Saturday, 20 July 2019

अल्बमा !!!

अल्बमा, अमेरिका का एक ऐसा राज्य जो अमेरिका के इतिहास में कई तरह से महत्वपूर्ण है। एक ऐसा राज्य जो नदियों और नेचुरल संसाधनों से भरपूर रहा। कभी यहाँ के कौटन(रुई) तो कभी यहाँ के स्टील ने इस राज्य को समृद्ध बनाने की कोशिश की। ये वहीं राज्य है जहाँ कभी “रोज़ा पर्कस” नाम की अश्वेत महिला ने एक श्वेत नागरिक को पब्लिक बस मे अपनी जगह देने से मना कर दिया था। उन दिनों बस या कई सार्वजनिक जगहों पर अश्वेत नागरिकों का जाना मना था या फिर श्वेत नागरिक को जगह ना मिलने पर अपनी जगह देनी पड़ती थी। रोज़ा ने इस नियम का उल्लंघन किया और परिणाम स्वरुप उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। यहीं से “सिविल राईट मूभमेंट” की नीव पड़ी।

रोज़ा की मदद को हज़ारों अश्वेत सड़क पर उतर आए। जिस “मोंटगमेरय” में ये घटना हुई वो आज अल्बमा की राजधानी है। यहाँ उस समय “मार्टिन लूथर किंग जूनियर” डेक्स्टर अवेन्यू के एक चर्च में धार्मिक उपदेश के लिए आए थे। पर रोज़ा के साथ हुए इस घटना से वो बहुत आहत हुए और उन्हें सिविल राइट मूवमेंट का अहवहान किया। यहीं से ये मूवमेंट पुरे अमेरिका में फैल गई और अंतत: अश्वेतों को उनका अधिकार मिला।

सिविल राईट का गढ़ होने के अलावा, इसी राज्य के “हनत्सविल्ल” नामक जगह पर पहला रोकेट बना जिसमें इंसान को बिठा कर चाँद पर भेजा जा सका। इसलिए इसे “रोकेट कैपिटल ओफ द world “ भी कहते हैं।

***इससे अलग बात करूँ सुरक्षा की तो  ये अमेरिका का सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक है। इसका कारण कई लोग यहाँ अश्वेत लोगों की ज़्यादा संख्या भी बताते है। तथ्य क्या हैं मुझे इसकी जानकारी नही। मुझे ये जगह कहीं से भी असुरक्षित नही लगी पर हाँ ये बात ज़रूर थी कि, छुट्टी का दिन होते हुए भी यहाँ की सड़के सुनी थी। डाउनटउन शाम के सात बजे ही सुना पड़ा था। हमलोग आस-पास जो घुमने की जगहें थी वहाँ रुके कुछ तस्वीर निकाली और चलते बने।

मज़े की बात ये रही कि अल्बमा में हम दो रात रुके और दोंनो रात जिस होटेल में रुके उसका मालिक हिंदुस्तानी। एक के बारे में पहले लिख चुकीं हूँ( सरदार जी जिसका अटेंडेंट थे। जिनका बेटा सत्यार्थ की उम्र का था)  आज जो मिले वो गुजराती थे। आज का होटेल पिछले वाले से थोड़ा अच्छा था। इसमें ब्रेकफ़ास्ट का समान भी ज़्यादा था। हम जब रूम छोड़ने लगे तो गुजराती भाई ने पुछा सब ठीक तो था ना? कोई दिक्कत तो नही हुई। साथ हीं सत्यार्थ को कुछ मफ़िन और चोकलेट दिए। वैसे ये आप ख़ुद भी ले सकतें है ब्रेकफ़ास्ट एरिया से। पर हमने नास्ता कर हीं लिया था तो इसकी ज़रूरत नही लगी। अब प्रेम वश दिया हुआ कैसे मना करते। हालाँकि सत्यार्थ इनमे से कोई ठीक से नही खाता।

गाड़ी में बैठते हीं मेरे दिमाग़ में जैसे सवाल उमड़ा कि उससे पहले शतेश बोल पड़े, “ इनका हीं अच्छा है, किसी सस्ती जगह पर होटल ले लो। कुछ स्टाफ़ रख दो और अपनी नौकरी भी करतें रहो।”  दोनो होटल के मलिक यहाँ कही किसी कम्पनी मे काम करतें है, ये इनका दूसरा बिसजनेस है। अल्बमा की कोस्ट ओफ लिविंग सस्ती है पर बात वहीं कि यहाँ सुरक्षा कारणों से लोग रहना नही चाहतें। कुल मिला कर कहा जाए तो मुझे ये जगह सुनी, थोड़ी पुरानी पर अच्छी लगी।

Monday, 15 July 2019

खेल का अद्भुत इतवार !!!


खेल जगत का अद्भुत इतवार। एक ऐसा इतवार जिसने सुबह से शाम तक खेल और इसके जादू से बाँधे रखा। एक तरफ़ वर्ल्ड कप तो दूसरी तरफ़ विंबलडन। दोनो ज़बरदस्त खेल के बाद समझ नही आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दिया जाए। दोनो खेलों ने कई बार दिल की धड़कने बढ़ा दी थी। किसी की जीत की थोड़ी ख़ुशी तो किसी के हार का थोड़ा गम लेकर हमलोग पहुँचे शाम को डर्बी देखने।

शाम की ख़ूबसूरत बेला, ढलता सूरज, ठंडी हवा। हवा में घुलती सिगरेट-सिगार और भाँति-भाँति के परफ़्यूम की ख़ुश्बू ठीक आज के मैच की तरह दिमाग़ पर असर डाल रहें थे। इससे निजात पाने के लिए हम आगे बढ़ते जा रहें थे। क़दमों की दूरी के साथ मन की भावनायें मिट्टी की सुगंध की ओर खींची चली जा रही थी। कुछ दूर आगे जाने पर ग्राउंड पर बिखरें ख़ूबसूरत लोग और उनके प्यारे बच्चों को देख हमने अपने पाँव और मन को वहीं रोक लिया। अब क्रिकेट-टेनिस भूल घुड़दाउल में नए जोश से शामिल हो गये। पर कहा ना इस बार ये इतवार कुछ अलग थी। आख़िर इसने विदा लेते-लेते मुझे संयम और हिम्मत का पाठ दुहराने को कहा। कहा जिसके पास ये दोनो हो, वो दुनियाँ जीत सकता है। ना जीत का घमंड करे ना हार का मातम। साथ हीं “सब होने के बावजूद प्रकृति को आपके साथ होना बहुत ज़रूरी है जो कि बाद में नियति बन जाती है।”

खेल की शुरुआत, ख़ूबसूरत चाँदनी रात और जगमगाती रौशनी में बारह घोड़े के साथ शुरू हुई। अपने सवार के साथ दौड़ में शामिल हुए घोड़े दौड़ना शुरू किए। दौड़ के शुरू में हीं “नम्बर सात घोड़े “ का सवार गिर पड़ा। चारों तरफ़ से ओह ! शीट , ओ गॉड ! जैसी आवाज़ें आने लगी। थोड़ी देर में लोग उस सवार को ठीक जान आगे के रेस का आनंद लेने लगे। तभी सबकी नज़र उस अकेले घोड़े पर गई जो सबसे आगे जा रहा था। ये वहीं नंबर 7 घोड़ा था, जो गिरने के बाद भी दौड़ में बना रहा बिना सवार( जॉकी)के। हर तरफ़ से ये देख अववववऽऽऽऽ  की आवाज़ आने लगी।

उसकी ठीक बग़ल से गुज़र रहा घुड़सवार, जो बिना उस घोड़े को देखे अब अपनी हार मानने को तैयार था। उसने सोचा एक बार देखूँ तो कौन है जो मुझसे आगे है। जैसी ही उसकी नज़र उस अकेले घोड़े पर गई, उसने अपने घोड़े को कहा अब हमें जीतना हीं होगा। आज का दिन तुम्हारा है। और इसी के साथ उसने एक चाबुक लगाई और उसका घोड़ा मालिक का अंदेशा पाते हीं सेकेंड के अंतर से जीत गया।

ठीक वैसे हीं , जैसे नंबर 7 अकेले भारत को जीत ना दिला पाए। ठीक वैसे हीं, जैसे सबसे लंबा फाइनल खेल रहे “जोकोविच और फेडरर”  के बीच कई बार हारते-हारते जोकोविच अपने संयम और हिम्मत से जीत गए। ठीक वैसे ही जैसे जीत इंग्लैंड की हुई पर दुनिया को न्यूज़ीलैंड का दर्द ज़्यादा चुभा। ठीक वैसे हीं जैसे बिना जॉकी के घोड़े ने रेस पूरी की। पर अगर वो एक सेकेंड से जीत भी जाता तो उसे हारा हीं माना जाता।

Sunday, 7 July 2019

कहीं ये वो तो नही !!!!

शब्दों के जाल और संगीत का नशा किसी को भी ठग सकता है। मुझे ऐसा लगता है कि, इनका अगर सही प्रयोग किया  जाए तो कोई अपना तन-मन-धन सब कुछ दाव पर लगा सकता है। ऐसा ना हो तो भला कोई कैसे लिख पाता

“होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके से दवा जान के खाया होगा”  और इन शब्दों में कैसे कोई डूब गया होगा ये सोच कर की 

बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाए होंगे
एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा।

शब्द जो उभरे, अब उसकी आँखों से कुछ गरम आँसू बनकर कर टपक रहे हैं। मेज़ पर पसर रहे हैं।  वहीं मेज़ जहाँ कभी उसकी तस्वीर हुआ करती थी। भला हो उस काली लकड़ी के फ़्रेम का, जिसने उसे नज़रों के टोने से बचा रखा था। ये ना होता तो जाने क्या हीं होता......

इतने अरसे के बाद एक तस्वीर के सहारे इंतज़ार और मुश्किल जान पड़ती। इस तस्वीर में क़ैद दोनो की जान अब जाने को है। एक डर,  एक अनजान बेचैनी इस तस्वीर को पलट देती है। पर कम्बख़्त फ़्रेम  के पीछे लगा तिकोना सपोर्ट, मन को चूभ रहा है। चुभन इतनी बढ़ जाती है कि, तस्वीर सीधी आँखों के सामने फिर काली फ़्रेम में जड़ी मुस्कुराने लगती है।एक तरफ़ हँसती आँखे शीशे के पीछे से कह रही है

मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा....

दूसरी तरफ़ उन क़ैद आँखों की बोली सुनकर दूसरी क़ैद आँखे बरस पड़ती हैं। आज दूसरी बार ऐसी बरसात हो रही है। पर इस बार अंतिम विदा सी नमी है। काँपते हाथों से तस्वीर लेकर उसे सीने से लगाती है। अपने दिल की धड़कनों की तेज़ आहट पाकर आँखें फिर शब्दों के भ्रमित जाल में भिंगने लगती है

कहीं ये वो तो नही.....
ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नही....