Wednesday 1 March 2023

प्रेम का महीना !

 “Love each other or perish.”

यह कथन है , “डब्लू एच ऑडेन” की लेकिन इसे पहली बार मैंने जाना,  tuesdays with morrie” किताब को पढ़ कर। तब से यह लाइन मन में घर कर गयी। 

महरौली में तब डेरा था। भाई-भईया के साथ साकेत पीवीआर में सिनेमा देखने गई थी। फ़िल्म के बाद मोमोज़ ऑर्डर हुए ही थे कि मेरी नज़र वहीं थोड़ी दूर पर लगे बुक स्टॉल पर गई, ‘150 रुपए में दो किताब।’ मैं आई के साथ मैं गई और दो किताबें ले आयी। 

पहली किताब मेरी जानकारी की, “द हंगरी टाइड” दिख गई पर दूसरी कौन सी लूँ, समझ ना आए। ऐसे में दुकानदार ने एक किताब देते हुए कहा, “मैडम, मेरे कहने से यह ले जाइए।” 

लड़के की तरफ़ देख कर मैंने पूछा , “आपने पढ़ी है ?”  

अरे मैडम, “हम तो ग्राहक के डिमांड से समझ जाते है कि कौन सी किताब कैसी है” और वह मुस्कुरा उठा। साथ ही बोला- आप ले जाइए इसे, नहीं पसंद आए तो दो दिन में बदल ले जाइएगा पर किताब नई जैसी चाहिए। 

मैंने हँसते हुए रुपए उसकी तरफ़ बढ़ाया, कहा- “आप बिना MBA किए मार्केटिंग के गुण जानते हैं।” 

वह किताब , “ tuesdays with morrie ” थी। बाद के दिनों में मैं कुछ एक बार उस स्टॉल पर गई। वही डेढ़ सौ में दो किताब ले आती। भाई मेरा मज़ाक़ उड़ाता कि सौ-डेढ़ सौ की किताब के फेर में 80 रुपए ऑटो का लगा देती है। पर उसे कौन समझाए कि मैं एक उम्मीद से जाती थी। उम्मीद यह कि, मेरा ऑटो का भाड़ा बर्बाद नहीं होगा।  अगर मेरी पसंद की किताब नहीं भी मिली तो वह लड़का ज़रूर कोई अच्छी बुक मुझे सुझाएगा। 

तब कितनी सहजता से लोगो पर विश्वास हो जाता। कभी किसी को यह नहीं कहा- तुम क्या हो ? तुम क्यों सलाह दे रहे हो ? 

यह शायद कुछ परवरिश थी तो कुछ ग़ालिब के उस शेर का असर, “हर एक बात पे कहते हो की तुम कि तू क्या है…” आज भी कोई बात बुरी लगी तो जबाब चुप्पी होती है।

वैसे ग़ालिब के समय में ही एक और शायर हुए, “हैदर अली  आतिश ” उनका कहना है , 

 “दोस्त हो जब दुश्मन-ए-जाँ तो क्या मालूम हो

आदमी को किस तरह अपनी कज़ा मालूम हो।” 

इनकी जन्मतिथि-पुण्यतिथि मालूम तो नहीं पर ऐसा लगता है कि इनका भी फरवरी से कोई सम्बन्ध होगा।  वैसे आदमी को कुछ मालूम हो या ना हो पर यह ज़रूर मालूम होना चाहिए कि, “ दुख और एकांत किसके साथ बाँटना है।” 

हम बात से भटक रहें हैं पर क्या करें, यह जो फ़रवरी, प्रेम का महीना है, वह जाने वाली है। इसी महीनें में ग़ालिब दुनिया से विदा हुए तो जगजीत सिंह आए। प्यार को समझाने वाले ऑडेन इसी 21 तारीख़ को जन्म लिए और आज फिर साकेत जाने का मन हुआ… बहुत सी किताबें पढ़नी बाक़ी है… दुनिया की समझ बाक़ी है।  

नोट- आज ग़ालिब के साथ आतिश को मिलाया है। ग़ालिब पर नसीरुद्दीन शाह की एक बहुत अच्छी सीरियल है। ना देखी हो तो ज़रूर देखें।



किताब की दुकान !


इन दिनों पुस्तक मेला, किताबों, दोस्तों,  पाठक और सेल्फ़ी के बीच लेखकों को देखती हूँ तो जाने क्यों यह खयाल दिमाग़ में आता है, “पुराना कोट पहनें और नई किताब खरीदें” 

अब पुराना कोट और नई किताब पर हर किसी का अपना मत हो सकता है। वैसे किताबों की दुनिया विशाल है…पर एक दो नए कोट तो होने ही चाहिए। पुराने कोट से मुझे नोचनी होने लगती है…

तो चलिए,  मैं पुरानी किताबें(नई जैसी) ख़रीदिए वाली जगह पर ले कर चलती हूँ। जगह यानि इस दुकान का नाम ‘गुडविल स्टोर’ है। यह एक नॉन प्रॉफ़िटेब संस्था द्वारा चलाई जाती है। इस स्टोर की कमाई का हिस्सा अयोग्य को योग्य बनाने के काम जाता है। मसलन किसी शारीरिक विकलांगता, पढ़ाई पूरी ना होना, किसी नशे आदि से मुक्ति के बाद नया जीवन शुरू करने की चाहत आदि-आदि जैसे व्यक्तियों को इस संस्था द्वारा काम मिलता है। 

गुडविल स्टोर के बारे में पहली बार मुझे जानकारी तब हुई जब टेक्सस(ह्युस्टन) से न्यू जर्सी मूव हो रही थी। घर के कुछ सामान जो थोड़े ख़राब हो गए थे, उन्हें यहाँ डोनेट करने को एक मित्र ने बताया। पहली बार यहाँ डोनेशन को गई तो डायरेक्ट सामने वाली गेट से भीतर चली गई पर वहाँ तो देखा बाक़ायदा एक छोटा सा सुपर मार्केट बना हुआ था। मैं चौंक गई। काउंटर पर जाकर पूछताछ की तो मालूम हुआ कि आप यहाँ से समान भी ख़रीद सकते है और वह भी काफी कम क़ीमत पर। डोनेशन वाली चीज़ें ही ठीक और साफ़  करके बेची जाती है। जैसे दिल्ली का सरोजनी या लाजपतनगर का मार्केट। बाक़ी डोनेशन के लिए बैक डोर पर जाना होता है। 

अच्छी बात यह कि आपको डोनेशन के बदले एक स्लिप मिलती है। इसमें आपकी दी हुई चीज़ों की क़ीमत आंकी जाती है। और उतनी क़ीमत का आप टैक्स में छूट पा सकते हैं। 

यह सब जानकारी लेने के बाद मैं स्टोर का एक चक्कर लगाने लगी। यहाँ कपड़े-जूते से लेकर घर के समान, बच्चों के खिलौने और किताबों के साथ मूवीज़ के कैसेट भी बहुत कम क़ीमत पर मिल रहे थे। किताबों का सेक्शन देख कर तो मेरा मन खुश हो गया। जो किताबें बार्नेस एंड नोबल, अमेजन या दूसरे बुक स्टोर पर $15-20 में मिलती वह यहाँ सिर्फ़ $1.99- 2.99 की। और किताबें भी नई सी। हाँ, यह है कि किताबों की संख्या थोड़ी कम होती है और हर बार आपकी पसंद की किताब नहीं मिलती। 

न्यू जर्सी के प्रिंसटन में यह स्ट्रोर दूर था घर से, वही हाल फिलिडेल्फिया और कनेक्टिकट में पर जब से इंडियाना मूव हुई यहाँ जाना फिर से शुरू हो गया।  कारण यह कि यहाँ यह स्टोर “पटेल ब्रदर्स( किराना दुकान) के बगल में ही है। पर कोरोना ने वह भी सिलसिला तोड़ दिया।