Sunday 7 July 2019

कहीं ये वो तो नही !!!!

शब्दों के जाल और संगीत का नशा किसी को भी ठग सकता है। मुझे ऐसा लगता है कि, इनका अगर सही प्रयोग किया  जाए तो कोई अपना तन-मन-धन सब कुछ दाव पर लगा सकता है। ऐसा ना हो तो भला कोई कैसे लिख पाता

“होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके से दवा जान के खाया होगा”  और इन शब्दों में कैसे कोई डूब गया होगा ये सोच कर की 

बन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाए होंगे
एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा।

शब्द जो उभरे, अब उसकी आँखों से कुछ गरम आँसू बनकर कर टपक रहे हैं। मेज़ पर पसर रहे हैं।  वहीं मेज़ जहाँ कभी उसकी तस्वीर हुआ करती थी। भला हो उस काली लकड़ी के फ़्रेम का, जिसने उसे नज़रों के टोने से बचा रखा था। ये ना होता तो जाने क्या हीं होता......

इतने अरसे के बाद एक तस्वीर के सहारे इंतज़ार और मुश्किल जान पड़ती। इस तस्वीर में क़ैद दोनो की जान अब जाने को है। एक डर,  एक अनजान बेचैनी इस तस्वीर को पलट देती है। पर कम्बख़्त फ़्रेम  के पीछे लगा तिकोना सपोर्ट, मन को चूभ रहा है। चुभन इतनी बढ़ जाती है कि, तस्वीर सीधी आँखों के सामने फिर काली फ़्रेम में जड़ी मुस्कुराने लगती है।एक तरफ़ हँसती आँखे शीशे के पीछे से कह रही है

मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा....

दूसरी तरफ़ उन क़ैद आँखों की बोली सुनकर दूसरी क़ैद आँखे बरस पड़ती हैं। आज दूसरी बार ऐसी बरसात हो रही है। पर इस बार अंतिम विदा सी नमी है। काँपते हाथों से तस्वीर लेकर उसे सीने से लगाती है। अपने दिल की धड़कनों की तेज़ आहट पाकर आँखें फिर शब्दों के भ्रमित जाल में भिंगने लगती है

कहीं ये वो तो नही.....
ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है
कहीं ये वो तो नही....



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