Wednesday, 18 November 2015

राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!

राग दरबारी किसी किताब का नाम है ,ये मुझे एक साल पहले ही मालूम हुआ।हुआ यूँ मैंने अमिताभ घोष ,अरुंधति रॉय ,अरविंद अडिगा ,झुम्पा लहरी ,मनिल सूरी ,खुशवंत सिंह ,अमिस जी "की लिखी कुछ किताबे पढ़ी। इन भारतीय लेखको द्वारा लिखी कुछ बेहतरीन अंग्रेजी की किताबे है।मन में एक ख़्याल आया क्या प्रेमचंद्र के सिवा हिंदी की और किताबे भी होंगी जो पढ़नी चाहिए ? हिंदी किताबो के बारे में मेरा ठीक वैसा ही विचार था ,जैसा इंग्लिश नॉवेल के बारे में हिंदी प्रेमियों को होता है।उन्होंने इंग्लिश की एक -आध किताब पढ़ ली और उसे पॉर्न किताब का नाम दे दिया।वैसे ही मैंने कई बार पुणे से घर जाते रेलवेस्ट्शन या फिर किसी बुक स्टॉल पर हिंदी की कुछ किताबे देखी।मैंने उन्हें आदर से शॉफ्ट पॉर्न का ख़िताब दिया।सभ्यता या शर्म की वजह से कभी खरीदने की हिम्मत नही हुई।हाँ घर में उपलब्ध मसलन सरिता और दो पन्नो की राजनीती के लिए ली हुई सरस सलिल कभी - कभार पढ़ी जरूर।इन दो पत्रिकाओ से लगा हिंदी में कुछ है ही नही पढ़ने को।खैर जब इन भारतीय लेखको की इंग्लिश नॉवेल पढ़ी ,तो सोचा इनमे से किसी ने  तो हिंदी में कुछ लिखा होगा।बस गूगलिंग शुरू।निराशा हाथ लगी।पर गूगल भईया की मदद से कुछ बेहतरीन हिंदी के लेखको को जानने का मौका मिला।धन्यवाद गूगल भईया,आप मुझे हर तरह से मदद करते है।कभी एक माँ के रूप में खाना पकाने में ,तो कभी एक भाई के रूप में हर समस्या का समाधान देने में।माफ़ कीजियेगा पति के रूप में तुलना नही कर सकती।कारण पति मेरे हर सुख- दुःख मेरे साथ है ,मेरे पास है।आपकी कृपा से मुझे कुछ हिंदी की बेहतरीन किताबो के नाम मालूम हुए।मैंने आपकी मदद से ऑनलाइन खरीदने की कोशिस भी की।पर दुःख की बात ये हुई कि हिंदी किताबो के दाम डॉलर में कुछ ज्यादा ही थे।मैंने इंडियन ऑनलाइन साइट का सहारा लिया और इंडिया में ही किताबे आर्डर कर दी।बात शुरू हुई राग दरबारी से तो मुझे इस किताब का शीर्षक ही सुरीला लगा।अब तक मुझे राग दरबारी एक "हिंदुस्तानी राग " का नाम है, यही मालूम था।इस राग को सुर सम्राट "तानसेन जी" ने अकबर के दरबार में गया था पहली बार।तभी से इस राग का नाम  राग दरबारी पड़ा।इसे राग को रात्रि के पहर सुना जाता है।प्यार और ख़ुशी को व्यक्त करता ये राग,अब आपकी मर्जी जब चाहे सुन सकते है।हिंदी फिल्मो के काफी गाने राग दरबारी पर बने है। मुझे जो पसंद है वो "बाहों के दरमियाँ "या "आपकी नज़रो ने समझा"।राग दरबारी से ज्यादा मुझे यमन ,भैरवी ,पीलू पसंद है।रागों के बारे में फिर कभी लिखूंगी।फिलहाल बारी अभी राग दरबारी किताब की।ये किताब हिंदी की एक बेहतरीन व्यंग कथा।जो व्यंग ना होके समाज का सच्चा आईना है।ये किताब 1968 में श्री लाल शुक्ला जी ने लिखी थी।मुझे आश्चर्य है की 1968 से 2015 तक कुछ नही बदला।या फिर शुक्ला जी को मालूम था ,चाहे 47 साल बीते या 100 साल।ये कथा हर साल दर साल लागू होती रहेगी।गबन ,धोखाधड़ी ,भ्रष्टाचार ,वंशवाद ,राजनीती अपनी जड़े और साल दर साल मजबूत करते जायेंगे।हमजैसे लोग या तो रंगनाथ या गयादीन बनकर रह जाते है।कहानी एक गाँव की है ,पर लगता है ये कहानी हर जगह व्याप्त है।कही छोटे अस्तर पर तो कही बड़े।अगर आप राजनेता बनना चाहते है तो ,एक बार आप इस किताब को जरूर पढ़े।वैध जी या प्रिंसपल साहब से आप बहुत कुछ सीख सकते है।किताब पढ़ने के बाद आपको वैध जी की राजनीती अच्छी ना लगे।पर क्या करे उनका नुस्खा पहले क्या आज भी मार्केट में अपनी जगह बनाये हुए है।कभी -कभी किताब आपको उबाऊ भी लगती है।पर वो क्या है ना हर सीधी -सच्ची चीज़ एक अंतराल के बाद उबाऊ हो जाती है।फिर भी बहुत सी चीज़े है ,जो आप इस किताब से सीख सकते है।मुझे ऐसा लगता है शुक्ला जी किताबो के धर्म गुरु या योग गुरु रहे होंगे।जिन्हे मालुम था ये सब्जेक्ट कभी फेल नही होगा।पर शीर्षक राग दरबारी क्यों ? वैसे  मैंने कही पढ़ा था ,राग दरबारी सुनने वालो को नींद की बीमारी या मानसिक बीमारी में बहुत लाभ मिलता।शायद यही वजह हो शीर्षक का या फिर उनका राग प्रेम।किताब पढ़ के आप खुद ही निर्णय ले।

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