Monday 15 July 2019

खेल का अद्भुत इतवार !!!


खेल जगत का अद्भुत इतवार। एक ऐसा इतवार जिसने सुबह से शाम तक खेल और इसके जादू से बाँधे रखा। एक तरफ़ वर्ल्ड कप तो दूसरी तरफ़ विंबलडन। दोनो ज़बरदस्त खेल के बाद समझ नही आ रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दिया जाए। दोनो खेलों ने कई बार दिल की धड़कने बढ़ा दी थी। किसी की जीत की थोड़ी ख़ुशी तो किसी के हार का थोड़ा गम लेकर हमलोग पहुँचे शाम को डर्बी देखने।

शाम की ख़ूबसूरत बेला, ढलता सूरज, ठंडी हवा। हवा में घुलती सिगरेट-सिगार और भाँति-भाँति के परफ़्यूम की ख़ुश्बू ठीक आज के मैच की तरह दिमाग़ पर असर डाल रहें थे। इससे निजात पाने के लिए हम आगे बढ़ते जा रहें थे। क़दमों की दूरी के साथ मन की भावनायें मिट्टी की सुगंध की ओर खींची चली जा रही थी। कुछ दूर आगे जाने पर ग्राउंड पर बिखरें ख़ूबसूरत लोग और उनके प्यारे बच्चों को देख हमने अपने पाँव और मन को वहीं रोक लिया। अब क्रिकेट-टेनिस भूल घुड़दाउल में नए जोश से शामिल हो गये। पर कहा ना इस बार ये इतवार कुछ अलग थी। आख़िर इसने विदा लेते-लेते मुझे संयम और हिम्मत का पाठ दुहराने को कहा। कहा जिसके पास ये दोनो हो, वो दुनियाँ जीत सकता है। ना जीत का घमंड करे ना हार का मातम। साथ हीं “सब होने के बावजूद प्रकृति को आपके साथ होना बहुत ज़रूरी है जो कि बाद में नियति बन जाती है।”

खेल की शुरुआत, ख़ूबसूरत चाँदनी रात और जगमगाती रौशनी में बारह घोड़े के साथ शुरू हुई। अपने सवार के साथ दौड़ में शामिल हुए घोड़े दौड़ना शुरू किए। दौड़ के शुरू में हीं “नम्बर सात घोड़े “ का सवार गिर पड़ा। चारों तरफ़ से ओह ! शीट , ओ गॉड ! जैसी आवाज़ें आने लगी। थोड़ी देर में लोग उस सवार को ठीक जान आगे के रेस का आनंद लेने लगे। तभी सबकी नज़र उस अकेले घोड़े पर गई जो सबसे आगे जा रहा था। ये वहीं नंबर 7 घोड़ा था, जो गिरने के बाद भी दौड़ में बना रहा बिना सवार( जॉकी)के। हर तरफ़ से ये देख अववववऽऽऽऽ  की आवाज़ आने लगी।

उसकी ठीक बग़ल से गुज़र रहा घुड़सवार, जो बिना उस घोड़े को देखे अब अपनी हार मानने को तैयार था। उसने सोचा एक बार देखूँ तो कौन है जो मुझसे आगे है। जैसी ही उसकी नज़र उस अकेले घोड़े पर गई, उसने अपने घोड़े को कहा अब हमें जीतना हीं होगा। आज का दिन तुम्हारा है। और इसी के साथ उसने एक चाबुक लगाई और उसका घोड़ा मालिक का अंदेशा पाते हीं सेकेंड के अंतर से जीत गया।

ठीक वैसे हीं , जैसे नंबर 7 अकेले भारत को जीत ना दिला पाए। ठीक वैसे हीं, जैसे सबसे लंबा फाइनल खेल रहे “जोकोविच और फेडरर”  के बीच कई बार हारते-हारते जोकोविच अपने संयम और हिम्मत से जीत गए। ठीक वैसे ही जैसे जीत इंग्लैंड की हुई पर दुनिया को न्यूज़ीलैंड का दर्द ज़्यादा चुभा। ठीक वैसे हीं जैसे बिना जॉकी के घोड़े ने रेस पूरी की। पर अगर वो एक सेकेंड से जीत भी जाता तो उसे हारा हीं माना जाता।

No comments:

Post a Comment