दोस्तों पिछले यात्रा के किस्से में मैंने आपलोग को अपने भाई के( मार्क्सवादी) दोस्तों से मिलवाया।अब महंगाई और अपने रास्ते ढूढंते दो और लोगो से मिलने की बारी है।तो यात्रा शुरू होती है।रात को शतेश के भाई के रूम पर पहुँच कर हमने खाना खाया।थोड़ी बात -चीत के बाद सोने की तैयारी शुरू हुई।मेरा भाई और शतेश के भाई तो बेड पे पहुँचते ही सो गए।बस हमदोनो ही रतजगा करते रहे।कारण पता नही , जेटलैग था ,गर्मी थी ,नई जगह थी या घर पहुँचने की ख़ुशी थी।रात भर हमदोनो छत पर घूमते ,बैठते ,बतियाते रह गए।सुबह होने का इंतज़ार था।सोच रहे थे कब शतेश के भाई या मेरा भाई जगे ? पिछले दो सालो में तो हमदोनो की बाते ही ख़त्म होगी थी।बस वही घिसी -पीटी बाते रीपीट हो रही थी।वो तो अच्छा था ,फ़ोन बंद था ,वरना मैं इस कोने तो शतेश दूसरे कोने।बेडा गरक हो इस टेक्नोलॉजी का और स्मार्ट फ़ोन का।सबका भला किया हो।पर पति -पत्नी को भाई बहन बना दिया है :)गर्ल फ्रेंड और बॉयफ्रेंड की दौड़ से जो आगे निकल आये है ,उन युवा के लिए तो बस टाइम काटने का साधन हो गया है, टेक्नोलॉजी और फ़ोन।प्रेम भरे मैसेज तो अब आते नही।पति और पत्नी बन जाने के बाद तो टेलीफोनिक रोमांस फुर्र हो जाता है।बस फ़ोन से ही रोमांस होता रहता है।फेसबुक ,ट्वीटर ,वॉटसअप और एक ही न्यूज़ को दस भिन्न -भिन्न चैनेल पे पढ़ते रहे।भिन्न चैनेल पे न्यूज़ पढ़ने का फायदा तो तब हो ,जब न्यूज़ ही बदल जाया करे।मसलन "पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोदी जी" हो जाए और "भारत के नवाज शरीफ़ जी " :)ओबामा जी बिहार के मुख्यमंत्री बन जाए।फिर मजा आता अरे वाह टेक्नोलॉजी तो कमाल की है।खैर सुबह के 6 बजे तक ना मेरा भाई जगा ना शतेश का।फिर हमने सोचा चलो चाय ही बनाते है।रसोई में गई तो दूध नही था।शतेश को 100 रूपये देते हुए बोली ,दूध ,ब्रेड और बिस्कुट लेते आइये।शतेश बाबू मॉर्निंग वॉक का बखान करते हुए दूध लेने चले गए।थोड़ी देर में मुँह लटकाये आये।आते ही बोले आरे यार हद हो गई महँगाई की।100 रूपये में सिर्फ एक लीटर दूध और एक पैकेट ब्रेड मिला।दूकानदार से बोला बाकी के पैसे तो बोला ,भाई साहब हो गया पूरा हिसाब।मैं उनके चेहरे और महँगाई का गान सुनकर हँसे जा रही थी।कारण अब तक जो इंसान रात भर मुझे इंडिया के बारे में गुणगान कर रहा था।वही अभी इसकी बुराई कर रहा था।पासपोर्ट लेने के बाद हमलोग शॉपिंग करने गए।वहां भी वही हाल।साड़ी -कपड़ो के दाम हमारी सोच से आगे जा चुके थे।महँगाई का आलम ये दिखा की ,एक डोसा 120 रूपये का ,बनाना शेक 80 रूपये का और तो और पानी भी 30 रूपये का।ये सब देख के हमदोनो थोड़े परेशान थे।सोचने लगे दो साल में इतनी महँगाई।कैसे जी रहे है कम कमाने वाले या मजदुर लोग ?अमेरीका में तो दो सालो में ना दूध का दाम बढ़ा ना पानी का।खाने -पीने के चीज़ो के दाम वही है ,जो दो साल पहले था।शायद यही था शाइनिंग इंडिया।पर एक ख़ुशी भी हुई ,अब लोग कमाने के साथ खर्च भी कर रहे है।एक समय वो था ,जब एक पीढ़ी ने सिर्फ कमाने और बचाने में सारी जिंदगी गुजार दी।शॉपिंग के बीच हमलोग मेरे भाई के दोस्त गर्वित और ईशान से मिले।एक तो गर्मी दूसरी भूख लगी थी।हमलोग ने सोचा खाते हुए बात -चीत होगी तो ठीक रहेगा।हमलोग पिण्ड बलूची पहुंचे।खाना आर्डर किया और बाते शुरू।गर्वित आई आई टी छोड़ चार्टड अकाउंटेंट का कोर्स कर रहा है।ईशान फुटबॉल कोच है।शतेश थोड़े गर्वित की बातो से सहमत नही थे।उन्हें लग रहा था ,इतना होनहार लड़का अपने भविष्य को लेकर ऐसा बेफिक्र क्यों है ? क्यों आई आई टी छोड़ी क्यों चार्टेड अकाउंटेंट बन रहा है ? पर मुझे ख़ुशी थी कि ,कम से कम वो अपने जीवन से सीख रहा है।खुद को ढूंढ़ रहा है।समाज से डर नही रहा।ना की मेरी तरह पैसे और समाज के लिए बैंक में नौकरी की।अपनी ख़ुशी के लिए पार्ट टाइम शनिवार और रविवार को एनजीओ में काम किया।अपनी ख़ुशी को पार्ट टाइम बना देना कौन सा तोप का काम है ? मुझे मालूम था ,समाज सेवा ,किताबे पढ़ना या लिखना ही मेरी ख़ुशी है।फिर भी इधर -उधर भटकती रही।कारण साफ़ था समाज का डर ,या खुद का मैरेज प्रोफाइल बनाना।जॉब कर रही है लड़की ,अच्छा लड़का मिल जायेगा।बात तो थोड़ी सही है।पर कुछ लोग शतेश की तरह भी होते है।जिन्होंने मेरी बैंकिंग प्रोफाइल की वजह से नही,मेरे एनजीओ के काम और मेरी सोच की वजह से शादी की।तो डरिये नही कुछ अलग करना चाहते है, तो जरूर कीजिए।खुद को ढूँढना बुरी बात नही है।मुझे बहुत अच्छा लगा गर्वित और ईशान से मिल कर।शायद इसलिए भी कि ,उनमे कहीं ना कही मेरा अतीत दिखा था।उन दोनों से विदा लेने का समय था।गर्वित ने मुझे बहुमूल्य गिफ्ट दिया।वो था "अ पोर्ट्रेट ऑफ़ द आर्टिस्ट एज अ यंग मैन "जेम्स जॉयस द्वारा लिखी किताब।धन्यवाद गर्वित।
Tuesday, 27 October 2015
Monday, 19 October 2015
KHATTI-MITHI: भाई ,उसके दोस्त और मार्क्सवादी !!!
KHATTI-MITHI: भाई ,उसके दोस्त और मार्क्सवादी !!!: हमारी यात्रा का अगला दिन शुरू होता है।मैं ,शतेश वीसा स्टाम्पिंग के लिए दिल्ली में रुके थे।वीसा स्टाम्पिंग के प्रॉसेस के साथ दोस्तों से मिलन...
भाई ,उसके दोस्त और मार्क्सवादी !!!
हमारी यात्रा का अगला दिन शुरू होता है।मैं ,शतेश वीसा स्टाम्पिंग के लिए दिल्ली में रुके थे।वीसा स्टाम्पिंग के प्रॉसेस के साथ दोस्तों से मिलना -जुलना भी जारी रहा।फिंगर प्रिंटिंग के बाद हमें अपने एक फैमिली फ्रेंड निक्की और आशीष से मिलना था।भाई भी अपने कुछ दोस्तों से हमे मिलाना चाह रहा था।या यूँ कह ले काफी दिन बाद दिल्ली आया था।तो उसे भी अपने दोस्तों से मिलना था।उसने सोचा होगा एक साथ दोनों मसले निपट जायेगे।दीदी भी गुस्सा नही होगी और दोस्तों से मुलाकात भी हो जाएगी।वजह तो वही बेहतर बता सकता है ,पर मुझे उसके दोस्तों से मिल कर बहुत ख़ुशी हुई।कही ना कही उन्हें समझने की कोशिश करती हुई ,आत्म संतुष्टि का अनुभव कर रही थी।वरना ये दो साल मैंने कैसे -कैसे कल्पनाओ में काटे है ,ये मुझसे बेहतर कोई नही समझ सकता।ये भी हो सकता है ,भाई मेरी चिंता को कही ना कही समझ रहा था।इसलिए अपने दोस्तों से मुझे मिलवा रहा था।मैक्डॉनल्स में बैठी हुई मैं ,उस वक़्त दो तरह की नई युवा पीढ़ी को देख रही थी ,सुन रही थी और समझ रही थी।एक तरफ आशीष ,निक्की ,शतेश ,साकेत जी दूसरी तरफ मेरा भाई ,दीपक जी ,विष्णु जी और अनुराग जी।विष्णु जी ? अरे भाई मैंने किसी भगवान का नाम नही लिखा।ये एक व्यक्ति है।जिनका पेशा बँसी बजाना या सहस्त्र रानियों के बावजूद सिर्फ लक्ष्मी से पैर दबवाना नही।हाँ चक्र चलाने जैसा कलम चलाना जरूर है।संयोग से सिर्फ नाम एक जैसे है।अब इसपे बवाल मत कीजियेगा।की हिम्मत कैसे हुई हमारे विष्णु जी को मेक्डॉनल्स में बैठे हुए कहने की ? जाने वहाँ गौ मांस बिकता हो ?विष्णु जी तो गाय के सेवक थे।सच्चाई तो मालूम नही पर ऐसा मैंने भी अपनी आँखों से देखा है।महाभारत या कृष्णा सीरियल में।सचाई तो साक्षी महाराज या कोई गोभक्त ही बता सकते है।कारण वे ही सिर्फ हिन्दू है।भगवान से उनका डायरेक्ट सम्बन्ध है।देखो फिर मैं मुद्दे से भटक गई।तो विष्णु जी और अनुराग जी बैठे हुए थे।मैं इन दोनों ग्रुप की डरेर पर थी।दोनों तरफ की बाते सुन रही थी।देख रही थी ,कही एक ग्रुप गरीब बच्चो के भविष्य की सोच रहा था , तो दूसरा ग्रुप कहाँ फ्लैट या जमीन लिया जाय सोच रहा था।एक ग्रुप साधारण कपड़ो में।अपने खुशियो को छोड़ भारत की राजनीती, अपनी "कीमती सोच " से सवारने की कोशिश में लगा है ,तो दूसरा ग्रुप "माइकल कोर की पर्स ","कीमती घडी" ,"सगाई के ख़ुशी" में झूम रहा है।एक ग्रुप को लग रहा था की दूसरे ग्रुप के युवा पढ़े -लिखे होने के वावजूद अपना भविष्य अंधकारमय कर रहे है।तो वही दूसरे ग्रुप को लग रहा था ,की पढ़ -लीखकर आप सिर्फ पैसे छाप रहे है।मेरी कोशिश यही थी कि ,दोनों ग्रुप को समान इम्पोर्टेंस मिले। क्यों ? अरे भाई सारा मामला तो इम्पोर्टेंस और पद लोभ ही है ना।खैर भाई के दोस्त मेरे भी भाई सरीखे।उनसे भी मैं अपनेपन जैसी बात -चीत करने लगी।वैसे भी गंभीर मैं सिर्फ अपने सोच या पढ़ने /लिखने के वक़्त ही होती हूँ।इसी बीच थोड़ी मार्क्सवाद की चर्चा होने लगी।मेरे देवर (पति के छोटे भाई ) को लगा मेरे भाई और उनके दोस्तों की सोच मार्क्सवादी है।शतेश, आशीष और निक्की बातो में व्यस्त थे।इधर सिर्फ विष्णु जी नाम का फायदा लेते हुए , सारे महाभारत का सिर्फ मज़ा ले रहे थे।बाकी जन मेरे देवर पर बातो के विरोध के साथ टूट पड़े थे। आपलोगो से अनुरोध है ,बस मुझे इस गौ हत्या से बचाइयेगा।ये ना पूछियेगा कौन दल पांडव और कौन सा दल कौरव था।लो यहां भी गौ माता आ गई।तो चलिए कृप्या पढ़ते समय गौ की जगह मनुष्य हत्या जोड़ लीजियेगा।खैर थोड़ा माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश में दीपक जी को मैं चुप रहने को कहती हूँ।पर भाई जानकार लोगो की भी एक ख़ासियत होती है।जबतक सारा ज्ञान पिला ना दे ,रुकते ही नही :) मामले को देखते हुए , मैं मजाक में दीपक जी को भागने को कहती हूँ।ये दुहाई देते हुए की मेरा तलाक ना करवाये।मेरा भाई भी स्थिति को समझते हुए ,बातो को नया मोड़ देता है।हो सकता हो उस वक़्त भाई के बुद्धिजीवी दोस्त मुझे ,डरपोक या साधारण लड़की समझ रहे हो(जो की मैं हूँ :)।उन्हें ये भी लग रहा हो ,कहाँ उज्जवल भाई कहाँ तपस्या दीदी।पर कभी -कभी अपनों से हारने का मजा ही कुछ और होता है।जरुरी नही हर वक़्त या हर व्यक्ति के सामने आपनी बुद्धिमता प्रदर्शित की जाय।अपने देवर को अकेले देखते हुए ,उस वक़्त मुझे माँ की सीख याद आई।सुखी व्याहिक जीवन का राज पति के घरवालो को अपना बना लेना है।वरना पति दो पाटो में पिसेगा और साथ में तुम भी।मैंने आपको भी व्याहिक जीवन का टॉनिक दे दिया।अगर व्यवाहिक है तो ,समय अनुसार लेते रहे।साथ ही अलग -अलग तरह के लोगो से मिलते रहिए ,उन्हें सुनिए ,उनको समझिए।और ख़बरदार जो किसी को "मार्क्सवादी" कहा।कहने के पहले कृपया "मार्क्स " की किताबो को जरूर पढ़े।अपने देवर को तो मैंने दीपक ,अनुराग जी से बचा लिया रिश्ते की दुहाई दे।पर आपको तो खुद बचना है इस नए " हिन्दु " स्तान से !!
Tuesday, 13 October 2015
KHATTI-MITHI: बस बदली थी ,तस्वीरें !!!
KHATTI-MITHI: बस बदली थी ,तस्वीरें !!!: सभी दोस्तों शुभचिंतको को मेरा नमस्कार ,प्रणाम एवम प्यार। सबसे पहले आप सभी को नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएँ। माता दुर्गा से प्रार्थना है ,कि व...
बस बदली थी ,तस्वीरें !!!
सभी दोस्तों शुभचिंतको को मेरा नमस्कार ,प्रणाम एवम प्यार। सबसे पहले आप सभी को नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएँ। माता दुर्गा से प्रार्थना है ,कि विश्व में हर जगह भाईचारा और शांति बनी रहे।हर किसी को भोजन ,स्वाथ्य और शिक्षा मिले।ओह !मैं तो भूल गई भाईचारे के लिए तो मुझे " माँ दुर्गा " की जगह " गाय माता " से प्रार्थना करनी होगी।गाय माता सच में आप ही हमारी माँ हो ,तभी तो हमारा जानवर जाग रहा है।खैर चलिए ,इसपर फिर कभी।एक विराम के बाद फिर से लिखाई शुरू करती हूँ।मुझे इस बात की ख़ुशी है की, मेरे " पचासवें ब्लॉग " की लिखाई ,मेरे भारत यात्रा की स्मृति है।कहाँ से शुरू करू ,क्या -क्या बताऊँ ? बहुत सारी बातें है।तो चलिए पहले ये बताती हूँ, मेरी यात्रा कैसी रही ? मेरी भारत यात्रा किसी रोलरकोस्टर जैसी रही।कभी खुशी तो कभी डर तो कभी मज़ा।वीजा स्टाम्पिंग से लेकर ,भाई के दोस्तों से मिलना ,शॉपिंग ,भागमभाग ,गर्मी ,एडवेंचर , महँगाई ,राजनीती ,डर , डेंगू ,लोगो के सवाल ,दर्शन और आने का दुःख सबका समावेश रहा।एक बार फिर मुझे ये लिखते हुए बहुत संतोष हो रहा है ,कि मैं भारत की रहने वाली हूँ।भारत वो देश है जिसमे आप कम समय में भी जीवन के सारे रंग देख सकते है।आह वो दिल्ली का एयरपोर्ट।बाहर निकलते ही पे -पो ,लोगो का हो हल्ला।मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि ,सच में मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर हूँ।इसका कारण बार -बार हमारी यात्रा का टल जाना था।फ्लाइट से बाहर आने तक ना जाने मेरे दिल -दिमाग ने मेरी कितनी सारी पुरानी यादें ताज़ा कर दी।ये भी तय कर दिया था , क्या -क्या करना है ? कहाँ जाना है ? किनसे मिलना है।ऐसा लग रहा था ,इन दो सालो की भरपाई इन इक्कीस दिनों में करनी है। फ्लाइट के लैंड होते ही ,मेरे दिल की धड़कने क्यों बढ़ गई थी मालूम नही ? मैंने शतेश से पूछा आप इतने आराम से क्यों है ? आपको कुछ नही हो रहा ? मेरी खुशी देख शतेश हँसे जा रहे थे।बोले इतने दिनों बाद आई हो ,इसलिए ऐसा लग रहा है।बाद में आदत सी हो जाएगी।सामान लेना और इमिग्रेशन से बाहर आने के बाद मैं अपनी कमजोर आँखों से भीड़ में अपने भाई (चुलबुल )को ढूंढने लगी।शतेश से पूछती हूँ आपको मेरा भाई कही दिख रहा है ? शतेश बोले हाँ वो रहा सामने। तुमने लेंस क्यों नही लगाई :) यूनाइटेड इंडिया की फ्लाइट रात 9 :30 पर पहुंची थी।उस पर एयरपोर्ट के बाहर रिसीव करने वाले लोगो की लाइन।आँखों में अपने से मिलने की तड़प और उन्ही आँखों का जुल्म एक साथ दिखा मुझे उस वक़्त।भाई ने मुझे इधर -उधर देखता देख ,हाथ हिलाया।भगवान उसको देख कर पता नही मुझे क्या हुआ ? सारा सामान छोड़ -छाड़ कर दौड़कर भागी उसकी तरफ।दोनों एक दूसरे के गले लग जोर -जोर से रोने लगे।हम दोनों को आस -पास के लोगो की कोई खबर ना थी।बस था तो बीते सालों से आँखों में छिपे हमारे आँसू।जो बहे जा रहे थे।पीछे से सारा -सामान शतेश जैसे- तैसे लेके पहुँचे।पास आकर बोले अरे दोनों चुप हो जाओ सब लोग देख रहे है।पर हमें कहाँ किसी की परवाह थी।शतेश के भाई भी आये थे।मेरे पर्स को मुझे देते हुए बोले भाभी मैं भी आया हूँ।चलिए महराज घर चल के आराम से आपलोग रोईयेगा।मैं थोड़ा झेप गई।उनसे भी हाल -चाल पूछा।शतेश मेरे भाई से कहते है ,मैं भी दो साल बाद आया हूँ यार, मुझेसे भी मिल लो।अब झेंपने की बारी मेरे भाई की थी ;) शतेश के भाई ने कैब बुक किया था।कैब वाला एयरपोर्ट पर ही कही और हमारा इंतज़ार कर रहा था।उसको कॉल करके डायरेक्शन देने और सही जगह बुलाने में 20 /25 मिनट लग गए।जबकि वो हमसे ज्यादा दूर नही था।शतेश के भाई कैब वाले से खीजते हुए कहते है ,अरे यार कब से तुम्हे रास्ता बता रहा था।पहली बार आये हो क्या ? वो कहता है हाँ।मैं 3 -4 रोज पहले ही राजस्थान से दिल्ली आया हूँ।मुझे दिल्ली का पूरा रास्ता मालूम हो गया है।पर एयरपोर्ट पहली बार आया हूँ :) शतेश और उनके भाई कैब में सामान रख ही रहे थे ,कि दो लोग मिल कर हमारा सामान रखने लगे।मुझे लगा कैब वाले का दोस्त या वर्कर होगा,मदद कर रहा है।तभी देखा शतेश उनको पैसे दे रहे थे।मैंने गाड़ी में बैठते ही पूछा आपने उनको पैसे क्यों दिए ? मेरा भाई बोला ये उनका काम है ,बिना पूछे सामान गाड़ी में रख देना ,और पैसे मांगना।ऐसे ही उनका जीवन चलता है। मैंने कहा अगर नही दिया तो ? तो कुछ नही थोड़ा बहस होगा और क्या ?खैर हमलोग बाते करते ,पी -पा ,धूल ,उमस ,ट्रैफिक का मजा लेते हुए जा रहे थे।बातों में शतेश बोले ,तुम्हे एयरपोर्ट पर भागते और रोते देख पीछे से लोग कह रहे थे ,होता है होता है ,लोग इमोशनल हो जाते है।शतेश हँसते हुए कहते है ,मैं क्या कहता उनलोगो को कि ,जिसकी आप बात कर रहे है ,वो मेरी ही पत्नी है।हमलोग हँस पड़े।ट्रैफिक में फँसे हमारी नज़र बस और ऑटो पर गई।लगभग हर बस और ऑटो पर अरविन्द केजरीवाल का पोस्टर देख ,शतेश ने मेरे भाई से सवाल -जवाब शुरू कर दिए।मैं इनसबसे ऊपर खिड़की से बाहर देखती जा रही थी।रास्ते में वसंतकुंज के पास एक हॉटेल दिखा जहाँ मैं और भाई एक सगाई में गए थे।भाई के साथ उसकी यादें ताजा करती हुई खुश हो रही थी।भाई पूछता है ,कैसा लग रहा इतने दिनों बाद भारत आके।खुश होकर मैं कहती हूँ ,बहुत अच्छा।पहली नज़र में तो कुछ नही बदला था।वही सड़के ,वही भीड़ ,वही ट्रैफिक जाम ,वही बिजली के तार झुके हुए,वही मेरा भाई।बस बदली थी " तस्वीरें " शीला दीक्षित की जगह केजरीवाल , मनमोहन सिंह की जगह नरेंद्र मोदी और नटखट चुलबुल की जगह दाढ़ी वाला चुलबुल।
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