Wednesday, 6 June 2018

संवेदनाओं का मरना !!!

कभी -कभी उदासी बिना वजह आपको उदास कर जाती है।जैसा की आज मुझे कर रही है।आज फिर मेरे एक दोस्त के माता -पिता यहॉं आए और मेरी जलन मेरी उदासी का कारण बन रही है।जलन का अब क्या कर सकतें है। नाम तपस्या होने से धीर नहीं आ जाता।

कैसी विडंबना है हम ग्रामीण परिवेश के लोगों की ,खास कर बिहार से आने वालों युवाओं की ,जो हमारे  माता -पिता हमारे लिए ऊँचा  आसमान देखते है और खुद धरती का साथ नहीं छोड़ते।
बचपन से हमें डॉक्टर, इंजीनियर ,सरकारी अफसर बनाने का ख़्वाब देखते है ।अपने उन्ही ख़्वाबों  के बीज हमारे अंदर बोने लगते है ।इस ख़्वाब में हमने उन्हें कई बार जलते देखा है।उनकी वो जलन हमें आज तक जलाती है ।
ओह ! मेरी वजह से माँ ने तकलीफ सही ।पापा ने अपना सारा जीवन झोक दिया।
फिर उनके जलन को राहत कैसे मिले ,इसमें हम जलने लगे।उनके सपने पूरी करने लगे।
ना उन्हें मालूम था ना हमें की इन सपनो की कीमत क्या होगी ? उनके  सपने ने वो सब कुछ दिया जो वो मेरे लिए चाहते थे  ,पर कीमत क्या थी ?
दुरी  विछोह …

कई बार कुछ ज्ञानी दोस्त ज्ञान देतें है ,अरे भाई कोई बिज़नेस कर लो ,।मुर्गीफार्म खोल लो , खेती करो ।रेस्टॉरेंट चलाने के बारे में सोचो ।ब्यूटी पार्लर ,कोचिंग सेंटर फ़लाना ढामकान नए स्टारअप अपने शहर में रह कर कर सकते हो ।पैसा कमा सकते हो ।माँ -बाप भी साथ रह सकतें है ,तुम भी ख़ुश माँ -बाप भी ।
भाक साला यहाँ मेरे माँ -बाप ने इतना त्याग मुर्गीफारम के लिए किया है क्या ? ज्ञानी बनते हो कि खेती में काफी संभावना है ।मेरे माँ -बाप ने कभी खेत में ठीक से काम करवाया मुझसे ? क्या अब वो देख पायेंगे मुझे खेतों में झुलसते ?और हमसे होगा क्या ?
 गिन कर तो हम तीन बार भवें बनवाए ,पार्लर क्या ख़ाक खोलेंगे ?
और रही बात कोचिंग की तो कभी बिहार आओ ,आँखे फट जायेंगी तुम्हारी ।ज्ञान देते हो ।

हमें भी ज्ञान आता है पर …
सब छोड़ कर वापस वहां तक जाना उफ्फ्फ ,फिर से अपने बच्चे को इस सपने के जाल में झोकना है
हम जहाँ से है वहॉं इंजीनियर तो बहुत हैं पर ,ढंग की कोई कम्पनी नहीं ।अब ऐसे में वो जो सपने कभी माँ बाप से होते हुए मेरे हो गए उन्हें छोड़ कर कहाँ जाऊँ ?

लोग कहते है कि हमारी सवेंदना मर रही है ।हम निर्मोही हो रहे है ।
पर ,क्या सिर्फ हम ही सवेंदनहीन हो रहे है ?
क्या आप (माँ -बाप ,सगे सम्बंधी )मोह में हैं ?

हाँ आप तो हैं मोह में ,अपनी धरती से ,अपने गांव से ,हमारे घर से ।
हमें उड़ने का ख्वाब दिखा कर ,हमें निर्मोही बना कर आप कहते हैं कि ,सिर्फ हमारी संवेदनाये मर रही है ।
क्या आप कभी ये नहीं सोचते कि जो बीज हमने अपने बच्चे में बोया उसको पेड़ बनाने में ,उसपर फल लाने में कितने उसके अपने दूर हो गए ,कितने उसके सपने मर गए ।
क्या आपको नहीं लगता कभी हमको भी अपना कम्फर्ट ज़ोन छोड़ कर उड़ना चाहिए ।अपने बच्चों के पास होना चाहिए ।

संवेदनाए दोनों की मर रही है इंतज़ार में ……

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