कल मैंने फ़िल्म, “हे सिनामिका” के बारे में लिखा था। इस फ़िल्म में नायक को ज़्यादा बोलने की आदत है। पर आजकल सुनना कौन चाहता है ? जीवन के भागदौड़ में किसी के पास किसी को सुनने की फुर्सत कहाँ? अगर किसी के पास फुर्सत भी है तो वो आपकी ही सिर्फ़ क्यों सुनेगा? उसके अपनी भी तो हज़ारों बातें होंगी, हज़ारों तकलीफ़ें होंगी। वह भी उसे सुनाना चाहता होगा।
दुनिया सोशल मीडिया पर जितनी वोकल है उतनी ही आम ज़िंदगी में अकेली। देखा तो होगा ही आपने घर -घर मोबाइल, हाथ-हाथ मोबाइल। पड़ोस में क्या हो रहा है वह भी कई बार फ़ेसबुक अपडेट से मालूम होता है।
अभी एक -डेढ़ महीने पहले बाबा जी बता रहें थे कि, “ अब घूर कहाँ कोई लगावे… सब लोग अपना-अपना घर में हीटर तापेला।”
घूर, सर्दियों में सबसे मज़ेदार मीटिंग स्थल होता। लोग दुनिया जहान की बातें आग को घेरे करते रहते। घंटा-घंटा कब बीत जाता पता ही नही चलता। घूर और घोनसार एक समय में रियल फेसबुक था। यहाँ रिएक्शन और कमेंट तुरंत सामने मिलता। वह सब सिमट कर अब एक कोने में फ़ोन के साथ जुड़ा है।
इस तरह के माहौल ने हर चीज़ को बाज़ारवाद से जोड़ दिया है। ऐसे में क्या आपको मालूम है कि, सिर्फ़ सुनने के लिए भी आप पैसे दे कर किसी को हायर कर सकते हैं?
जी हाँ, सही पढ़ा आपने। पैसे देकर कर किसी को अपनी मन की बात सुनाना।
“ लिस्नर” एक जॉब प्रोफ़ाइल है जो लोगों की मन की बात सुनते हैं। ऐसे लोग आमतौर पर मेडिकल या कोर्ट ट्रायल के लिए पहले से ही काम कर रहे हैं लेकिन आजकल के तनाव और अकेलेपन के जीवन में इनकी डिमांड अब ज़्यादा बढ़ गई है। ये लिस्नर पर घंटे के हिसाब से सुनने का काम करते हैं। ये बस आपको सुनते रहते हैं। कोई सुझाव या ज्ञान नही देते ना ही बीच में टोक-टाक। बस कुछ ऐसा कि बोल ले भाई/बहन, कर लें अपना मन हल्का।
तो अगर आप सहनशील है, दूसरों की बातें घंटों सुन सकते है बिना प्रभावित हुए फिर आप एक गुड लिस्नर है। ऐसे में आप चाहे तो इस क्षेत्र में भी कैरियर ऑप्शन चुन सकते हैं। लेकिन, लेकिन इसके लिए अपनी भावनायें आपको घर पर छोड़ कर जानी पड़ेगी, नही तो दूसरों की उदासी, क्रोध, बेबसी, घुटन सब आप अनजाने में खुद के भीतर भर लाएँगे। "
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