मुझे एक लेटर आया है अमेजन की तरफ़ से। इसमें मेरी मेरी किताब, “प्यार पर सवाल नही” की इस मन्थ की रॉयल्टी और टैक्स का स्टेटमेंट छप कर आया है। इस तरह के लेटर पहले भी आ चुके है पर आज इसे शेयर करने का कारण भारत में हो रहे रॉयल्टी विवाद है। बीते कुछ दिनों से लेखक-प्रकाशक और रॉयल्टी की बातें खूब हो रही है जिसकी आँच पहले युद्ध और अब होली में कम होती दिख रही है। वहीं कुछ दोस्तों ने मुझसे पूछा भी कि तुमने इस पर कुछ भी नही लिखा जबकि तुम्हारी खुद चार किताबें आ गई है।
बात तो सही है कि , “मनलहरी”, “ ऐसे भी कोई करता है भला” “आह वाली यात्रा” और “प्यार पर सवाल नही” यह चार किताबें मेरी आई है। पर यह चारों ही ई- बुक है। यानि किंडल बुक है। मेरी किताबें अब तक पेपरबैक में नही आई है। या फिर किसी ऐसे साइट पर जहाँ आपको रॉयल्टी के लिए अलग से बात करनी पड़े।
अमेजन से अब तक का मेरा अनुभव संतोषजनक रहा है। यहाँ पर किस देश में कितने लोगों ने मेरी किताब ली, किसने कितना पन्ना पढ़ा यहाँ तक मालूम चल जाता है। फिर किताब की रॉयल्टी, किताब के दाम के हिसाब से आपको खुद तय करना पड़ता। किस महीने कितनी किताब आपकी बिकी के साथ रॉयल्टी खुद ब खुद टैक्स काट के आपके एकाउंट में आ जाती है। साथ ही मेल और लेटर भी घर पर आता है जिसमें सारी डीटेल दी होती है।
मेरी पिछली किताब को आए एक साल हो गए पर मार्च के महीने में दो लोगों ने इसे लिया तो मुझे इसका मेल आ गया। और उसी ख़ुशी में मैंने होली पर इस किताब का कुछ अंश शेयर किया कि एक साल भी लोग किताब पढ़ रहे है। वरना तो मेरी मार्केटिंग स्किल तो बहुत बुरी है। किताब लिख लेती हूँ और प्रचार के नाम पर शुरू में एक दो पोस्ट भर।
ख़ैर अब मुद्दे पर आए तो मुझे अभी भी ठीक -ठीक मालूम ही नही कि कौन सा प्रकाशन भारत में किस लेखक को कितनी रॉयल्टी देता है। कहीं 10% दिखता है तो कहीं 20% और यह भी क्या फ़िक्स है या प्रसिद्ध लेखकों के लिए कुछ अलग क्लॉस है।
मुझे दो-चार सेल्फ पब्लिशिंग बुक के मैसेज भी मिले थे कि इतना अमाउंट दे कर आप बुक सेल्फ पब्लिश करा सकतीं है। पर मेरी इस बारे में कभी बात ही नही हुई तो रॉयल्टी वाली बात ही नही आई।
आज जिन वरिष्ठ लेखक से यह बात शुरू हुई और जिन्होंने यह मुद्दा उठाया, उन दोनों के ऊपर मैं क्या लिखूँ… मैंने तो खुद , नौकर की क़मीज़, दिवार में एक खिड़की और एक कविताओं का संग्रह भाई के किताबों के संग्रह से लेकर पढ़ी है। मानव कौल कि जो दो किताबें पढ़ी वह भी मुझे फ़्री pdf मिली थी। अब ऐसे में हिंदी की किताबें कितनी बिक रही है इसका अंदाज़ा मैं ठीक -ठीक लगा नही पा रही।
हाँ, कुल मिला कर यह कह सकती हूँ कि किसी की इक्षा के विरुद्ध उसकी किताब को छापना ग़लत है। और यह भी कि अगर कोई अपने काम की जानकारी लेना चाहता है तो थोड़ी देर से ही सही पर उसे जबाब तो मिलना ही चाहिए।
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