Wednesday, 30 August 2017

कहानी भूतों की !!!

आज एक इंट्रेस्टिंग कहानी सुनाती हूँ। भूतों की है ,आप बीती है।
बसंतपुर जहाँ हमलोग रहते थे ,उस कॉलोनी के बाउंड्री से  सटे तड़कुल के पेड़ लाइन से थे। हमलोगों से मेरा मतलब ,मेरी माँ ,मेरा भाई मेरे चाचा की लड़की और मैं से हैं। बाकी कॉलोनी में अलग -अलग क्वाटर में दूसरी और फॅमिली रहती थीं। सब एक परिवार की तरह ही थे लगभग। सभी एक दूसरे के सुख -दुःख से लेकर आटा -दाल तक आपस में बाँटते थे। हम बच्चें भी खूब उधम मचाते। इसमें सबसे बड़ा उद्यमी मेरा भाई था। गिरना -पड़ना ,कटना ,टेटनस की सुई तो उसका प्रसाद था।
एक दिन हुआ यूँ कि ,कोई कुत्ता कॉलोनी में घुस गया था।बच्चे  उसे भगाने लगे। लेकिन कुत्ते को मेरा भाई पसंद आया। उसने प्यार से दाँतों से भाई के हाथ को चुम लिया। फलस्वरूप दस सुई लगने का डॉक्टर ने फरमान जारी किया।
 डॉक्टर ने मरहम -पटी कर दी। बोले सुई तो यहाँ नहीं मिलेगी ,या तो छपरा या फिर सीवान जाए। हमलोग का रो -रो कर हालत ख़राब। खैर माँ ने मेरे होमटाउन बेतिया जाने का निर्णय लिया। घर के लोग भी वहाँ थे। मेरा कुछ वार्षिक परीक्षा आने वाला था। ठंढ भी शुरू हो गई थी। ऐसे में माँ मुझे और चाचा की बेटी को कॉलोनी के लोगों के हवाले कर भाई के साथ बेतिया चली गई। अब मेन कहानी शुरू होती है -
माँ के जाने के बाद हम दोनो बहनों की खूब मौज हो गई। कॉलोनी वाले भी खूब प्यार लुटा रहे थे। हमारी कॉलोनी में चौकीदार हमेशा से रहा है ,तो डर वाली भी कोई बात नहीं थी। माँ ने कहा था ,अपने घर में ही सोना। पोद्दार ऑन्टी की बेटी (ममता )मेरी अच्छी दोस्त थी। उसको मेरे घर सोने आने के लिए बोल दिया गया था। ऐसे में शर्मा ऑन्टी के यहाँ भी उनके भाई की बेटी आई थी। वो भी बोली -पूनम भी तुमलोगो के साथ सोने चली जाएगी। चार लोग रहोगे तो डर नहीं लगेगा।
 पहली रात भाई के दुःख में ,दूसरी रात  ख़ुशी में बीत गया ।तीसरी रात की कहानी से पहले भूमिका -
अगले दिन हमलोग शाम को खेल रहें थे ।तभी वो जो ताड़कुल के पेड़ बाउंड्री से सटे थे ना ,उनपर कुछ बाज़ (चील ) मड़राने लगें। हमलोग खेल रहे थे और पूनम की नज़र उधर गई। हमलोग भी उधर देखने लगे।
राजबली चाचा की बेटी बेबी दी जो हमलोग के साथ खेल रहीं थी ।चील को देख ,भागते हुए बोली -बाप रे ,भागो इधर से ।जहाँ भी चील उड़ता है ,वहाँ भूत होता है । किसी के घर पर बैठ जाए तो लोग उसे छोड़ देतें हैं ।
हमें यकीन नहीं हुआ ।थोड़ी दूर पर पोद्दार ऑन्टी बैठी थी। हमलोग ने उनसे पूछा ।वो बोली की हाँ होता तो है ,लोग पूजा -पाठ करवा कर रहते हैं ।तुमलोग क्या फालतू बातों में हो ,खेलो जा कर ।
बेबी दी को भी डांटा ऐसी बातों के लिए ।ऐसे में पूनम को मजाक सूझ रहा था -बोली मैं किसी से नहीं डरती ।भूत से भी नहीं ।ऐसा कह कर वो उस पेड़ से सटे बाउंड्री के पास जाकर -जोर -जोर से कहने लगी -ये भूतवा कहाँ बारीस रे ।आव -आव ।हमलोग उसे बुलाते रहे वो आई नहीं ।हँसती रही ,कहती रही ।जब हमलोग भाग गए तो वो भी आ गई ।

अब तैयार हो जाइये थ्रिलर के लिए -रात को ममता के साथ पूनम भी मेरे घर सोने के लिए आई ।खाना हमारा हो गया था ।गप शुरू हुआ ।पूनम ने फिर से भूत वाली बात छेड़ दी । मेरी दी ने उसे डाँटा की ऐसा करोगी तो तुम्हे नहीं सुलायेंगे ।हमारे साथ रहने की चाहत ने उस वक़्त उसे रोक लिया ।
फिर जब हमलोग लगभग सोने जा रहे थे पूनम का ड्रामा शुरू हो गया ।रात के कुछ ग्यारह ,साढ़े ग्यारह बज रहे थे ।ठण्ड शरू हो गई थी ।कॉलोनी में सब सो गए होंगे ।यहां पूनम को कभी पिसाब लगता कभी पाखाना ।कभी बोलती भूख लगी है तो कभी कहती गर्मी लग रही है ।हमलोग पूनम को समझा रहें थे ।पूनम बोलती ठीक है अब सो जायेंगे पर फिर ड्रामा करने लगती। गुस्से में आकर दीदी बोली ,चलो तुम्हे तुम्हारे घर पहुंचा देते है।ये सुनकर  पूनम खूब रोने लगी। मैंने दीदी को कहाँ अच्छा जाने दो अब नहीं करेगी। चलो सोते हैं।
फिर अचानक पूनम को क्या हुआ मालूम नहीं। जोर -जोर से हँसने लगी। दीदी डाँटी तो खूब रोने लगी। फिर बोली मैं नहाउंगी।
हम सब परेशांन। एक तो ठंढ ऊपर से इन सब ड्रामें में रात के डेढ़ बज गए। ऐसे में ठंढे पानी से कैसे नहाएगी? पर पूनम ने ज़िद धर ली। दीदी भी गुस्से में बोली -जा नाहा। पूनम हमारे सामने ही सारे कपड़े उतारने लगी। दीदी ने डांटा तो हँसती हुई चापाकल की तरफ भागी। नहाये जा रही है। अब तो हमलोग डरने लगे थे। समझ नहीं आ रहा था क्या करें। पूनम नहाना छोड़ ही नहीं रही थी। मैंने दीदी और ममता को कहा छोड़ देते हैं खुद आ जाएगी। मैं जाकर रजाई में घुस गई।
इधर दीदी और ममता ने कैसे भी पूनम को चापाकल से दूर किया । कपडे पहनाये। उसको समझाने लगीं।
पर पूनम तो पूनम। हाँ कह देती ,फिर शुरू हो जाता नया खेल। मैंने दी और ममता को कहा चलो हनुमान चालीसा पढ़तें हैं ।अगर भूत हुआ तो भाग जायेगा ।सबको बात ठीक लगी ।लालटेन की रौशनी में चालीसा शुरू हुआ ।पर पूनम के ड्रामे की वजह से ममता और दी ठीक से पढ़ नहीं पाए ।मैंने बिना उधर ध्यान दिए पढ़ा और आराम से सो गई ।
दी और ममता को पूनम ने और परेशांन किया ।
सुबह -सुबह ही उसे उसके घर ले जाकर दी ने उसकी शिकायत की ।अगली रात से उसकी इंट्री बंद थी ।
कुछ महीनों बाद वो अपने गांव चली गई ।बीमार रहने लगी ।एक दो -साल बाद पता लगा -उसपर किसी जबरदस्त भूत का साया था ।फिर क्या ?कथा गइल बन में सोचो अपना मन में ।
मालूम नहीं क्या सच था ।पर ये बात सिद्ध है हनुमान जी ऑलवेज रॉक्स ।बोलो जय बजरंग बलि की ।


Monday, 21 August 2017

पूर्ण सूर्यग्रहण !!!

अमेरिका में पूर्ण सूर्यग्रहण लगभग एक शताब्दी बाद होने वाला था। एक महीने से जोर -शोर से न्यूज़ चैनल वाले इसका प्रचार कर रहे थे। मानो ये अपने यहाँ की तरह कोई अपसगुन नहीं ,कोई दैविक दर्शन हो। लोग फ्लाइट बुक कर रहे हैं। जिस जगह पूर्ण सूर्यग्रहण है ,वहाँ के हॉटेलस में जगह नहीं हैं। और तो और सनग्लासेस की तो पूछिए मत। मतलब मार्केटिंग  के स्टूडेंट के लिए अमेरिका परफेक्ट है। कैसे मौका और सामान को चमका के बेचना है ,कोई इनसे सीखे। हम भी इसी फेरे में अमेज़ॉन से चश्मा आर्डर लिस्ट में डाल दिए थे।  बस कांड ये हुआ कि मुझे दिन का कन्फ्यूज़न हो गया। कल रात गूगल न्यूज़ पर कल  होने वाले सूर्यग्रहण का पढ़ कर लगा हो गइल। अब का होइ ?  एगो त अपने चश्मा  ऊपर से डायरेक्ट देख के बचलो आँख ना लालटेन बन जाओ।
इशु को खिला कर ,रात के डेढ़ बजे पिन होल बनाना शुरू किया। बन तो पाँच मिनट में गया ,पर साथ ही बचपन की कई यादें ताज़ा हो गई। सातवीं क्लास में थी ,जब प्रभात सर ने ग्रहण देखने का तरीका बताया था।
एक तो पिन होल दूसरा शीशे से रिफ्लेक्शन ,तीसरा एक्स -रे रिपोर्ट से देखना ।
 मेरे पास ना तो शीशा है ना ही एक्स -रे रिपोर्ट। तो ऑप्शन फर्स्ट ही काम आ सकता था।
एक तो यहाँ के डॉक्टर। सारी रिपोर्ट -जाँच अपने डेटा में रखते है ,मानो जाँच ना हो खजाना हो। आप उस जाँच पोर्टल से जुड़े होते है ।अपनी आई डी से लॉगिन कर देख सकते है ,पर हाथ में कुछ नहीं देते ।
अपने भारत का  ठीक हिसाब -किताब होता है। पैसा दियो हो ,ले जाओ अपने पार्ट पुर्जा का कागज़ -पत्तर।
इसी बहाने एक्स -रे को देखने चार लोग आते हैं , चकित होते। सब लोग उसे देख ,बिना डॉक्टरी के  डॉक्टर बन जाते। आहा ऊपर से सिम्पैथी अलग से मिलती। मज़ा आ जाता है ।
खैर विषय से ना भटकते हुए ,फिर पीछे से माँ की आवाज़ आती है -लवली ज़्यादा मत देखो आँख ख़राब हो जायेगा। कॉलनी में इसे देखते बड़े -बुज़ुर्ग अलग -अलग कयास लगाते। मसलन इस साल बाढ़ या सूखा पड़ेगा। भूकंप भी आ सकता है ,महामारी आदि -आदि। वहीँ कॉलोनी के बच्चे एक दूसरे को बता के खुश होते की मुझे भी दिखा मुझे भी।
इस तरह इधर ग्रहण खत्म होता उधर माँ का ग्रहण शुरू होता। चलो नहाओ ,राशन -पानी दान का छुओ। खाना तो बना नहीं होता या फिर पहले का खाना फेंक दिया गया होता। तो बस जल्दी से चूड़ा - दही का भोग लगाओ।
ग्रहण में पकाया हुआ खाना भले फेंक दे ,पर दूध -दही नहीं फेंकते। ये दैविक पदार्थ  होते हैं ,ऐसा सब कहते हैं।
तो इस तरह बचपन से निकल कर ,फिर से अपनी बालकनी से आज मैंने सूर्य ग्रहण देखा ।
तो चलिए देखिये कुछ तस्वीरें ,मेरी बनाई पिन होल के द्वारा ।हालाँकि मुझे थोड़ी देर से याद आया तस्वीर लेने का ,पर जो भी दिखा बहुत सुन्दर था ।हमारे यहां पार्शियल ग्रहण था ।
मज़ेदार किस्सा :- ग्रहण के समय अँधेरा हो गया ,मुझे लगा मेरी बालकनी में सूर्यदेव के दर्शन नहीं होंगे। इशु को छोड़ कर नीचे जा नहीं सकती थी। थोड़ी देर इंतज़ार के बाद नियमानुसार इशु को नहलाया ,खुद नाहा कर पूजा करने जा रही थी कि शतेश का कॉल आया -तपस्या तुमने देखा क्या ग्रहण ? जल्दी बाहर जाओ अभी दिख रहा है। भाग कर बालकनी में गई और सूर्यदेव के साथ इक्वल हॉफ की कृपा से देख पाई। अब समस्या ये की फिर से नहाऊँ क्या ? अब कौन फिर से बेटे को नहलाये ,खुद नहाये। बस हनुमान जी का नाम लेकर ,पानी छिड़क लिया। राशन की जगह पाँच डॉलर छू कर ग्रहण मुक्त हो गई ।

Tuesday, 15 August 2017

द आर्ट ऑफ वॉर!!!

कान्हा का जन्म हो गया अब माता यशोदा के धैर्य की बारी है। यहां तो कभी -कभी मेरा धैर्य खोने लगता है। आपको सलूट है यशोदा माँ। आप कैसे कान्हा को इतना तैयार करती थी। मेरा बेटा तो डायपर पहने में भी मेरी माँ याद करवा देता है।
वैसे प्यार मुझसे बहुत करता है। प्यार का आलम ये है कि ,जब भी मैं खाने बैठूँ तो रोने लगता है व फिर पोट्टी करने। उसके बरहिया (जन्म के बारहवें दिन की पूजा ) में राहुल सांस्कृयान की वोल्गा से गंगा क्या छुआ दिए ,अभी से घुमड़ शास्त्री बनने लगा है। शाम को बाहर नहीं लेकर जाओ तो युद्ध की स्थिति बन जाती है।
एक दोस्त ने कहा -तुम्हारी सोहबत का ही असर है। मैंने कहा सोहबत का नहीं खून का असर  है। अब समस्या ये भी है कि इसका क्या उपाय हो।
आज शाम मैं बहुत फ्रस्टेट हो गई थी। बाहर बारिश जैसा मौषम था ।जनाब रोये जा रहें थे। कहाँ ले जाय। शतेश बोले चलो कहीं चल लेते है। मेरा बिल्कुल जाने का मन नहीं था। शतेश और इशू की जिद्द से निकल पड़ी। गाड़ी में बैठते ही इशू महराज चुप हो गए। शतेश बाबू मॉल ऐरिया की तरफ गाड़ी ले लिए। गाड़ी " बार्नेस एंड नोबल " के पास गाड़ी रोक दिए। बोले चलो कोई बुक ले लो ।मूड ठीक हो जायेगा। गुस्सा तो था ही पर ये शॉप देखकर थोड़ा शांत हो गई। बोली लेकर भी क्या फायदा जो पढ़ ही नहीं पाती।
खैर दुकान के अंदर गई। ना -ना करते हुए दो किताब ले ली। थैंक यू मेरा राजदुलारा ,मेरा सोना,मेरा मीर मस्ताना ,मेरा बदमाश खून सत्यार्थ  ,तुम्हारी वजह से कितने दिनों की सोची किताबें ले पाई ।

पहली किताब -"द आर्ट ऑफ वॉर " और दूसरी -"द मेटामॉर्फोसिस एंड अदर्स  स्टोरीज। "
द आर्ट ऑफ़ वॉर काफी समय से पढ़ने का मन था। देखते ही ले लिया। माहौल भी अनुकूल है ।बेटा  घर में पानी पीला रहा है । इधर उत्तर कोरिया बम दाग़ने को तैयार है । वही मातृभूमि को चीन डरा रहा है। ऐसे में चाइनीज़ माल ओह्ह सॉरी चाइनीज़ लेखक को पढ़ना ठीक नहीं तपस्या । देशद्रोह जैसा कुछ फील होगा ।उम्म्म ,ना नहीं हुआ ।,चाइनीज़ खाना और कोई अच्छी किताब कहाँ से देशद्रोह टाइप फिलिंग लाएगा । एक पेट भर रहा है एक दिमाग ।दोनों संतुष्ट तो हम संतुष्ट ।
दूसरी किताब - फ्रैंज काफ़्का के कुछ कोट और "इन द पेनल कॉलोनी "शार्ट फिल्म की वज़ह से लिया ।
*मैं आज़ाद हूँ यही वज़ह है की खोया हूँ ।
*प्यार विरोधाभास का नाटक है ।


Tuesday, 8 August 2017

स्टैमफोर्ड ,चर्च के अंदर की कहानी !!!!

स्टैम्फ़र्ड छोड़ने से पहले आख़िरकार मैंने वहाँ के चार चर्च के दर्शन कर लिए ।वॉक वाला नही भाईलोग ,अंदर जा कर  देख ,सुनकर कर आई हूँ इस बार । आज चर्च के अंदर की तस्वीरें आपके सामने पेस होंगी ।

तो सबसे पहले वो वाला चर्च -जहाँ से मेरे धातुरे के उखाड़ फेंका था । इस चर्च के बारे में पहले भी लिख चुकीं हूँ ।नाम है इसका "फर्स्ट प्रेजिबटीरीयन (पादरी ,पुरोहित )चर्च  "इसे एक मछली जैसी आकृति दी गई है ।अंदर की दीवारों पर ख़ूबसूरत रंग -बिरंगे शीशे लगाए हुए है ।चर्च के अंदर लगभग सौ लोगों की बेंच पर बैठने की व्यवस्था है ।सामने एक छोटा सा स्टेज है। उसके पीछे पीतल या किसी पीले धातु से लाइट जैसा आकर दिया गया है ।यहाँ कभी कोई कोरस गाने -बजाने का प्रोग्राम होता है तो ,कभी प्रेम ,दया ,सेवा का ज्ञान दिया जाता है। जब हम गए थे ,म्यूज़िकल प्रोग्राम ख़त्म हो चुका था ।सबलोग जा चुके थे । चर्च भी थोड़ी देर में बंद ही होने वाला था ।भाग -भाग के अंदर गए ।ऐसे में इशु की किलकारियों से ख़ाली चर्च गूँज उठा ।मेरा बच्चा शायद रंग -बिरंगे शीशे देख कर खुश हो गया था ।इस चर्च में सभी समुदाय के लोग आ सकते हैं। इनका उद्देश्य बाईबल का प्रचार -प्रसार करना और इसे मानना है।समुदाय की सेवा भी ये लोग अपने -अपने तरीक़े से करते हैं ।
ये रही तस्वीरें -

दूसरा चर्च -जिसके बाहर बोर्ड पर हमने अमेरिका के बारे में लिखा था। इसी के सामने वो पार्क है ।जहाँ मुझे बिहार की ,बम्बई वाली ऑन्टी मिली थी। चर्च के अंदर ज्यादा जगह नहीं है ,फिर भी मुझे लगता है बेंच पर 50 लोग बैठ सकते हैं ।इसका नाम -फर्स्ट कंग्रेगेशनल(धार्मिक समूह ) चर्च है ।इसमें भी सब एक हैं ।प्यार और दया की बातें होती है ।एक पादरी  आते है और ज्ञान की बातें करते ।मैं इस चर्च में क्रिश्मस के रात को गई थी ।उस समय तो इसके अंदर मुफ्त की ब्लैक कॉफी मिल रही थी ।साथ ही कुछ लोगों ने स्टॉल लगा रखा था । जो भी बिक्री होगी  ,उसकी आमदनी किसी कैंसर संस्था और बच्चों के लिए दान में जाती ।मैंने एक लैवेंडर की ख़ुशूब  वाली मोमबती ख़रीदा ।
ये रही तस्वीर-

तीसरा चर्च -चर्च ऑफ़ द अर्चनजेल्स(देव दूत ,महान फ़रिश्ता ) ।ये मेरी रसोई की खिड़की से दिखता रहता ,पर इसे ही मैंने सबसे लास्ट में देखा अंदर जा कर ।घर की मुर्गी वाला हिसाब है ।इसके फ़ॉलोवर यूनानी रूढ़िवादी क्रिस्चियन हैं ।जो की जीजस के उपदेश या उनके भक्ति द्वारा मुक्ति में विश्वास रखते हैं ।जीजस के विचार को पढ़ते और पढ़ाते है ।उसका प्रचार करते हैं ।इसमें बच्चों के लिए एक स्कूल भी है ।फ्री नहीं है भाई ,पैसे देने होते हैं ।
हाँ यहाँ फ्री में कुछ- कुछ ग्रीक फंक्शन होते हैं । पर मुझे जबतक मालूम होता ठण्ड शुरू हो चुकी थी । स्टैमफोर्ड की ठण्ड और मेरी प्रेग्नेंसी उफ़्फ़ !क्या मस्त आलस का जमाना था ।खूब सोती थी । इस वजह से जा नहीं पाई ।जब बाद में गई तो ,चर्च कंस्ट्रक्शन की वजह से अंदर से बंद था ।स्टेज को कपडे से घेर रखा था ।हर तरफ लकड़ी और गत्ते पड़े थे ।बाहर की तस्वीर ये रही -