Monday, 23 November 2015

चलो घर चलते है !!!

छुन्नू लाल मिश्रा जी द्वारा गया भजन "कइसे सजन घर जइबे  हो रामा समझ ना आवे।प्रेम नेम कछू जानत नहीं ,साईं के कइसे रिझबे हो रामा समझ ना आवे।कइसे सजन घर जइबे हो रामा समझ ना आवे"।कबीर का ये भजन भक्ति- भाव के संदर्भ में है, पर कही ना कही आज से दो साल पहले मेरे मन की दशा थी।ये दशा प्रेम ,नए परिवेश का डर, अपनों से बिछोह का दुःख सबका मिश्रण था।दो साल के बाद आज फिर से मैं ससुराल जा रही हूँ ,पर आज मन की भावनायें कुछ अलग थी।कबीर की ही भाषा में "मन का भ्रम मन ही थे भागा ,सहज रूप हरि खेलन लागा"।रही बात प्रेम की तो "नयनन की करि कोठरी ,पुतली पलंग बिछाय।पलकन की चिक डारिकै पिय कूँ लियौ रिझाय"।और इन दो सालो में ससुराल को कुछ ऐसा जाना जैसे "हम वासी उस देश के ,जहां बारह मास बसंत ,नीझर झरै महा अमी ,भीजत है सब संत।खैर कबीर मोह से बाहर आते हुए मैं अपनी बिहार यात्रा शुरू करती हूँ।छपरा स्टेशन पर हमारी ट्रैन रात को 1 :30 पर पहुँची।मेरे ससुर जी (शतेश के पिता ) रेलवे के डाक बिभाग में काम करते है।इस विभाग में 24 घंटे काम चलते रहते है।आप अपनी सुबिधा के अनुसार दिन या रात की ड्यूटी चुन सकते है।हाँ रात में काम करने का एक फायदा है कि ,आपको अगले दिन और रात दोनों की छुट्टी मिल जाती है।मतलब सप्ताह में 3 /4 दिन का ही काम करना होगा।मेरे ससुर जी को ये ऑप्शन ज्यादा पसंद है ,इसलिए उन्होंने रात की ही ड्यूटी चुनी है।उनके अनुसार ऐसे घर के काम मसलन खेती गृहस्ती को भी समय मिल जाता है।उस दिन भी उनकी ड्यूटी थी।ऐसे तो ससुर जी घर से ट्रैन या बस से छपरा आते थे ड्यूटी के लिए।पर जब भी घर के किसी सदस्य के आने की बारी होती तो वो घर से गाड़ी और ड्राइवर के साथ आते।स्टेशन पहुँचते उनका फ़ोन आया।कहाँ हो तुमलोग ? शतेश उनको बोले आप वेटिंग रूम के पास रुकिए हमलोग पहुँचते है।पापा मुझे देखते ही बोले "सब केउ मोटा जाई लेकिन तपस्या ना।ई त जइसन गइल रहे वइसन ही आयल बिया।मैंने कहा पापा ई त ख़ुशी के बात बा न की हम बदलनी ना।पापा हँस पड़े।सामान के साथ मुझे मच्छरों के बीच वेटिंग रूम में बिठा कर, पापा मेरे भाई और शतेश के साथ बाहर चले गए।थोड़ी देर में शतेश और भाई आये ,बोले पापा वापस ड्यूटी पर गए।कह रहे थे अभी थोड़ी रात है तो 3 :30 तक निकलते है।दोनों थोड़ी देर बैठे पर गर्मी और मच्छरों ने इलेक्शन कैंपिंग चालू की थी ,कि कौन बाजी मरता है।दोनों मुझसे बोले चलो बाहर बैठते है।बाहर थोड़ी हवा चल रही है।पर मैंने आदर्श बहू का फर्ज निभाते हुए बोला तुम दोनों जाओ।पापा का ऑफिस पास है ,उनके दोस्त या कोई स्टाफ देखेगा तो क्या कहेगा ?दोनों निरमोही।मुझे मच्छरों के बीच छोड़ कर भाग चले।मेरी आँखे वेटिंग रूम का मुआयना करने लगी और हाथ पैर मच्छर भगाओ आन्दोलन में लग गए।वेटिंग रूम में दो और परिवार थे।जिन्होंने इकलौते सीलिंग फैन के नीचे अपना चादर डाल दिया था।एक परिवार में सिर्फ माँ और 4 /5 का बच्चा सो रहा था।माँ बीच -बीच में बच्चे को बाँस के पँखे से भी हवा कर रही थी।पंखे के नीचे होने पर भी उनलोगो को उस मंद गति पंखा का हवा नही लग रह था।उस माँ को देख कर लगा सच में माँ को नींद में भी अपने बच्चो की चिंता होती है।मेरा अच्छा था ,पसीने से कपडा भींग गया था ,और थोड़े से भी हवा से दो पल के राहत जैसा कुछ लग रहा था।पता नही सच था या छलावा।दूसरा परिवार जिसमे पति -पत्नी एक छोटा बच्चा।जो अभी बैठ या खड़ा नही हो पा रहा था।शायद एक साल या उससे छोटा हो ,और बच्चे की दादी।तीनो मिल कर बच्चे को खड़ा करने की कोशिश में लगे थे।थोड़ी देर बाद बच्चे की दादी उसे तेल मालिस करने लगी।उसके पिता ने कपडे बदला।माँ रात के ढाई बजे बच्चे को पाउडर ,काजल से संवारने में लग गई।बच्चा रोने लगा।मैं भी तब से ये देख कर परेशान हो रही थी।एक तो गर्मी ऊपर से बच्चे के ऊपर होते अत्याचार ने मुझे दुखी कर दिया था।बच्चे ने मेरे मन के भाव को समझा और जोर -जोर से चिल्लना शुरू किया।बच्चे की माँ उसे गोद में लेकर दिवाल की तरफ मुड़ गई।उसे दूध पिलाने की कोशिस करती रही ,पर बच्चा नही ,अब तुम सहो मेरा अत्याचार।उसके पिता उसे बाहर घुमाने ले गए।तबी उनकी माता जी मेरी तरफ देख कर बोली गर्मी के कारण परेशान है बच्चा।मैंने मुस्कुरा कर लगभग हाँ जैसा ही कुछ भाव प्रकट किया।मन में तो ये चल रहा था ,माता जी गर्मी ने नही आपलोग ने बच्चे को परेशान किया है।अच्छा -भला खेल रहा था।नही आपको तो मालिश करनी है ,उसपर पाउडर ,टिका ,काजल सब पोतना है।कौन देख रहा आधी रात को जो इसे राजकुमार बना रही थी।पर इसका एक फायदा भी हुआ पुरे वेटिंग रूम में जोंसन बेबी पॉउडर की खुशबू  फैल गई।मैं आँखे मूँदे खुशबू का मजा ले रही थी।इसी बीच थोड़ी आँख भी लग गई थी।थोड़ी देर बाद भाई और शतेश आये और बोले चलो घर चलते है। 

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