माफ़ करना दोस्तों यात्रा को बीच में रोक कर मुझे राजनीतिक दंगल में कूदना पड़ रहा है।मुझे राजनीती की कुछ खास समझ नही।बस एक आम आदमी की तोर पर अपनी कुछ भावनाओ का लीपापोती कर रही हूँ।मुझे आश्चर्य है ,कितने मेरे दोस्त जो महीनो से मेरा हाल -चाल तक नही पूछा अचानक उनको मेरी याद आ गई।कोटि -कोटि नमन बिहार भूमि।कोटि -कोटि नमन लालू जी।आपसे कोई नाता ना होने के बावजूद ताने और गालियों का आनंद ले रही हूँ।पर खुशी से मिला जुला दुःख भी है, कि लोगो ने याद तो किया।ये आजकल के बुद्धिजीवी लोगो की दया दृस्टी है।उनकी कृपा है की वो भारत के हर राज्य को अपना समझते है।बिहार को अपना प्यार देने के लिए आप सब का बहुत -बहुत धन्यवाद।बिहारियों को गालियाँ देने , ताना देने के लिए और भी दिल से धन्यवाद।वो क्या है ना बिहार और उससे थोड़े बेहतर उत्तरप्रदेश के लोगो को गाली की आदत है।लोग हमें जातिवादी कह रहे है ,गवार कह रहे है।तो भईया जातिवादी तो है हम।हमारे खून में ही है जाति।बड़ी ख़ुशी की बात है ,आप जाति को नही मानते।तो इसी बात पर दिवाली की खुशियाँ मनाइये,पाकिस्तान में नही अपने देश में पटाके फोडिये।दिवाली की दिन किसी डोम या चमार से अपनी लक्ष्मी का पूजन करवाइये।मान लीजिये डोम पढ़ा लिखा ना हो , मंत्र -तंत्र नही जनता हो ,तो किसी लोहार ,सोनार राजपूत या मुसलमान को ही बुला लीजिये।जबतक धर्म से जाति नही जाती तबतक राजनीती से निकलना मुझे तो मुश्किल लगता है।रही चुनाव में हमारी बेवकूफी की बात तो हाँ हम बेवकूफ है।हमलोग आपसी प्रेम के बदले जातिगत दंगे वाला विकास नही झेल सकते।हम विकास के नाम पर उन अल्पसंख्यको को खून के आंसू नही रुला सकते।हमारे घर के मर्द दूसरे राज्यों में कमाने जाये तो जाये ,लेकिन हमारे घर के बच्चे , बूढ़े और महिलाये तो चैन से रह सके।हम धीरे -धीरे खुद अपना विकास करेंगे।कुछ बिहार के बुद्धिजीवी युवा इसको पलायन से जोड़ रहे है। अरे भाइयो किसने आपको रोक है।आप बिहार में भी रहकर 15 /20 हज़ार की नौकरी पा सकते है।पर आपको तो चाहिए आई बी एम ,कॉग्निजेंट ,इनफ़ोसिस या फिर मिक्रोसोफ़्ट।आप तो पलायन की बाते ना ही करे।ये निचले गरीब तबके कहे तो शोभा भी देता है।मुझे ऐसा लगता है बुद्धिजीवी वर्ग के लिए सोशल मिडिया ने उनकी बुद्धिता पास सर्टिफिकेट के लिए बना दिया।देश की किसी भी समस्या का समाधान ये हो हल्ला या कभी हिंदी गाली तो कभी अंग्रेजी गाली से कर सकते है।अंग्रेजी वालो की गाली शहद में लिपटी नीम के पत्तो जैसी होती है।ये लोग ज्ञानी नही महाज्ञानी ,सर्वोत्तम ज्ञानी की श्रेणी में आते है।भाई हमें मालूम है आप ज्ञानी हो।तो क्यों ना ये बेकार का बुरा - भला छोड़ ,थोड़ी अपनी सुख सुबिधा छोड़ बिहार जाए।अपने ज्ञान का प्रयोग विकल्प बनाने में करे।अपने लाखो की नौकरी छोड़ एक नए विकल्प बनाये।बिहार ही क्यों किसी और राज्य को सुधारना चाहते हो तो वही चले जाए।वरना इस बेकार की गालबाजी में कुछ रखा नही है।वो कहावत है ना ,जाके पैर फाटे ना बेवाई वो क्या जाने पीर पराई।वोट देने वाली जनता कही की भी हो उसका काम वोट देकर सबकुछ भगवान पर छोड़ना है।कही कोई सही विकल्प ही नही है।विचार बहुत जरुरी है ,पर उसकी- अपनी सीमा होनी चाहिए।वरना हर जगह नीतीश और लालू तो है ही।मेरे कुछ शुभ चिंतक सोच रहे होंगे अंत में इसने गवारों वाली बात कर ही दी।तो भईया बड़े बुलंद आवाज में और कैपिटल लेटर में "हाँ है हम गवार"।वो कहते है न क्यों गवार के मुँह लगना ?अपना तो इज्जत लेगा ही तुम्हरा भी नही छोड़ेगा।इसे अनुरोध समझे वरना फिर कहियेगा देखा जंगलराज शुरू हो गया !!!
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