Monday, 2 July 2018

अष्टयाम !!!!

अष्टयाम :-

घर जब आई थी तो घूमने फिरने के साथ पूजा -पाठ भी होता रहा ।माँ कि इक्षा थी कि मेरे आने के बाद अष्टयाम करवाए ।
अष्टयाम का वैसे तो मतलब आठ पहर होता है ।यानि कि चौबीस घंटे में तीन -तीन घंटे का एक पहर ।
पर साहित्य के दृष्टिकोण से यह एक कविता का रूप है ।जैसे कविता के ही द्वारा किसी व्यक्ति विशेष ,देवगण का गुणगान करना ।

धार्मिक दृष्टिकोण से अष्टयाम दिन के किसी भी शुभ समय से प्रारम्भ कर ,अगले दिन उसी समय तक भजन -कीर्तन ,पूजा पाठ आदि के द्वारा सम्पन्न होता है ।वैसे तो अमूमन लोग अष्टयाम चौबीस घंटे का हीं करवाते है पर ,कहीं -कही लोग नव दिन का भी भजन -कीर्तन रखते है ।

चौबीस घंटे तक भगवान का भजन -कीर्तन करने के लिए मंडली बुलाया जाता है ।इसमें चौबीसों घंटे बिना रुके राम और कृष्ण का नाम गा कर जपा जाता है ।

“हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे “

मंडप में सारे भगवान विराजमान होते है ।सबकी पूजा होती ।श्रिंगार ,भोग ,संध्या आरती और रामायण पाठ सब साथ में चलता रहता है ।बस भजन में प्रमुख राम और कृष्ण होते हैं ।

ऐसे तो अष्टयाम कई बार देखा सुना है पर इस बार का अष्टयाम कुछ अलग था ।अलग इस मायने में कि ,मैंने आजतक कोई “महिला मंडली “ को गाते नही सुना था ।बहुत से लोगों के लिए भी ये नया था ।कारण ज़्यादातर पुरुष मंडली ही होते है ।

हुआ यूँ था ,मेरे जन्मदिन के अवसर पर इसका आयोजन करने का भाई ने सोचा ।दिन आठ मार्च ,महिला दिवस तो सोचा गया क्यों ना इस बार महिला मंडली हीं बुलाया जाये ।हमने इनके बारे में एक चाचा जी सुना था ।
पर कुछ कारणवश आठ को अष्टयाम नही हो पाया फिर भी मंडली हमने महिलाओं की हीं बाँधी।

महिला मंडली के साथ कुछ पुरुष ढोलक ,झाल अपने वाद्ययंत्र के साथ थे ।महिलायें और पुरुष दोनो “थारु” समाज से थे ।ये लोग नेपाल के तराई क्षेत्र के आस -पास रहते है ।
सबसे विशिष्ट बात ये कि ,इस समाज में महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता है ।मंदिर में पूजा -पाठ कराने से लेकर घर की ज़िम्मेदारी तक थारु महिलायें बख़ूबी निभाती है ।
सुना था बहुत कर्मठ स्वभाव होता है इनका और सच में देख भी लिया ।
मंडली के लोग ईसकॉन को मनाने वाले थे यानी कृष्ण प्रेमी ।शाकाहारी ,बिना लहसन प्याज़ का ख़ुद से पकाया भोजन करने वाले ।बहुत ही सीधे -साधे लोग थे ।उनके बच्चे पढ़ने में इतने होशियार जाने जंगल के किस स्कूल में शिक्षा लेते थे या फिर शांत दिमाग़ का असर था ।

अष्टयाम बहुत ही अच्छे ढंग से सम्पन्न हुआ ।मैं थोड़ा काम में रहने कि वजह से कई चीज़ें देख ना पाई ।अगर भगवान की इक्षा हो तो फिर इस इस मंडली से मिलने का अवसर मिलेगा ।
आपलोग भी थोड़ा भक्तिमय हो जाय ।आपके लिए कुछ अंश ।
वैसे माँ कहती हैं ,इस यज्ञ की ध्वनि जहाँ तक जाती है ,वहाँ तक का वातावरण शुद्ध हो जाता है ,जागृत हो जाता है ।

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