“Love each other or perish.”
यह कथन है , “डब्लू एच ऑडेन” की लेकिन इसे पहली बार मैंने जाना, “ tuesdays with morrie” किताब को पढ़ कर। तब से यह लाइन मन में घर कर गयी।
महरौली में तब डेरा था। भाई-भईया के साथ साकेत पीवीआर में सिनेमा देखने गई थी। फ़िल्म के बाद मोमोज़ ऑर्डर हुए ही थे कि मेरी नज़र वहीं थोड़ी दूर पर लगे बुक स्टॉल पर गई, ‘150 रुपए में दो किताब।’ मैं आई के साथ मैं गई और दो किताबें ले आयी।
पहली किताब मेरी जानकारी की, “द हंगरी टाइड” दिख गई पर दूसरी कौन सी लूँ, समझ ना आए। ऐसे में दुकानदार ने एक किताब देते हुए कहा, “मैडम, मेरे कहने से यह ले जाइए।”
लड़के की तरफ़ देख कर मैंने पूछा , “आपने पढ़ी है ?”
अरे मैडम, “हम तो ग्राहक के डिमांड से समझ जाते है कि कौन सी किताब कैसी है” और वह मुस्कुरा उठा। साथ ही बोला- आप ले जाइए इसे, नहीं पसंद आए तो दो दिन में बदल ले जाइएगा पर किताब नई जैसी चाहिए।
मैंने हँसते हुए रुपए उसकी तरफ़ बढ़ाया, कहा- “आप बिना MBA किए मार्केटिंग के गुण जानते हैं।”
वह किताब , “ tuesdays with morrie ” थी। बाद के दिनों में मैं कुछ एक बार उस स्टॉल पर गई। वही डेढ़ सौ में दो किताब ले आती। भाई मेरा मज़ाक़ उड़ाता कि सौ-डेढ़ सौ की किताब के फेर में 80 रुपए ऑटो का लगा देती है। पर उसे कौन समझाए कि मैं एक उम्मीद से जाती थी। उम्मीद यह कि, मेरा ऑटो का भाड़ा बर्बाद नहीं होगा। अगर मेरी पसंद की किताब नहीं भी मिली तो वह लड़का ज़रूर कोई अच्छी बुक मुझे सुझाएगा।
तब कितनी सहजता से लोगो पर विश्वास हो जाता। कभी किसी को यह नहीं कहा- तुम क्या हो ? तुम क्यों सलाह दे रहे हो ?
यह शायद कुछ परवरिश थी तो कुछ ग़ालिब के उस शेर का असर, “हर एक बात पे कहते हो की तुम कि तू क्या है…” आज भी कोई बात बुरी लगी तो जबाब चुप्पी होती है।
वैसे ग़ालिब के समय में ही एक और शायर हुए, “हैदर अली आतिश ” उनका कहना है ,
“दोस्त हो जब दुश्मन-ए-जाँ तो क्या मालूम हो
आदमी को किस तरह अपनी कज़ा मालूम हो।”
इनकी जन्मतिथि-पुण्यतिथि मालूम तो नहीं पर ऐसा लगता है कि इनका भी फरवरी से कोई सम्बन्ध होगा। वैसे आदमी को कुछ मालूम हो या ना हो पर यह ज़रूर मालूम होना चाहिए कि, “ दुख और एकांत किसके साथ बाँटना है।”
हम बात से भटक रहें हैं पर क्या करें, यह जो फ़रवरी, प्रेम का महीना है, वह जाने वाली है। इसी महीनें में ग़ालिब दुनिया से विदा हुए तो जगजीत सिंह आए। प्यार को समझाने वाले ऑडेन इसी 21 तारीख़ को जन्म लिए और आज फिर साकेत जाने का मन हुआ… बहुत सी किताबें पढ़नी बाक़ी है… दुनिया की समझ बाक़ी है।
नोट- आज ग़ालिब के साथ आतिश को मिलाया है। ग़ालिब पर नसीरुद्दीन शाह की एक बहुत अच्छी सीरियल है। ना देखी हो तो ज़रूर देखें।
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