आज एक इंट्रेस्टिंग कहानी सुनाती हूँ। भूतों की है ,आप बीती है।
बसंतपुर जहाँ हमलोग रहते थे ,उस कॉलोनी के बाउंड्री से सटे तड़कुल के पेड़ लाइन से थे। हमलोगों से मेरा मतलब ,मेरी माँ ,मेरा भाई मेरे चाचा की लड़की और मैं से हैं। बाकी कॉलोनी में अलग -अलग क्वाटर में दूसरी और फॅमिली रहती थीं। सब एक परिवार की तरह ही थे लगभग। सभी एक दूसरे के सुख -दुःख से लेकर आटा -दाल तक आपस में बाँटते थे। हम बच्चें भी खूब उधम मचाते। इसमें सबसे बड़ा उद्यमी मेरा भाई था। गिरना -पड़ना ,कटना ,टेटनस की सुई तो उसका प्रसाद था।
एक दिन हुआ यूँ कि ,कोई कुत्ता कॉलोनी में घुस गया था।बच्चे उसे भगाने लगे। लेकिन कुत्ते को मेरा भाई पसंद आया। उसने प्यार से दाँतों से भाई के हाथ को चुम लिया। फलस्वरूप दस सुई लगने का डॉक्टर ने फरमान जारी किया।
डॉक्टर ने मरहम -पटी कर दी। बोले सुई तो यहाँ नहीं मिलेगी ,या तो छपरा या फिर सीवान जाए। हमलोग का रो -रो कर हालत ख़राब। खैर माँ ने मेरे होमटाउन बेतिया जाने का निर्णय लिया। घर के लोग भी वहाँ थे। मेरा कुछ वार्षिक परीक्षा आने वाला था। ठंढ भी शुरू हो गई थी। ऐसे में माँ मुझे और चाचा की बेटी को कॉलोनी के लोगों के हवाले कर भाई के साथ बेतिया चली गई। अब मेन कहानी शुरू होती है -
माँ के जाने के बाद हम दोनो बहनों की खूब मौज हो गई। कॉलोनी वाले भी खूब प्यार लुटा रहे थे। हमारी कॉलोनी में चौकीदार हमेशा से रहा है ,तो डर वाली भी कोई बात नहीं थी। माँ ने कहा था ,अपने घर में ही सोना। पोद्दार ऑन्टी की बेटी (ममता )मेरी अच्छी दोस्त थी। उसको मेरे घर सोने आने के लिए बोल दिया गया था। ऐसे में शर्मा ऑन्टी के यहाँ भी उनके भाई की बेटी आई थी। वो भी बोली -पूनम भी तुमलोगो के साथ सोने चली जाएगी। चार लोग रहोगे तो डर नहीं लगेगा।
पहली रात भाई के दुःख में ,दूसरी रात ख़ुशी में बीत गया ।तीसरी रात की कहानी से पहले भूमिका -
अगले दिन हमलोग शाम को खेल रहें थे ।तभी वो जो ताड़कुल के पेड़ बाउंड्री से सटे थे ना ,उनपर कुछ बाज़ (चील ) मड़राने लगें। हमलोग खेल रहे थे और पूनम की नज़र उधर गई। हमलोग भी उधर देखने लगे।
राजबली चाचा की बेटी बेबी दी जो हमलोग के साथ खेल रहीं थी ।चील को देख ,भागते हुए बोली -बाप रे ,भागो इधर से ।जहाँ भी चील उड़ता है ,वहाँ भूत होता है । किसी के घर पर बैठ जाए तो लोग उसे छोड़ देतें हैं ।
हमें यकीन नहीं हुआ ।थोड़ी दूर पर पोद्दार ऑन्टी बैठी थी। हमलोग ने उनसे पूछा ।वो बोली की हाँ होता तो है ,लोग पूजा -पाठ करवा कर रहते हैं ।तुमलोग क्या फालतू बातों में हो ,खेलो जा कर ।
बेबी दी को भी डांटा ऐसी बातों के लिए ।ऐसे में पूनम को मजाक सूझ रहा था -बोली मैं किसी से नहीं डरती ।भूत से भी नहीं ।ऐसा कह कर वो उस पेड़ से सटे बाउंड्री के पास जाकर -जोर -जोर से कहने लगी -ये भूतवा कहाँ बारीस रे ।आव -आव ।हमलोग उसे बुलाते रहे वो आई नहीं ।हँसती रही ,कहती रही ।जब हमलोग भाग गए तो वो भी आ गई ।
अब तैयार हो जाइये थ्रिलर के लिए -रात को ममता के साथ पूनम भी मेरे घर सोने के लिए आई ।खाना हमारा हो गया था ।गप शुरू हुआ ।पूनम ने फिर से भूत वाली बात छेड़ दी । मेरी दी ने उसे डाँटा की ऐसा करोगी तो तुम्हे नहीं सुलायेंगे ।हमारे साथ रहने की चाहत ने उस वक़्त उसे रोक लिया ।
फिर जब हमलोग लगभग सोने जा रहे थे पूनम का ड्रामा शुरू हो गया ।रात के कुछ ग्यारह ,साढ़े ग्यारह बज रहे थे ।ठण्ड शरू हो गई थी ।कॉलोनी में सब सो गए होंगे ।यहां पूनम को कभी पिसाब लगता कभी पाखाना ।कभी बोलती भूख लगी है तो कभी कहती गर्मी लग रही है ।हमलोग पूनम को समझा रहें थे ।पूनम बोलती ठीक है अब सो जायेंगे पर फिर ड्रामा करने लगती। गुस्से में आकर दीदी बोली ,चलो तुम्हे तुम्हारे घर पहुंचा देते है।ये सुनकर पूनम खूब रोने लगी। मैंने दीदी को कहाँ अच्छा जाने दो अब नहीं करेगी। चलो सोते हैं।
फिर अचानक पूनम को क्या हुआ मालूम नहीं। जोर -जोर से हँसने लगी। दीदी डाँटी तो खूब रोने लगी। फिर बोली मैं नहाउंगी।
हम सब परेशांन। एक तो ठंढ ऊपर से इन सब ड्रामें में रात के डेढ़ बज गए। ऐसे में ठंढे पानी से कैसे नहाएगी? पर पूनम ने ज़िद धर ली। दीदी भी गुस्से में बोली -जा नाहा। पूनम हमारे सामने ही सारे कपड़े उतारने लगी। दीदी ने डांटा तो हँसती हुई चापाकल की तरफ भागी। नहाये जा रही है। अब तो हमलोग डरने लगे थे। समझ नहीं आ रहा था क्या करें। पूनम नहाना छोड़ ही नहीं रही थी। मैंने दीदी और ममता को कहा छोड़ देते हैं खुद आ जाएगी। मैं जाकर रजाई में घुस गई।
इधर दीदी और ममता ने कैसे भी पूनम को चापाकल से दूर किया । कपडे पहनाये। उसको समझाने लगीं।
पर पूनम तो पूनम। हाँ कह देती ,फिर शुरू हो जाता नया खेल। मैंने दी और ममता को कहा चलो हनुमान चालीसा पढ़तें हैं ।अगर भूत हुआ तो भाग जायेगा ।सबको बात ठीक लगी ।लालटेन की रौशनी में चालीसा शुरू हुआ ।पर पूनम के ड्रामे की वजह से ममता और दी ठीक से पढ़ नहीं पाए ।मैंने बिना उधर ध्यान दिए पढ़ा और आराम से सो गई ।
दी और ममता को पूनम ने और परेशांन किया ।
सुबह -सुबह ही उसे उसके घर ले जाकर दी ने उसकी शिकायत की ।अगली रात से उसकी इंट्री बंद थी ।
कुछ महीनों बाद वो अपने गांव चली गई ।बीमार रहने लगी ।एक दो -साल बाद पता लगा -उसपर किसी जबरदस्त भूत का साया था ।फिर क्या ?कथा गइल बन में सोचो अपना मन में ।
मालूम नहीं क्या सच था ।पर ये बात सिद्ध है हनुमान जी ऑलवेज रॉक्स ।बोलो जय बजरंग बलि की ।
बसंतपुर जहाँ हमलोग रहते थे ,उस कॉलोनी के बाउंड्री से सटे तड़कुल के पेड़ लाइन से थे। हमलोगों से मेरा मतलब ,मेरी माँ ,मेरा भाई मेरे चाचा की लड़की और मैं से हैं। बाकी कॉलोनी में अलग -अलग क्वाटर में दूसरी और फॅमिली रहती थीं। सब एक परिवार की तरह ही थे लगभग। सभी एक दूसरे के सुख -दुःख से लेकर आटा -दाल तक आपस में बाँटते थे। हम बच्चें भी खूब उधम मचाते। इसमें सबसे बड़ा उद्यमी मेरा भाई था। गिरना -पड़ना ,कटना ,टेटनस की सुई तो उसका प्रसाद था।
एक दिन हुआ यूँ कि ,कोई कुत्ता कॉलोनी में घुस गया था।बच्चे उसे भगाने लगे। लेकिन कुत्ते को मेरा भाई पसंद आया। उसने प्यार से दाँतों से भाई के हाथ को चुम लिया। फलस्वरूप दस सुई लगने का डॉक्टर ने फरमान जारी किया।
डॉक्टर ने मरहम -पटी कर दी। बोले सुई तो यहाँ नहीं मिलेगी ,या तो छपरा या फिर सीवान जाए। हमलोग का रो -रो कर हालत ख़राब। खैर माँ ने मेरे होमटाउन बेतिया जाने का निर्णय लिया। घर के लोग भी वहाँ थे। मेरा कुछ वार्षिक परीक्षा आने वाला था। ठंढ भी शुरू हो गई थी। ऐसे में माँ मुझे और चाचा की बेटी को कॉलोनी के लोगों के हवाले कर भाई के साथ बेतिया चली गई। अब मेन कहानी शुरू होती है -
माँ के जाने के बाद हम दोनो बहनों की खूब मौज हो गई। कॉलोनी वाले भी खूब प्यार लुटा रहे थे। हमारी कॉलोनी में चौकीदार हमेशा से रहा है ,तो डर वाली भी कोई बात नहीं थी। माँ ने कहा था ,अपने घर में ही सोना। पोद्दार ऑन्टी की बेटी (ममता )मेरी अच्छी दोस्त थी। उसको मेरे घर सोने आने के लिए बोल दिया गया था। ऐसे में शर्मा ऑन्टी के यहाँ भी उनके भाई की बेटी आई थी। वो भी बोली -पूनम भी तुमलोगो के साथ सोने चली जाएगी। चार लोग रहोगे तो डर नहीं लगेगा।
पहली रात भाई के दुःख में ,दूसरी रात ख़ुशी में बीत गया ।तीसरी रात की कहानी से पहले भूमिका -
अगले दिन हमलोग शाम को खेल रहें थे ।तभी वो जो ताड़कुल के पेड़ बाउंड्री से सटे थे ना ,उनपर कुछ बाज़ (चील ) मड़राने लगें। हमलोग खेल रहे थे और पूनम की नज़र उधर गई। हमलोग भी उधर देखने लगे।
राजबली चाचा की बेटी बेबी दी जो हमलोग के साथ खेल रहीं थी ।चील को देख ,भागते हुए बोली -बाप रे ,भागो इधर से ।जहाँ भी चील उड़ता है ,वहाँ भूत होता है । किसी के घर पर बैठ जाए तो लोग उसे छोड़ देतें हैं ।
हमें यकीन नहीं हुआ ।थोड़ी दूर पर पोद्दार ऑन्टी बैठी थी। हमलोग ने उनसे पूछा ।वो बोली की हाँ होता तो है ,लोग पूजा -पाठ करवा कर रहते हैं ।तुमलोग क्या फालतू बातों में हो ,खेलो जा कर ।
बेबी दी को भी डांटा ऐसी बातों के लिए ।ऐसे में पूनम को मजाक सूझ रहा था -बोली मैं किसी से नहीं डरती ।भूत से भी नहीं ।ऐसा कह कर वो उस पेड़ से सटे बाउंड्री के पास जाकर -जोर -जोर से कहने लगी -ये भूतवा कहाँ बारीस रे ।आव -आव ।हमलोग उसे बुलाते रहे वो आई नहीं ।हँसती रही ,कहती रही ।जब हमलोग भाग गए तो वो भी आ गई ।
अब तैयार हो जाइये थ्रिलर के लिए -रात को ममता के साथ पूनम भी मेरे घर सोने के लिए आई ।खाना हमारा हो गया था ।गप शुरू हुआ ।पूनम ने फिर से भूत वाली बात छेड़ दी । मेरी दी ने उसे डाँटा की ऐसा करोगी तो तुम्हे नहीं सुलायेंगे ।हमारे साथ रहने की चाहत ने उस वक़्त उसे रोक लिया ।
फिर जब हमलोग लगभग सोने जा रहे थे पूनम का ड्रामा शुरू हो गया ।रात के कुछ ग्यारह ,साढ़े ग्यारह बज रहे थे ।ठण्ड शरू हो गई थी ।कॉलोनी में सब सो गए होंगे ।यहां पूनम को कभी पिसाब लगता कभी पाखाना ।कभी बोलती भूख लगी है तो कभी कहती गर्मी लग रही है ।हमलोग पूनम को समझा रहें थे ।पूनम बोलती ठीक है अब सो जायेंगे पर फिर ड्रामा करने लगती। गुस्से में आकर दीदी बोली ,चलो तुम्हे तुम्हारे घर पहुंचा देते है।ये सुनकर पूनम खूब रोने लगी। मैंने दीदी को कहाँ अच्छा जाने दो अब नहीं करेगी। चलो सोते हैं।
फिर अचानक पूनम को क्या हुआ मालूम नहीं। जोर -जोर से हँसने लगी। दीदी डाँटी तो खूब रोने लगी। फिर बोली मैं नहाउंगी।
हम सब परेशांन। एक तो ठंढ ऊपर से इन सब ड्रामें में रात के डेढ़ बज गए। ऐसे में ठंढे पानी से कैसे नहाएगी? पर पूनम ने ज़िद धर ली। दीदी भी गुस्से में बोली -जा नाहा। पूनम हमारे सामने ही सारे कपड़े उतारने लगी। दीदी ने डांटा तो हँसती हुई चापाकल की तरफ भागी। नहाये जा रही है। अब तो हमलोग डरने लगे थे। समझ नहीं आ रहा था क्या करें। पूनम नहाना छोड़ ही नहीं रही थी। मैंने दीदी और ममता को कहा छोड़ देते हैं खुद आ जाएगी। मैं जाकर रजाई में घुस गई।
इधर दीदी और ममता ने कैसे भी पूनम को चापाकल से दूर किया । कपडे पहनाये। उसको समझाने लगीं।
पर पूनम तो पूनम। हाँ कह देती ,फिर शुरू हो जाता नया खेल। मैंने दी और ममता को कहा चलो हनुमान चालीसा पढ़तें हैं ।अगर भूत हुआ तो भाग जायेगा ।सबको बात ठीक लगी ।लालटेन की रौशनी में चालीसा शुरू हुआ ।पर पूनम के ड्रामे की वजह से ममता और दी ठीक से पढ़ नहीं पाए ।मैंने बिना उधर ध्यान दिए पढ़ा और आराम से सो गई ।
दी और ममता को पूनम ने और परेशांन किया ।
सुबह -सुबह ही उसे उसके घर ले जाकर दी ने उसकी शिकायत की ।अगली रात से उसकी इंट्री बंद थी ।
कुछ महीनों बाद वो अपने गांव चली गई ।बीमार रहने लगी ।एक दो -साल बाद पता लगा -उसपर किसी जबरदस्त भूत का साया था ।फिर क्या ?कथा गइल बन में सोचो अपना मन में ।
मालूम नहीं क्या सच था ।पर ये बात सिद्ध है हनुमान जी ऑलवेज रॉक्स ।बोलो जय बजरंग बलि की ।