अमेरिका में पूर्ण सूर्यग्रहण लगभग एक शताब्दी बाद होने वाला था। एक महीने से जोर -शोर से न्यूज़ चैनल वाले इसका प्रचार कर रहे थे। मानो ये अपने यहाँ की तरह कोई अपसगुन नहीं ,कोई दैविक दर्शन हो। लोग फ्लाइट बुक कर रहे हैं। जिस जगह पूर्ण सूर्यग्रहण है ,वहाँ के हॉटेलस में जगह नहीं हैं। और तो और सनग्लासेस की तो पूछिए मत। मतलब मार्केटिंग के स्टूडेंट के लिए अमेरिका परफेक्ट है। कैसे मौका और सामान को चमका के बेचना है ,कोई इनसे सीखे। हम भी इसी फेरे में अमेज़ॉन से चश्मा आर्डर लिस्ट में डाल दिए थे। बस कांड ये हुआ कि मुझे दिन का कन्फ्यूज़न हो गया। कल रात गूगल न्यूज़ पर कल होने वाले सूर्यग्रहण का पढ़ कर लगा हो गइल। अब का होइ ? एगो त अपने चश्मा ऊपर से डायरेक्ट देख के बचलो आँख ना लालटेन बन जाओ।
इशु को खिला कर ,रात के डेढ़ बजे पिन होल बनाना शुरू किया। बन तो पाँच मिनट में गया ,पर साथ ही बचपन की कई यादें ताज़ा हो गई। सातवीं क्लास में थी ,जब प्रभात सर ने ग्रहण देखने का तरीका बताया था।
एक तो पिन होल दूसरा शीशे से रिफ्लेक्शन ,तीसरा एक्स -रे रिपोर्ट से देखना ।
मेरे पास ना तो शीशा है ना ही एक्स -रे रिपोर्ट। तो ऑप्शन फर्स्ट ही काम आ सकता था।
एक तो यहाँ के डॉक्टर। सारी रिपोर्ट -जाँच अपने डेटा में रखते है ,मानो जाँच ना हो खजाना हो। आप उस जाँच पोर्टल से जुड़े होते है ।अपनी आई डी से लॉगिन कर देख सकते है ,पर हाथ में कुछ नहीं देते ।
अपने भारत का ठीक हिसाब -किताब होता है। पैसा दियो हो ,ले जाओ अपने पार्ट पुर्जा का कागज़ -पत्तर।
इसी बहाने एक्स -रे को देखने चार लोग आते हैं , चकित होते। सब लोग उसे देख ,बिना डॉक्टरी के डॉक्टर बन जाते। आहा ऊपर से सिम्पैथी अलग से मिलती। मज़ा आ जाता है ।
खैर विषय से ना भटकते हुए ,फिर पीछे से माँ की आवाज़ आती है -लवली ज़्यादा मत देखो आँख ख़राब हो जायेगा। कॉलनी में इसे देखते बड़े -बुज़ुर्ग अलग -अलग कयास लगाते। मसलन इस साल बाढ़ या सूखा पड़ेगा। भूकंप भी आ सकता है ,महामारी आदि -आदि। वहीँ कॉलोनी के बच्चे एक दूसरे को बता के खुश होते की मुझे भी दिखा मुझे भी।
इस तरह इधर ग्रहण खत्म होता उधर माँ का ग्रहण शुरू होता। चलो नहाओ ,राशन -पानी दान का छुओ। खाना तो बना नहीं होता या फिर पहले का खाना फेंक दिया गया होता। तो बस जल्दी से चूड़ा - दही का भोग लगाओ।
ग्रहण में पकाया हुआ खाना भले फेंक दे ,पर दूध -दही नहीं फेंकते। ये दैविक पदार्थ होते हैं ,ऐसा सब कहते हैं।
तो इस तरह बचपन से निकल कर ,फिर से अपनी बालकनी से आज मैंने सूर्य ग्रहण देखा ।
तो चलिए देखिये कुछ तस्वीरें ,मेरी बनाई पिन होल के द्वारा ।हालाँकि मुझे थोड़ी देर से याद आया तस्वीर लेने का ,पर जो भी दिखा बहुत सुन्दर था ।हमारे यहां पार्शियल ग्रहण था ।
मज़ेदार किस्सा :- ग्रहण के समय अँधेरा हो गया ,मुझे लगा मेरी बालकनी में सूर्यदेव के दर्शन नहीं होंगे। इशु को छोड़ कर नीचे जा नहीं सकती थी। थोड़ी देर इंतज़ार के बाद नियमानुसार इशु को नहलाया ,खुद नाहा कर पूजा करने जा रही थी कि शतेश का कॉल आया -तपस्या तुमने देखा क्या ग्रहण ? जल्दी बाहर जाओ अभी दिख रहा है। भाग कर बालकनी में गई और सूर्यदेव के साथ इक्वल हॉफ की कृपा से देख पाई। अब समस्या ये की फिर से नहाऊँ क्या ? अब कौन फिर से बेटे को नहलाये ,खुद नहाये। बस हनुमान जी का नाम लेकर ,पानी छिड़क लिया। राशन की जगह पाँच डॉलर छू कर ग्रहण मुक्त हो गई ।
इशु को खिला कर ,रात के डेढ़ बजे पिन होल बनाना शुरू किया। बन तो पाँच मिनट में गया ,पर साथ ही बचपन की कई यादें ताज़ा हो गई। सातवीं क्लास में थी ,जब प्रभात सर ने ग्रहण देखने का तरीका बताया था।
एक तो पिन होल दूसरा शीशे से रिफ्लेक्शन ,तीसरा एक्स -रे रिपोर्ट से देखना ।
मेरे पास ना तो शीशा है ना ही एक्स -रे रिपोर्ट। तो ऑप्शन फर्स्ट ही काम आ सकता था।
एक तो यहाँ के डॉक्टर। सारी रिपोर्ट -जाँच अपने डेटा में रखते है ,मानो जाँच ना हो खजाना हो। आप उस जाँच पोर्टल से जुड़े होते है ।अपनी आई डी से लॉगिन कर देख सकते है ,पर हाथ में कुछ नहीं देते ।
अपने भारत का ठीक हिसाब -किताब होता है। पैसा दियो हो ,ले जाओ अपने पार्ट पुर्जा का कागज़ -पत्तर।
इसी बहाने एक्स -रे को देखने चार लोग आते हैं , चकित होते। सब लोग उसे देख ,बिना डॉक्टरी के डॉक्टर बन जाते। आहा ऊपर से सिम्पैथी अलग से मिलती। मज़ा आ जाता है ।
खैर विषय से ना भटकते हुए ,फिर पीछे से माँ की आवाज़ आती है -लवली ज़्यादा मत देखो आँख ख़राब हो जायेगा। कॉलनी में इसे देखते बड़े -बुज़ुर्ग अलग -अलग कयास लगाते। मसलन इस साल बाढ़ या सूखा पड़ेगा। भूकंप भी आ सकता है ,महामारी आदि -आदि। वहीँ कॉलोनी के बच्चे एक दूसरे को बता के खुश होते की मुझे भी दिखा मुझे भी।
इस तरह इधर ग्रहण खत्म होता उधर माँ का ग्रहण शुरू होता। चलो नहाओ ,राशन -पानी दान का छुओ। खाना तो बना नहीं होता या फिर पहले का खाना फेंक दिया गया होता। तो बस जल्दी से चूड़ा - दही का भोग लगाओ।
ग्रहण में पकाया हुआ खाना भले फेंक दे ,पर दूध -दही नहीं फेंकते। ये दैविक पदार्थ होते हैं ,ऐसा सब कहते हैं।
तो इस तरह बचपन से निकल कर ,फिर से अपनी बालकनी से आज मैंने सूर्य ग्रहण देखा ।
तो चलिए देखिये कुछ तस्वीरें ,मेरी बनाई पिन होल के द्वारा ।हालाँकि मुझे थोड़ी देर से याद आया तस्वीर लेने का ,पर जो भी दिखा बहुत सुन्दर था ।हमारे यहां पार्शियल ग्रहण था ।
मज़ेदार किस्सा :- ग्रहण के समय अँधेरा हो गया ,मुझे लगा मेरी बालकनी में सूर्यदेव के दर्शन नहीं होंगे। इशु को छोड़ कर नीचे जा नहीं सकती थी। थोड़ी देर इंतज़ार के बाद नियमानुसार इशु को नहलाया ,खुद नाहा कर पूजा करने जा रही थी कि शतेश का कॉल आया -तपस्या तुमने देखा क्या ग्रहण ? जल्दी बाहर जाओ अभी दिख रहा है। भाग कर बालकनी में गई और सूर्यदेव के साथ इक्वल हॉफ की कृपा से देख पाई। अब समस्या ये की फिर से नहाऊँ क्या ? अब कौन फिर से बेटे को नहलाये ,खुद नहाये। बस हनुमान जी का नाम लेकर ,पानी छिड़क लिया। राशन की जगह पाँच डॉलर छू कर ग्रहण मुक्त हो गई ।
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