Wednesday 25 July 2018

सेंट लूई !!!

इंडीऐनापोलिस से सेंट लूई की दूरी बाई ड्राइव कुछ साढ़े तीन घंटे की है ।रास्ते में अगर एक -दो बार रुके तो ये समय चार घंटे से पार हो जाता है ।रुकना तो हो गया ,चले अब सेंट लूई की तरफ़ ।

रास्ते में ख़ूब बड़े -बड़े खेत मिलेंगे ।छोटे -छोटे कल कारख़ाने भी ।तो कुछ जानवरों के तबेले ।फ़सल के मामले में अमेरिका मक्के के लिए जाना जाता है और मक्के की सबसे बड़ी मंडी सेंट लूई में ही है ।
इसके अलावा गेट्वे आर्च ,सेंट लूई चिड़ियाघर ,साइयन्स सेंटर ,बसिलिका चर्च भी काफ़ी प्रसिद्ध है ।छोटे -छोटे पार्क तो भरे पड़े है ।

मिसोरी स्टेट में सेंट लूई मिस्सिसिपी नदी के किनारे बसा हुआ है ।ये शहर प्रवासियों द्वारा ही बसा है ।कुछ लोगों से सुना था ,शाम को ये शहर उतना सुरक्षित नही पर मुझे ऐसा कुछ नही लगा ।हो सकता हो कुछ एक साल पहले एक -आध घटना हुई हो ।
घटना से याद आया ,यहाँ एक काले लड़के को मार दिया गया था।काफ़ी बवाल हुआ था पूरे अमेरिका में इस घटना को लेकर ।
डाउन टाउन में पार्क से लेकर कसिनो तक है ।सत्यार्थ की वजह से हम कसिनो नही जा पाए ।जुआघर में बच्चे ले जाने की अनुमति नही है

गेटवेअर्क  की बात करे तो 630 फीट ऊँचा अर्क अफ़िल टॉवर से कम नही ।क्वीन फ़िल्म में देखा था ना हर जगह से दिखता था ।इसका आर्च का भी यहीं हाल है ,कही से भी दिख जाता है ।कही से मतलब सेंट लूई शहर से है ।

इसके सामने पुराने कॉर्ट के साथ एक पब्लिक लैब्रेरी है ।वही पीछे की तरफ़ अमेरिका की सबसे बड़ी मिसिसिपी रिवर ।नदी के किनारे बैठने को बेंच ,वॉकिंग ट्रेल के साथ कुछ तैरते रेस्टरेंट शाम को और ख़ूबसूरत दिखते हैं ।

प्रसिद्ध चिड़ियाघर फ़ॉरेस्ट पार्क में है ।फ़ॉरेस्ट पार्क न्यू यॉर्क के सेंट्रल पार्क से लगभग दुगुना होगा ।काफ़ी कुछ है यहाँ ।हिस्ट्री म्यूज़ीयम ,साइयन्स सेंटर ,आर्ट म्यूज़ीयम ,कई छोटे इवेंट पार्क ।
 चिड़ियाघर अमेरिका के चंद बड़े फ़्री चिड़ियाघर में से एक है,पर कुछ चीज़ें फ़्री नही है ।अगर आप पास ले लेते हैं तो घूमना आसान हो जाता है ।साथ ही जो चीज़ें फ़्री नही वो भी देख लेते है ।एक छोटी ट्रेन सारे पोईट तक पहुँचा देती है ।उतरिए देखिए फिर ट्रेन पकड़ लीजिए ।

सत्यार्थ को अच्छा लगे इसलिए हम म्यूज़ीयम सब छोड़ चिड़ियाघर गए और गरमी में पटपटा के रह गए ।पति -पत्नी दोनो सिर दर्द से बेहाल ।सलाह तो ये है कि यहाँ आप जुलाई अंतिम के बाद ही जाए ।

खाने -पीने के हर तरह के ऑप्शन है ।भारतीय भोजन की भी कई सारी दुकान है पर ,डाउंटाउन में पार्किंग की बहुत मारा -मारी है ।
अच्छा हुआ यूँ हम दो दिन के लिए गए थे ।पहली शाम को हीं सिरदर्द हो गया ।हमने खाना टू गो “रसोई “ से ऑर्डर किया पर मन ना ठीक होने से होटेल आ गए ।बाद में पिज़्ज़ा ऑर्डर कर होटेल तक मँगवाया ।अगले दिन सोचा ,चलो आज रसोई में खाते है ।पहुँचे वहाँ तो पार्किंग नही ।मुश्किल से दूर एक पर्किंग मिली ।घाम में पसीने से भिंगे वहाँ पहुँचे तो वहाँ कोई पार्टी चल रही थी ,जिससे बाहरी लोग को खाना नही मिल सकता था ।भगवान भी ना बदला लेकर हीं रहता है ।
वहाँ से झल्लाते हुए हम गोकुल रेस्टरेंट पहुँचे ।गायत्री मंत्र के बीच भोजन सम्पन्न  हुआ।
वहाँ से वापस अपने आशियाना की तरफ़ मुड़ चले ।

Friday 13 July 2018

येंगूलर गायरस !!!!

एक सखी की सलाह पर “वह भी कोई देश है महाराज “किताब मँगवाई ।पढ़ना शुरू किया तो बस पढ़ती गई ।सच में इस किताब की लिखाई बहुत ही रोचक है ।
किताब में बहुत कुछ मज़ेदार है ,जानने योग्य है ।
 एक पक्षी हॉर्नबिल के बारे में भी ज़िक्र है ।लेखक लिखते है हॉर्नबिल जोड़ा नही बदलते ,वफ़ादार प्रेमी माने जाते है ।रूप ही इनका दुश्मन है ।उसके पंखो से नागा अपने मुकुट सजाते है ।साथ ही धनेश यानी इस पक्षी का मांस और तेल कामशक्तिवर्धक माना जाता है ।नीम हकीम ,घूमंतू वैध प्रेमविहीन अंधविश्वासियों को फाँसनेके लिए इस पक्षी का चोंच प्रयोग करतें हैं।

इसे लाइन को पढ़ते समय मुझे अपने विज्ञान की एक शिक्षिका याद आ गई ।एक बार पढ़ाई के क्रम में उन्होंने बताया था ,रेडबैक एक मकड़ी है जो अपने पार्टनर को मेटिंग के बाद खा जाती है ।ये सुबह की प्रार्थना वाला मेटिंग नही ।जानवर भी भला प्रार्थना करतें होंगे ?
हेय, सच में बड़ी मज़बूत हृदय वाली मकड़ी है ये तो यह कह कर मैं और मेरी दोस्त ख़ूब हँसे थे ।

हृदय से एक और बात याद आई उन्होंने ये भी बताया था कि ,केंचुए को पाँच दिल और ऑक्टोपस को तीन ।आप अंदाज़ा लगा ही सकतें है इसपर मैंने और मेरी दोस्त ने क्या सोचा होगा ।
मुझे केचुआ तो बनाना नही था ।ऐसे में प्रशंसा को ही पाँच दिल की मालकीन का ख़िताब दे दिया गया ।पाँच दिल के ख़ातिर उसे केचुआ बनने से भी हर्ज ना था ।हम हँस -हँस के पागल हो रहे थे कि ये बेचारे जीव पाँच -पाँच दिल ले कर करते क्या होंगे ? हमसे एक ही नही संभलता ।

वैसे एक बात तो है ख़ाली दिल ही नही प्रेम और वफ़ादारी में भी कुछ जीव श्याद हम मनुष्यों से आगे है ।ऐसे ही नही एक प्रेमी सारस जोड़े रामायण के आरम्भ का कारण बने ।
प्रेम में डूबे जोड़े को एक शिकारी मार देता है ।महर्षि वाल्मीकि इस घटना को देख कर दुःख से बोल पड़ते है

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।
यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥

कहते है हंस अपने पार्टनर के प्रति सबसे ज़्यादा वफ़ादार होते हैं।ये अपने पार्टनर की हर तरह से मदद करते है ।मसलन घर बनाने ,भोजन लाने ,बच्चों को पालने आदि ।हॉर्नबिल  की तरह ।पर अगर किसी कारण वश इनका पार्टनर नही रहे तो ये वियोग में प्राण दे देते है ।तभी तो शायद हिंदी फ़िल्मों के गाने इनकी उपमा से लिपटे पड़े है ।

यही नही एक और बात बताऊँ ये जो भेड़िया है ना भेड़िया वो भले ही ख़तरनाक हो पर अपने साथी और परिवार के लिए काफ़ी ईमानदार होते है ।अपने पार्टनर के मौत के बाद दूसरा पार्टनर भी नही ढूँढते ।
ये तभी ट्वाइलायट में इनको रखा था क्या ? भगवान जाने पर अब से कोई आपको भेड़िया कहे तो यही सोच के मुस्का दीजिएगा सफल प्रेमी ।

अच्छा अगर आप पेंगविन वाली डॉक्युमेंट्री देखेंगे तो उसमें दिखता है कि ये अपने साथी से कितना प्यार करतें है ।कुछ तो दूर होने पर भी अपने साथी से मिलने का इंतज़ार करते है हाय ! इनको भी विरह होता है ।
हे गंगा माईया तोहे साफ़ हम रखबो
साइयाँ से कर द मिलनवा हो राम ।

मुझे तो लगता है इन जीवों का येंगूलर गायरस वाला हिस्सा हमसे ज़्यादा विकसित है ।वरना जानवर क्या जाने प्रेम भला जब हम विकसित जीव नही समझ पाते ।

Monday 2 July 2018

अष्टयाम !!!!

अष्टयाम :-

घर जब आई थी तो घूमने फिरने के साथ पूजा -पाठ भी होता रहा ।माँ कि इक्षा थी कि मेरे आने के बाद अष्टयाम करवाए ।
अष्टयाम का वैसे तो मतलब आठ पहर होता है ।यानि कि चौबीस घंटे में तीन -तीन घंटे का एक पहर ।
पर साहित्य के दृष्टिकोण से यह एक कविता का रूप है ।जैसे कविता के ही द्वारा किसी व्यक्ति विशेष ,देवगण का गुणगान करना ।

धार्मिक दृष्टिकोण से अष्टयाम दिन के किसी भी शुभ समय से प्रारम्भ कर ,अगले दिन उसी समय तक भजन -कीर्तन ,पूजा पाठ आदि के द्वारा सम्पन्न होता है ।वैसे तो अमूमन लोग अष्टयाम चौबीस घंटे का हीं करवाते है पर ,कहीं -कही लोग नव दिन का भी भजन -कीर्तन रखते है ।

चौबीस घंटे तक भगवान का भजन -कीर्तन करने के लिए मंडली बुलाया जाता है ।इसमें चौबीसों घंटे बिना रुके राम और कृष्ण का नाम गा कर जपा जाता है ।

“हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे “

मंडप में सारे भगवान विराजमान होते है ।सबकी पूजा होती ।श्रिंगार ,भोग ,संध्या आरती और रामायण पाठ सब साथ में चलता रहता है ।बस भजन में प्रमुख राम और कृष्ण होते हैं ।

ऐसे तो अष्टयाम कई बार देखा सुना है पर इस बार का अष्टयाम कुछ अलग था ।अलग इस मायने में कि ,मैंने आजतक कोई “महिला मंडली “ को गाते नही सुना था ।बहुत से लोगों के लिए भी ये नया था ।कारण ज़्यादातर पुरुष मंडली ही होते है ।

हुआ यूँ था ,मेरे जन्मदिन के अवसर पर इसका आयोजन करने का भाई ने सोचा ।दिन आठ मार्च ,महिला दिवस तो सोचा गया क्यों ना इस बार महिला मंडली हीं बुलाया जाये ।हमने इनके बारे में एक चाचा जी सुना था ।
पर कुछ कारणवश आठ को अष्टयाम नही हो पाया फिर भी मंडली हमने महिलाओं की हीं बाँधी।

महिला मंडली के साथ कुछ पुरुष ढोलक ,झाल अपने वाद्ययंत्र के साथ थे ।महिलायें और पुरुष दोनो “थारु” समाज से थे ।ये लोग नेपाल के तराई क्षेत्र के आस -पास रहते है ।
सबसे विशिष्ट बात ये कि ,इस समाज में महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता है ।मंदिर में पूजा -पाठ कराने से लेकर घर की ज़िम्मेदारी तक थारु महिलायें बख़ूबी निभाती है ।
सुना था बहुत कर्मठ स्वभाव होता है इनका और सच में देख भी लिया ।
मंडली के लोग ईसकॉन को मनाने वाले थे यानी कृष्ण प्रेमी ।शाकाहारी ,बिना लहसन प्याज़ का ख़ुद से पकाया भोजन करने वाले ।बहुत ही सीधे -साधे लोग थे ।उनके बच्चे पढ़ने में इतने होशियार जाने जंगल के किस स्कूल में शिक्षा लेते थे या फिर शांत दिमाग़ का असर था ।

अष्टयाम बहुत ही अच्छे ढंग से सम्पन्न हुआ ।मैं थोड़ा काम में रहने कि वजह से कई चीज़ें देख ना पाई ।अगर भगवान की इक्षा हो तो फिर इस इस मंडली से मिलने का अवसर मिलेगा ।
आपलोग भी थोड़ा भक्तिमय हो जाय ।आपके लिए कुछ अंश ।
वैसे माँ कहती हैं ,इस यज्ञ की ध्वनि जहाँ तक जाती है ,वहाँ तक का वातावरण शुद्ध हो जाता है ,जागृत हो जाता है ।