Friday, 17 April 2020

नंदा।

भले नंदा मुझे देरी से पसंद आई पर एक बात तो है, यार ये  बड़ी भोली दिखतीं थीं। मैंने उनके कुछ  पुराने ब्लैक एंड वाइट गाने सुने, उफ़्फ़ कितनी प्यारी लगी है क्या हीं कहूँ।
 आज इनकी याद यहाँ के मौसम को देख कर आई। एक तो महामारी ऊपर से मौसम की बीमारी। कभी झमाझम बारिश तो कभी गोंऽऽऽ-गोंऽऽऽ करती हवा तो कभी ताड़ताड़ती बिजली। भगवान सोच लिए है की धरती को कैसे भी साफ़ करके हीं दम लेंगे:)

अब ऐसे में मैंने भी  “गोन विथ द विंड” को रखा साइड में। चल पड़ी कल का बचा हुआ कढ़ी गरम करने। चावल चढ़ाया, प्रेम से पकौड़े तले। जितना खा सकती थी, कढ़ी -चावल और पकौड़े खाए और फिर तान कर सो गई। उठी तो बारिश धीमी हो चुकी थी।

घर के नर और मादा गौरिया,  खिड़की की दीवार पर सिर रख कर बाहर आती-जाती गाड़ियाँ देखने लगें। उन्हें आज गाड़ियाँ कम पक्षी उड़ते ज़्यादा दिख रहें हैं...
थोड़ी देर पक्षियों को घूरने के बाद,  बारी आती है चाय के साथ बचे पकौड़े खाने की । नर गौरिया चाय बनाने को चल पड़ा और मादा संगीत की खोज में टीवी के आगे।

बारिश के गीतों के साथ नंदा एक बार फिर टीवी पर छा गई। मादा गौरिया चाय के इंतज़ार में गाने देखते-देखते सोचने लगी, नंदा कितनी ख़ुशनसीब रही ना... भले हीं वो नूतन, वाहिद रहमान, मधुबाला या नर्गिस जैसी प्रसिद्धी ना पाई हो पर हर तरह के ख़ूबसूरत गीत इनके खाते में हैं।

चाहें भक्ति गीत हो, प्रेम गीत हो, विरह गीत हो, बरखा ऋतु हो, सेंसुअल गीत हो, दबंग प्रेमिका का गीत हो, पंछी-पखेरू , बादल-पतंग, पति-पत्नी हो, भाई-बहन पर गीत हो या माँ-बच्चें पर, हर तरह के गीतों पर इन्होंने ने अभिनय किया है। हाँ, कई गीत तो मुझे इधर जाकर मालूम हुआ की इनकी फ़िल्म की हीं है।
जैसे चल उड़ जा रे पंक्षी... इस गीत को बचपन में कितनी बार सुना होगा पर हर बार शायद तीसरी क़सम के बैलगाड़ी वाला गीत सोच कर लगता की इसमें भी वाहिदा हीं होंगी :)
“मूर्ख लड़की मैं”

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