Saturday, 4 April 2020

दीया जलाना है !!!

शाम को दीया जलाना मेरे लिए कोई नया नही। मैंने देखा है हर शाम माँ को दीया जलाते। मैंने देखा है वो शाम जब रोग या माहवारी की वजह से माँ दीया जला नही पाती तो मुझसे कहती, लभली दीया जला दो साँझा का समय हो गया है। मैंने देखा है अपनी सासू माँ को शाम का दीया जलाते। मैंने देखा है वो शाम जब किसी कारण से वो गाँव के पुराने घर जातीं तो हमें कह कर जातीं की शाम को दिया- बाती कर देना।

भारत में क़रीब आज भी 60-70% घरों में शाम को दीया  जलता हीं है। कुछ लोग ज़िंदगी की भागा दौड़ी में शाम का दीया जला नही पाते तो कुछ को ये उतना ज़रूरी नही लगता। हर किसी का अपना विश्वाश है इसे ना भी जलाए तो माता लक्ष्मी और साँझा माई से घर में सुख शांति की प्रार्थना करते है।

मैं भी कई बार शाम को दीया नही जला पाती। कारण वहीं रोग- माहवारी तो कई बार बाहर घूमना, शॉपिंग , सिनेमा या फिर दोस्तों के घर होना। हाँ घर पर होतीं हूँ तो रोज शाम दीया जला हीं लेती हूँ। जिस दिन नही जला पाती उस दिन कोई अफ़सोस या धर्म का भय नही रहता। यह बस एक ऐसा संस्कार है जो बचपन से मन पर अंकित है बाक़ी कुछ नही।

जिनके घर रोज दीया जलता है उनके लिए विश्वाश और जो नही जलाते वो शौक से आज दीया जलायेंगे या फिर  शौक  से हंगामा करेंगे। वैसे आज समय के फेर से दीया जलाने ना जलाने से कुछ बनने बिगड़ने वाला नही। हमें सावधानी तो हर हालत में बरतनी है।

बाक़ी जीवन का विश्वाश जैसे भी बना रहे बने रहना चाहिए। और भारत तो विश्वाश है । 

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