6 सितंबर 2023 को कृष्णाअष्टमी थी। कृष्ण भजन के साथ जाने कब ऑटो प्ले से, “ होली खेलने को चले कन्हाई…” बजने लगा। मेरे साथी ने टोका भी, “आज होली नहीं, जन्माष्टमी है तपस्या।”
मुस्कुरा कर मैंने कहा- “कुछ भी है, कृष्ण तो हैं।”
राग देश में ‘मालिनी राजूरकर’ जी की आवाज़ में मेरे घर में गूंज रही थी…और इधर मुझ अनजान को यह ख़बर तक ना थी कि आज ही मालिनी जी इस दुनिया को विदा कर गई…
शायद उन्हें मालूम हो कि झट से किसी की मौत पर तपस्या कुछ व्यक्त नहीं कर पाती चाहे वह कितना भी प्रिय हो। मुझे इस दुःख- दुविधा से बचाने के लिए चुपचाप दुनिया को विदा कर देना है…
सादगी और कला को समर्पित एक बेहद उम्दा कलाकार जाते-जाते अपनी स्वर की कृति हम नादानों के लिए छोड़ गई और साथ ही दान कर गई अपना शरीर हैदराबाद के उस्मानिया मेडिकल कॉलेज को।
मैंने कई बार इनके बारे में लिखा है और हर बार मुझे भारत सरकार से इस बात की नाराज़गी रही की उन्हें कोई सम्मान भारत सरकार की तरफ़ से नहीं मिला जबकि उनके स्तर के कलाकार कम ही होते हैं।
सरकार की क्या ही दुहाई दूँ, मैं ख़ुद इनके प्रति कहाँ पूरी तरह सुध में थी…जब मन किया इन्हें सुन लिया, मिलने की आस लगा रखी पर कभी कोई प्रयास ही नहीं किया मिलने का… इतनी बेख़बर या बुरी हूँ कि मुझे इनकी मृत्यु की जानकारी 3 महीने बाद मिली…
जबकि यह वह मालिनी राजूरकर रही, जिनकी संगीत की लिस्ट मेरी हिंदुस्तानी संगीत की प्ले लिस्ट में सबसे ऊपर है। ऐसा कभी नहीं होता जो महीने-दो महीने में मैं इन्हें ना सुन लूँ। हद तो यह कि मैंने दुर्गा पूजा के नव दिनों में भी इनकी गायी, “दुर्गा माता दयानी देवी” सुनी और तब भी यह ख़बर ना मिली।
बेख़बर, बेसुध, मैं दिवाली की सफ़ाई के साथ सुन रही थी, “ अब तो कहूँ ना जा रे, ये पिया मोरा…” और इसी के साथ याद आया सुनने को , “ काहे अब तुम आए हो मेरे द्वारे…”
यु ट्यूब कई बार प्ले लिस्ट से गानो को जाने क्यों हटा देता है और खीजती मैं, सर्च करने लगे मालिनी राजूरकर , राग केदार। मुझे तभी यह ख़बर दिखी और मैं चौंक गई… तीन महीनें बीत गए …
ग्लानि इतनी की शब्दों में बता नहीं सकती… आँखें नम थी और मैं यूँ ही जाने क्या-क्या सोचने लगी सब काम छोड़ कर…
शायद इसे ही कहते है, कोई तुम्हारे बीच से चुपचाप उठ कर चला गया और तुम्हें ख़बर भी नहीं हुई…
कैसी प्रेमी रही तुम तपस्या…
मुझे माफ़ कर दें, मालिनी राजूरकर जी।
मुझे विश्वास है आप दूसरी दुनिया में भी अपनी सादगी और संगीत को समर्पित होंगी। गन्धर्वों के बीच होकर भी किसी कोने में अपने टप्पा से सबको मोहित कर रही होंगी। गा रही होंगी मुझे देख कर अपनी प्यारी सी हँसी के साथ,
“ऐसा तो मोरा सइयाँ निपट अनाड़ी भये”
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