Friday, 18 March 2016

KHATTI-MITHI: मोरे कान्हा जो आये पलट के ,अबकी होली मै खेलूँगी डट...

KHATTI-MITHI: मोरे कान्हा जो आये पलट के ,अबकी होली मै खेलूँगी डट...: प्रिय दोस्तों , आप सबको होली की रँगीन बधाइयाँ।आपका जीवन रंगो से भरा रहे। विषय :-बुरा ना मानो होली है ! दोस्तों , आप सबके सामने मै एक बा...

मोरे कान्हा जो आये पलट के ,अबकी होली मै खेलूँगी डट के !!!

प्रिय दोस्तों ,
आप सबको होली की रँगीन बधाइयाँ।आपका जीवन रंगो से भरा रहे।
विषय :-बुरा ना मानो होली है !
दोस्तों ,
आप सबके सामने मै एक बात कुबूल कर रही हूँ ,कि मै आलसी हूँ।पर इस बार मेरे ब्लॉग की देरी की वजह मेरा आलस नही।मेरा नया ठिकाना है।मै और शतेश न्यू जर्सी से डलास मूव हुए है।इनसब के बीच थोड़ी भागमभाग हो गई।मन भी थोड़ा उदास था।नए जगह की ख़ुशी कही ना कही पुराने जगह का मोह भी साथ ले आई।शतेश के दोस्तों के साथ कब ये समय निकल गया, मालूम ही नही चला।सोचती हूँ ,पहले मायका छूटा ,फिर ससुराल।इसबार तो स्नेह से बने घर और रिश्ते भी छूट रहे थे।मै वैसे ही इंडिया से आने के बाद उदास थी।डलास आना मेरी उदासी दुगना कर गई।न्यू जर्सी में मैंने बहुत खूबसूरत पल गुजारे।खूबसूरत रिश्ते मिले ,अच्छे दोस्त मिले ,प्यारे बच्चो की बुआ बनी।ऐसा लगता था ,जैसे घर से दूर ही नही थी।सबसे ज्यादा मुझे प्रवीण भईया ,विवेक भईया और मेरे आरव की याद आयेगी।आने के बाद जिस दिन प्रवीण भईया से बात हुई ,मै खूब रोई।शतेश बोले भेज दूँ प्रवीण भाई के पास तुम्हे ?पर क्या है ना सारा प्यार एक तरफ पति का प्यार एक तरफ।बुरा ना  मानो होली है :) प्रवीण भईया और विवेक भईया की नोक -झोक।आरव का मुझसे लिपटना ,पस्या आँटी कहना ,मेरे साथ खेलना सब बहुत याद आयेगा।भाई माहौल अभी इमोशनल हो रहा है।थोड़ा ख़ुशी के रँग भरते है।मेरे आने के एक दिन पहले मै शतेश के दोस्त अवधेश के यहां रुकी थी।ये वही "वर्मा जी" है ,जिनके यहाँ मेरी मुलाकात शतेश के सारे दोस्तों से हुई।नीचे के फ्लैट में बिहार की ही मेरी दोस्त प्रियंका रहती है।मैंने सोचा जाने से पहले उससे भी मिल लिया जाय।बाहर थोड़ी धूप थी ,तो हमदोनों धुप खाते हुए बातें करने लगे।बातो के बीच समय का पता ही नही चला।समय का पता तब लगा ,जब उसका बच्चा आ के बोलता है ,ममा भूख लगी है। मुझसे बात करने के चक्कर में उसने खाना ही नही बनाया था।बोली बेटा रुक जा खिचड़ी पका देती हूँ :) इसी बीच उसके पतिदेव भी जॉगिंग करके वापस आगये थे।वो उसके बगल से गुजरे और उसे खबर भी ना लगी।मुझसे करीब आधे घंटे बाद बोलती है ,कितना जॉगिंग कर रहे है ,आज मेरे पतिदेव।मैंने बोला  बहन वो आ चुके है।हमदोनों की हँसी निकल पड़ी।मैंने उससे बिदा लिया।वापस रूम में आ कर "वैली ऑफ़ सैंटस "(कश्मीरी मूवी) उसके दिए हुए रसगुल्लों को खाते हुए देखने लगी।इतने दिनों इधर -उधर रही।आपलोगो के मैसेज मिले।कुछ पूछते की खट्टी -मिट्ठी क्यों सुना पड़ा है ?कई लोग मझे सलाह भी देते है कि, अबकी बार इस टॉपिक पे लिखना।कुछ को मेरी यात्रा के रंग देखने है ,तो कुछ को होली के रंग चाहिए।किसी को बिहारी लोगो की शादी के बारे में जानना है।भाई मेरे शादी तो शादी होती है।कैसे भी करवा लो।नाच -गाना ,खाना -पीना के साथ दो जाननेवाले या फिर दो अनजान लोगो को एक साथ बाँध दो।उसके बाद में उनका तो बजना चालू रहेगा :P  बस रस्में थोड़ी अलग होती है।यार मैंने शादी की रश्मो के बारे में लिखा है।गलती से उन दो लोगो के बीच माने दूल्हा -दुल्हन की रश्म मत समझ लीजियेगा।ये तो अलग -अलग केस में वैरी करता है कि, दोनों कैसे बजते है :P शादी और यात्रा की कहनी बाद में लिखूंगी।वैसे मेरे एक दोस्त ने मुझे "साइलेंट प्यार " के बारे में  भी लिखने को कहा।ये भी एक दिलचस्प टॉपिक है।जल्द ही इसपर लिखूंगी।बहुत अच्छा लगता है जब लोग सलाह देते है।पर अभी मौका भी है दस्तूर भी तो ,माफ़ी चाहूँगी।होली का त्यौहार है तो, होली पे ही लिखती हूँ।मुझे बहुत पसंद है होली।भाई से दिल्ली में लड़ -लड़ के रंग खेलती थी।मौसम भी कुछ अलग ही होता है ,इस वक़्त।कही पतझड़ तो कही आम के पेड़ पर मोजर लगे पड़े।कभी गर्मी तो कभी गुलाबी ठंढक।ऐसे में रँग खेलने के बाद उसे छुड़ाने का मजा ही कुछ और है।रँग से भीगे ,काँपते हुए हाथो से चेहरे को मले जा रहे है।साथ में कुछ गालियाँ भी कि ,किस कमीने ने हरा रँग या पेंट लगा दिया।घर पर तो होली का जोश एक दो सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाता।आज की तरह ,हर्बल होली या फैशनेबल होली भी नही होती थी।ऐसा भी नही कि बिल्कुल सफ़ेद अच्छे कपडे में होली खेलना है।होली के टाइम तो सफ़ेद कपड़ो को छुपा दिया जाता था ,की गंदे ना हो।माँ की सख्त हिदायत होती पुराने कपडे पहन लो,तेल मल लो।कपडे ख़राब भी हुए तो कोई बात नही।बिहार की होली मतलब गोबर,पानी ,कीचड़ ,धूल और इनके बीच रँग।साथ में लोगो के ऊपर भाँग और दारू का नशा।करीब 10 साल से बिहार की होली नही देखी।हर साल होली पर मन बेचैन होता है कि ,काश घर पर होती।इस मौसम में मन ऐसे ही बेचैन रहता है।पता नही क्यों ? शायद इसलिए भी बिहार में कहते है ,"का भाई फगुनहट लागल बा का हो" :) सुबह रँगो से भींगना तो शाम को अबीर से नहाना साथ में पुआ (बिहारी स्पेशल ) की बात ही कुछ और है।मैंने कभी जोगीरा नही सुना ,पर भाई के आँखों से देखा है ,कि कैसे होता है जोगीरा।प्रायः गाँव में जोगीरा,होरी ,चैता गया जाता था होला में।अभी भी कही -कही होता है।कुछ लोग ग्रुप बनाकर ढोलक -झाल लिए एक सुर में " खेले मसान में होरी दिगम्बर हो या जोगीरा सारा -रा -रा "मस्त होकर गाते है।पर अब होली के जोगीरा की जगह डीजे वाले बाबू ने ले ली है।वैसे एक बात का रहस्य आज भी मुझे समझ नही आया ,भौजी के साथ होली खेलने का क्या कनेक्शन है ?:) माने ऐसे ही पूछे है ,बुरा ना मनो होली है।वैसे तो होली पर एक से बढ़कर एक गाने,ठुमरी बने है।पर सच मानो तो होली पर मुझे "लम्हे" मूवी का एक गीत बड़ा सटीक लगता है।"मुझे छेड़ो ना नन्द के लाला कि, मै हूँ बृजबाला नहीं मैं राधा तेरी"।हा -हा -हा उ का है कि ,होली में सब खुद को कृष्ण और सामने वाली को राधा समझ बैठते है :) खैर ये उनका दोष नही होली के रँगो का है।एक और बात है ,काहे हर गाने में बलम ही पिचकारी मारते है ? रँग बरसता है ,तो केवल चुनरवाली ही भींगती है ? प्रेमिका को बहुत तंग करने वाले गीत बने है ,होली को लेकर।पर रुक तो जाइये हुज़ूर कुछ गाने है,जो प्रेमिका को भी समझते है :) जइसे "अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मोरा घूँघट ,पलट के दूँगी आज तुम्हे गाली रे ,मोहे समझो ना तुम भोली -भाली रे "सुन लीजियेगा।सच में इस गाने की नायिका को देख आप सच में हिम्मत हार जायेंगे :)
आपलोगो को रँग नही पाने का मलाल तो है ,पर शब्दों से रँगने की एक छोटी सी कोशिश की है।साथ ही मेरे  प्रिय गानों की लिस्ट में से एक गाना होली की शुभकामनाओं के साथ।
आपकी तपस्या !
  

Wednesday, 9 March 2016

KHATTI-MITHI: 8 मार्च और मै !!!!

KHATTI-MITHI: 8 मार्च और मै !!!!: 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।लगभग हर किसी ने कुछ ना कुछ लिखा या शेयर किया।मैंने सोचा लोगो को एक दिन तो महिला का बखान कर लेने दे।मै कल ह...

8 मार्च और मै !!!!

8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।लगभग हर किसी ने कुछ ना कुछ लिखा या शेयर किया।मैंने सोचा लोगो को एक दिन तो महिला का बखान कर लेने दे।मै कल ही कुछ लिखूँगी।कल के बाद तो कोई न्यूज़ या होली का त्योहार मार्किट में आ ही जायेगा।वैसे 8 मार्च को एक और घटना घटी।वो था "श्रीमती श्यामा चौबे" एवम "स्वर्गीय ब्रजेश कुमार चौबे " जी को पुत्री रत्न की प्राप्ति।अर्थात मेरा जन्म हुआ।ये एक मात्र संयोग ही है कि ,मेरा जन्म 8 मार्च को हुआ।वैसे मेरा जन्म अगर अगस्त 6 को (हिरोशिमा पर बम गिरा ) या फिर दिसम्बर 6 (बाबरी कांड ) को होता। या फिर हिंदी कैलेंडर के हिसाब से नागपंचमी या रावण वध के दिन होता ,तो भी मेरी पहचान एक महिला के ही रूप में ही होती। 8 मार्च का मेरे महिला होने या ससक्त होने से कोई सम्बन्ध नही है।हाँ मेरी माँ का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ था।पर वो बिना 8 मार्च का महत्त्व समझे ही ससक्त थी ,और आज भी है।उसे कहाँ मालुम होगा कि मेरी बेटी का जन्म , महिला दिवस के दिन हुआ है।वो भी अंतरराष्ट्रीय।बिना कुछ जाने ही "श्यामा" एक बेटी के जन्म पर खुशी से पागल हुए जा रही थी।कुछ लोगो का कहना था ,14 साल के इंतज़ार के बाद भी भगवान बेटी देलन।बेटी के जनम पर मिठाई और डॉक्टर को साडी क्यो देना? पर श्यामा और ब्रजेश के लिए ना कोई बेटी का इंतज़ार था ना बेटे का।उन्हें बस एक बच्चा चाहिए था।जो मेरे रूप में उन्हें मिला।तो उन्होंने दिल खोल के खर्च किया।जिनको जो कहना था कहते रहे।इतने बरसो की तपस्या का फल मै थी।तो नाम ही "तपस्या " रख दिया। कुछ लोगो ने कहा अजीब नाम है।पर मेरे पिता के मृत्यु के बाद मेरी माँ ने मेरा नाम नही बदला।दादा जी "कांग्रेस पार्टी" के भक्त थे ,तो उन्होंने "प्रियंका" नाम दे दिया।जब तक जीवित रहे वो और दादी प्रियंका ही कहते रहे।वही मौसी ने "लवली" नाम रख दिया।जो ज्यादा प्रचलित हुआ।माने की पुकार का नाम (निकनेम ). जन्म से थोड़ा आगे आती हूँ।जब मै बड़ी हो रही थी ,तबतक मुझे महिला ससक्तिकरण का "म " भी नही मालूम था।मुझे मालूम ही नही था की ,महिला को भी मजबूत बनाया जा सकता है।हँसी आ रही है महिला ससक्तिकरण के विचार से।महिला को मजबूत बनाओ।उनके पैरो पर खड़ा करो।उनको उड़ने दो।अत्याचार ना सहने दो।भाई और बहनो ,सखा और सखियों ,चाचा और चाचीयो महिला कोई दिवार नही जो ,अम्बुजा सीमेंट से मजबूत बनायेंगे।हर इंसान यहाँ तक जानवर भी अपने ही पैरो पर खड़ा होता है।कभी देखा है किसी महिला को ,सिर उसका और धड़ किसी और का ? मै मॉर्डन आर्ट की बात नही कर रही।कभी कोई इंसान उड़ता है क्या ? जो महिलाये उड़े ?रही बात अत्याचार की तो ,तुम करो नही हम सहेंगे नही।आपलोगो को नही लगता "अंतरास्ट्रीय इंसान दिवस" मनाना चाहिए।जिसको जरुरत हो वही ससक्त बने।चाहे वो महिला हो ,पुरुष हो ,बुज़ुर्ग हो ,बच्चे हो।किसी को कमजोर जता के ससक्त कभी नही बना सकते।मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता था।जिन्होंने बेटे की चाह में 9 बेटियाँ पैदा कर दी।यहाँ अंकल को ही ससक्त होना चाहिए था।पर क्या करे वंश कैसे बढ़ेगा ?हाँ उन्होंने ने अपनी बच्चियों को मारा नही।पर उन्हें बेटी का होना जताते रहे।क्या सिर्फ वंश की लालच में या बुढ़ापे की लाठी के रूप में आपको बेटा चाहिए ?तो माफ़ कीजिए इस युग में आप बिलकुल गलत है।श्रवण कुमार सिर्फ एक ही थे।उनकी तुलना करके बेटे का भी बोझ मत बढाइये।वैसे भी बागवान फिल्म ने आपलोगो को बहुत कुछ सीखा दिया है।रही वंश की बात तो क्या आपको आपके दादा के दादा का नाम मालूम है ? फिर किस वंश का लालच।इसका एक ही उपाय है।अपना नाम "चन्द्रगुप्त" रख ले।बच्चो फिर उनके बच्चो का नाम चन्द्रगुप्त 1 से लेकर जहाँ तक चले चलाइये।बात नारी ससक्तिकरण की है तो ,एक बहुत ही दिलचस्प वाक्या शेयर कर रही हूँ -2010 की बात है।मै और मेरी दोस्त सबनम ऑफिस से घर आ रहे थे।शाम को 7: 30 बज रहे होंगे।बस स्टॉप से हमें ऑटो लेना होता था ,मेहरौली जाने के लिए।हमलोग ऑटो का इंतज़ार कर रहे थे।कुछ दूर पर एक आदमी एक औरत को मारे जा रहा था।मैंने सबनम को बोला चल देखते है ,हुआ क्या है ?औरत चिल्ला रही है।सब देखते हुए भी गुजर रहे है।सबनम बोली रहने दे ना ,घर चलते है ? वैसे ही ट्रैफिक की वजह से लेट हो गए है ,अबु (सबनम के पापा ) गुस्सा हो जायेंगे।मैंने कहा तुझे चलना है तो चल नही तो मैं जा रही हूँ।वो वही खड़ी रही।मै उस आदमी और औरत के पास गई।मैंने पूछा क्यों मार रहे हो इसे ? वो बोला तुम्हे इससे मतलब ? और एक लात उस औरत को मारी।मैंने देखा वो औरत प्रेगनेंट थी।बार -बार मार खा कर नीचे बैठ गई थी।उससे उठा नही जा रहा था।मुझे बहुत गुस्सा आया।मैंने उस आदमी को बोला मारना बंद करो।उसने कहा तू क्या इसकी बहन लगती है ?क्या कर लेगी ? औरत रोये जा रही थी।मैंने बोला रुको नही तो पुलिस को फोन कर दूँगी।आपको मालूम है उस आदमी का क्या जवाब था ? बोला देख लो मेरा मोबाइल ,मेरी बीबी है।उस औरत की फोटो दिखाने लगा।बोला मै जो चाहू करू इसके साथ।तुम्हे क्या ? थोड़ी देर तक मेरा बहस सुन कर , सबनम मुझे समझाने आई बोली छोड़ ना चलते है।मैंने कहा अब तो मै पुलिस को कॉल करुँगी।इतना सुनते ही सबनम बोली यार मै जाती हूँ।तुझे जो करना है कर ,अबु मुझे मार डालेंगे।वो चली गई। मैंने 100 नंबर डायल किया।मेरी खुशकिस्मती  संयोग से फोन नही लगा।मुझे समझ नही आया क्या करु ? मेरा चचेरा भाई दिल्ली एयरफोर्स में पोस्टेड था।मैंने उसे कॉल लगाया।उसका कॉल बिजी था।मैंने बिजी नंबर पर झूठमुठ ही बोलना शुरू किया।हैलो पुलिस स्टेशन यहाँ साकेत बस स्टॉप के पास एक आदमी एक औरत को मार रहा है ,जल्दी पहुँचे।आदमी ने पुलिस के कॉल को सच समझा।मुझे इस बार आप कहते हुए बोला।आप क्या जानती हो क्यों मार रहा हूँ इसे ? बस में एक लड़के को देखे जा रही थी ,तो मार नही खायेगी ? इतना कह कर आदमी जमीन पर पडी पत्नी को छोड आगे जाने लगा।मै हैरान कि अब क्या करू ?पुलिस तो आनी नही थी।तबतक मेरे भाई और चचरे भाई के कॉल पर कॉल और मै कॉल कट कर रही थी।औरत हिम्मत करके उठी बोली -जाने दो दीदी पुलिस का चक्कर मत करो।मेरा मर्द छोड़ देगा तो मै क्या करुँगी ? मुझे ये डर कि कही ये साथ चलने को ना कह दे।पर वो खुद लड़खड़ाते हुए अपने पति के पीछे जाने लगी।मेरी साँस में साँस आई।मैंने ऑटो लिया कि फिर से चचरे भाई का कॉल आ गया।पूछा फ़ोन क्यों किया था ,और कट क्यों कर रही थी ? मैंने उसे सारी कहानी बताई।उसने मुझे डाँटा,फिर समझया।मेरे भाई को भी कॉल कर दिया।भाई भी गुस्सा हो गया। उसने मुझे समझया कि तुम कुछ गलत नही किया पर लोग पागल होते है।तुम वहाँ अकेली हो अभी।मै भी घर आया हूँ।कुछ हो गया तो।अगले दिन मुझे उस रास्ते से ऑफिस ना जाने की सलाह दी गई।पर मै तो मै हूँ।शाम को फिर भाई का फोन आया कि मै ठीक से घर तो पहुँच गई ? आज तो वो आदमी नही मिल था ? तो कहानी का सार ये कि, यहाँ पर मुझे या फिर उस  मार खाती महिला या फिर सबनम को खुद समझना होगा ,कि हमे क्या करना चाहिए।ना की किसी की मदद करके मेरे जैसा डर जाना की ,पुलिस ना आई तो ,या फिर किसी सुन्दर इंसान को देखने की वजह से पिटना या फिर अबु के डर से भाग जाना।हमें किसी चीज़ से आजादी या कोई विशेष अधिकार मत दो।हमें आपने सोच को जीने दो।हम खुद ससक्त हो जायेंगे।अगर ससक्तिकरण का दूसरा संदर्भ महिला के जॉब या शारीरिक दुर्बलता से है ,तो माफ़ कीजियेगा मैंने कई ऐसी महिलाओ को देखा है ,जो सिर्फ शादी या परिवार के लिए जॉब कर रही है।जबकि उनकी रूचि कही और है।वही कमजोर काया हमारी सृस्टी का देन है।हमे प्रकृति बदलने का शौख नही।बस भर पेट खाना दे दिया करे।बहुत हुआ अब ज्ञान बाकी तो जो है सो है ही।जाते -जाते मेरे जन्मदिन के कुछ गिफ्ट की तस्वीर।काहे की अंत भला तो सब भला।धन्यवाद चुलबुल ,शतेश ,रोहिलखण्ड ग्रुप और सभी शुभचिंतकको का।@धन्यवाद माँ तुमने कभी मुझे सक्त बनाने की कोशिस नही की।मेरी सोच को रोका नही और एक दुस्ट भाई दोस्त के रुप मे दिया। 

Friday, 4 March 2016

KHATTI-MITHI: पाँच बातों का ज्ञान !!!!

KHATTI-MITHI: पाँच बातों का ज्ञान !!!!: दोस्तों आप सब को मेरा नमस्कार ,आदाब , प्रणाम एवम स्नेह ! पहले तो मेरे उन सभी दोस्तों और प्यारे बच्चो से माफ़ी।जिनको मैं अपनी व्यस्ता की वजह ...

पाँच बातों का ज्ञान !!!!

दोस्तों आप सब को मेरा नमस्कार ,आदाब , प्रणाम एवम स्नेह ! पहले तो मेरे उन सभी दोस्तों और प्यारे बच्चो से माफ़ी।जिनको मैं अपनी व्यस्ता की वजह से, जन्मदिन या फिर शादी की सालगिरह की शुभकामनाएँ नही दे पाई।व्यस्तता कहे या शादी की मौज -मस्ती या फिर घरवालो -दोस्तों से बतियाना।समय का पता ही नही चलता था।पर अच्छा हुआ, इन दिनों मुझे  "पाँच"  बातो का ज्ञान प्राप्त हुआ।पहली ये कि - फोन या तो बहुत व्यस्त लोगो के काम की चीज़ या फिर आशिक लोगो के लिए।दूसरा ज्ञान - इन्टरनेट एकांतवासी ,ज्ञानी ,समीक्षक या फिर बेकार लोगो के लिए है।रुकिए -रुकिए आप लोगो से नम्र निवेदन है ,अभी की लाइन में से ज्ञानी और समीक्षक खुद समझे बाकी की उपमा मेरे लिए है।क्या करे लिखना पड़ता है ये सब।कौन जाने किसको कौन सी बात बुरी लग जाए।काहे कि है तो हम "हिन्दुस्तानी " .तीसरा ज्ञान  - क्यों ना हम "हिन्दुस्तान" का नाम "नौटंकीस्तान" रख दे ? अरे ! खबरदार गुस्ताख़ लड़की ,देशद्रोही  हिम्मत कैसे हुई ये लिखने की ? पर इसमें गलत क्या लिखा है ? हिन्दुस्तान में रोज की नौटंकी ,हो -हल्ला को देख कर ही तो ऐसा विचार आया।माफ़ी चाहूँगी मुझे देशद्रोही ना समझे।जहाँ इतना कुछ पढ़ -सुन रहे है ,उसके हिसाब से ये उपमा क्या गलत लगता है आपको ? शतेश के भाई की शादी थी।शादी की वजह से कुछ दिन लगभग 10 -15 दिन समाचार की दुनिया से अलग थी।एक दिन यूँ ही फेसबुक देखा तो "रोहित वेमुला" , "कन्हैया कुमार"की खबरों से भरा पड़ा था।इंटरनेट स्लो था।ठीक से पढ़ नही पाई।बेचैनी इतनी कि न्यूज़ चैनल लगाया कि, आखिर कौन हैं ये लोग ? तभी जाट आन्दोलन की खबरें आ रही थी।भाई से बात की ,फिर इनके बारे में मालूम हुआ।फिर कुछ दिनों में "श्रीमती स्मृति ईरानी जी" का भाषण और फिर बवाल।योग्यवान युवा नेता "श्री राहुल गाँधी जी" का भाषण फिर बवाल ,साथ ही जबाबी भाषण माननीय ,सर्वोपरी "प्रधानमंत्री जी" का फिर बवाल।आखिर इतना बवाल क्यों "?" इन सबके बीच एक और घटना घटी बिना किसी सम्बोधन के एक साधारण महिला "सोनी सोरी" के साथ।इनके बारे में कही -कही ही कुछ लिखा गया था।अगर आप इन्हे जानते है तो ठीक नही तो एक बार समय निकाल कर गूगल जरूर करे।अब जिस देश में हर मौत की खबर एक दलित या अल्पसंख्यक से जोड़ी जाती हो।जहाँ मिडिया ,नेता ,डॉक्टर ,शिक्षक, छात्र ,किसान ,आम जनता यहाँ तक की "मौत "भी नौटंकी का हिस्सा हो उसे और क्या कहे ? छोडो गुस्सा और दुःख तपस्या ,अपने चौथे ज्ञान के बारे में बताओ।भारत की जनता सब सहने और भूलने की हिम्मत रखती है।तुम भी भूल जाओगी।तो चौथा ज्ञान - मुझे मेरे विरह गीतों के संदर्भ में मिला।विरह गीतों की भी परीक्षा हो गई।नतीजा ये निकला की ,इतना विरह नही होता कि ,दिन -रात रोते रहे।वो तो गीतों का असर होता है ,संगीत का जादू होता है।हो सकता मेरा विरह काल छोटा था।पता था शतेश आने वाले है।ढेरो लोग थे ,शतेश का कॉल आते रहता था।तो दुःख थोड़ा कम हुआ।" हाँ हुआ जरूर था " जब शतेश शादी में आये थे ,सब खुश थे, पर मै कुछ ज्यादा ही थी।शतेश के शादी से आ जाने के बाद , मुझे इनकी याद ज्यादा आई।अभी ऐसा था कि ,जब मै अमेरिका जाऊ तभी मुलाकात होती।मै कुछ दिनों के लिए मायके गई थी।सरस्वती पूजा थी।सरस्वती पूजा की दिन मैंने काँच की चूड़ियाँ पहन रखी थी।बिहार में इस दिन पीले रंग की चूड़ियाँ और पीले कपड़े पहनते है।मेरी माँ भी मेरे लिए चूड़ियाँ और ड्रेस लेकर आई थी।
अगले दिन मुझे ससुराल जाना था। मैं उन्ही चूड़ियों में ससुराल पहुँची।जब भी कुछ करती चूड़ियाँ बज उठती। मेरी सासू माँ ने मजाक में कहा "का हो तपस्या तोहर चूड़ी एतना काहे बाजता।शतेश त बा विदेश " उनका ईतना कहना था ,और मै रो पड़ी।शायद यही विरह हो।शतेश की बचपन की बाते सुन कर शरमाना या खुश होना यही विरह हो।लगभग हर तीसरे -चौथे बात में शतेश की बात करना यही विरह हो।दूसरी और शतेश तो अपने मैरिड बैचलर दोस्तों के साथ मस्ती कर रहे थे।संयोग ऐसा था ,कि इनके एक दोस्त को छोड़ सबकी बीबियाँ इंडिया गई थी।इनलोगो का घूमना फिरना जारी था।मैंने शतेश से पूछा तुम मुझे बिल्कूल याद नही करते ना ? शतेश का जवाब -अरे ऐसा नही है तपस्या ,मेरा गुड मॉर्निंग और गुड नाईट तुम्ही से शुरू होता है।बताओ एक दिन भी मैंने गुड मॉर्निंग और गुड नाईट कहना मिस किया हो ? मुझे थोड़ा गुस्सा आया, मैंने कहा -वाह कितना रोमांटिक शब्द है ना ये ? शतेश बोले बाबू सुबह के प्रणाम और रात के प्रणाम से ज्यादा और रोमांटिक क्या हो सकता है ? मै हँसते -हँसते बेहाल हो गई।तभी माँ भी हँसी सुनकर आ गई।बोली सोना नही है?और इसके बाद मुझे पाँचवा ज्ञान प्राप्त हुआ की गुड नाईट और गुड मॉर्निंग एक रोमांटिक शब्द हैं।खैर आगे और भी खट्टी -मीठी बाते होंगी। कुछ शादी के बारे में ,कुछ दोस्तों और घरवालो के बारे में।अब भी अगर आप मेरा विरह को समझना चाहते है तो "सुजात हुसैन खान" की आवाज और उनके सितार के साथ "आमिर खुसरो "जी के ये गीत जरूर सुने।