पिता के अपमान से क्रोधित होकर आत्मदाह कर लेती हैं ।तो उनका अगला जन्म पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के यहाँ होता है ।
शैलपुत्री को प्राकृति भी माना जाता है ।पर्वत ,वायु ,वन ,भूमि सबका मिश्रित रूप ।
माता दुर्गा के इस रूप को कोटि -कोटि प्रणाम ।
साथ ही गिरिराज नंदनी की वंदना करते हुए अश्विनी भिंडे जी को सुने ।
https://youtu.be/3dQBbgns


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